बस चंद घंटों बाद ही दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव सम्पन्न हो जाना है . उम्मीद है कि 5 नवम्बर की रात तक पता चल जायेगा कि कड़े मुकाबले में कौन जीता डेमोक्रेटिक पार्टी की कमला हेरिस या रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रम्प . दुनिया भर की निगाहें इस चुनाव पर हैं जिसका सस्पेंस अब चरम पर है . तमाम सर्वे कुछ स्पष्ट कह पाने में असमर्थ हैं क्योंकि द्वंद से जूझते अमेरिका के वोटर का मूड भांपना अब आसान नही रह गया है जो कट्टरवाद और उदारवाद नाम के दो पाटों के बीच में फंस कर रह गया है .
रैलियों , सभाओं , बहसों और विज्ञापनों का दौर खत्म होने के बाद अब बारी वोटर की है हालाँकि 2 नवम्बर तक लगभग 3 करोड़ वोट एडवांस वोटिंग के तहत डल चुके हैं लेकिन ये वे वोट हैं जो पहले से मन बना चुके थे कि कौन देश के लिए बेहतर साबित होगा . बडबोले उद्दंड और अय्याश ट्रम्प या सधी हुई हेरिस जिनके पास बोलने को बहुत कुछ है लेकिन वे अनर्गल बकवास नहीं करतीं . उन्होंने अमेरिकी वोटर को सार रूप में आगाह कर दिया है कि देश में लोकतंत्र खतरे में है और अगर ट्रम्प जीते तो इसका खात्मा हो जायेगा . इसी लोकतंत्र के दम पर अमेरिका उस मुकाम पर है जहाँ दुनिया उसकी तरफ उम्मीद से देखती है और दुनिया भर के लोग आकर अमेरिका बसना चाहते हैं ,
उलट इसके ट्रम्प अमेरिकियों के दिलो दिमाग में यह खटका या डर भरने में कामयाब रहे हैं कि यदि कमला राष्ट्रपति बनी तो देश बर्बाद हो जायेगा क्योंकि वह एक उदारवादी खतरनाक महिला है . वह प्रवासियों के लिए अमेरिका की सीमाएं खोल देगी जो अंततः अमेरिका के लिए बेहद दुखदायी होगा . हालाँकि गर्भपात अमेरिकी चुनाव में अहम मुद्दा रहा है जिस पर समर्थन उदारवादी कमला को मिल रहा है . लेकिन प्रवासियों के मसले पर लोग ट्रम्प के साथ हैं क्योंकि बड़ी चालाकी से उन्होंने इसे अमेरिका की संस्कृति , पहचान , गौरव , अस्तित्व और श्रेष्टता से जोड़ दिया है . इसके लिए ट्रम्प ने अपनी मुहिम को नाम दिया है मेगा यानी मेकिंग अमेरिका ग्रेट अगेन अर्थात अमेरिका को फिर से महानता के शिखर पर पहुँचाना है , यह अभियान असर कर रहा है लेकिन सिर्फ श्वेत दक्षिणपंथियों पर जो चाहते हैं कि देश लोकतंत्र के बजाय धर्म और चर्च से भी चले तो कोई पहाड़ नहीं टूट पड़ना .
कौन हैं ये लोग , इनकी पहचान मुश्किल नहीं है . ये श्वेत इसाई हैं जो अमेरिका में इसाई राज देखना चाहते हैं . इनकी तुलना भारत के ब्राह्मणों और सवर्णों से की जा सकती है जो प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी को हिंदुत्व का नायक और उद्धारकर्ता मानते हैं . मोदी और ट्रम्प में फर्क इतना ही है कि ट्रम्प मोदी की तरह पूर्णकालिक धार्मिक नहीं दिखते . मुमकिन है न भी हों क्योंकि उनकी लाइफ स्टाइल विलासी है जो इसाइयत के मूलभूत सिद्धांतों से मेल नहीं खाती लेकिन इसके बाद भी वे रूढ़िवादियों के नायक हैं तो इसके पीछे हैं इंजील इसाई जिनके बारे में हम आप कुछ खास तो क्या आम भी नही जानते .संक्षेप में इंजील इसाई 2016 से ही ट्रम्प को प्रमोट कर रहे हैं .
