अफीम की तरह देशभर की रगों में समाया क्रिकेट स्पौट फिक्सिंग के चलते एक बार फिर देश को शर्मसार कर रहा है. आलम यह है कि मीडिया, अंडरवर्ल्ड, उद्योगपतियों, सियासी दलों और?सट्टेबाजों के घालमेल ने क्रिकेट को ऐयाशी और काले कारोबार में तबदील कर दिया है. पढि़ए जगदीश पंवार का लेख.
भद्रजनों का खेल क्रिकेट एक बार फिर कलंकित दिखाई दे रहा है. 15 मई को 3 खिलाडि़यों की गिरफ्तारी के साथ भांडा फूटा तो बड़ीबड़ी दिग्गज हस्तियां बेपर्दा नजर आने लगीं. खेल, फिल्म, कौर्पाेरेट और सियासी जगत में नीचे से ले कर ऊपर तक खलबली मच गई. सारा का सारा मीडिया गुनाहगारों पर चीखने लगा. इस खुलासे से चोरों, बेईमानों, सट्टेबाजों, बिचौलियों और दलालों का परदाफाश हुआ जो सूटेडबूटेड व आंखों पर काला चश्मा लगाए, शराफत का लबादा ओढे़ क्रिकेट स्टेडियमों के वीआईपी बौक्सों में विराजे नजर आते हैं.
क्या गजब का खेल है क्रिकेट जिस में खिलाड़ी, टीम मालिक, अंपायर, खेल संचालित करने वाली संस्था सब के सब गैरकानूनी रूप से भी पैसे बना रहे हों, देशभर के सटोरिए और अंडरवर्ल्ड के लोग शामिल हों, यानी क्रिकेट या भ्रष्टों की बरात. मजे की बात यह है कि हंगामे के बाद सत्ता में बैठे लोग चौंकने का ढोंग ऐसे कर रहे हैं मानो उन्हें यह खेल बिलकुल साफसुथरा लगता रहा हो. चोरी का परदाफाश होने के बाद अब ये परेशान दिख रहे हैं और कानून बनाने की बात करने लगे हैं.
15 मई को आईपीएल में स्पौट फिक्ंिसग के आरोप में राजस्थान रौयल के श्रीसंत, अजित चंदीला और अंकित चव्हाण की गिरफ्तारी से खेल जगत में हल्ला मच गया. आईपीएल के कर्ताधर्ताओं को सांप सूंघ गया. आईपीएल संचालित करने वाली संस्था बोर्ड औफ क्रिकेट कंट्रोल औफ इंडिया यानी बीसीसीआई पर घड़ों पानी पड़ गया.
4 दिन पहले माथे पर तिलक लगा कर प्रैस कौन्फ्रैंस में क्रिकेट को भ्रष्टाचार मुक्त करने की बात करने वाले बीसीसीआई प्रमुख एन श्रीनिवासन का दामाद और चेन्नई सुपर किंग्स टीम से जुड़े गुरुनाथ मयप्पन भी सट्टेबाजों के साथ पकड़ा गया तो श्रीनिवासन ने दामाद के साथ किसी रिश्ते से ही पल्ला झाड़ लिया. ठीक उसी तरह जैसे रेल घूस कांड में रेल मंत्री का भांजा सीबीआई द्वारा पकड़ा गया तो मंत्री पवन बंसल ने आरोपी भांजे से रिश्ता ही तोड़ दिया था.
तीनों खिलाडि़यों की गिरफ्तारी के बाद मशहूर अभिनेता दारा सिंह का बेटा विंदू दारा सिंह पकड़ा गया तो उस ने सब से पहले गुरुनाथ मयप्पन का नाम लिया औैर कई खुलासे किए. विंदू ने पाकिस्तानी अंपायर असद रऊफ की ओर भी इशारा किया. असद पहले भी विवादों में रहे हैं. विंदू के खुलासे के बाद बौलीवुड, कौर्पोरेट वर्ल्ड, क्रिकेटर और अंडरवर्ल्ड की ऐसी सांठगांठ सामने आई जिस से समूचा देश भौचक्का रह गया.
