रात के 8 बज रहे थे. प्रतिबिंब ने सामने की दीवार पर लगी टीवी के पास से रिमोट उठाया और अनाया का इंतजार करते हुए बेड पर लेट कर टीवी देखने लगा.

बमुश्किल आधा घंटा हुआ था कि दरवाजा खुला और मुसकराते हुए अनाया ने प्रवेश किया, “सौरीसौरी, प्रति, मैं थोड़ा सा लेट हो गई, बाय द वे, कितनी देर हो गई तुम्हें आए हुए?”

“अरे छोड़ो यार ये सब बातें, तुम जल्दी से फ्रैश हो कर आ जाओ, मैं ने खाना और्डर कर दिया है, आता ही होगा.”

‘’ठीक है, मैं यों गई और यों आई.’’

15 मिनट के बाद चेंज कर के जब अनाया ने कमरे में प्रवेश किया तो प्रतिबिंब उसे अवाक् सा देखता रह गया.

“कमर तक लहराते खुले केश, दूधिया सफेद रंग और उस पर पिंक कलर की झीनी नाईटी पहने अनाया को सामने इस रूप में देख कर प्रतिबिंब अपने अंदर उठते प्यार और रोमांस के ज्वारभाटे को रोक नहीं पाया और झट से एक प्यारभरा चुंबन अनाया के गाल पर जड़ दिया.

“अरेअरे, यह क्या कर रहे हो, जरा धीर धरो श्रीमानजी. पहले हम पेटपूजा कर लें,” कहते हुए अनाया ने प्रतिबिंब को प्यार से अपने से अलग कर दिया. तभी घंटी बजी, प्रतिबिंब ने दरवाजा खोल कर बैरे से खाना लिया और टेबल पर ला कर रख दिया.

“अच्छा है, हर माह हमारी कंपनी इसी प्रकार दूसरे शहरों में मीटिंग्स अरेंज करती रहे और हम यों ही मस्ती करते रहें. बस, प्रौब्लम यह है कि हम दोनों की विंग अलगअलग होने से आने की टाइमिंग्स अलगअलग हो जाती हैं,” प्रतिबिंब ने खाना खाते हुए कहा.

“और करेंगे भी क्या या इस के अलावा हम कर भी क्या सकते हैं,” अनाया ने कुछ उदास स्वर में कहा.

“अरे यार, अब तुम वही पुराना रोना मत शुरू कर देना वरना इतना अच्छा मूड बरबाद हो जाएगा. अभी बस आज के इन पल को एंजौय करते हैं, बाकी सब बाद में,” प्रतिबिंब ने कहा तो अनाया चुपचाप खाना खाने लगी.

इस के बाद तो भोपाल में टाटा ग्रुप के फाइवस्टार होटल ताज के कमरा न. 103 की बड़ीबड़ी कांच की खिडकियों में पड़े ग्रे कलर के परदे, दीवारों और छत की मद्धिम सुनहरी एलईडी लाइट्स और कमरे की फिजां में गूंज रहे फिल्म ‘एक दूजे के लिए’ के मधुर बोल- ‘हम बने तुम बने एकदूजे के लिए…’ के बीच प्रतिबिंब और अनाया एकदूसरे की आंखों में आंखें डाले, परस्पर आबद्ध एक दूसरे में खोए, अधरों पर अधर रखे, अपने प्रेम को सैलिब्रेट कर रहे थे. आज रविवार होने के कारण अवकाश था. ये प्रेमी युगल शायद दोपहर तक सोए रहते यदि प्रतिबिंब का फोन न बजता.

‘अरे यार, यह कौन दुष्ट है जो हमें संडे को भी चैन से सोने नहीं देता,’ अंगड़ाई लेते हुए जैसे ही प्रतिबिंब ने फोन उठाया तो फोन पर उस के पिता थे. स्क्रीन पर अपने पिता का नाम देखते ही प्रतिबिंब एक झटके से बेड से उठ कर सोफे पर इस तरह आ कर बैठा मानो पापा सामने ही आ खड़े हों.

“हां बेटा, कैसे हो, कब लौट रहे हो और मीटिंग कैसे रही?”

“पापाजी, सब बढिया है. मीटिंग के बाद 2 दिन वर्कशौप है, इसलिए मैं 3 दिन बाद शनिवार को वापस दिल्ली लौटूंगा.”

“ठीक है, मैं यह कह रहा था कि वे जो अपने फैमिली फ्रैंड वर्मा अंकल हैं न, उन के एक मित्र वहीं भोपाल में ही रहते हैं, समय निकाल कर उन के यहां जरूर हो आना.”

