Lifestyle Updates : बढ़ती जनसंख्या ने जगह तंग कर दी है. अब लोग आगेपीछे, दाएंबाएं फैलने की जगह ऊपर की तरफ बढ़ रहे हैं. कहने का अर्थ यह कि अब रहने के लिए घर नहीं बल्कि फ्लैट अधिक बन रहे हैं. ऊंचीऊंची बिल्डिंगों में कबूतरखाने, जहां प्राइवेसी का नामोनिशान नहीं है.

”सोनू अपनी बहू से बोला जरा धीरे बोला करे, यह फ्लैट है, उस के घर का आंगन नहीं कि चिल्लाचिल्ला कर एकदूसरे को बुलाएं. चिल्लाचिल्ला कर बात करें.” बूआ सास ने रानी के पति और अपने भतीजे सोनू को तीखे अंदाज में हिदायत दी.

सोनू पहले ही कई बार अपनी पत्नी रानी से धीरे बात करने की कह चुका है. वह जब से इस घर में ब्याह कर आई है सोनू उस का वौल्यूम ही कम करने में लगा है, मगर रानी की जुबान तो ठीक वौल्यूम पर सेट ही नहीं हो रही है. आखिरकार आज उस की बूआ सास ने भी टोक दिया.

दरअसल रानी पहले जिस मकान में रहती थी वह बड़ा और फैला हुआ पुराने जमाने का मकान था, जिस में बीचोंबीच बड़ा सा आंगन और चारों तरफ रहने के लिए कमरे बने थे. दोमंजिला बने इस मकान में नीचे रानी का परिवार और ऊपर ताऊजी की फैमिली रहती थी. दोनों परिवारों में कुलमिला कर 9 भाईबहन थे.

पूरे घर में धमाचौकड़ी मची रहती थी. सब बच्चे खानेखेलने के लिए आंगन में खड़े हो कर एकदूसरे को चिल्लाचिल्ला कर बुलाते थे. रानी की यही आदत अब उस के ससुराल में उस के लिए मुसीबत बनी हुई थी. क्योंकि यह सेकंड फ्लोर पर एक थ्री बीएचके फ्लैट था. बिल्डिंग के हर फ्लोर पर 4 फ्लैट थे. दीवारें आपस में जुड़ी हुई थीं, बालकनी में खड़े हो जाओ तो ऊपर वाले फ्लोर और नीचे वाले फ्लोर के लोगों से आसानी से बात हो सकती थी. शाफ्ट में सब के किचन की खिड़कियां खुलती थीं. इस की वजह से एक घर की आवाज दूसरे घर में आसानी से सुनी जा सकती थी.

रानी के सामने वाला फ्लैट बूआ सास का था. जिन्होंने सुबहसुबह अपने भतीजे सोनू को हिदायत दी. पता नहीं रानी की कौन सी बात उन के कान में पड़ गई थी. रानी को ब्याह कर के आए अभी महीना ही हुआ था. वह देख रही थी कि उस के ससुराल में सब बड़ी धीमी आवाज में बात करते थे. यहां तक कि लड़ाईझगड़ा भी धीमे स्वर में होता था. समझ नहीं आता था कि लड़ रहे हैं या बात कर रहे हैं.

रानी को बड़ा अटपटा लगता था. सोचती कि यह कैसा घर है, जहां न खुल कर हंस सको, न रो सको, न लड़ सको. बस गूंगे बन कर बैठे रहो या फुसफुसाफुसफुसा कर बात करो. जरा सी आवाज बढ़ते ही टोक पड़ती है.

शहरों में बढ़ते फ्लैट कल्चर की यह सब से बड़ी परेशानी है कि आप की कोई प्राइवेसी नहीं रह गई है. गेट के वौचमैन से ले कर ऊपरनीचे, अगलबगल के फ्लैट वाले जानते हैं कि आप के घर में क्या चल रहा है, क्या पक रहा है, कौन आया है, कौन गया है, अंदर क्या बातें चल रही हैं. आदिआदि.