पिछले दिनों दिल्ली में हुए गैंगरेप मामले में नाकामी का आरोप झेल रही दिल्ली पुलिस को अपनी पीठ खुद थपथपाने का मौका मिला लेकिन उस ने कोईर् बड़ा तीर नहीं मारा. हर कोईर् जानता है कि क्रिकेट में सट्टेबाजी खूब चलती है और इस में बौलीवुड से ले कर अंडरवर्ल्ड तक की संलिप्तता है. लिहाजा, दिल्ली पुलिस अप्रैल महीने से ही संदिग्ध लोगों के टैलीफोन टैप कर रही थी. यानी दिल्ली पुलिस को पता था कि चोरों की बस्ती में छापा मारा जाएगा तो वहां चोर मिलेंगे ही औैर पकड़े भी जाएंगे. और जब वह ऐसा कारनामा करेगी तो उस की साख अच्छी हो जाएगी.
खिलाड़ी, बौलीवुड और टीम मालिक की लिप्तता सामने आई तो अन्य सटोरिए दिल्ली व मुंबई पुलिस की पकड़ में आने लगे. काले क्रिकेट और भ्रष्ट राजनीतिक जगत के चोरों और बेईमानों की बस्ती में भगदड़ मच गई.
बात जब बिगड़ी तो कल तक इन के सत्ता में बैठे पैरोकार पहले तो बगलें झांकने लगे और फिर स्पौट फिक्ंिसग व आरोपियों का निंदागान करने लगे. अब वे कड़ा कानून लाने की बात कर रहे हैं लेकिन किस के लिए, केवल खिलाडि़यों और फिक्सरों के लिए?
सत्ता में बैठे लोग परेशान हो रहे हैं. आरोप अंडरवर्ल्ड पर मढे़ जा रहे हैं. अब तक आप क्या कर रहे थे? केंद्रीय मंत्री राजीव शुक्ला आईपीएल के चेयरमैन हैं, बीसीसीआई की अनुशासन समिति के अध्यक्ष भाजपा के अरुण जेटली हैं, केंद्रीय मंत्री सी पी जोशी बीसीसीआई की मीडिया समिति के प्रमुख व राजस्थान क्रिकेट संघ के अध्यक्ष हैं, केंद्रीय ऊर्जा मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया बीसीसीआई की वित्त कमेटी के चेयरमैन हैं, फारूक अब्दुल्ला बीसीसीआई में मार्केटिंग कमेटी के मुखिया हैं, भाजपा के सांसद अनुराग ठाकुर बीसीसीआई के संयुक्त सचिव व अंपायर्स उप समिति के संयोजक हैं.
यानी चोरों को प्रश्रय देने के लिए मानो राजनीतिक दलों का एक मजबूत यूनाइटेड फ्रंट काम कर रहा है. आश्चर्य इस बात का भी है कि एन श्रीनिवासन से इस्तीफा मांगने वाले भ्रष्टाचारियों के सरदार बीसीसीआई के पूर्व प्रमुख व एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार का क्रिकेट काल भी काले रंग से रंगा हुआ है. और तो और, बेईमानी व ठगी में फंसे सहारा समूह के मुखिया सुब्रत राय भी श्रीनिवासन से इस्तीफा मांग रहे हैं. वे अपनी टीम पुणे वारियर्स को लीग से हटाने का ऐलान पहले ही कर चुके हैं और अब स्पौंसरशिप से हटने की धमकी दी है.
इन नेताओं का ड्रामा तो देखिए, क्रिकेट को चला रहे हर पार्टी के ये नेता फिक्ंिसग से अपना पल्ला झाड़ रहे हैं और कानून लाने की बात कर रहे हैं. अरे, आप के रहते ये सब काली करतूतें चल रही थीं. कल तक बीसीसीआई को आरटीआई से दूर रखने की बात करने वाले अब कानून लाने की वकालत करने लगे हैं.
क्या क्रिकेट को संचालित करने वाली बीसीसीआई की कोई जिम्मेदारी नहीं है? आईपीएल के मुखिया केंद्र में मंत्रिपद पर बैठे कांग्रेसी राजीव शुक्ला, बीसीसीआई की अनुशासन समिति के अध्यक्ष अरुण जेटली की कोई जवाबदेही नहीं है?
इन सियासीबाजों की अगुआई में चल रहे क्रिकेट में वर्षों से मैच, स्पौट फिक्सिंग का खेल चलता आ रहा है तोे क्या इन्हें पता नहीं?