इंजील इसाई मूलतः प्रोटेस्टेंट इसाई धर्म का एक आन्दोलन है जिसके मानने वालों को इंजीलवादी कहा जाता है . इंजील शब्द ग्रीक शब्द इवेंजेलियन से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ अच्छी खबर होता है . पुनर्जन्म में अंधा भरोसा करने बाला यह समुदाय ईसा मसीह के संदेशों और शिक्षाओं का दुनिया भर में प्रचार प्रसार करता है और धर्मान्तरण का प्रबल पक्षधर है . अमेरिका में इंजीलवादियों की तादाद सबसे ज्यादा है वहां हर चौथा नागरिक इंजील है यह समुदाय धीरे धीरे ईसाईयों का एक उप धर्म ही बनता जा रहा है जिसके अपने अलग चर्च भी होने और बनने लगे हैं . इस आन्दोलन का एक अघोषित मकसद अमेरिका को अपने शिकंजे में भी लेना है और वह एक हद तक इसमें कामयाब भी हो रहा है . डोनाल्ड ट्रम्प उसका घोषित मोहरा हैं . इसकी एक खूबी यह भी है कि यह लोगों की जाती जिन्दगी में दखल देता है और अपनी मान्यताएं थोपता है .
इंजील इसाई धर्म की रूढ़िवादिता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह समान विवाह प्रजनन विकल्प व स्कूलों में यौन शिक्षा का धुर विरोधी है . इतना ही नही यह पब्लिक स्कूलों में मानव विकास शिक्षा का भी विरोध करता है . अमेरिका के शिक्षण संस्थाओं और सांस्कृतिक संस्थाओं पर इसका वैसा ही कब्जा हो चला है जैसा भारत में आरएसएस का है .यह घोषित तौर पर रिपब्लिकन पार्टी का मजबूत ब्लाक है . 1973 में गर्भपात से ताल्लुक रखते अमेरिका के चर्चित मुकदमे रो बनाम वेड फैसले की प्रतिक्रिया में कई श्वेत इवेंजेलिकल सियासी तौर पर सक्रिय हो गये थे और दूसरे कई मुद्दों पर अभी तक एकजुट हैं . .
तमाम मुद्दों के बीच मूल मुद्दा कम से कम ट्रम्प खेमे की तरफ से धर्म ही है जिसकी एक नुमाइश बीती 12 अक्तूबर को राजधानी वाशिंगटन डीसी में अमेरिकी संसद केपिटल हिल के सामने हुई थी . इस दिन यहाँ कोई 20 हजार ट्रम्प समर्थक इकट्ठा हुए थे और रिवाइवल रिवाइवल रिवाइवल चिल्ला रहे थे . साथ ही वे यीशु की प्रार्थना भी करते जा रहे थे . रिवाइवल रिवाइवल यानी मेकिंग अमेरिका ग्रेट अगेन . यह जमावड़ा या मजमा धर्म और आस्था के नाम पर किया गया था जिसमे डोनाल्ड ट्रम्प ईसाईयों के मसीहा के रूप में प्रगट हुए थे .इस आयोजन में भक्ति और प्रार्थना के बाद चर्चा अमेरिका पर मंडराते संकटों की होने लगी जिसके लिए यह सभा आयोजित की गई थी . चर्चा गर्भपात पर भी हुई कि यह धर्म विरुद्ध है चर्चा समलैंगिकों पर भी हुई कि वे संस्कृति के लिए खतरा हैं .
