उतर प्रदेश की योगी सरकार के बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी सख्ती दिखाई है कि पूरे भाजपा खेमे में हलचल मची हुई है. सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन पर रोक लगाने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा है कि कार्यपालिका न्यायाधीश नहीं बन सकती है. बिना प्रक्रिया आरोपी का घर तोड़ना असंवैधानिक है. यहां तक कि किसी व्यक्ति के दोषी पाए जाने पर भी सजा के तौर पर उनकी संपत्ति नष्ट नहीं की जा सकती है.

 

बुलडोजर एक्शन के खिलाफ दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने जो फैसला सुनाया है और बुलडोजर एक्शन के लिए जो नियम तय किये हैं, उससे ना सिर्फ भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के पैरों तले जमीन काँप रही है बल्कि अधिकारी वर्ग में खलबली मची हुई है जो सत्ता के इशारे पर तबाही का नंगा नाच नाचते रहे सिर्फ इसलिए कि मुख्यमंत्री के चहेते अफसर की लिस्ट में शामिल हो जाएँ या मनचाहा प्रमोशन पा लें.

सुप्रीम कोर्ट के आर्डर के बाद 2017 में शुरू हुई बुलडोजर-नीति जिसके सूत्रधार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं, अब अपने आखिरी पड़ाव में जाती दिख रही है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि अब निजी संपत्तियों पर बुलडोजर नहीं चलाया जा सकता है. यदि बुलडोजर ही आखिरी विकल्प हो तो उसके लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किये गए नियमों का पालन आवश्यक होगा. अन्यथा ध्वस्त संपत्ति का मुआवजा अधिकारी अपनी जेब से भरेगा.

गौरतलब है कि भाजपा की दूसरी पीढ़ी के नेताओं में योगी आदित्यनाथ का नाम तेजी से उभर रहा था. कहा जा रहा था कि मोदी के बाद वे ही प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजेंगे. फिर क्या था बुलडोजर से ब्रांड योगी की छवि गाढ़ी जाने लगी. 2017 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी सख्त प्रशासक की छवि गढ़ने और विपक्षियों को नेस्तनाबूत करने के लिए खुद को ही अदालत-जज-संविधान समझते हुए प्रदेश भर में लोगों की सम्पत्तियों पर बुलडोजर चलवाने शुरू कर दिए थे. बुलडोजर के फौलादी पहियों ने सपा नेताओं-समर्थकों और मुसलमानों के घरों, दुकानों को सबसे ज्यादा रौंदा. मोहल्ले के मोहल्ले जमीदोज कर दिए गए. बड़ी बड़ी इमारतें ढहा दी गयीं.

योगी ने अपने बुलडोजर एक्शन के जरिए खुद की ऐसी सख्त इमेज दिखाने की कोशिश की जो अपराध और अपराधियों को उत्तर प्रदेश की जमीन पर टिकने नहीं देगा. हालाँकि अपराध का आंकड़ा लगातार बढ़ता रहा और कोई दिन ऐसा नहीं गया जब महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों से अखबार रंगे ना हों.

बुलडोजर एक्शन की वजह से योगी को यूपी में उनके समर्थक बुलडोजर बाबा कहने लगे. योगी ने भी इसे अपना ट्रेड मार्क बनाया. छाती चौड़ी करके मंचों से दहाड़े -बुलडोजर चलवाने के लिए दिल और जिगरा की जरूरत होती है. इस पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने चुटकी भी ली. कहा – बुलडोजर चलाने के लिए स्टेयरिंग और ड्राइवर की जरूरत होती है और ड्राइवर दिल्ली में बैठा है, कब स्टेयरिंग घुमा दे पता भी नहीं चलेगा.

खैर, योगी अपनी हर रैली में बुलडोजर एक्शन का बढ़चढ़ कर बखान करते रहे. उनके बखान पर दर्शक भी खूब तालियां पीटते रहे, लेकिन अब जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने इस पर फटकार लगाते हुए रोक लगाई है, उससे योगी को आगे अपने ब्रांड को मजबूत करने के लिए कोई दूसरा रास्ता तलाशना पड़ेगा. मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है, याचिका पर याचिका दाखिल हो रही हैं. ऐसे में कोर्ट के सामने जांच में यह बात सामने आने पर कि ध्वस्तीकरण की कार्रवाई मानक के अनुरूप नहीं हुई है, जब एक एक व्यक्ति को मुआवजा देने के आर्डर होंगे तो योगी के सख्त प्रशासक वाली छवि ऐसे दरकेगी कि संभालना मुश्किल होगा. इस आशंका से भाजपा भयभीत है. उल्लेखनीय है कि अभी कुछ दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर ध्वस्तीकरण के एक अन्य मामले में पीड़ित व्यक्ति को 25 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश सुनाया है. यह फैसला उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले में 2019 के एक घर ध्वस्तीकरण मामले से संबंधित है।है. राज्य सरकार की कार्रवाई को “अत्याचारी” पाते हुए, पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार को याचिकाकर्ता को 25 लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा देने का आदेश दिया है, जिसका घर सड़क निर्माण के लिए ध्वस्त कर दिया गया था.