जानकारों के लिए यह कोई ताज्जुब की बात नहीं है. क्रिकेट शुरू से ही अंगरेजों, भारतीय रईसों, राजामहाराजाओं का खेल रहा है. आईपीएल की चकाचौंध से बौलीवुड, कौर्पाेरेट ने पैसा बनाने के उद्देश्य से दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी. यह पहले से ही जाहिर था कि क्रिकेट की सारी दाल ही काली है. क्रिकेट काली कोठरी है. सारा चोरों का खेल है.
आईपीएल में सट्टेबाजी खूब चल रही है, यह कोई नई बात नहीं है. दिल्ली से ले कर दुबई में बैठे लोग पैसा लगा रहे हैं. आईपीएल तमाशा कराया ही इसीलिए जाता है ताकि इस की आड़ में तमाम अवैध धंधों को चलाया जा सके. इस
में स्मगलर, चोरउचक्के, नशेबाज, लड़कीबाज ऊपर से शरीफ दिखने वाले सब आ जुड़े. मजे की बात है कि भारतीय उद्योग परिसंघ यानी फिक्की क्रिकेट में सट्टेबाजी को कानूनन मान्यता देने की वकालत कर रहा है. फिर तो दूसरी बुराइयों को भी कानूनन जायज बना दिया जाना चाहिए.
पुलिस की मानें तो आईपीएल में सट्टेबाजी का 50 हजार करोड़ रुपए का कारोबार है. श्रीसंत की गिरफ्तारी होते ही इस धंधे में स्यापा पड़ गया.
दिक्कत यह हुई कि कुछ लोग सीधेसीधे खिलाडि़यों से चोरीछिपे संपर्क कर के मैच में फेंके जाने वाले विशेष ओवरों में रन फिक्स करवा लेते हैं. बदले में खिलाड़ी को मोटा पैसा, गिफ्ट और लड़कियों का लालच मिलता है. खिलाड़ी वैसा ही करता है जैसा पहले से तय कर लिया जाता है.
इस से देशविदेश में फैले सट्टेबाजों का नैटवर्क मनमरजी के भाव तय कर लेता है और सट्टा जीत लिया जाता है.
यह राष्ट्रीय भावना वाला खेल नहीं है. यह तो सर्कस के तमाशे जैसा है. पिछले 2 दशक से क्रिकेट खेल सट्टेबाजों के लिए धन कमाने का एक जरिया बन गया.
भारत की चमत्कार, तमाशापसंद निकम्मी जनता को इस खेल का चस्का लगा तो वह कामधाम छोड़ कर खिलाडि़यों के चौकोंछक्कों पर तालियां पीट कर निहाल होने लगी.
जनता के इस तमाशाप्रेम की भावना को भुनाने के लिए खेल और मनोरंजन के धंधेबाज आगे आए. अमेरिका से सजायाफ्ता भगोड़े ललित मोदी ने इंडियन प्रीमियर लीग यानी आईपीएल नाम की काली कमाई का माध्यम खड़ा किया. इसे पैसे और ग्लैमर का कारोबार बना दिया गया. अर्धनग्न चीयरलीडर्स को मैचों के दौरान नचाया जाने लगा.
हालांकि अमेरिका से आने के बाद वे अपने पिता के के मोदी के कारोबार को संभालने लगे लेकिन खेल और मनोरंजन को पसंद करने वाले ललित मोदी का पुश्तैनी टैक्सटाइल, टायरट्यूब्स, केमिकल, और उपभोक्ता सामग्री जैसे व्यापार में मन नहीं लगा.
दरअसल, आईसीसी और बीसीसीआई के बीच तकरार के बाद 2008 में आईपीएल शुरू हुआ था. आईपीएल शुरू से ही सट्टेबाजी, मनीलौंडिं्रग और स्पौट फिक्ंिसग के आरोपों के चलते विवादों में रहा. आईपीएल पर शुरू से ही सवाल उठने लगे. फ्रैंचाइजी के पास पैसा कहां से आ रहा है? चौथे आईपीएल में कोच्चि टीम को शामिल किया गया तो नियमों के उल्लंघन की बातें उठी थीं. उस समय कोच्चि टीम की फ्रैंचाइजी में केंद्र में मंत्री रहे शशि थरूर की महिला मित्र सुनंदा की हिस्सेदारी सामने आई थी और इस के चलते शशि थरूर को मंत्री पद से जाना पड़ा था. इन फ्रैंचाइजी टीमों पर टैक्स चोरी के आरोप लग रहे हैं.