“ठीक है पापा, मैं कोशिश करूंगा. वैसे, कोई काम है क्या उन से?”

“काम तो कुछ ख़ास नहीं है, वे अपनी बेटी के लिए तुम से मिलना चाह रहे थे. तुम देख लेना, यदि तुम्हें लड़की पसंद होगी तो बात आगे बढ़ाएंगे.”

“’पापा, आप से मुझे कितनी बार कहना पड़ेगा कि मैं किसी भी लडकी को देखने नहीं जाऊंगा. कारण आप को पता है. किसी को भी देख कर बिना वजह इनकार करना मुझे पसंद नहीं है. मैं इस कारण से तो उन से मिलने नहीं जा पाऊंगा, आप से स्पष्ट कहे देता हूं.” यह कह कर प्रतिबिंब ने गुस्से से फोन काट दिया और छत की फौल्स सीलिंग को देखते हुए सोचने लगा- प्यार की भाषा क्यों नहीं समझते ये बड़े लोग, क्यों बारबार इस तरह की परिस्थति बनाते हैं कि हमें उन की बात न मानने के लिए मजबूर होना पड़े.

लाख संतुलन रखने के बाद भी वह इस बात पर अपना आपा खो ही देता है. बगल में गहरी नींद में सोई अनाया को उस ने उठाना उचित नहीं समझा और अपनी चाय ले कर बालकनी में आ बैठा. बादलों की ओट में से सूर्य आसमान में अपनी छटा बिखेरने को आतुर था. उस की किरणें धीरेधीरे बादलों की ओट से प्रकाश बखेर रही थीं. इधर प्रतिबिंब के मन में तूफान उठा हुआ था. तभी उसे अपनी और अनाया की पहली मुलाकात याद आ गई.

भोपाल के ओरिएंटल कालेज से औटोमोबाइल विधा से इंजीनियरिंग करने के बाद प्लेसमैंट के तहत मारुति के गुडगांव स्थित शोरूम में बतौर इंजीनियर वह पहली बार जौइन करने आया था. उस कंपनी में वह नया था, सो उस समय अनाया उस की बहुत मदद करती थी. यद्यपि प्रतिबिंब तकनीकी विंग में था और अनाया सेल्स में थी पर उस का और अनाया का केबिन पासपास था, सो धीरेधीरे दोस्ती हो गई थी. अकसर वे दोनों लंच एकसाथ करते थे. इस सब के बीच कब दोनों एकदूसरे को अपना दिल बैठे थे, उन्हें पता न चला.

अब दोनों अकसर औफिस टाइम के बाद साथसाथ वक्त बिताने लगे थे. उसे याद है, एक बार अनाया 4 दिनों तक औफिस नहीं आई थी और फोन भी लगातार स्विचऔफ जा रहा था. वे 4 दिन उस के लिए किसी वनवास से कम नहीं थे. पांचवें दिन जब वह औफिस आई तो लंचटाइम में वह फट पड़ा था,

“क्या मैनर्स है ये कि न औफिस आएंगे, न इन्फौर्म करेंगे और फोन को भी स्विचऔफ कर देंगे, ताकि कोई चाह कर भी कौन्टैक्ट न कर पाए. तुम जानती हो कि इन 4 दिनों मेरे ऊपर क्या बीती है?”

“सौरी प्रति, वो मैं इतनी मुसीबत में थी कि…” कहतेकहते अनाया की आंखों में आंसू आ गए. फिर उस ने जो बताया उसे सुन कर वह सन्न रह गया, “प्रति, मैं अपनी मां और भाई के साथ रहती हूं और सच कहूं तो वही मेरी दुनिया हैं. मेरी मां स्पैशलचाइल्ड स्कूल में टीचर है जो सुबह जा कर शाम को लौटती है.”

“स्पैशलचाइल्ड स्कूल, मतलब?”

“स्पैशलचाइल्ड मतलब ऐसे बच्चों का स्कूल जिस में शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों को ही पढ़ाया जाता है. ऐसे बच्चे सामान्य बच्चों से अलग होते हैं, इसलिए उन्हें स्पैशल कहा जाता है. 15 वर्ष का मेरा भाई एक स्पैशलचाइल्ड है. अन्य बच्चों के साथसाथ भाई की भी मां देखभाल कर सके, इसलिए उस ने इस फील्ड को चुना और अपने साथ ही वह भाई को भी स्कूल ले जाती है.

