Senior Citizens : आजकल कई बच्चे ऐसे हैं जो अपने मांबाप को बुढ़ापे में बोझ समझने लगते हैं और अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए उन्हें वृद्धाश्रम में छोड़ देते हैं. ऐसे में अब कई मांबाप पहले ही सतर्क हो जाते हैं और अपनी संपत्ति को आखिर तक अपने पास रखते हैं. क्या आपने अपने रिटायरमेंट के बाद सुखी जीवन की प्लानिंग की?
हाल ही में एक सोशल मीडिया कम्युनिटी ग्रुप में 45 वर्षीय शेफाली ने कम्युनिटी मेंबर्स से एक सवाल पूछा कि समाज में अब जो बदलाव चल रहा है ऐसे में बुढ़ापे में अपने जीवन के आखिरी पड़ाव की तैयारी के लिए किसी को क्या करना चाहिए?
उस के सवाल के जवाब में कुछ मेंबर्स के निम्न रिप्लाइज आए जो आज के बदलते समाज का आईना दिखा रहे हैं-
30 वर्षीय एक अनमैरिड मेंबर ने लिखा “मैं अपने जीवन के आखिरी पड़ाव के लिए एक प्लान बनाउंगी. अपने करीबी दोस्तों के साथ रहूंगी, इतनी सेविंग कर लूंगी कि अपने लिए अटेंडेंट का खर्च उठा सकूं, अपनी हेल्थ पर इन्वेस्ट करूंगी.
45 वर्षीय एक अन्य सदस्य ने लिखा “कल किस ने देखा है. बच्चे कौन सा पास रहते हैं आजकल और जो पास रहते हैं उन से भी उम्मीद नहीं रखनी चाहिए, उन की भी अपनी लाइफ है.”
एक अन्य सदस्य ने लिखा हमें अनाथाश्रम या किसी ओल्ड एज होम में समय से पहले में चले जाना होगा. मेरे पति के चाचा कुछ समय दुनिया से चल बसे और उन के बच्चे जो विदेश में रहते थे न तो वे उन से मिलने अस्पताल आ पाए और न ही उन के अंतिम संस्कार में आ पाए.
किसी ने यह सुझाव दिया कि आप रिटायरमेंट के लिए जितना संभव हो सके उतनी बचत करें और बाद के जीवन की देखभाल के लिए अपनी संपत्ति बेचने के लिए तैयार रहें.
धोखे से बेच दी मांबाप की संपत्ति
हाल ही में नागपुर में घटी एक घटना में बेटे ने बूढ़े मातापिता की देखभाल करने के बजाय, मांबाप के घर और संपत्ति को धोखे से बेच दिया. जिस के कारण बुजुर्ग दंपत्ति को वृद्धाश्रम में रहना पड़ा.
बुजुर्गों की बढ़ती आबादी एक वैश्विक घटना
जनसंख्या की उम्र बढ़ना आज एक वैश्विक घटना बन रही है. जापान और चीन जैसे कई देशों में भी वरिष्ठ नागरिकों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार साल 2035 तक चीन की 60 वर्ष और उस से अधिक आयु की आबादी 400 मिलियन (40 करोड़) से अधिक हो जाएगी और 2050 तक 50 करोड़ तक पहुंच जाएगी और यह चीन के लिए चिंता का विषय बन रहा है.
हाल की एक रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई है कि चीन में हजारों किंडरगार्डन स्कूल बंद किए जा रहे हैं क्योंकि बच्चों की भर्ती में तेजी से गिरावट आई है. स्कूलों को वृद्धाश्रम में बदला जा रहा है और वहां कर्मचारियों को वृद्धाश्रमों की देखभाल करने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है.
भारत में भी कुछ ऐसे ही संकेत दिखाई दे रहे हैं. वर्तमान में भारत की जनसंख्या का 10% हिस्सा वरिष्ठ नागरिकों का है और 2050 तक वरिष्ठ नागरिकों की संख्या 30 करोड़ 19 लाख हो सकती है.
वृद्धाश्रम जहां से वापसी की कोई उम्मीद नहीं
हर साल वृद्धाश्रम में बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है. घर वापसी के इंतजार में बुजुर्गों की आंखें पथरा गई हैं लेकिन वहां से वापसी की कोई उम्मीद नहीं. वृद्धाश्रम ऐसे जेल बन रहे हैं जहां एक बार जाना यानी बाकी की बची उम्र वहां कैद ही कर रह जाना हो रहा है.
“बच्चे बुढ़ापे में केयर करेंगे इस बात की कोई गारंटी नहीं” – निखिल कामथ
ब्रोकरेज फर्म जीरोधा के कोफाउंडर निखिल कामथ ने हाल ही में पौडकास्ट WTF में बच्चों को ले कर अपनी सोच बताते हुए कहा कि वह केवल इस उम्मीद में कि उन के बूढ़े होने पर बच्चे उन के बुढ़ापे का सहारा बनेंगे. उन की देखभाल करेंगे वे अपने जीवन के 18-20 साल किसी बच्चे की परवरिश में खर्च नहीं करना चाहते. उसी पौडकास्ट में उन्होंने यह भी कहा कि अपनी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए उन्हें बच्चे पैदा करने का शौक नहीं है.