बताते चलें कि उत्तर प्रदेश में लॉ एंड आर्डर की विफलता को ढंकने के लिए, राजनीतिक विरोध को रोकने के लिए, समाज का ध्रुवीकरण करने और विरोधियों को डराने के लिए यूपी के बुलडोजर बाबा का यह एक्शन प्लान कुछ अन्य राज्यों जैसे मध्य प्रदेश, उत्तराँचल, गुजरात, असम के भाजपा मुख्यमंत्रियों को भी खूब भाया था और उन्होंने भी विरोधियों की कमर तोड़ने के लिए बहाने ढूंढ ढूंढ कर उनकी सम्पतियों पर बुलडोजर चलवाया था. यानी भाजपा शासित राज्यों में बुलडोजर के जरिए सियासी नफा-नुकसान तय किया जा रहा था.

असम हो या उत्तर प्रदेश, राजस्थान हो या मध्य प्रदेश…बुलडोजर का सबसे ज्यादा उपयोग मुसलमान आरोपियों के घर, दुकान या मकान गिराने के लिए ही किया गया. फ्रंटलाइन की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक पूरे देश में पिछले 2 साल में करीब 1.5 लाख घर बुलडोजर से गिराए गए. इनमें से अधिकांश घर मुस्लिम और हाशिए पर पड़े लोगों के थे. इससे भाजपा की हिंदुत्व की राजनीति खूब चमकी.

फरवरी 2024 में बुलडोजर एक्शन के खिलाफ मानवाधिकार समूह एमनेस्टी इंटरनेशनल ने एक बयान जारी कर कहा था कि भारत में जानबूझकर मुसलमानों के घर बुलडोजर से गिराए जा रहे हैं. संस्था के मुताबिक पिछले वर्षों में जिन घरों को सरकार ने बुलडोजर से गिराया, उन्हें गिराने में किसी कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया. एमनेस्टी के मुताबिक उन राज्यों में बुलडोजर की कार्रवाई जोर-शोर से हुई, जहां पर मुस्लिम एक्स फैक्टर है.

ध्रुवीकरण के लिए तो बुलडोजर का इस्तेमाल हुआ ही, लॉ एंड आर्डर को ठीक तरीके से लागू ना कर पाने के कारण जब जब सरकार की आलोचना हुई, सरकार ने बुलडोजर का सहारा लिया. जुलाई 2023 में मध्य प्रदेश के रीवा में एक व्यक्ति द्वारा एक आदिवासी के ऊपर पेशाब करने की घटना सामने आई थी. इसका वीडियो वायरल होते ही वहां की भाजपा सरकार बैकफुट पर आ गई. विपक्षी कांग्रेस समेत कई आदिवासी संगठनों ने इसे मुद्दा बनाना शुरू कर दिया. लोगों के गुस्से को देखते हुए भाजपा सरकार ने तुरंत आरोपियों के घर बुलडोजर चलवा दिए. इसी तरह के कई मामले यूपी, उत्तराखंड, राजस्थान और असम में देखे गए. दिल्ली के जहांगीरपुरी में भी दंगे न रोक पाने से झल्लाई पुलिस इलाके में अवैध अतिक्रमण को आधार बनाकर बुलडोजर चलाने जा रही थी, लेकिन उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने इस पर स्टे लगा दिया था. यानी कुल मिलाकर भाजपा शासित राज्य की सरकारें लॉ एंड ऑर्डर से उपजे गुस्से को शांत करने के लिए भी बुलडोजर का उपयोग करती रहीं.

24 अगस्त को मध्यप्रदेश के छतरपुर में पुलिस पर पथराव मामले में आरोपी हाजी शहजाद अली के बंगले को बुलडोजर से तोड़ दिया गया. पथराव के 24 घंटे के भीतर सरकार ने 20 हजार स्क्वायर फीट में बनी 20 करोड़ रुपए की तीन मंजिला हवेली को जमींदोज कर दिया.

अगस्त माह में राजस्थान के उदयपुर के एक सरकारी स्कूल में 10वीं में पढ़ने वाले एक बच्चे ने दूसरे बच्चे को चाकू मारकर घायल कर दिया. जवान होती इस उम्र में बच्चों के बीच ऐसी घटनाएं कई बार होती हैं. पर चूंकि हमला करने वाला बच्चा मुस्लिम समुदाय से था लिहाजा पूरे शहर में आगजनी और हिंसक प्रदर्शन हुए. 17 अगस्त को आरोपी छात्र के घर पर सरकार का बुलडोजर एक्शन हुआ. हाँ, इससे पहले सरकार के निर्देश पर वन विभाग ने आरोपी के पिता सलीम शेख को अवैध बस्ती में बने मकान को खाली करने का नोटिस दिया मगर उन्हें दूसरी जगह स्थापित होने का मौक़ा दिए बगैर पूरे परिवार को बेघर कर दिया गया.