“उस दिन भाई की तबीयत ठीक नहीं थी और मां का जाना बेहद जरूरी था तो मां उसे अपने साथ नहीं ले गई थी. उसे खिलापिला और सुला कर स्कूल चली गई थी. शाम को जब मां लौटी तो भाई बुखार से तप रहा था. तुम्हें याद होगा कि उस दिन तुम एक वर्कशौप में चले गए थे. मां ने मुझे फोन किया और मैं तुरंत भागी. हम उसे अस्पताल ले कर गए. डाक्टरों ने उसे सीवियर निमोनिया बताया और भरती कर लिया. इन दिनों मैं इतनी परेशान थी कि भाई के अलावा कुछ भी होश नहीं था, इसलिए तुम्हें भी फोन नहीं कर पाई.”

“ओह, पर यार, तुम अकेले ही परेशान होतीं रहीं, एक बार मुझे बताया तो होता,” प्रतिबिंब ने अनाया के हाथ को पकड़ते हुए कहा. उस दिन पहली बार उस ने अनाया के हाथ को छुआ था और अनाया ने कोई प्रतिरोध नहीं किया था. “बुरा न मानो तो एक बात पूछूं?” प्रतिबिंब ने अनाया की तरफ देखते हुए कहा.

“अरे, हम गरीबों की तो जिंदगी ही खुली किताब होती है जिस में छिपाने लायक कुछ नहीं होता. पूछो न, क्या पूछना है,” अनाया ने उदास स्वर में कहा.

“तुम ने अपने पापा के बारे में कभी कुछ नहीं बताया. क्या वो…” प्रतिबिंब मानो आगे कुछ बोल ही नहीं पा रहा था.

“प्रतिबिंब, मेरे मम्मीपापा का अंतर्जातीय विवाह था, पापा मेरे गुप्ता थे और मेरी मम्मी सिंधी थी. दोनों के ही परिवार वाले इस विवाह के लिए तैयार नहीं थे तो उन्होंने मंदिर में जा कर शादी कर ली और एकसाथ रहने लगे. बाद में मम्मी के परिवार वालों ने तो आनाजाना प्रारंभ कर दिया था लेकिन पापा के घर वालों ने जो उस समय नाता तोड़ा तो आज तक टूटा हुआ है. पापा और मम्मी दोनों ही टीचर थे और एक ही स्कूल में पढाते थे.

मम्मीपापा के विवाह के 2 साल बाद मेरा जन्म हुआ तो पापा से अधिक मम्मी खुश हुई थी. जब मां दूसरी बार गर्भवती थी तो एक दिन स्कूल से लौटते समय पापा की बाइक को किसी ट्रक वाले ने टक्कर मार दी थी और वे असमय काल के गाल में चले गए थे. मां पर मानो दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा था. पापा के जाने के 3 माह बाद भैया का जन्म हुआ और जन्म होने के एक दिन बाद ही उसे पीलिया हो गया था. 10 दिन अस्पताल में एडमिट रहने के बाद उसे छुट्टी दी गई थी. शुरू में तो कुछ पता नहीं चला लेकिन 2 साल का होने पर भी वह अपनी हमउम्र बच्चों से अलग दिखता था. डाक्टरों को दिखाने और कुछ परीक्षण कराने पर पता चला कि वह मैंटली फिट नहीं है. हां, नानानानी ने उस समय जरूर साथ दिया. पापा के घर वालों ने तो आज तक कदम नहीं रखा, बल्कि मम्मी के बारे में कहा, “’हमारे बेटे को खा गई और अब उस के कर्मों का ही फल है कि ऐसा बेटा पैदा हुआ है.’’

‘’अरे, कोई इतनी गंदी सोच कैसे रख सकता है. यह सब इंसान के हाथ में थोड़े ही होता है,” प्रतिबिंब ने कुछ बेचैन होते हुए कहा था.

“अभी कैसी है उस की तबीयत?’’

“अब ठीक है, कल ही हौस्पिटल से डिस्चार्ज करा कर घर लाई हूं. तभी तो आज औफिस आई हूं.’’

“प्रौमिस करो कि आगे से कुछ भी ऐसा होगा तो तुम मुझे भी बताओगी.’’

“जी, जी बिलकुल.’’

बालकनी से उस ने कमरे में झांक कर देखा तो अनाया अभी भी गहरी नींद में सोई थी. इसलिए वह रूम से होटल के गार्डन में आ गया और एक कप चाय का और्डर दे कर आरामकुरसी पर बैठ गया. इस लुकाछिपी का अंत कब होगा, कब पापा हमारे प्यार को अपना आशीर्वाद देंगे, यह सोचतेसोचते वह फिर सोचने लगा.

