देश में महिला आयोग का गठन महिलाओं की सशक्तिकरण के लिए हुआ था. अपने उद्देश्यों को भूल महिला आयोग राजनीतिक स्वार्थ पूर्ति का जरीया बन कर रह गया है. सरकारों ने अपनी विचारधारा की महिलाओं को महिला आयोग का अध्यक्ष बनाने लगी जिस के कारण महिला आयोग की अध्यक्ष महिलाओं के मुद्दों से अधिक पार्टी की विचारधारा पर चलने लगती है.

आज के दौर में जरूरत इस बात की है कि महिलाओं को पुरुषों के बराबर कंधे से कंधा मिला कर चलना चाहिए. महिला आयोग महिलाओं को छुईमुई बना कर रखना चाहता है.

जिन कामों में मसल्स पावर की वजह कभी पुरुषों का बोलबाला होता था, आज वहां काफी काम टैक्नोलौजी से हो रहे हैं. जहां मसल्स की नहीं ब्रेन की जरूरत होती है उन कामों को महिलाएं कर रही हैं. 2 देशों के बीच लडाई में पैदल सेना की जरूरत सीमित दायरे में काम करती है. अब युद्ध में कंप्यूटर गाइडेड मिसाइल का प्रयोग होता है. राकेट लौंच करने के बाद निशाना लगाने के लिए सैनिकों को मैदान में नहीं जाना होता है. वाररूम में बैठी महिला भी उसी तरह से कंप्यूटर के जरीए हथियारों को चला सकती है जैसे कोई पुरुष सैनिक.

बात केवल युद्ध के मैदान की ही नहीं है, अब घरों में काम करने के लिये मशीनें हैं. कपड़े धोने, बरतन धोने, मसाला पीसने, आटा गूंधने और चावल कूटने जैसा काम मशीनें करती हैं. इस तरह से मशीनें औरतों की ताकत बन गई हैं.

दकियानूसी विचारधारा क्यों

आधी आबादी कोई भी काम करने में सक्षम है. जरूरत पङने पर वह बस, ट्रेन और मैट्रो तक चला लेती है. दकियानूसी विचारधारा के लोग महिलाओं को छुईमुई बना कर रखना चाहते हैं जिस से वह पुरुषवादी सत्ता की गुलाम बनी रहे.

उत्तर प्रदेश महिला आयोग की अध्यक्ष डाक्टर बबिता सिंह चैहान के फैसलों पर सवाल उठने लगे हैं. उत्तर प्रदेश महिला आयोग की अध्यक्ष क्या इस तरह की व्यवस्था चाहती है जहां हर महिला केवल महिला के साथ काम करे? क्या वह इस तरह की विधानसभा चाहती है जहां केवल महिला मुख्यमंत्री हो? देश में केवल महिला प्रधानमंत्री होगी तभी महिलाएं सुरक्षित होंगी? क्या पुरुष डाक्टरों से ही महिलाओं को इलाज कराना चाहिए? कल को यह भी कहा जा सकता है कि लड़कियों को केवल महिला टीचर ही पढाएं? हर जगह महिलापुरुष का भेदभाव समाज के विकास में बाधक होगा.

महिला आयोग का तुगलकी फैसला

यूपी महिला आयोग ने महिलाओं की निजता को बनाए रखने के लिए महिलाओं के कपड़ों की नाप महिलाओं द्वारा ही लेने की बात कही है. महिलाओं की सुरक्षा और उन के अधिकारों के संरक्षण को ले कर महिला आयोग की बैठक की गई. बैठक के बाद सभी जिलाधिकारियों को महिला जिम, योगा सैंटर, विद्यालयों, नाट्यकला केंद्रों, बुटीक सैंटर और कोचिंग सैंटरों पर महिलाओं और बालिकाओं की सुरक्षा और सम्मान को सुनिश्चित करने के निर्देश दिए.