ऐसी कुछ और बातों और थोपे गये मुद्दों को कुछ अमेरिकन एक विचार और विचारधारा के रूप में फ्रेम किये रखना चाहते हैं . यही 15 – 20 फीसदी लोग ट्रम्प के कट्टर समर्थक हैं और उनसे सहमत न होते हुए भी उन्हें लोकप्रिय बनाये हुए हैं . वजह सिर्फ इतनी है कि ट्रम्प यह आश्वासन देते रहे हैं कि वे प्रवासियों को उखाड़ फेकेंगे , उनकी घुसपैठ बंद कर देंगे .ट्रम्प इन्हें युद्धों से भी डराते रहे हैं कि इनसे देश को नुकसान हो रहा है और इसकी जिम्मेदार सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक पार्टी है
लेकिन यह जीत के लिए नाकाफी है और भारत के मद्देनजर वैसा ही है जैसा यह कि इंडिया गठबंधन रोहिंग्याओ को बसा रहा है . पश्चिम बंगाल से ममता बनर्जी इन मुस्लिम घुसपैठियों को शरण देती हैं और दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल इन्हें बसाते हैं और तमाम सरकारी व गैर सरकारी सहूलियतें देते हैं . देखते ही देखते ये रोहिंग्या भारत के वोटर बन जाते हैं और भाजपा यानी हिंदुत्व के खिलाफ वोट करते हैं . ये मूलतः मुसलमान हैं और उन्हीं की तरह देश के लिए धर्म और संस्कृति के लिए खतरा हैं . इन्हें मोदी जी ही भगा सकते हैं .
दिक्कत यह है कि सभी अमेरिकन इससे सहमत नहीं पर एक डर उनके मन में बैठा तो दिया गया है . यह डर अगर धर्म के नाम पर न होता तो डोनाल्ड ट्रम्प कभी के ख़ारिज हो चुके होते जिन्होंने धर्म को हथियार बना रखा है और इसमें उनकी मदद इंजील इसाई कर रहे हैं जो अमेरिकन आबादी का कोई 25 फीसदी हिस्सा होते हैं .पिछले दिनों आए एक आंकड़े ने गोरों को चौंका दिया था कि साल 2010 से 2020 के बीच श्वेत आबादी 63.7 फीसदी से घटकर 57.8 फीसदी रह गई है . कम उम्र वर्ग में यह महज 47.3 रह गई है .
तो मेगा आन्दोलन का मूल मकसद पुराने दौर में लौटने की इच्छा है जहाँ श्वेत ईसाईयों का दबदबा हुआ करता था . ठीक वैसे ही जैसे भारत में सवर्णों का राज था , एकदम पितृसत्तात्मक और मनुवादी शासन . लेकिन कमला हेरिस इस मुहिम से ठीक वैसे ही लड़ रही हैं विरोध कर रही हैं जैसे भारत में राहुल गाँधी कर रहे हैं . लोकसभा चुनाव से ही वे संविधान को सीने से लगाये घूम रहे हैं . इसी तर्ज पर अमेरिका में कमला हेरिस कह रही हैं कि हम पुराने युग में वापस नही जा रहे हैं .
डोनाल्ड ट्रम्प ने कमला के कालेपन को वेवजह निशाने पर नहीं ले रखा है . वे अक्सर उच्चारण में कमला को का-म -ला बोलते हैं ( जैसे कभी नरेंद्र मोदी ने ममता बनर्जी के लिए दीदी… ओ…. दीदी बोला था ) उनकी हर मुमकिन कोशिश कमला हेरिस को जलील करने की होती है . यहाँ भी लड़ाई नरेंद्र मोदी और राहुल गाँधी सरीखी दिखती है . खासकर उस वक्त और जब ट्रम्प हेरिस को कम बुद्धि वाली महिला कहते हैं . जाहिर है ट्रम्प ने अपने पक्के दोस्त नरेन्द्र मोदी से उन्हें बिना राजनैतिक गुरु बनाये काफी कुछ उनसे सीख लिया है जिसमे प्रमुख है विरोधी पर व्यक्तिगत और चारित्रिक हमले करते रहना जो कम से कम उनके भक्तों को तो भाते ही हैं और वे तालियाँ पीटने लगते हैं क्योंकि वे अपने प्रभु के श्रीमुख से यही उदगार सुनना चाहते हैं और फिर उन्हें सोशल मीडिया के जरिये देश भर में फैला देते हैं .