उस घटना के बाद तो उन दोनों का प्यार आसमान की ऊंचाई छूने लगा था. अकसर अनाया प्रतिबिंब के लिए अपने घर से खाना ले कर आती, उस के साथ ही खाती और औफिस के बाद भी कभी मौल तो कभी कौफ़ी शौप में चले जाते. एक रविवार को प्रतिबिंब अनाया को बिना बताए उस के घर जा पहुंचा.

उसे देख कर अनाया चौंक गई, “अरे, आप अचानक, क्या हुआ, कल तो आप ने कुछ बताया ही नहीं था?”

“अरे, हद है, देखते ही इतने सवाल दाग दिए तुम ने.’’

“आंटी देखिए, अंदर आने को कहने की जगह गेट पर ही प्रश्न पूछे जा रही है आप की बेटी.’’ अनाया की मम्मी को सामने देख कर प्रतिबिंब ने कहा.

“अरे, आओ बेटा, आओ,” मम्मी ने जब अंदर आने के लिए इशारा किया तो प्रतिबिंब अंदर आ कर सोफे पर बैठ गया.

“अनाया अकसर तुम्हारे बारे में बात करती रहती है.’’

उस दिन अनाया के भाई के साथ मिल कर उस ने खूब मस्ती की थी. अनाया का भाई आरुष भले ही स्पैशलचाइल्ड था पर उसे संगीत की बहुत अच्छी समझ थी. पियानो पर बहुत अच्छी धुन भी निकालता था. उस के बाद तो प्रतिबिंब अकसर ही अनाया के घर पहुंच जाता. उस से मिल कर आरुष भी बहुत खुश होता. प्रतिबिंब और अनाया का मूक प्रेम यों ही न जाने कब तक चलता यदि 5 साल पहले 26 जनवरी को वह घटना न हुई होती.

उस साल 26 जनवरी शनिवार को थी. अनाया और प्रतिबिंब ने उस दिन शाम को एक मूवी जाने का प्लान किया था. शुक्रवार सुबह जब प्रतिबिंब अपने फ्लैट में गहरी नींद की आगोश में था कि तभी कौलबेल की आवाज से वह चौंक गया. इतनी सुबह तो मेड के आने का भी टाइम नहीं है, यह सोचते हुए जैसे ही उस ने गेट खोला तो सामने अपने पापा ब्रजभूषण और मां नंदिनी को देख कर चौंक गया.

“अरे मांपापा, आप इस तरह अचानक, विदआउट एनी इन्फौर्मेशन, कैसे?”

“अरे तो क्या अपने बेटे के घर आने के लिए भी परमीशन लेनी पड़ेगी. आ गए, मन किया तुझसे मिलने का. तू बहुत समय से आया नहीं था. और अभी 3 दिन की छुट्टी थी, सोचा, सब साथ रहेंगे,” नंदिनी ने प्यार से उस से कहा.

“ओके.”

अकेले इंसान के घर में उस के गुजारे के लायक ही सामान होता है. सो, सब से पहले उस ने मांपापा की जरूरतों के अनुसार सामन और्डर किया और अनाया को बिजी हो जाने का मैसेज छोड़ कर पूरे दिन अपने मांपापा के साथ रहा.

अगले दिन सुबह नाश्ते के टाइम ब्रजभूषण बोले, “बेटा, यहां पर एक गुप्ताजी हैं, उन की बिटिया सौफ्टवेयर इंजीनियर है, यहीं दिल्ली में ही. तो हम ने सोचा कि तुम से मिलना भी हो जाएगा और यह काम भी.”

“पापा, मैं अभी इस चक्कर में नहीं पड़ना चाहता. अभी 2 दिन हम तीनों दिल्ली घूमते हैं, फिर कभी देखेंगे,” उस ने बात को टालने की गरज से कहा.

“नहींनहीं, मैं ने उन्हें प्रौमिस कर दिया है, यह है लड़की के औफिस का पता. तुम पहले लड़की से मिल आओ. यदि तुम्हें पसंद होगी तो ही बात आगे बढ़ाएंगे.”

शुरू से घर में पापा का ही दबदबा था. सो, न तो वह अधिक विरोध कर पाया और न ही अभी उस ने अनाया के बारे में उन्हें बताना उचित समझा क्योंकि अभी तो उसे अनाया के मन के बारे में भी पता नहीं था कि वह उन दोनों के रिश्ते के बारे में क्या सोचती है. सो, मांपापा को संतुष्ट करने के उद्देश्य से वह उस दिन गुप्ताजी की लडकी से मिलने गया. जब वह और गुप्ताजी की बेटी एक स्टारबक्स कैफे में बैठे बातचीत कर रहे थे तभी अनाया ने वहां अपनी एक सहेली के साथ प्रवेश किया. अचानक अपने सामने प्रतिबिंब को एक लड़की के साथ बैठा देख कर वह चौंक गई लेकिन फिर भी उसे अनदेखा करती हुई वह तुरंत ही अपनी सहेली को पकड कर बाहर ले गई. इस के तुरंत बाद ही प्रतिबिंब भी घर आ गया.