जसविंदर सिंह कितने समय तक यही बताते रहे कि उन का दामाद चूंकि सालभर के लिए कनाडा गया है, इसलिए उन की बेटी यहां उन के पास रहने आ गई है. जब कि जिस दिन उन की बेटी ऋचा अपना सूटकेस ले कर आई थी उसी दिन बगल के फ्लैट में रहने वाली मालिनी कुकरेजा को पता चल गया था कि वह पति से तलाक ले कर हमेशा के लिए मांबाप के घर आ गई है.

दरअसल उस रात ऋचा जब अपने मांबाप को रोरो कर अपने ससुराल वालों की और अपने पति की बुराइयां मांबाप से कर रही थी, कई कान उस के फ्लैट की दीवार से लगे हुए थे. कुकरेजा का फ्लैट बगल में था, लिहाजा उन्होंने सारी बातें साफसाफ सुनी थीं. उन के लिए तो उन की अगली किट्टी पार्टी के लिए यह सब से मसालेदार न्यूज थी. बेचारे जसविंदर सिंह सोचते थे कि किसी को सच्चाई नहीं मालूम, मगर सब जानते थे उन की बेटी के साथ क्या हुआ.

हिना खान अपने फ्लैट को बेच कर किसी छोटे शहर में एक घर खरीदना चाहती हैं. वजह यह कि वह अपने फ्लैट में किसी तरह की प्राइवेसी महसूस नहीं करती हैं. उन के ऊपरी फ्लैट में रहने वाले सिन्हा साहब जब देखो तब उस के दरवाजे पर मुंह पर मुसकान चिपकाए खड़े रहते हैं. कहते हैं- ‘बेटा बड़ी अच्छी खुशबू आ रही थी, मैं तो अपनेआप को रोक नहीं पाया.’

सिन्हा साहब खाने के बड़े शौकीन हैं. उन की पत्नी बीपी और शुगर की मरीज है तो उन के वहां न तो खाने में ज्यादा मिर्चमसाला पड़ता है और न नौनवेज ज्यादा बनता है. उबलाउबला खाना सिन्हा साहब के गले से बमुश्किल ही उतरता है.

कई बार तो वे बाहर से चाटपकौड़े खा आते हैं और बीवी से भूख न होने का बहाना बना देते हैं. मगर जब से हिना और उस के पति रिजवान अपने दो बच्चों के साथ उन के नीचे वाले फ्लैट में आए हैं, तब से सिन्हा साहब हफ्ते में एक दो बार तो उन के घर का मसालेदार खाना खाने आ ही जाते हैं. नौनवेज के शौकीन सिन्हा साहब को जब भी हिना के किचन से बिरयानी या कोरमे की खुशबू आती है वे अपने आप को रोक नहीं पाते और भागेभागे चले आते हैं.

अब ऐसा नहीं है कि हिना अगर कुछ खाना उन को खिला देगी तो गरीब हो जाएगी, मगर कभीकभी वह हिसाब से बस अपने परिवार के लिए ही बनाती है, ऐसे में एक बड़ा हिस्सा निकाल कर किसी बाहर वाले को देने में कोफ्त तो होती है. फिर वे पड़ोसी हैं, उम्रदराज हैं, इसलिए सबकुछ ठीक से देना पड़ता है. कभीकभी सिन्हा साहब नहीं चाहते कि उन की पत्नी को पता चले तो वह हिना की डाइनिंग टेबल पर ही खा कर ऊपर जाते हैं. ऐसे में एक बिन बुलाए मेहमान की खातिरदारी हिना को अखरने लगती है. जब तक वे बैठे रहते हैं हिना को अपना सारा काम भी रोकना पड़ता है.

अब तो रिजवान जब भी हिना से कुछ नौनवेज बनाने को कहते हैं तो वह बाजार से और्डर कर देती है. यह सोच कर कि न वो किचन में बनाएगी और न उस की खुशबू सिन्हा साहब की नाक तक पहुंचेगी.

