Kolkata Rape case : कोलकाता के एक मैडिकल कालेज के कैंपस के अंदर ड्यूटी कर रही एक महिला डाक्टर की रेप कर के उन की हत्या कर दी गई. मारी गई डाक्टर की गरदन की हड्डी टूटी हुई थी, दोनों आंखों, मुंह और हाथों पर चोट के निशान थे. अंदरूनी अंगों में गंभीर चोट पाई गई थी.
पर लगता है कि सरकार को कोई फर्क नही पड़ता है. सब अपनी-अपनी राजनीति कर रहे हैं, क्योंकि नेताओं के साथ रेप जैसी वारदात नहीं होती है न, बल्कि बहुत से तो खुद इस में लिप्त पाए जाते हैं.
तो फिर क्यों बनेंगे सख्त कानून, जब रखवाले ही गलत नीयत रखते हैं. दुष्कर्म की सजा काट रहे बाबाओं को आसानी से पैरोल मिल जाती है. ‘एनिमल’ जैसी फिल्म, जिस में औरत को पीटा जाता है, उस से यौन हिंसा की जाती है, को अवार्ड दिया जाता है.
आज भी जब पूरा देश किसी न किसी रेप कांड के खिलाफ कैंडल मार्च कर रहा होता है, तब भी कोई न कोई दरिंदा देश के किसी न किसी कोने में खुलेआम रेप कर रहा होता है.
यह सरकार की आधी आबादी के खिलाफ साजिश सी लगती है. लड़कियों को घर में बंद रखने और न पढ़नेलिखने देने की साजिश लगती है. दरअसल, लड़कियां और औरतें घर में बंद हो जाएं, ये रात को अकेली बाहर न निकलें , उन नौकरियों में न जाएं, जहां रात को काम करना पड़े, भले ही वे कितनी ही पढ़ीलिखी और काबिल क्यों न हों.
‘बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ’ तो सरकार ने बताया है, लेकिन पढ़ने के बाद बेटी बच पाएगी इस की कोई गारंटी है, यह सरकार ने नहीं बताया.
दरअसल, सरकार चाहती है कि लड़कियां घर बैठ कर सिर्फ पूजापाठ, व्रतउपवास कर के भूखी रहें. साल के 365 दिन कोई न कोई व्रत करें, धर्म का पालन करें , सिर्फ पति की सेवा करें, पति को परमेश्वर मानें. वे शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से कमजोर और खोखली हो जाएं.
वैसे, जो अपराध लड़कियों के साथ हो सकते हैं, वे लड़कों के साथ भी हो सकते हैं, फिर लड़कों को देर रात घर से बाहर न निकलने की ताकीद क्यों नहीं की जाती?
साल 2014 के बाद औरतों की सिक्योरिटी के लिए कोई कानून नहीं बने हैं. आज भी उन्हें मर्दों के मुकाबले केवल दोतिहाई कानूनी अधिकार हासिल हैं, जो साफतौर पर उन के प्रति सरकार की उदासीनता को दिखाता है.
देशभर में रात्रि जागरण हो सकते हैं, देर रात गरबा, डांडिया के कार्यक्रम हो सकते हैं, पर वहां भी लड़कियों और औरतों के साथ अपराध होते हैं, फिर उन पर रोक क्यों नहीं लगाई जाती?
आखिर सरकार यह लैंगिक असमानता क्यों कर रही है? औरतों के साथ आखिर यह भेदभाव क्यों? अगर धर्मग्रंथों में भी देखा जाए तो अहल्या हो या सीता… औरतों के साथ वहां भी मर्दों द्वारा छलकपट, नाइंसाफी और शोषण किया गया है.
दुख की बात तो यह है कि कभी लेडी पुलिस के साथ, कभी महिला शिक्षक के साथ, कभी महिला अधिकारी के साथ, कभी महिला कर्मचारी के साथ तो कभी महिला डाक्टर के साथ बलात्कार और शोषण की खबरें आती ही रहती हैं.
वे कहीं भी महफूज नहीं हैं. न मां की कोख में, न किसी अस्पताल में, न चलती बस में, न स्कूल की वैन में, न स्कूल के किसी कमरे में, न औफिस से ड्यूटी करते देर रात, न कैब के इंजतार में, न हाल में, न मौल के बाथरूम में, न अपने भविष्य के सपनों को पूरा करने के लिए लंबी दूरी की ट्रेन में, न घर में, न आसपड़ोस में, न पार्क में, न मेट्रो में, न आसमान के ऊपर उड़ते हुए हवाईजहाज में, न पढ़लिख कर इंजीनियरिंग करने का सपना देखते हुए देश के टौप आईआईटी संस्थान में, न पिता के घर में, न पति के घर में, न अनाथालय में, न बालिका सुधारगृह में, न किसी बाबा के आश्रम में, न मीडिया के संस्थान में, न मेले में, न खेल के अखाड़े में.
इस के अलावा वे किसी भी दिन महफूज नहीं हैं. न आजादी के उत्सव के दिन, न दीवाली और होली के दिन, न दुर्गापूजा के दिन, न नवरात्र के दिन, न गंगा किनारे, न मंदिर के द्वारे. आज देश की बेटियों की अस्मत हर जगह हर दिन लूटी जा रही है.
सोशल मीडिया पर, ओटीटी पर बेहूदगी की हद को पार करती अनगिनत फिल्में, सीरियल, म्यूजिक वीडियो, रील्स, जहां आसानी से किसी भी बच्चे, नौजवान और अधेड़ के दिमाग में यौन हिंसा करने के लिए फ्री का कंटैंट भरा जा रहा है.
आजकल की पीढ़ी को मांबहन की गाली देना, रेव पार्टी करना, ड्रग्स लेना, पूल पार्टी करना, यौन अपराध करना नौर्मल और कूल लगता है. फ्री की बस, फ्री का राशन, फ्री की दवा… नतीजा जिन हाथों को मजदूरी या कोई दूसरा काम कर के अपने परिवार का पेट भर कर थकहार कर घर आ कर चैन से सोना था, वे हाथ आज निठल्ले बैठे फेसबुक, इंस्टा पर अश्लील रील और पोर्न फिल्मों को देख रहे हैं और नतीजा यह है कि आज के समाज में बेटियों पर बुरी नजर रखने वाले लोग हर जगह मौजूद हैं. लड़कियों को मांबहन की गाली देने वाला एल्विश यादव आजकल की युवा पीढ़ी का फेवरेट बना हुआ है.
एक ऐसे समाज की रचना हो चुकी है जहां हम इन सब खबरों के इतने आदी हो चुके हैं कि अब हमें ऐसी घटनाये ज्यादा विचलित नहीं करती हैं, जो बेहद दुखद है.
आखिर सरकार द्वारा बलात्कार के बाद पीड़ित के साथ क्रूरतम अमानवीय व्यवहार कर के बलात्कारियों का मनोबल क्यों बढ़ाया जा रहा है? बलात्कारियों के समर्थन में रैलियां निकाल कर महिमामंडन किया जा रहा है. जब से बलात्कारियों को छद्म तरीके से कोर्ट को अंधेरे में रख कर रिहाई कराई जा रही है, तब से इन बलात्कारी दरिंदों के जोश सातवें आसमान पर हैं.
जब से किसी बलात्कारी को जेल से रिहा होने पर फूल माला पहनाते हुए तिलक टीका लगा कर और मिठाई खिलाकर स्वागत किया जाने लगा है, तब से ये बलात्कारी बिलकुल ही निश्चिंत हो गए हैं कि कोई न कोई तो बचा ही लेगा. यह सब सरकार का सिखाया हुआ महसूस होता है.