Sonu Sood : रेटिंग:: एक स्टार
निर्माता : सोनल सूद, जी स्टूडियो और शक्ति सागर प्रोडक्शन
लेखक : सोनू सूद व अंकुर पजनी
निर्देशक : सोनू सूद
कलाकार : सोनू सूद, जैकलीन फर्नांडीस, नसीरूद्दीन शाह, विजय राज, दिव्येंदु भट्टाचार्य, प्रकाश बेलावड़ी, शिव ज्योति राजपूत, सूरज जुमान
अवधिः 2 घंटे 10 मिनट

51 वर्षीय सोनू सूद ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत 1999 में तमिल फिल्म में अभिनय करते हुए की थी. 2001 तक वह तमिल, तेलुगु फिल्में ही करते रहे. 2002 में उन्होंने फिल्म ‘जिंदगी खूबसूरत’ से हिंदी फिल्मों में कदम रखा था. 2009 तक सोनू सूद ने 29 हिंदी फिल्मों में अभिनय कर लिया पर उन की कोई खास पहचान नहीं बनी. 2010 में सोनू सूद ने सलमान खान के साथ फिल्म ‘दबंग’ में विलेन छेदी सिंह का किरदार निभाया और स्टार बन गए. उस के बाद वह बतौर विलेन दक्षिण की ही फिल्मों में ज्यादा व्यस्त हो गए. आज भी वह दक्षिण की ही फिल्में कर रहे हैं.

सोनू सूद ने कोविड के दौरान लोगों की मदद कर निजी जीवन में एक मददगार इंसान की इमेज के साथ उभरे. लेकिन शायद सोनू सूद अभिनय भूल गए हैं, इस का संकेत उन्होंने 2022 की असफल फिल्म ‘सम्राट पृथ्वीराज’ में अभिनय कर दे चुके थे. पर अब लगभग 3 साल बाद वे सिर्फ अभिनेता ही नहीं बल्कि बतौर लेखक, निर्देशक, निर्माता फिल्म ‘फतेह’ ले कर आए हैं जोकि एक नहीं कई बौलीवुड और हौलीवुड फिल्मों का मिश्रण है.

जिन लोगों ने हौलीवुड फिल्म ‘द इक्वलाइजर’ देखी है, उन्हें एहसास होगा कि यह तो 90% हौलीवुड फिल्म की ही नकल है जबकि फिल्म ‘फतेह’ के ट्रेलर लांच ईवेंट में जोर दे कर दावा किया गया था कि इस फिल्म की कहानी, स्क्रिप्ट और इस का एकएक दृश्य उन के अपने दिमाग की उपज है, जिस पर उन्होेंने 2 साल से ज्यादा मेहनत की है.

लेकिन ‘फतेह’ देखने के बाद एहसास हुआ कि वह उस दिन मीडिया से सफेद झूठ बोल रहे थे.

कहानी : एक पूर्व विशेष औपरेशन अधिकारी फतेह सिंह (सोनू सूद) पंजाब के मोंगा गांव में बहुत शांतपूर्ण जीवन जीता है. वह एक डेरी फौर्म में बैठता है जबकि उस का अतीत अंधकारमय है. उस की पड़ोसिन निमृत कौर (शिव ज्योति राजपूत) एक लोन देने वाले एप की कंपनी में काम करती है और खतरनाक साइबर अपराध सिंडिकेट का शिकार बन जाती है. निमृत कौर की तलाश में फतेह सिंह दिल्ली पहुंचता है और एक एथिकल हैकर खुशी शर्मा (जैकलीन फर्नाडिस) से मुलाकात होती है. यह खोज अंततः उसे साइबर अपराध सिंडिकेट के स्वामी रजा (नसीरुद्दीन शाह) तक ले जाती है. लेकिन वास्तव में फतेह कौन है? जब तक वह खुशी शर्मा को अपनी अतीत की कहानी नहीं बताता, वह कुछ समय पहले भंग हुई एक गुप्त इकाई का सदस्य था. इसी ईकाई के सदस्य रजा भी थे. खैर,अंततः फतेह राष्ट्रव्यापी धोखे के जाल को उजागर करने और न्याय के लिए लड़ने के लिए अपने संयुक्त कौशल का उपयोग करता है.

समीक्षा : फिल्म ‘फतेह’ साइबर अपराध माफिया के खिलाफ युद्ध के साथ नए जमाने की ऐक्शन थ्रिलर फिल्म होने का वादा करती है. मगर अफसोस यह फिल्म कई फिल्मों की नकल करते हुए महज अति रंजित हिंसा और खूनखराब ही परोसती है. एक ऐसी हिंसा या यों कहें कि फिल्म का ऐक्शन सिरदर्द के अलावा कुछ नहीं देता. माना कि ऐक्शन में नयापन है, मगर यह ऐक्शन पूरी तरह से मशीनी लगता है. इस तरह की फिल्म तो बच्चे वीडियोगेम के रूप में खेलने में ही आनंद लेते हैं. पर इस फिल्म से बच्चे दूर ही रहें, क्योंकि इसे सेंसर बोर्ड ने ‘ए’ प्रमाणपत्र दिया है.

