True Murder Story : मुकेश चंद्राकर यूट्यूब पर ‘बस्तर जंक्शन’ नाम से अपना चैनल चलाते थे और बस्तर जैसे दुर्गम नक्सल प्रभावी क्षेत्र में पत्रकारिता किया करते थे. जनवरी 3 को उन की लाश स्थानीय ठेकेदार के सैप्टिक टैंक में पाई गई, जिस ने पत्रकारों के बीच सनसनी फैला दी.

नए साल की शुरुआत एक ऐसी खबर से भरी रही जो पत्रकारिता जगत से जुड़ी थी. बस्तर के स्थानीय ठेकेदार के यहां सैप्टिक टैंक में एक पत्रकार की तैरती लाश मिली. यह लाश एक ऐसे युवा पत्रकार की थी जो बस्तर के दुर्गम इलाकों में स्वतंत्र पत्रिकारिता करता था. ऐसे इलाके में, जहां काम करने के अपने डर और खतरे होते हैं. मगर हैरानी यह कि मौत की वजह खूंखार नक्सली नहीं बल्कि सिस्टम का ही वो भ्रष्ट अंग था जिस से हर कोई जूझता है.

 यूट्यूब चैनल ‘बस्तर जंक्शन’

बात 32 साल के मुकेश चंद्राकर की, जिन का ‘बस्तर जंक्शन’ नाम से एक यूट्यूब चैनल था. करीब 1 लाख 67 हजार के आसपास सब्सक्राइबर्स और 1 करोड़ से अधिक उन्होंने व्यूज पाए थे. इस चैनल पर  साल 2021 से ले कर अब तक 486 वीडियोज डाले गए थे, जिस में हालिया वीडियो 23 दिसंबर को डाली गई जिस का शीर्षक था, ‘नक्सलियों ने हथियार के नोंक पर युवक का किया अपहरण, फिर हत्या कर तालाब किनारे फेंक दिया शव!’. जाहिर है चैनल और पत्रकार अपने काम को ले कर खासे एक्टिव थे. मुकेश कभीकभी मैनस्ट्रीम चैनलों के लिए स्ट्रिंगर का काम किया करते थे.

आरोप है कि एक स्थानीय ठेकेदार सुरेश चंद्राकर ने 1 जनवरी को उन्हें अपने बीजापुर शहर के चट्टानपारा बस्ती के आवास पर बुलाया था. उस के बाद से मुकेश लापता थे. अगले 3 दिन तक स्थानीय पत्रकार और उन के भाई युकेश चंद्राकर जो खुद भी पत्रकार हैं, गुमशुदगी को ले कर यहांवहां लिखते रहे. पुलिस में तहरीर दी गई तो जांच शुरू हुई. सनसनी तब फैली जब लाश ठेकेदार सुरेश चंद्राकर के सैप्टिक टैंक में तैरती मिली, जिस के ऊपर फ्रेश सीमेंट की चुनवाई की गई थी.

यह घटना निर्देशक अनुराग कश्यप के किसी फिल्म के प्लोट सरीकी है, जहां कोई हत्यारा हत्या करने के बाद लाश को छुपाने के लिए ऐसे तिकड़म करता दिखाई देता है. ठीक वैसे ही जैसे निठारी कांड में मासूम बच्चों को मारने के बाद बंगले के पीछे सड़ेगले गंदे नाले और सीवर में लाश फेंक दी गईं थी.

इस में कोई शक नहीं कि मौके पर मिले तमाम सबूत इस ओर इशारा करते हैं कि मुकेश चंद्राकर की हत्या में सुरेश चंद्राकर का हाथ है, बल्कि आशंका इस बात की अधिक ही है कि ठेकेदार ने मुकेश की पत्रकारिता के चलते ही उस की हत्या की हो.

हत्‍या की वजह

दरअसल, जिस खबर को मुकेश की हत्या से जोड़ कrर देखा जा रहा है वह 24 दिसंबर की है. जो बस्तर में हो रहे एक सड़क निर्माण में भारी गड़बड़ी को ले कर एक एनडीटीवी में प्रकाशित हुई थी. हालांकि यह रिपोर्ट पत्रकार निलेश त्रिपाठी द्वारा लिखी गई थी मगर कहा जा रहा है कि इस में मुकेश भी सहायक की भूमिका में निलेश त्रिपाठी के साथ थे.

यह सड़क बीजापुर जिले के नक्सल प्रभावित इलाके गंगालूर से नेलसनार तक बनाई जा रही थी और इस के ठेकेदार सुरेश चंद्राकर थे. कथित तौर पर इसी खबर के बाद पत्रकार मुकेश को बारबार ठेकेदार द्वारा मिलने के लिए बुलाया जा रहा था.

इस में कोई शक नहीं कि पत्रकार को अपने पेशे के चलते जान गंवानी पड़ी होगी, क्योंकि जिस तरह की निर्भीक पत्रकारिता मुकेश करते आए थे वे भ्रष्ट लोगों के आंखों में चुभने जैसा ही था. और भविष्य में इस बात पर भी कोई हैरानी नहीं होगी यदि जांच के दौरान यह कह दिया जाए कि मुकेश की हत्या परिसर में काम कर रहे किसी ए, बी, या सी मजदूर ने आपसी रंजिश में की, क्योंकि ठेकेदार इलाके का बाहुबली है और प्रशासन तक पैठ है.