रास्ते से उस ने अनाया को कई कौल किए. पर अनाया का फोन स्विचऔफ जाता रहा. मां को उस ने लड़की न पसंद आने का बोला और इस के बाद वे लोग रविवार की रात वापस लखनऊ लौट गए.

“सोमवार को लंचटाइम में उस ने अनाया से कहा, “अनाया, वो उस दिन मैं मजबूरी में उस से मिलने गया था. मैं ने तुम्हें बताया था न कि मांपापा आए हैं, उन्होंने किसी को प्रौमिस कर दिया था, सो इसलिए…”

“अरे, तो क्या हो गया, सही तो हैं वे लोग. तुम्हें अब शादी कर लेनी चाहिए. लड़की देखने ही तो भेजा था न?”

“पर मैं नहीं करना चाहता अभी.”

“क्यों नहीं चाहते, हर मातापिता की तरह वे भी चाहते हैं कि वे जल्दी से जल्दी अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हों.”

“तुम्हारी मम्मी नहीं चाहतीं क्या?”

प्रतिबिंब के इस प्रश्न से अनाया चौंक गई, बोली, “देखो प्रति, मुझ से जो शादी करेगा उसे भैया और मेरी मां की जिम्मेदारी भी मिलेगी. और आजकल के समय में कौन जिंदगीभर के लिए इतनी बड़ी जिम्मेदारी लेना चाहेगा. कई रिश्ते आए पर जब मम्मी और भैया के लिए केवल मुझे ही खड़ा पाते हैं तो सहज ही उन के कदम पीछे चले जाते हैं.”

“और यदि इस जिम्मेदारी में मैं तुम्हारा भागीदार बनना चाहूं तो?’’ प्रतिबिंब ने अनाया का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा.

प्रतिबिंब की इस बात को सुन कर अनाया बिना कुछ कहे प्रतिबिंब की तरफ शांतभाव से देखने लगी.

“बोलो अनाया, अगर क्या अपने साथ मुझे इस जिम्मेदारी को ताउम्र निभाने का मौका दोगी?”

“प्रति, मैं तुम्हारी भावनाओं की बहुत कद्र करती हूं और यह भी जानती हूं कि तुम अपने कहे को पूरा भी करोगे पर ध्यान रखो कि तुम अकेले नहीं हो, तुम्हारे साथ तुम्हारा पूरा परिवार है. अपने मातापिता की तुम इकलौती संतान हो, उन्होंने तुम्हारी शादी के लिए न जाने कितने सपने देखे होंगे. क्या तुम्हारा परिवार इतनी बड़ी जिम्मेदारी के साथ इस रिश्ते को मानेगा?” अनाया ने प्रश्नवाचक नजरों से उस की तरफ देखते हुए कहा.

“तुम अपनी बात कहो, मेरे घरवालों को मैं संभाल लूंगा.”

“तुम जैसे सच्चे और अच्छे दोस्त को अपनी जिंदगी का राजदार बनाना किसे बुरा लगेगा,” कह कर अनाया ने प्रतिबम्ब के प्रस्ताव पर अपनी सहमति की मोहर लगा दी थी.

इस के बाद दीवाली पर जब वह घर गया तो मम्मी ने हर बार की तरह इस बार 10 लड़कियों के फोटो उस के सामने रखे और पसंद करने को कहा तो उस ने बड़े प्यार से मम्मी से कहा, “मम्मी, इन फोटोज की जगह यदि मैं आप से कहूं कि मुझे सचमुच एक लड़की पसंद है, तो?”

“अरे सच में, क्या कह रहा है तू, पसंद है तो बताया क्यों नहीं. कौन है, कहां है, वहीं औफिस में ही है क्या, क्या नाम है, कैसी है बता तो सही?”

“अरेअरे मां, इतनी उतावली क्यों हो रही, सब बता रहा हूं, बोलने का मौका तो दो,” प्रतिबिंब ने सामने पड़े सोफे पर मां को कंधे पकड़ कर बैठाते हुए कहा. और उस के बाद उस ने अनाया का फोटो मोबाइल में दिखाते हुए अनाया के बारे में बताया. पिता के सख्त स्वभाव का होने के कारण प्रतिबिंब का अपनी मां के साथ दोस्ताना रवैया था और उन से वह अपनी हर बात शेयर कर लिया करता था.