इसी तरह उत्तर प्रदेश में तो अनेकों मकान बुलडोजर से ढहा दिए गए और अनेकों परिवार अपनी औरतों और बच्चों को लेकर खुले आसमान के नीचे कई कई दिन पड़े रहे. अंततः इस तानाशाही की शिकायत अदालत के कानों तक पहुंचीं और सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई शुरू हुई. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में लगातार बुलडोजर एक्शन के बाद जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई और आरोप लगाया कि भाजपा शासित राज्यों में मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है और असंवैधानिक रूप से बुलडोजर एक्शन लिया जा रहा है.

सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर संस्कृति की जड़ें खोदते हुए अपने 12 सितम्बर के आदेश में जो कहा वह उद्धृत करने लायक है. मामला जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस एसवीएन भट्टी की बेंच में था. गुजरात में नगरपालिका की तरफ से एक परिवार को बुलडोजर एक्शन की धमकी दी गई थी. याचिका लगाने वाला खेड़ा जिले के कठलाल में एक जमीन का सह-मालिक था. कोर्ट ने इस कार्रवाई को रोकने का आदेश देते हुए कहा – बुलडोजर एक्शन देश के कानूनों पर बुलडोजर चलाने जैसा है. सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कहा कि इस मामले में मनमाना रवैया बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. अधिकारी मनमाने तरीके से काम नहीं कर सकते.

अब एक बार फिर 13 नवंबर 2024 को बुलडोजर मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और पूरे प्रशासन को लताड़ लगाईं है. सुप्रीम कोर्ट के चार फाइनल कमेंट्स ऐसे हैं जो अधिकारियों को अब अपने आका के गलत इशारे पर नाचने से रोकेंगे. कोर्ट ने कहा है –

1. एक आदमी हमेशा सपना देखता है कि उसका आशियाना कभी ना छीना जाए. हर एक का सपना होता है कि उसके सिर पर छत हो. क्या अधिकारी ऐसे आदमी की छत ले सकते हैं, जो किसी अपराध में आरोपी हो? आरोपी हो या फिर दोषी हो, क्या उसका घर बिना तय प्रक्रिया का पालन किए गिराया जा सकता है?

2. अगर कोई व्यक्ति सिर्फ आरोपी है, तो उसकी प्रॉपर्टी को गिरा देना पूरी तरह असंवैधानिक है. अधिकारी यह तय नहीं कर सकते हैं कि कौन दोषी है, वे खुद जज नहीं बन सकते हैं कि कोई दोषी है या नहीं. यह सीमाओं को पार करना हुआ.

3. अगर कोई अधिकारी किसी व्यक्ति का घर गलत तरीके से इसलिए गिराता है कि वो आरोपी है, यह गलत है. अधिकारी कानून अपने हाथ में लेता है तो एक्शन लिया जाएगा. आप मनमाना और एकतरफा एक्शन नहीं ले सकते. कोई अफसर ऐसा करता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई के लिए एक सिस्टम हो. ऐसे अधिकारी को बख्शा नहीं जा सकता है.

4. एक घर समाजिक-आर्थिक तानेबाने का मसला है. ये सिर्फ एक घर नहीं होता है, यह बरसों का संघर्ष है, यह सम्माना की भावना देता है. अगर घर गिराया जाता है तो अधिकारी को साबित करना होगा कि यही आखिरी रास्ता था. जब तक कोई दोषी करार नहीं दिया जाता है, तब तक वो निर्दोष है. ऐसे में उसका घर गिराना उसके पूरे परिवार को दंडित करना हुआ. इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कोई 28 बिंदुओं में पूरी रूलिंग दी है कि क्या ठीक है और क्या नहीं. कोर्ट ने अपने निर्देशों में कहा है –

– सिर्फ इसलिए किसी का घर नहीं गिराया जा सकता क्योंकि वह किसी मामले में व्यक्ति आरोपी है. राज्य आरोपी या दोषी के खिलाफ मनमानी कार्रवाई नहीं कर सकता.

– बुलडोजर एक्शन सामूहिक दंड देने के जैसा है, जिसकी संविधान में अनुमति नहीं है.

– निष्पक्ष सुनवाई के बिना किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता.

– सरकार को कानून के शासन, कानूनी व्यवस्था में निष्पक्षता पर विचार करना होगा.