आदिवासियों की आवाज बनने की कोशिश

जाहिर है, मुकेश साहसी पत्रकार थे. अपने चैनल पर अपलोड किए अधिकतर वीडियोज में उन्होंने सिस्टम और नक्सलियों के बीच पिसते आदिवासियों के हालातों को दिखाने की कोशिश की. उदहारण के लिए, ‘आदिवासियों की बेबसी के साथ ‘सिस्टम और नक्सल संगठन की शवयात्रा’’ वाले थंबनेल वीडियो में वह एक ऐसी घटना पर रिपोर्ट बनाते हैं जिस में एक बच्चे की मौत नक्सलियों द्वारा इलाके में लगाए प्रेशर आईडी की चपेट में आने से हो जाती है और इलाके की सड़क का हाल यह है कि परिवारजन को शव ले जाने के लिए 3 किलोमीटर पैदल रोड तक चलना पड़ता है.

ऐसे ही एक दूसरे वीडियो, ‘चांद पर परचम लहराने वाले देश में जुगाड़ पर जिंदगी’ थंबनेल के साथ टूटे पुल की दुर्दशा दिखाते हैं, जहां ग्रामीण लोग महीनों से टूटे पुल की फ़रियाद प्रशासन से लगाते हैं पर कोई राहत न पाते देख जुगाड़ के सहारे खुद ही पुल बना लेते हैं.

अपने हाल के वीडियो में वे नक्सल हिंसा में मारे गए एक बुजुर्ग के परिवार वालों पर स्टोरी कवर करते हैं. इस के अलावा उन्होंने अमित शाह के बस्तर जिले में दो दिवसीय विजिट को ‘नक्सल की छाती पर अमित शाह के कदम’ नाम के थंबनेल से कवर किया. यह सारी रिपोर्टिंग बताती है कि वे निर्भीक काम करते आए थे जिस का खामियाजा जान दे कर उन्हें उठाना पड़ा. वो भी तब जब राज्य में ‘पत्रकार सुरक्षा अधिनियम कानून’ लागू है.

जिम्मेदार मैनस्ट्रीम मीडिया भी

आज जिस तरह मुकेश की हत्या हुई है उस के लिए जिम्मेदार कहीं न कहीं मैनस्ट्रीम मीडिया भी दिखाई देती है. बीते कुछ सालों में उस ने अपनी इमेज बुरी तरह गिराई है, जो 180 देशों में शर्मनाक 159वें नंबर पर है.

मसलन, तमाम चैनल अब न्यूज रूम में कन्वर्ट हो गए हैं जहां पत्रकार कम और चीखनेचिल्लाने वाले एजेंडाधारी एंकर ज्यादा दिखाई देते हैं. 4 पैनलिस्ट बैठा कर 1 घंटा काट दिया जाता है. खबर व जानकारी के नाम पर धार्मिक बहसें दिखाई जाती हैं. इस चलते संस्थागत पत्रकार लगभग गायब हो गए हैं. ये इन जगहों को छोड़ कर यूट्यूब उद्द्यमी पत्रकार बन गए हैं. अब चेहरे पर पत्रकारिता हो रही है और इसी राह पर इस संस्थानों से छटके पत्रकार भी स्वतंत्र रूप से चल पड़े हैं.

यहां न कोई संपादक है न संपादन. किस खबर पर रेवेन्यु आएगा, कौन सी न्यूज व्यूज देगी, कौन रियायत लेगा और कौन रडार में आएगा, अधिकतर खेल इसी का चलता है. यूट्यूब ने साधारण से मोबाइलधारी को भी पत्रकार बनने का अवसर दिया है. इस के कुछ फायदे हैं, जैसे किसी संपादक से आदेश नहीं लेने पड़ते और मनमर्जी चलती है पर कुछ नुकसान भी हैं जिस में एक नुकसान मुकेश चंद्राकर के रूप में सामने है.

ऐसा नहीं है कि मुकेश की हत्या कोई इकलौता मामला है. पत्रकारों पर हमले बीते सालों में काफी बढ़े हैं. पर स्वतंत्र पत्रकारिता के लिहाज से यह हत्या ज्यादा सनसनी इसलिए फैलाती है क्योंकि यूट्यूब में पत्रकारिता कर रहे पत्रकार भी चेहरे पर ही पत्रिकारिता करते हैं. इन के अपने फौलोवर्स और व्यूअर्स होते हैं. मसलन, ठेकेदार के भ्रष्टाचार पर रिपोर्ट बनाने से यदि इस तरह की नौबत आई है तो यह सोचना भी जरुरी है कि आगे किसी दूसरे को ऐसी नौबत न देखनी पड़े. जब बाक़ी पत्रकार, मुकेश चंद्राकर की हत्या पर उचित जांच की मांग करते हैं तो साथ में संयम से एक जगह बैठ कर न्यूज़ और व्यूज के रिश्तों और भविष्य के परिदिर्श्यों पर चर्चा भी जरुरी है ताकि इस तरह की घटनाओं पर रोक लग सके.

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