सरकारी नौकरी से रिटायर हुए गुप्ताजी जीवन के 80 बसंत देख चुके हैं. वर्तमान में वे एक प्राइवेट स्कूल में एडमिनिस्ट्रेटिव औफिसर के पद पर कार्य कर रहे हैं. बुढ़ापे में खुद को बेचारा बनाए रखने के बजाए उन्होंने अपने जीवन के इस गोल्डन पीरियड को ग्रेसफुल तरीके से अकेले इंजोय करने का निर्णय लिया. वहीं दूसरी ओर 80 वर्ष शर्माजी बेटे की शादी के बाद उन के साथ रह रहे हैं और रोज किसी न किसी बात पर घर में कलह हो जाता है क्योंकि वे न तो घर के किसी काम में मदद करते हैं, न अपनी सेहत का ध्यान रखते हैं, बाजार जा कर उलट सीधा जंक फूड खा कर आ जाते हैं फिर तबीयत खराब होने की वजह से खुद तो परेशान होते ही हैं नौकरीपेशा बेटाबहू को भी परेशान करते हैं.

बुढ़ापा जीवन का वह समय होता है जिस में कई लोगों को बहुत तरह की चिंताएं और गंभीर चिकित्सा परेशानियां हो सकती हैं. इस समय बुजुर्गों को अपनी स्वतंत्रता खोने और लोगों के दूर जाने का एहसास होने लगता है. अधिकतर बुजुर्ग बुढ़ापे के बारे में सोचसोच कर डिप्रेशन में आ जाते हैं. इस से उन का स्वास्थ्य और खराब हो जाता है. घर में खाली बैठे रहने से बुजुर्गों के प्रति लोगों का सम्मान भी कम हो जाता है. ऐसे में जरूरत होती है सकारात्मक सोच के साथ खुद को किसी काम में व्यस्त रखने की.

बुढ़ापे को बोझ न बनाएं

बुढ़ापे के फेज़ को ग्रेसफुल तरीके से जीना या नाकारा बनाना दोनों अपने हाथ में होता है. यह पड़ाव हरेक की जिंदगी में आना है इसलिए जरूरी है कि बुढ़ापे के लिए प्लानिंग (शारीरिक, मानिसक, आर्थिक और कानूनी रूप से) समय रहते कर लें. उम्र बढ़ने के साथ साथ अपनी दिनचर्या को सही रखना शुरू कर दें. सुबह उठने से ले कर रात के सोने तक अपना सभी काम नियमित रूप से करें. सोना, जागना, भोजन, व्यायाम, टहलना, ध्यान पठनपाठन, मनोरंजन आदि सभी जीवन को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं.

खुद को व्यस्त रखेँ

बुढ़ापे को नाकारा न बनाएं, व्यर्थ में समय न गंवाएं. घरपरिवार के छोटेछोटे काम में सहयोग करें. उन से घुलमिल कर समय बिताएं. बच्चे, बड़ों से ले कर हम उम्र के व्यक्ति से, पड़ोसी एवं अपने आसपास के लोगों से मित्रतापूर्ण व्यवहार रखें. इस से परेशानियां कम होंगी, उम्र बढ़ेगी, स्वस्थ रहेंगे और समय का सदुपयोग होगा.

एक्टिव रहें

टीवी या फोन में समय बरबाद करने की बजाय वे कार्य करें जिस से शारीरिक सक्रियता बनी रहे क्योंकि ऐसा करने से बीमारियां दूर रहती हैं और शरीर स्वस्थ रहता है. डाक्टर द्वारा बताई गई दवा निर्धारित समय पर लें. समयसमय पर डाक्टर से मिलते रहें. फालतू खर्च न करें. व्यर्थ का तनाव न पालें. घरपरिवार की परेशानी से भागें नहीं परिवार के साथ मिल कर उसे सुलझाएं. परिवार के सदस्यों के साथ घुलेंमिलें, हंसेहंसाएं, खामोश न रहें.

शिकायत करने की बजाय थैंकफुल बनें

बच्चों को जज न करें, सारा समय शिकायत न करें कि वे आप का ध्यान नहीं रखते, अपने साथ नहीँ ले जाते. आप पर खर्च नहीं करते. बच्चों की भी अपनी जिंदगी अपनी जिम्मेदारियां हैं आप को अपना ध्यान खुद रखने की आदत डालनी चाहिए.