अनाया सुंदर तो थी ही, जीवन के संघर्ष के कारण चेहरे पर आत्मविश्वास का दर्प भी था. सो, फोटो देखते ही प्रति की मां बोलीं, “अरे वाह, तू तो छिपा रुस्तम निकला, प्रति. तो फिर देर किस बात की, आज ही पापा को बताती हूं और अगले मुहूर्त में शादी कर लेंगे.”

अपने पिता के दंभी स्वभाव को प्रतिबिंब भलीभांति जानता था, सो बोला,

“मां, इतना आसान नहीं है, अनाया के पिता नहीं हैं, एक विकलांग भाई है और मां हैं जिन की जिम्मेदारी हम दोनों को उठानी होगी. दूसरे, अनाया की आर्थिक स्थिति हम से बहुत कमतर है. तीसरे, अनाया जाति से ब्राह्मण नहीं है. और ये तीनों ही कारण ऐसे हैं जिन पर अनाया का कोई वश नहीं था. हां, आज की डेट में वह एक जिम्मेदार बहन और बेटी है और अब मैं उसे एक जिम्मेदार बहू भी बनाना चाहता हूं. बस, आप का साथ चाहिए, मां,” यह कहते हुए प्रतिबिंब मां नंदिनी के पैरों में बैठ गया.

कुछ ही देर में प्रतिबिंब ने देखा कि नंदिनी के चेहरे की ख़ुशी का स्थान चिंता और भय ने ले लिया है.

“क्या हुआ, मां? कुछ तो बोलो, दोगी न मेरा साथ?”

“क्या बोलूं और क्या कहूं, कुछ समझ नहीं आ रहा. क्या तू घर में मेरी स्थिति नहीं जानता. और क्या अपने पापा को नहीं जानता. तुझे लगता है मैं उन्हें बताऊंगी और वो मान जाएंगे? समाज में अपनी प्रतिष्ठा को ले कर कितने सजग हैं, यह भी तू जानता है. पर ठीक है, देखते हैं क्या होता है.” यह कह कर नंदिनी ने किसी तरह बात को उस समय टाल दिया था.

अगले दिन जब सब नाश्ते की टेबल पर थे तो अचानक पिता ब्रजभूषण का स्वर उस के कानों में गूंजा, “कौन है यह लड़की जिस के बारे में तुम ने अपनी मम्मी को बताया है.”

“मेरे साथ काम करती है. मम्मी ने आप को सब बता ही दिया होगा,” कह कर प्रतिबिंब ने अपना सिर नाश्ते की प्लेट में झुका दिया.

“तो जो तुम ने कहा है वह सब भूल जाओ. बेवकूफ हो तुम जो इस लडकी से शादी करना चाहते हो जिस के आगे नाथ न पीछे पगहा, ऊपर से मांभाई की जिम्मेदारी. सोचा है, कभी अगर कल को मां को कुछ हो गया तो सारी जिम्मेदारी तुम्हारे ऊपर आएगी. इस गैरजाति की लडकी से नैनमटक्का करते तुम्हें समाज में अपनी मानमर्यादा का जरा भी ध्यान नहीं आया. और ये गरीब घरों की लड़कियां, इन की तो नजर ही हमेशा वैल सैटल्ड लडकों पर होती है. मैं इस तरह की किसी भी शादी को कभी भी तैयार नहीं हो सकता और अगर करनी है तो मेरी मौत के बाद ही यह संभव हो सकेगा,” ब्रजभूषण ने अपने गरजते स्वर में कहा और नाश्ते की टेबल पर से बिना नाश्ता किए ही चले गए.

प्रतिबिंब ने भी किसी तरह थोड़ाबहुत नाश्ता अपने हलक से उतारा और 2 घंटे बाद की अपनी ट्रेन की तैयारी करने लगा.

अगले दिन कैंटीन में खाना खाते समय प्रतिबिंब को उदास और खोयाखोया देख कर अनाया बोली, “क्या हुआ, आज जनाब का मूड ठीक नहीं है?”

“नहीं, कुछ नहीं, बस ऐसे ही,” प्रतिबिंब ने बात को टालने की गरज से कहा.

किसी भी बात की तह तक जाना अनाया की खासीयत थी. सो, उस ने आज प्रतिबिंब को भी सचाई बताने के लिए मजबूर कर दिया.