भारत में इस टोटके का उल्टा असर लोकसभा चुनाव में देखने मिला था जब मतदाता ने भाजपा के पर कुतर दिए थे . यही अमेरिका में देखने में आ रहा है कि कमला को जितना ज्यादा बदनाम और बेइज्ज्त किया जा रहा है वे उतनी ही लोकप्रिय होती जा रही हैं . लेकिन यह लोकप्रियता जिताऊ है या थी या नही यह तो 5 नवम्बर को ही पता चलेगा .
अब बात मूल मुद्दे की जिसके तहत ट्रम्प ने जुलाई के महीने में इसाई रूढ़िवादियों को संबोधित करते हुए कहा था कि , आपको बाहर निकलकर मतदान करना होगा , चार साल बाद आपको फिर से मतदान करने की जरूरत नहीं पड़ेगी . हम इसे इतना ठीक कर देंगे कि आपको मतदान करने की जरूरत ही नही पड़ेगी . इस वक्तव्य से अमेरिका में खलबली मच गई थी कि डोनाल्ड ट्रम्प वाकई में लोकतंत्र को खत्म कर देंगे . डेमोक्रेट्स ने जमकर इसी आलोचना की थी .
इस बयान के जिसने जो चाहे जैसे चाहे मतलब निकाले लेकिन आम अमेरिकन का यह डर अभी तक कायम है कि अगर ट्रम्प जीते तो घोषित तौर पर तानाशाह हो जायेंगे . ऐसा सोचने बालों में रिपब्लिकन्स भी कम नही थे और वे श्वेत भी बहुत थे जो धर्म का और इसाइयत का शासन तो चाहते हैं लेकिन लोकतंत्र की बर्बादी और खात्मे की शर्त पर नहीं क्योंकि इन्हें यह अंदाजा या एहसास है कि कल को यही कट्टरवाद गले की हड्डी बन जायेगा . ये दोनों काम एक साथ हों ऐसा भी कोई रास्ता नहीं है इसलिए भी कमला हेरिस भारी पड़ रही हैं जिनके लिए धर्म सेकेंडरी चीज है . इसाई होने के नाते वे यदा कदा चर्च जाती हैं लेकिन उसका ढिंढोरा नहीं पीटती . कमोवेश यही हाल भारत में राहुल गाँधी का है जो अपनी हिन्दू पहचान दिखाने मन्दिर जाने लगे थे और तो और जनेऊ भी दिखाने लगे थे यहाँ तक कि अपना गोत्र भी बताने लगे थे लेकिन वोटर ने उनके इस रूप को ख़ारिज कर दिया तो वे अब वक्त जरूरत ही ऐसा करते हैं
फरवरी के शुरुआती दिनों में डोनाल्ड ट्रम्प टेनेसी के नैशविले में राष्ट्रीय धार्मिक प्रसारकों के एक अहम समारोह में थे . यहाँ उन्होंने खुद को एक धार्मिक व्यक्ति और नेता के तौर पर पेश किया था और एक यह बात प्रमुखता से कही थी जो भारत के दक्षिणपंथी उदारवादी हिन्दुओ को निशाने पर लेते अक्सर कहा करते हैं कि सबसे बड़ा खतरा हमारे देश के बाहर से नहीं है . यह हमारे देश के अंदर से है .हमारे देश के कुछ लोग ही बाहर के लोगों से ज्यादा खतरनाक हैं .इन उदार और् सुधारवादियों को भारत में भी वामपंथी कहा जाता है और अमेरिका में भी .