10 जनवरी, 2025 को सिनेमाघरों में रिलीज हुई 2 घंटे 10 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘फतेह’ कमजोर दिल वालों को देखने से दूर ही रहना चाहिए. अति कमजोर पटकथा वाली इस फिल्म में कहानी का कोई सिरपैर ही नहीं है. साइबर क्राइम को ले कर हर आम इंसान व गांव के गरीबों तक के मन में बहुत बड़ा डर पैदा करने के अलावा यह फिल्म कुछ नहीं करती.

सोनू सूद की फिल्म की कहानी का केंद्र पंजाब का एक गांव है। शायद सोनू सूद को पता ही नहीं है कि साइबर क्राइम के शिकार शहरवासी ज्यादा आसानी से हो रहे हैं. लेकिन सोनू सूद भी उन्हीे में से हैं, जिन्हें खुद कहानी कहने की खुजली है, पर उस कहानी या विषय पर शोधकार्य करना गंवारा नही. साइबर अपराध माफिया के खिलाफ युद्ध को छोड़ कर, सोनू सूद की ‘फतेह’ में कुछ भी नया नहीं है, लेकिन अफसोस वह इस पर भी ठीक से बात नहीं कर पाए. सच तो यह है कि फिल्म ‘फतेह’ में ‘जय हो’, ‘पठान’, ‘एनीमल’,‘मार्को’ ,‘किल’ व हौलीवुड फिल्म ‘द इक्वलाइजर’,मार्टिन स्कौर्सेस की फिल्म ‘आइरिशमैन’, कियानू रीव्स की ‘जौन विक’ और जैसन स्टेथम की आधा दर्जन फिल्मों का अति घटिया नकल ही है. फिल्म ‘फतेह’ के ऐक्शन दृश्य 2014 में प्रदर्षित हौलीवुड फिल्म ‘द इक्वलाइजर’ की याद दिलाते हैं. इतना ही नहीं ‘फतेह’ देखते वक्त बीचबीच में सलमान खान की फिल्म ‘जय हो’, शाहरुख खान की ‘पठान’ तक की याद आ जाती है.

याद रखने वाली बात तो यह है कि फिल्म ‘एनिमल’ का एक मैराथन ऐक्शन दृश्य 2003 में प्रदर्षित कोरियाई फिल्म ‘ओल्डबौय’ से प्रेरित था.

सोनू सूद ही लेखक, निर्देशक अभिनेता हैं,तो उन्होंने सब कुछ अपने ही इर्दगिर्द रखते हुए फिल्म का गुड़गोबर कर डाला. सोनू सूद का सारा ध्यान खुद को परदे पर बनाए रखने व इंटरनेशनल स्तर का ऐक्शन परोसने में ही रहा. मगर वह यह भूल गए कि ऐक्शन के साथ कहानी में इमोशंस, मानवीय संवेदनाएं भी चाहिए. पर इस फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं है. फिल्म में कहानी तो छोड़िए, किरदार भी ठीक से परिभाषित नहीं किए गए. सोनू सूद उर्फ फतेह दोनों हाथ में बंदूक से गोली चलाए जा रहे हैं। सैकड़ों लोग मर रहे हैं, मरते समय इंसान के जो भाव होते हैं, जो आह निकलती है, वैसा कुछ भी नहीं है. घायल इंसान भी चुप रहता है. सब कुछ मशीन जैसा नजर आता है.

पूरी फिल्म में दर्शक को परेशान कर देने वाली भयंकर हिंसा व खून ही खून है.फिल्म का वीएफएक्स भी बहुत खराब है. सिर्फ लेखक ही नहीं निर्देशक के तौर पर भी सोनू सूद बुरी तरह से मात खा गए हैं.

अभिनय : 51 साल की उम्र में सोनू सूद ने शुरुआत में बेहतरीन ऐक्शन दृश्य अंजाम दिए हैं. पर फिर वह पस्त नजर आने लगते हैं और ऐसा तब से होता है, जब उन के सिर से हौलीवुड फिल्म ‘द इक्वलाइजर’ का खुमार उतर जाता है. फतेह सिंह के किरदार में सोनू सूद का अभिनय कुछ ठीकठाक है। कई दृश्य ऐसे हैं जहां सोनू सूद का चेहरा एकदम सपाट भावशून्य नजर आता है. कई दृश्यों मे तो वह वाशिंगटन के बहुत अधिक प्रखर अभिनेता रौबर्ट मैक्कल के एक हलके देसी संस्करण बन कर रह गए. जैकलीन के हिस्से करने को कुछ आया ही नहीं. वैसे भी जैकलीन फर्नाडिस को अभिनय नहीं आता. अपनी सुंदरता के बल पर फिल्में पा जाती हैं. नई लड़की शिव ज्योति राजपूत छोटे किरदार में अपनी अभिनय की छाप छोड़ जाती हैं. दिव्येंदु भट्टाचार्य, विजय राज, नसिरूद्दीन शाह जैसे कलाकारों की प्रतिभा को जाया किया गया है.

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