प्रतिबिंब की बात सुन कर वह बोली, “देखो प्रति, तुम्हारे पापा अपनी जगह बिलकुल सही हैं. हम गरीब घरों की लड़कियों को हमेशा से मतलबी, लालची और अमीर लडकों को फंसाने वाली ही माना जाता रहा है. फिर, मेरे साथ तो सब कुछ माइनस है. तुम मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो और अपने मातापिता की पसंद की लड़की से शादी कर के एक खुशहाल जिंदगी जियो,” कह कर अनाया अपना पर्स उठा कर चली गई.

उस पूरे दिन प्रतिबिंब का काम में मन नहीं लगा. वह जल्दी ही अपने फ्लैट पर आ गया और अपनी मां को फोन लगा दिया.

“मां, देखिए, मैं भी पापा का ही बेटा हूं, पापा से कह दीजिएगा यदि वे अनाया से मेरे विवाह को तैयार नहीं हैं तो मैं भी किसी और से शादी नहीं करूंगा. यदि आज अनाया की जगह मैं होता तो क्या अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लेता. आज के बाद मुझ से शादी की बात कभी मत कीजिएगा.” और इस के बाद उस की शादी की चर्चा घर में होनी बंद हो गई.

इस बात को आज 7 साल हो गए. उस की उम्र 28 से 35 हो चली है. वह और उस के पिता दोनों ही अपनी बात पर कायम हैं. अनाया और प्रतिबिंब समाज की नजर में भले ही पतिपत्नी न हों लेकिन साथसाथ मीटिंग्स अटेंड करना, होटल के एक ही रूम में रुकना और लाइफ को एंजौय करना यह सब अब उन के लिए बहुत कौमन सी बात है क्योकिं दोनों ही एकदूसरे के बिना रह नहीं सकते और प्रतिबिंब अपने पापा को मना नहीं पा रहा. 3 दिन और भोपाल में रुकने के बाद वे दोनों ही दिल्ली लौट आए. एक सप्ताह तक बाहर रहने के कारण बहुत सारा औफिसवर्क पैंडिग हो गया था. सो, प्रतिबिंब फाइलों में ही उलझा हुआ था कि अचानक मोबाइल की रिंग बजी. जैसे ही उस ने फोन उठाया, मम्मी की रोती हुई आवाज थी.

“बेटा, पापा का ऐक्सिडैंट हो गया है, जल्दी आओ.”

वह घबराता हुआ अनाया के पास पहुंचा और बोला, “अनाया, पापा का ऐक्सिडैंट हो गया है, मैं जा रहा हूं.” यह सुनते ही अनाया भी उस के साथ हो ली और उसे जरूरी हिदायतें दे कर रवाना किया. जैसे ही वह लखनऊ के केजीएमसी पहुंचा तो आईसीयू के बाहर बैठी मां को देख कर घबरा गया. उस के पिता की कार को ट्रक ने टक्कर मार दी थी. सिर और पैर बुरी तरह जख्मी हो गए थे. कुछ ही देर में डाक्टर बाहर आए और बोले, “पैरों से बहुत खून बह चुका है, दिमाग पर भी काफी चोट आई है.”

पिता की गंभीर हालत को देखते हुए उस ने तुरंत पिता को दिल्ली एम्स ले जाने का निर्णय लिया और मां के साथ दिल्ली के लिया रवाना हो गया. दिल्ली में अनाया और उस की मम्मी ने डाक्टर से अपौइंटमैंट से ले कर भरती कराने तक की सारी व्यवस्थाएं कर रखी थीं जिस से उस ने पिता को तुरंत एडमिट करा दिया. सिर पर चोट लगने के कारण ब्रजभूष्ण को 4 दिन बाद होश आया.

लगभग 15 दिनों तक वे एडमिट रहे. इस बीच अनाया और उस की मम्मी ने एक पल को भी प्रतिबिंब और उस की मम्मी को अकेला नहीं छोड़ा. हर दिन अनाया अपने घर से दोनों के लिए ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर ले कर आती. अपने हाथों से नंदिनी को खिलाती. जब प्रतिबिंब और दामिनी फ्लैट पर अपने दैनिक कार्यों के लिए जाते तो वह हौस्पिटल में रुकती. जब कभी प्रतिबिंब पापा को ले कर उदास होता तो वह उसे संबल देती.

सब की मेहनत के परिणामस्वरूप 15 दिनों के बाद ब्रजभूषण को अस्पताल से छुट्टी मिली पर सब से दुखद बात यह थी कि ट्रक की चपेट में आने के कारण एक पैर को काटना पड़ा था. अभी 15 दिन के बाद फिर से विजिट होनी थी, इसलिए वे लखनऊ जाने के बजाय प्रतिबिंब के फ्लैट पर ही रुके थे. सूने घर में रौनक आ जाती जब अनाया आती. वह हर रोज प्रतिबिंब के साथ आती, ब्रजभूषण और दामिनी को अपने हाथों से चाय बना कर पिलाती और फिर प्रतिबिंब उसे छोड़ कर आ जाता.