गुप्ताजी वास्तु को बहुत मानते हैं और वास्तु के पंडित के कहने पर आएदिन अपने फ्लैट में कुछ न कुछ रद्दोबदल करवाते रहते हैं. गुप्ताजी की बेटी की शादी तय नहीं हो रही थी. काफी भागदौड़ कर थक चुके थे. पंडित से पूछा तो उस ने वास्तु दोष बताया. पंडित ने घर का वास्तु ठीक करने के लिए उन से बाथरूम की जगह किचन और किचन की जगह बाथरूम बनवाने की बात कही तो गुप्ताजी से ज्यादा परेशानी उन के पड़ोसियों को हुई. गुप्ताजी ने तो काम शुरू करवा दिया. पर दिनभर दीवारों को तोड़ने के लिए जो ठकठक मची रहती थी और सीढ़ियों पर सीमेंट मौरंग की जो गंदगी होती थी, उस ने ऊपरनीचे और बगल वाले फ्लैट में तीन परिवार की महिलाओं का ब्लडप्रैशर बढ़ा दिया.

एक दिन गुप्ताजी के परिवार से तीनों परिवारों की जम कर लड़ाई हुई. खैर उन के घर का काम तो किसी तरह पूरा हुआ मगर उन के परिवार से अन्य तीनों परिवारों की बातचीत फिलहाल बंद है.

बढ़ती जनसंख्या ने जगह तंग कर दी है. अब लोग आगेपीछे, दाएंबाएं फैलने की जगह ऊपर की तरफ बढ़ रहे हैं. कहने का अर्थ यह कि अब रहने के लिए घर नहीं बल्कि फ्लैट अधिक बन रहे हैं. ऊंचीऊंची बिल्डिंगों में कबूतर घर बनाने में जितना पैसा लगता है उस से दो फ्लैट खरीदे जा सकते हैं.

लोग यह सोच कर फ्लैट ले लेते हैं कि उस में वे ज्यादा सुरक्षित रहेंगे. बिल्डिंग में गार्ड होंगे. मैंटिनैंस की जिम्मेदारी बिल्डर की होगी. बिजलीपानी की बेहतर सुविधा होगी. साफसफाई का पूरा ध्यान रखा जाता होगा. पर जब वे उस में रहने लगते हैं तब समझ में आता है कि यहां प्राइवैसी जैसी कोई बात नहीं है.

इंसान इन में खुल कर जी नहीं सकता. न छत अपनी, न जमीन अपनी, बस बीच में त्रिशंकु की तरह लटके हैं. एनिवर्सरी या बर्थडे पार्टी में तेज आवाज में गाने नहीं बजा सकते. गेस्ट आएं तो हल्लागुल्ला नहीं कर सकते, किया तो बगल वाला पुलिस बुला कर खड़ा कर देगा. अपने वहां कोई बीमार है, या कोई सोने की कोशिश कर रहा है और ऊपरी माले पर भजनकीर्तन हो रहा हो तो दिमाग भन्ना जाता है.

आज प्राइवेसी को ले कर सब परेशान हैं. हम कहीं भी अकेले नहीं हैं. हमारा कुछ भी सिर्फ हमारा नहीं है. उस पर सब की नजर है. सब के कान लगे हैं. हमारा मोबाइल फोन तो प्राइवेसी का सब से बड़ा दुश्मन है. हम कहां जा रहे हैं, किस्से मिल रहे हैं, किस से बात कर रहे हैं, हमारे पास कितना पैसा है, किसकिस बैंक में है, सारी जानकारी उन लोगों तक पहुंच रही है, जिन्हें हम जानते तक नहीं हैं. सरकार और बाजार ने हमारी प्राइवेसी पर कब्जा जमा रखा है. इन के साथ बिल्डर भी आ जुड़े हैं. जिन्होंने कबूतरखाने जैसे घर बना कर खुल कर सांस लेना भी मुश्किल कर दिया है.

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