इसी सोच के साथ हाल ही में निखिल कामथ साल 2010 में वौरेन बफे और बिल गेट्स द्वारा स्थापित ‘The Giving Pledge’ द गिविंग प्लेज का हिस्सा भी बन गए हैं और अजीम प्रेमजी, किरण मजूमदार-शा और रोहिणी व नंदन नीलेकणि के बाद वे इस अच्छे काम में शामिल होने वाले चौथे और सबसे युवा भारतीय बन गए हैं. ‘गिविंग प्लेज’ एक अभियान है जो दुनियाभर के अमीरों को अपने जीवनकाल में या फिर अपनी वसीयत में परोपकार के लिए कम से कम आधी संपत्ति दान करने के लिए प्रोत्साहित करता है.
बुजुर्गों का आर्थिक रूप से मजबूत और हेल्दी होना बेहद जरूरी
देखने में आया है कि उन बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार अधिक होता है, जो आर्थिक रूप से अपनी संतानों पर निर्भर होते हैं. कुछ बुजुर्ग भावुक हो कर अपने जीते जी अपनी वसीयत संतानों के नाम पर कर देते हैं या कई बार बच्चे जबरदस्ती अपने मांबाप की संपत्ति को अपने नाम करवा लेते हैं और फिर मांबाप के साथ दुर्व्यवहार करते हैं.
एनजीओ ‘हेल्पएज इंडिया’ द्वारा किए गए एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार कम से कम 47 प्रतिशत बुजुर्ग अपने परिवारों पर आर्थिक रूप से निर्भर हैं और 34 फीसदी पेंशन एवं सरकारी नकद हस्तांतरण पर निर्भर हैं. ऐसे में प्रत्येक बुजुर्ग के लिए यह अत्यंत जरूरी है कि वे बुढ़ापे में आर्थिक रूप से मजबूत रहें. निम्नलिखित तरीकों से आप अपने फ्यूचर को प्लान कर सकते हैं ताकि बुढ़ापे में कोई दिक्कत न हो.
* वित्तीय सुरक्षा के लिए योजना और बजट बनाएं, आपातकालीन निधि बनाएं और रिटायरमेंट के लिए इन्वेस्ट करें.
* लौंग टर्म केयर औप्शन्स पर विचार करें, जैसे कि सहायता प्राप्त आवास या घर में केयर गिवर के बारे में पहले से जानकारी प्राप्त करें और उस की योजना बनाएं.
* सेम एज ग्रुप फ्रेंड्स, परिवार और कम्युनिटी के मेंबर्स के साथ हेल्पिंग नेटवर्क बनाएं, उन के साथ रिलेशन डेवलप करें जो बुढ़ापे में जरूरत के समय आप की मदद कर सकें.
* व्यायाम और हेल्दी डाइट रूटीन को अपना कर हेल्दी रह कर लंबे समय तक इंडिपेंडेंट रहने में मदद मिल सकती है.
- आए दिन खबरों में देखने पढ़ने को मिलता है कि बुजुर्ग मातापिता को उन की संतान तब बेसहारा छोड़ देती हैं जब उन्हें सहारे की सबसे ज्यादा जरूरत थी. कई बार बच्चों ने प्रताड़ित तक किया होता है. ऐसे में अपनी प्रौपर्टी की सेफ्टी सुनिश्चित करने के लिए वसीयत, पावर आफ अटार्नी और अन्य संपत्ति योजना दस्तावेज बनाएं.
जीवन के संध्याकाल के लिए अपने कोई शौक या हौबी बनाए रखें. इस से बुढ़ापे में व्यर्थ की चिंताएं नहीं सतातीं और समय काटने का एक क्रिएटिव जरिया मिलता है.
बुजुर्गों की मदद के लिए एक अनूठा स्टार्टअप ‘गुडफेलोज’
उद्योग जगत के महान दिग्गज रतन टाटा ने भी ‘गुडफेलोज’ नाम के एक अनूठे स्टार्टअप में निवेश करते वक्त कहा था “आप तब तक बूढ़े होने की चिंता नहीं करते जब तक आप बूढ़े नहीं हो जाते, उस के बाद आप के लिए यह दुनिया बहुत मुश्किल हो जाती है.”
‘गुडफेलोज’ स्टार्टअप वरिष्ठ नागरिकों को युवा ग्रेजुएट्स के साथ जोड़ कर इंटर जेनरेशनल दोस्ती को प्रोत्साहित करने के प्रयास में सहयोग प्रदान करता है. गुडफेलोज वही करता है जो एक पोता या पोती करते हैं. गुडफेलो एक प्रीमियम सब्सक्रिप्शन मौडल पर काम करता है जिस में पहला महीना मुफ्त होता है और दूसरे महीने के बाद एक छोटा सब्सक्रिप्शन शुल्क पेंशन लेने वाले बुजुर्गों की सीमित आर्थिक सामर्थ्य पर लिया जाता है. बुजुर्गों के लिए इस स्टार्टअप का उद्देश्य बुजुर्गों के अकेलेपन और मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को भारत में वास्तविक सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंताओं के रूप में पहचानना है.