महिला आयोग की अध्यक्ष डाक्टर बबीता सिंह चैहान ने अन्य पदाधिकारियों और सदस्यों के साथ बैठक कर महिला सुरक्षा और उन के अधिकारों के संरक्षण पर बैठक में निर्णय लिया कि महिला जिम और योगा सैंटर में महिला ट्रेनर का होना अनिवार्य है. साथ ही महिला जिम का सत्यापन भी होना चाहिए. ऐसे सैंटर में सीसीटीवी सक्रिय होना चाहिए और अभ्यर्थियों को पहचानपत्र देख कर ही प्रवेश दिया जाए.

अजीबोगरीब तर्क

महिला आयोग ने निर्देश दिए कि विद्यालयों की बसों में महिला सुरक्षाकर्मी या महिला शिक्षिका का होना अनिवार्य है. नाट्यकला केंद्रों में महिला डांस ट्रेनर और सीसीटीवी की व्यवस्था होनी चाहिए. बुटीक सैंटरों पर महिला परिधानों की नाप लेने के लिए महिला टेलर ही होना चाहिए. कोचिंग सैंटर पर सीसीटीवी और वाशरूम की सुविधा अनिवार्य है. महिला परिधानों के बिक्री केंद्रों पर महिला कर्मचारियों का होना आवश्यक है.

महिला आयोग का उद्देश्य

1993 में उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग के गठन का कानून बना. इस के बाद उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग अधिनियम, 2001 पारित किया गया. महिला आयोग का उद्देश्य महिलाओं के कल्याण, सुरक्षा और संरक्षण के अधिकारों की रक्षा करना होता है. इस के अलावा आयोग का काम महिलाओं के शैक्षिक, आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए काम करना होता है. आयोग महिलाओं को दिए गए संवैधानिक और विधिक अधिकारों से जुड़े मामलों में राज्य सरकार को सुझाव देने का काम करता है.

आयोग महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर जांच करना और राज्य सरकार को सिफारिशें करने का काम करता है. इस के अलावा महिलाओं के अधिकारों के उल्लंघन के मामलों में समय पर हस्तक्षेप करना भी है. इस के अलावा आयोग महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर जागरूकता फैलाने का काम भी करता है.

सरकार देती है दखल

महिला आयोग की अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति में सरकार का पूरा दखल होता है. वह अपनी विचाराधारा से जुडे लोगों को ही इस में जगह देती है. उत्तर प्रदेश में 2017 में जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी और उस के मुखिया योगी आदित्यनाथ को बनाया गया तब महिला आयोग की अध्यक्ष बिमला बाथम को बनाया गया. बिमला बाथम 16वीं विधानसभा में एमएलए रही हैं. भाजपा की विधायक बिमला बाथम को महिला आयोग का अध्यक्ष बनाया गया. वैसे, उन का कार्यकाल 3 साल में पूरा हो गया.

सरकार की उदासीनता रही कि वे 2024 तक महिला आयोग की अध्यक्ष बनी रहीं. 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को उत्तर प्रदेश में करारी हार का सामना करना पडा. भाजपा लोकसभा चुनाव में 33 सासंद लाने के बाद दूसरे नंबर की पार्टी बनी. पहले नंबर पर समाजवादी पार्टी पहुंच गई. उस के 37 सासंद चुनाव जीत गए. भाजपा ने अपनी हार की समीक्षा के बाद आयोगों में नई नियुक्तियां करने लगी. इस के चलते 2024 में महिला आयोग की नई अध्यक्ष डाक्टर बबिता सिंह चैहान बनीं जिन्होंने अपने पहले ही फैसले से जता दिया कि वह महिलाओं की तरक्की को ले कर किस तरह की सोच रखती हैं?

महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष जरीना उस्मानी कहती हैं,”आज के समय में महिलाओं के कपडे बुटीक में ही सिले जाते हैं. बुटीक का संचालन महिलाएं करती हैं. वे जेंटस टेलर केवल सिलाई के लिए रखती हैं. वैसे भी महिलाएं अपने पुराने कपड़े दे कर ही अपने कपङों की सिलाई करवाती हैं. उस में अच्छी फिटिंग आती है. महिला आयोग की अध्यक्ष के आदेश का क्या प्रभाव पड़ता है यह आगे देखने को मिलेगा।”

कौन है महिला आयोग की अध्यक्ष बबिता सिंह चैहान

बबिता सिंह चैहान आगरा जिले के सिविल लाइन प्रोफैसर कालोनी की रहने वाली हैं. बबीता सिंह राजनीति शास्त्र से एमए, एलएलबी तक शिक्षित हैं. समाजसेवा के कार्यों के लिए फ्रांस की यूनिवर्सिटी ने उन्हें डाक्टरेट की मानद उपाधि दी. वे भारतीय जनता पार्टी में लंबे समय से सक्रिय रही हैं. वे भाजपा महिला मोरचा की प्रदेश उपाध्यक्ष और यूपी भाजपा कार्यकारिणी में सदस्य हैं. वे खेरागढ़ में जिला पंचायत सदस्य भी रही हैं. इन के पति जितेंद्र चौहान लांयस क्लब इंटरनैशनल के डाइरैक्टर रहे हैं और कई संस्थाओं से जुडे रहे हैं. बबिता सिंह चैहान राजनीति के साथसाथ समाजसेवा में भी सक्रिय रही हैं. 2023 में भाजपा ने बबिता सिंह चैहान को शिकोहाबाद में जिले की जिम्मेदारी दी. इस के बाद वह प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हुईं और महिला आयोग की अध्यक्ष बनीं.

आजादी के 75 साल बाद भी जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, महिला आयोग महिलाओं के लिए कपड़े की नाप लेने के लिए महिलाओं को ही रखने की बात कर रहा है. देश के इतिहास में महिलाएं हमेशा पुरुषों जैसी ताकत और हिम्मत रख कर काम करती रही हैं. आज भी पढ़ाई के क्षेत्र में टौप करने वाली लड़कियों की संख्या अधिक है. क्या वे अपने काम इसलिए न करें क्योंकि उन के साथ पुरुष काम कर रहे हैं? क्या महिलाओं को केवल वही काम करने चाहिए जहां पुरुष न हों. अगर महिलाएं इस का इंतजार करेगी तो वह पीछे रह जाएंगी.

बदलनी होगी सोच

पंचायती राज अधिनियम लागू होने के बाद महिलाओं को 33% का आरक्षण दिया गया. इस के बाद भी महिलाओं के नाम पर प्रधानपति, पार्षदपति बन कर पुरुष ही महिलाओं के नाम पर काम कर रहे हैं. अब संसद और विधानसभा में भी महिला आरक्षण कानून बन चुका है. 2029 के बाद संसद और विधानसभा में भी महिलाओं को आरक्षण मिल जाएगा. अगर महिलाओं ने अपने अधिकार का पालन नहीं किया तो सांसद पति और विधायक पति बन कर पुरुष ही राज करेंगे.

जरूरत इस बात की है कि महिलाएं खुद की ताकत को पहचानें. वे इसलिए कार्यस्थल पर जाने से न डरें कि उन के साथ कोई घटना घट जाएगी.

कोलाकाता में अस्पताल में जो हुआ वह एक दुर्घटना थी. दिल्ली में निर्भया कांड दुर्घटना थी. इन घटनाओं से डर कर महिलाओं को घर में कैद नहीं होना है. उन को सावधानी के साथ अपनी सुरक्षा का ध्यान रखते हुए काम करना है. अगर महिलाएं केवल उन स्थानों पर काम करेंगी जहां केवल महिलाएं ही होंगी तो वे काफी पिछड जाएंगी.

सरकार, अदालत, महिला आयोग का काम महिलाओं के लिए सुरक्षित काम का माहौल देना है, उन को डराना नहीं. कल को पुलिस यह तय करे कि महिलाएं बाजार में दिन के समय ही जाएं रात को न जाएं तो क्या यह संभव और व्यवहारिक है? महिलाओं को खुद अपना खयाल और सुरक्षा रखनी चाहिए. पुरुषवादी सोच महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा उठा कर उन को काम करने से डराना और रोकना चाहती है जिस से वे चारदीवारी में कैद हो कर रह जाएं. केवल पुरुषों पर ही निर्भर रहें और अपनी बात को न कह सकें.

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