– कानून का शासन मनमाने विवेक की अनुमति नहीं देता है. चुनिंदा डिमोलेशन से सत्ता के दुरुपयोग का सवाल उठता है.

– आरोपी और यहां तक कि दोषियों को भी आपराधिक कानून में सुरक्षा दी गई है. कानून के शासन को खत्म नहीं होने दिया जा सकता है.

– संवैधानिक लोकतंत्र में नागरिक अधिकारों और आजादी की सुरक्षा जरूरी है.

– अगर कार्यपालिका मनमाने तरीके से किसी नागरिक के घर को इस आधार पर ध्वस्त करती है कि उस पर किसी अपराध का आरोप है तो यह संविधान और कानून का उल्लंघन है. अधिकारियों को इस तरह के मनमाने तरीके से काम करने के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए.

– अधिकारियों को सत्ता का दुरुपयोग करने पर बख्शा नहीं जा सकता.

– स्थानीय कानूनों का उल्लंघन करने वाले के घर को गिराने पर विचार करते वक्त यह देखना चाहिए कि नगरपालिका कानून में क्या अनुमति है. अनधिकृत निर्माण समझौता योग्य हो सकता है या घर का केवल कुछ हिस्सा ही गिराया जा सकता है.

– अधिकारियों को यह दिखाना होगा कि संरचना अवैध है और अपराध को कम करने या केवल एक हिस्से को ध्वस्त करने की कोई संभावना नहीं है

– अगर घर गिराने का फैसला ले लिया गया है तो 15 दिन का समय दिया जाए. नोटिस जारी की जाए और उक्त संपत्ति पर वह नोटिस चस्पा की जाए. घर के मालिक को रजिस्टर्ड डाक द्वारा नोटिस भेजा जाएगा. नोटिस में बुलडोजर चलाने का कारण, सुनवाई की तारीख बताना जरूरी होगी. नोटिस से 15 दिनों का वक्त नोटिस तामील होने के बाद है.

– नोटिस तामील होने के बाद कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट द्वारा सूचना भेजी जाएगी.

– कलेक्टर और डीएम नगरपालिका भवनों के ध्वस्तीकरण आदि के प्रभारी नोडल अधिकारी नियुक्त करेंगे.

– प्राधिकरण व्यक्तिगत सुनवाई सुनेगा, रिकॉर्ड किया जाएगा और उसके बाद अंतिम आदेश पारित किया जाएगा.

– आदेश के 15 दिनों के अंदर मालिक को अनधिकृत संरचना को ध्वस्त करने या हटाने का मौका दिया जाएगा.

– व्यक्तिगत सुनवाई की तारीख जरूर दी जानी चाहिए.

– सरकार एक डिजिटल पोर्टल 3 महीने में बनाये, जिसमें नोटिस की जानकारी और संरचना के पास सार्वजनिक स्थान पर नोटिस प्रदर्शित करने की तारीख दिखाई जाए.

– आदेश में यह जरूर नोट किया जाना चाहिए कि बुलडोजर एक्शन की जरूरत क्यों है.

– केवल तभी इमारत गिराई जा सकती है, जब अनधिकृत संरचना सार्वजनिक सड़क/रेलवे ट्रैक/जल निकाय पर हो. इसके साथ ही प्रक्रिया का पालन करने के बाद ही इमारत गिराई जा सकती है

– केवल वे संरचनाएं ध्वस्त की जाएंगी, जो अनाधिकृत पाई जाएंगी और जिनका निपटान नहीं किया जा सकता.

– अगर अवैध तरीके से इमारत गिराई गई है, तो अधिकारियों पर अवमानना की कार्रवाई की जाएगी और उन्हें संपत्ति का हर्जाना भरना होगा.

– अनाधिकृत संरचनाओं को गिराते वक्त विस्तृत स्पॉट रिपोर्ट तैयार की जाएगी. पुलिस और अधिकारियों की मौजूदगी में तोड़फोड़ की वीडियो रिकॉर्डिंग की जाएगी. यह रिपोर्ट पोर्टल पर पब्लिश की जाएगी.

– अगर घर गिराने का आदेश पारित किया जाता है, तो इस आदेश के खिलाफ अपील करने के लिए वक्त दिया जाना चाहिए. बिना अपील के रात भर ध्वस्तीकरण के बाद महिलाओं और बच्चों को सड़कों पर देखना सुखद दृश्य नहीं है

– सभी निर्देशों का पालन किया जाना चाहिए और इन निर्देशों का पालन न करने पर अवमानना और अभियोजन की कार्रवाई की जाएगी और अधिकारियों को मुआवजे के साथ ध्वस्त संपत्ति को अपनी लागत पर वापस करने के लिए उत्तरदायी ठहराया जाएगा.

– इस सम्बन्ध में मुख्य सचिवों को भी निर्देश दिए जाने चाहिए.

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