एक दिन जब प्रतिबिंब अपने औफिस में था तो दामिनी ने कहा, “देखो जी, जिस में हमारा बेटा खुश है उसी में हमें भी खुश होना चाहिए. तुम्हारे इलाज के दौरान अनाया और उस की मां ने जो मदद की है उसे नकारा नहीं जा सकता. हम ने तो अपनी जिंदगी जी ली है, अब बेटे को उस की जिंदगी जीने दो. उस की खुशियों को छीनने का हमें कोई हक नहीं है. कब से वह आप की हां का इंतजार कर रहा है. अब तो हां कर दो जी.” इस दौरान दामिनी बोलती रहीं और ब्रजभूषण बिना एक भी शब्द बोले, बस, सुनते ही रहे मानो वे किसी मानसिक अंतर्द्वंद से गुजर रहे हों.

इस के 2 दिनों बाद आने वाले रविवार की सुबह ब्रजभूषण सुबह जल्दी उठ कर अपने दैनिक कार्यों से निवृत हो तैयार हो कर अपनी स्टिक के सहारे चल कर कभी अंदर जाते, कभी बाहर. उन्हें इस तरह बेचैन देख कर दामिनी बोली, “क्या हुआ जी, इतनी बेचैनी से इधरउधर क्यों घूम रहे हैं?”

“कुछ नहीं, बस ऐसे ही. प्रति उठा कि नहीं. तुम ने नहा लिया. प्रति से कहो, वह भी नहाधो ले. हम आज नाश्ता बाहर करेंगे.”

अब तक प्रतिबिंब भी उठ कर आ गया था और बाहर के खाने से सदा चिढ़ने वाले अपने पापा के इस रूप को देख कर हैरान था. कुछ ही देर में दरवाजे की घंटी बजी तो सामने अनाया को अपने भाई और मां के साथ खड़ा देख कर प्रतिबिंब हैरान रह गया.

“अरे, अनु तुम, यहां, कैसे-क्यों?”

‘’अरे, दरवाजे के बीच से तो हटो, उन्हें अंदर आने दो. मैं ने उन्हें यहां बुलाया है.” अपने पिता की आवाज सुनकर प्रतिबिंब और उस की मां दोनों ही चौंक गए.

उधर, अनाया और उस की मम्मी भी हैरान थीं इस तरह अचानक बुलाए जाने से क्योंकि ब्रजभूषण ने उन्हें जल्दी ही घर आने को कहा था. सब हैरान थे प्रतिबिंब तो डर के कारण कांप रहा यह सोच कर कि आज पापा पता नहीं क्या तूफान लाने वाले हैं पर ब्रजभूषण जी एकदम शांत थे. सब को बैठने का इशारा कर के वे भी सोफे पर बैठ गए और अनाया की मम्मी की तरफ देखते हुए बोले, “क्या आप को पता है कि ये दोनों अपनी जिंदगी एकसाथ बिताना चाहते हैं.”

“जी,’’ अनाया की मम्मी ने सकुचाते हुए कहा.

“तो फिर देर किस बात की है, इन्हें बांध देते हैं इस बंधन में.”

“पर पापा, आप…” प्रतिबिंब ने हैरत से कहा.

“हां, मैं ही कह रहा हूं. हां, मैं मानता हूं कि पहले मैं ही तैयार नहीं था पर अब मेरा नजरिया बदल गया है. जिस समाज की परवा कर के मैं अपने बच्चों को तकलीफ देता रहा. मेरी बीमारी के दौरान वह समाज किसी काम नहीं आया. तो फिर मैं उस समाज की चिंता क्यों करूं. मुझे भरोसा है अनाया पर जो एक जिम्मेदार बेटी और बहन है तो एक जिम्मेदार बहू भी होगी. मुझे माफ़ कर दो मेरे बच्चो,” कह कर ब्रजभूषण चुप हो गए.

ब्रजभूषण की बातें सुन कर पूरे हौल में ख़ुशी की लहर दौड़ गई. प्रतिबिंब और उस की मम्मी ख़ुशी से ब्रजभूषण के गले लग गए और अनाया ने झुक कर उन के पैर छू लिए. आज अनाया और प्रतिबिंब की शादी के सारे माइनस पौइंट प्लस में बदल गए थे.

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