अगर बच्चे आप के साथ समय नहीं बिता पाते तो “वो सारा दिन बाहर रहती या रहता है, उसे हमारी परवाह नहीं है, हमारे लिए तो समय ही नहीं है. बच्चे हमारी केयर नहीं करते” ऐसा सोचना एक बहुत बड़ी प्रौब्लम है. अगर आज के वक्त को देखें तो आज की भगदौड़ वाली लाइफ बहुत टफ है, आज के बच्चे बहुत प्रेशर में काम करते हैं इसलिए बच्चे आप के लिए जो भी कर पा रहे हैं उस के लिए पेरैंट्स को उन का थैंकफुल होना चाहिए.

अपना सोशल नेटवर्क बनाएं

“बुजुर्ग सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर अपने हम उम्र लोगों का ग्रुप बनाएं. ग्रुप पर अपने हम उम्र लोगों से बात करना सुबहशाम गप्पे जैसा लगेगा. आप उन चीज़ों में अपनी खुशी ढूंढ सकते हैं जो आप को खुशी देती हैं जैसे कुकिंग, सिंगिंग, योगा, म्यूजिक क्लासेज.

घर में अपनी जिम्मेदारी निभाएं

बच्चों की शादी या उन के सेटल होने के बाद कोशिश करें. अकेले रहें लेकिन अगर किसी परिस्थिति में जरूरत पड़ने पर बेटी या बेटे के साथ रहना पड़े तो उन पर बोझ न बनें, उन के काम आएं. घर के कामों जैसे बच्चों को स्कूल कोचिंग सेंटर छोड़ने या लाने की जिम्मेदारी या सब्जी लाने की जिम्मेदारी निभाएं इस से बेटी दामाद या बहू बेटा को मदद होगी. आप में भी घर में सहभागिता और उन से जुड़े होने का अहसास पैदा होता है.

सेहत का खास ध्यान रखें

चाहिए बुजुर्ग अकेले रह रहे हों या बच्चों के साथ उन्हें अपनी सेहत की अनदेखी बिल्कुल नहीं करनी चाहिए . कमजोरी महसूस होना, भूलने की शिकायत, रास्ता भूल जाना और चलनेबैठने में संतुलन खो देना, जैसे कुछ जरूरी शारीरिक और मानसिक बदलाव पर नजर बनाए रखें. उन्हें अपनी केवल शारीरिक ही नहीं, बल्कि मानसिक बीमारी पर भी ध्यान रखने की जरूरत है. अपनी दवाइयां समय पर लें. योग, मौर्निंग वौक का अपना रूटीन बनाएं.

रागिनी (बदला हुआ नाम) दिल्ली में रहती हैं और एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में काम करती हैं. कुछ साल पहले रागिनी के डैड इस दुनिया में नहीं रहे. डैड के जाने के बाद रागिनी की मौम उस के साथ रहती हैं. रागिनी की मौम न तो घर के कामों में, न रागिनी के बच्चों की देखभाल में रागिनी की कोई मदद करती हैं और छोटीछोटी बात पर गुस्सा हो जाती हैं. रिश्तेदारों से रागिनी की फोन पर बुराई करती रहती हैं, कई बार तो वे रागिनी और अपने दामाद रोहित से बात करना बंद कर देती हैं.

अकसर देखा जाता है कि बुजुर्ग बच्चों की जरा सी भी बात सहन नहीं कर पाते. कभी वे बहुत खुश रहते हैं तो कभी छोटी सी बात का बुरा मान जाते हैं तो कभी अपनी मन की बात पूरी न होने पर शिकायत करने, चीखनेचिल्लाने लगते हैं. ऐसे में बेटा बहू या बेटी दामाद के लिए उन की देखभाल करना या साथ रखना कठिन हो जाता है.

अगर पेरैंट्स को बेटा या बेटी के घर में उन के साथ रहना पड़े तो मुख्यतः इन कमज़ोरियों पर ख़ास ध्यान दें –

• शादी के बाद साथ रहने वाले मातापिता को अपने बेटे या बेटी के पारिवारिक जीवन में जरूरत से ज्यादा हस्तक्षेप न करें. जीवन उन का है, जीने की जिम्मेदारी उन की है और उस से जुड़े नुकसान अथवा फायदे उन के हैं इसलिए अपने बच्चों की लाइफ में दखलंदाजी न करें. उन्हें अपनी जिंदगी जीने दें.

• मातापिता होने के नाते आप ने अपना कर्तव्य पूरा कर दिया. कभीकभी उन्हें अपना मत अवश्य दें परन्तु निर्णय उन्हें लेने दें और यदि उन्होंने आप के मत को नहीं माना तो गांठ बांध कर न बैठें.

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