अब बात उन इंजील ईसाईयों की जिनके दम और शह पर ट्रम्प इतनी उछल कूद मचा रहे हैं . साल 2016 में उनका समर्थन पादरियों ने किया था इसके बाद उन्होंने उन्हें इंजील सलाहकार बोर्ड के जरिये नीति निर्धारण में सीधे हाथ देने की पेशकश की थी . इससे हुआ यह कि दक्षिणपंथी ईसाईयों को व्हाइट हाउस में उतना ही स्पेस और मान सम्मान मिलने लगा था जितना कि रामराज्य में किसी विश्वामित्र या वशिष्ठ को मिलता था . इस दिन ट्रम्प ने अपनी उपलब्धियां बताते बड़े गर्व से कहा था कि अपने पहले कार्यकाल में मैंने ईसाईयों के लिए पहले के किसी भी राष्ट्रपति से ज्यादा संघर्ष किया . मौका मिला तो अब और ज्यादा करूँगा .
इसाई नेताओं यानी धर्म गुरुओ को खुश करते हुए ट्रम्प ने एक टास्कफ़ोर्स बनाने का भी वादा कर डाला जो अमेरिका में ईसाईयों के खिलाफ भेदभाव और उत्पीडन की निगरानी करेगा . इतना ही नहीं हद तो तब हो गई जब उन्होंने अति उत्साह में आते यह वादा भी कर डाला कि मैं ज्यादा से ज्यादा रूढ़िवादी जजों की नियुक्ति की कसम खाता हूँ .
इन कसमे वादों के एवज में कमला हेरिस खामोश नहीं रहीं . उन्होंने प्रचार के आखिरी दिनों में ट्रम्प को फासिस्ट करार दे दिया .यह शब्द या विशेषण दो विश्व प्रसिद्द तानाशाहों इटली के बेनिटो मुसोलनी और जर्मनी के एडोल्फ़ हिटलर के लिए प्रयोग किया जाता है बहुत थोड़े से में फासिज्म को समझें तो यह एक राजनितिक विचारधारा और शासन प्रणाली है जिसमे एक नेता पर ही पूरी निष्ठां रखने पर जोर वाध्यता की हद तक दिया जाता है . और अगर कोई ऐसा करने से इंकार करता है तो उसे तरह तरह से प्रताड़ित किया जाता है .
कमला हेरिस का इशारा ट्रम्प समर्थक ग्रुप प्राउड बोयज की तरफ भी था जिसने साल 2021 में अच्छा खासा बवाल वाशिंगटन की सड़कों पर मचाया था और केपिटल हिल्स पर भी हिंसा की थी . प्राउड बोयज युवाओं का एक गैर राजनितिक समूह है लेकिन यह शुद्ध धार्मिक है और स्त्री विरोधी भी है जैसे भारत में बजरंग दल है . इसका काम धर्म और संस्कृति की रक्षा की आड़ में हिंसा करना और उन सीधे सादे लोगों को परेशांन करना है जो धार्मिक उसूलों से इत्तफाक नही रखते . प्राउड बोयज को ट्रम्प की हार नही पची थी इसलिए उसने जमकर बबाल काटा था . लेकिन इससे कोई बहुत अच्छा सन्देश नहीं गया था . इसके मद्देनजर अमिरिका में फिर चर्चा है कि अगर ट्रम्प फिर हारे तो हिंसा होगी . लिहाजा लोग डरे हुए भी हैं . यह बात भी शांत और गंभीर स्वभाव बाली कमला हेरिस के पक्ष में जाती है जिन्हें अमन पसंद रिपब्लिकन्स भी वोट कर सकते हैं क्योंकि सभी रिपब्लिकन्स उपद्रवी नहीं है .
चंद घंटों बाद ही साफ़ हो जाना है कि दुविधा में फसे अमेरिकी वोटर ने आख़िरकार किसे चुना कट्टरवादी डोनाल्ड ट्रम्प को या फिर उदारवादी कमला हैरिस को .