दूसरा आईपीएल 2009 में भारत में आम चुनावों के चलते दक्षिण अफ्रीका में कराया गया. तब भी स्पौट फिक्सिंग को ले कर बदनामी हुई थी लेकिन तब से न तो बीसीसीआई जागी, न सरकार. अब जब आग स्वयं बीसीसीआई और सरकार के दरवाजे तक आ पहुंची तो सब मिल कर अनजान बनने का दिखावा कर रहे हैं.
ऐसे आकर्षण के लोभ से कौर्पोरेट, फिल्म, राजनीति और उद्योग जगत के लोग बच नहीं सके. आईपीएल में टीम बनाने के लिए बाकायदा फ्रैंचाइजी आवंटित की गई. इन फ्रैंचाइजियों द्वारा खिलाड़ी नीलामी के जरिए खरीदे जाने लगे.
आईपीएल में जब धांधलियां सामने आने लगीं तो संसद में इसे बंद करने की मांग उठने लगी. पिछले दिनों संसद में करीब 80 सांसदों ने इसे बंद करने की आवाज बुलंद की थी.
क्रिकेट में इस जुर्म को साबित करने की जरूरत ही नहीं है. पिछले पन्ने पलट कर देखे जा सकते हैं. क्रिकेट में फिक्ंिसग का खेल कोईर् नया नहीं है. करीब 2 दशक पहले ही इस में बेईमानी सामने आने लगी थी. 1994 में पाकिस्तानी कप्तान सलीम मलिक पर मैच फिक्स करने के आरोप लगे थे.
वर्ष 2000 में दक्षिण अफ्रीकी खिलाड़ी हैंसी क्रोनिए को पकड़ा गया था और उस पर प्रतिबंध लगाया गया.
क्रिकेट के देवताओं के पांव दलदल में फंसे दिखाई दे चुके हैं. कुछ समय पहले अजहरुद्दीन, अजय जडेजा, मनोज प्रभाकर जैसे दिग्गज खिलाडि़यों के नाम सामने आए थे. अभी तक इन के माथे पर फिक्ंिसग का कलंक लगा हुआ है.
सवाल है कि सियासतदां परेशान क्यों हो रहे हैं? केंद्रीय कानून मंत्री कपिल सिब्बल कहते हैं कि आईपीएल स्पौट फिक्ंिसग प्रकरण के मद्देनजर कानून मंत्रालय फिक्ंिसग विरोधी कानून लाने पर विचार कर रहा है.
खेल मंत्री जितेंद्र सिंह फरमाते हैं कि यह काफी शर्र्मनाक है और खेल मंत्री के नाते उन का सिर शर्म से झुक गया है पर कड़ा कानून बना कर क्रिकेट को विश्वसनीयता के संकट से बचाया जा सकता है.
दरअसल, क्रिकेट काले धन को सफेद करने, हवाला कारोबारियों, सट्टेबाजों, चोरी, बेईमानी करने वाली कौर्पोरेट और औद्योगिक कंपनियों को मुनाफा पहुंचाने का माध्यम साबित हो रहा है. लिहाजा, इन्हीं लोगों द्वारा आईपीएल में टीमों की खरोदफरोख्त और खिलाडि़यों के सौदे किए जाते हैं.
यह खेल देश को किस दिशा में ले जा रहा है, यह सोचने की फुरसत किसी को नहीं है. जिन की जिम्मेदारी है वे भी चोरों के साथ हैं. आम जनता भी अपनी मूल समस्याओं को भूल कर इन लोगों की पिछलग्गू बनी हुई है.
आईपीएल शहरशहर, गलीगली में युवाओं को बिना मेहनत किए लाखों कमाने के लिए उकसा रहा है. यह उन्हें निकम्मा बना रहा है. पूरा समाज सट्टेबाजों, काले चोरों, दलालों, लड़कीबाजों का साम्राज्य बनता जा रहा है. ऐसे में उम्मीद की जाती है समाज के सभ्य होने की? आईपीएल की यही भीड़ बलात्कार की घटना पर सड़कों पर उतरी नजर आती है. यह हम कैसा समाज, कैसा देश बना रहे हैं?