गांधीजी के तीन बंदरों के बारे में बचपन से ही पढ़ा दिया जाता है, मगर क्या आप जानते हैं इन तीन बंदरों का एक और भाई था जिस की सीख आज बहुत मायने रखती है?

वैसे तो राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी से जुड़ा हर पहलू रुचि पैदा करता है लेकिन जिंदगी की पहली सीढ़ी पर बापू से कनेक्शन का जरिया बनते हैं उनके तीन बंदर. इन बंदरों की पौपुलिरटी की सब से बड़ी वजह यह थी कि इन तीनों ने जीवन को आदर्श तरीके से जीने के तीन फार्मूले दिए. ये बंदर स्कूल में ही इंसान को नैतिकता से जुड़े रहने का पाठ पढ़ा देते हैं, ऐसे में अगर मां को शिशु की पहली पाठशाला कहते हैं, तो इन्हें इंसान के पहले ‘मोरल टीचर्स’ कहना गलत नहीं होगा.

चाैथा बंदर कहां गायब हो गया

गांधीजी के तीन बंदर थे, यह बात तो सभी को पता होगी लेकिन अभी भी बहुत सारे लोगों को यह पता नहीं है कि इन बंदरों का एक और भाई था, ‘चौथा बंदर’. इस चौथे बंदर से चीन, जापान को छोड़ कर बाकी मुल्कों की एक बड़ी आबादी आज भी नावाकिफ है. इस चौथे बंदर का नाम है ‘शिजारू’. इस के बाकी के तीन भाइयों (बापू के तीन बंदरों) के नाम इस तरह से हैं. पहला है ‘मिजारू’ जिस ने अपने आंखों को ढक रखा है और लोगों को बुरा नहीं देखने की सीख देता है. दूसरे का नाम है ‘किकजुरा’, जो कानों को ढक कर बुरा नहीं सुनने का मैसेज देता है, तीसरा बंदर ‘इवाजुरा’ ने अपने मुंह को दोनों हथेलियों से बंद कर रखा है, अपने इस मुद्रा से वह लोगों को बुरा बोलने से बचने का संदेश देता है. यहां तक की कहानी तो सभी को पता है लेकिन यहां बात हो रही है चौथे बंदर की, जो सब से उत्तम गुण रखने के बावजूद एक गलत सोच या टैबू की वजह से भुला दिया गया.

गांधीजी के पास कैसे पहुंचे बंदर पहली थ्योरी

ऐसी धारणा है कि 17वीं सदी में जापान के घरों में इन चारों बंदरों की कहानियां सुनी और सुनाई जाती थी जबकि सचाई यह है कि दूसरी और चौथी सदी ईसा पूर्व में ही ये चारों बंदर भाई चीन में मौजूद थे जिस से साबित होती है कि इन की मातृभूमि जापान नहीं चीन है. कुछ प्रबुद्ध लोगों ने इन मूर्तियों का सीधा संबंध बौद्ध दर्शन से माना है. ऐसी सोच रखने वालों का मानना था कि ये तीन बंदर भारत से हो कर चीन, चीन से होते हुए कोरिया और कोरिया से जापान पहुंच गए. ऐसी मान्यता भी है कि ये बंदर चीनी फिलौसफर कंफ्यूशियस के थे जो 8 वीं सदी में जापान पहुंचे थे, जब जापान में शिंतो समुदाय अपने चरम पर था. इस संप्रदाय के लोग बंदरों का काफी सम्मान करते हैं. इतना ही नहीं इन्हें ‘बुद्धिमान बंदर’ के तौर पर जाना जाता है.

जापान के निको शहर के शिन्तो चैत्य (बौद्ध विहार) की दीवार पर तीनों बंदरों के शिल्प को उकेरा गया है. इस शिल्प को देखने और समझने के बाद गांधीजी इन के प्रतीक को अपने साथ जापान से भारत ले कर आए. चीन में बुद्ध के दर्शन का विकास लाओत्से के ताओ के समय हुआ तो जापान में शिन्तो मत में विश्वास करने वालों के समय बुद्ध की शिक्षाओं ने अपनी जड़ें जमाई. ऐसा माना जाता है कि 17वीं सदी में बौद्ध दर्शन से प्रभावित जापान के सम्राट तोकुगावा पर इन बंदरों का गहरा असर था. सम्राट के मरने के बाद उन की समाधि के मुख्य द्वार पर इन तीन बंदरों की मूर्तियां बनवा कर लगाई गई.

गांधी के पास बंदर के पहुंचने की दूसरी थ्योरी

गांधीजी के पास बंदरों के पहुंचने का एक और किस्सा बहुत मशहूर है. ऐसा कहा जाता है कि चीन से कुछ लोग बापू से मिलने आए तो उन्होंने गांधीजी को तीनों बंदरों का सेट उपहार में दिया. इस प्रतिनिधिमंडल ने गांधीजी को बताया कि खिलोने के साइज की ये मूर्तियां चीन में काफी फेमस हैं. इन बंदरों को गांधीजी ने पूरी जिंदगी संभाल कर रखा.

क्यों पौपुलर नहीं हुआ चौथा बंदर

तीन बंदरों की मोरल वैल्यूज से आप का परिचय पहली क्लास तक हो गया था लेकिन सब से गहरी सीख देने वाला चौथा बंदर ‘शिजारू’ को क्यों भूला दिया गया, उसे अपने बाकी भाइयों की तरह दुनिया ने क्यों नहीं स्वीकारा?

चौथे बंदर शिजारू ने अपने दोनों हथेलियों को एक के ऊपर एक चढ़ा कर अपने पेट के आगे कर रखा है. ‘ ‘शिजारू’ इस बात की सीख देता है कि ‘बुरा मत करो’. शिजारू’ ने केवल बुराई से दूर रहने की जरूरत पर जोर नहीं दिया बल्कि यह भी संदेश दिया है कि बुरे काम को करने से भी बचना चाहिए. आज के संदर्भ में जब सोसाइटी में बुराइयों का बोलबाला है, इस बंदर की सीख बहुत ही काम की साबित होती, अगर ये पौपुलर होता. लेकिन अंधविश्वास की वजह से यह खुद में ही सिमट कर रह गया.

दरअसल जापानी कल्चर में नंबर 4 को बुरा माना जाता है शायद यही वजह है कि जापान की सीमाओं के अंदर ही इस का दम घुट गया और बाकी दुनिया तक इस का संदेश नहीं पहुंच पाया.

अभी कहां हैं बापू के तीन बंदर

बापू के तीन बंदर हमेशा उन के साथ ही होते थे. काफी सालों तक ये तीनों बापू के साथ उन के साबरमती आश्रम में रहे. साल 1917 से 1930 तक यह आश्रम स्वतंत्रता संघर्ष का अहम केंद्र रहा, यहां तक कि बापू ने दांडी यात्रा यहीं से शुरू की. उन की मृत्यु के बाद गांधीजी के तीनों बंदरों को दिल्ली के राजघाट स्थित राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय में रख दिया गया. यह बंदर चीनी मिट्टी से बने हुए हैं. ऐसा कहा जाता है कि एक सज्जन ने गांधी से पूछा कि आप के पास रखे हुए हैं ये बंदर कौन हैं, तो उन्होंने कहा कि ये मेरे गुरु हैं. जापान से पूरे विश्व में मशहूर हुउ इन बुद्धिमान बंदरों को यूनेस्को ने अपनी वर्ल्ड हैरिटेज लिस्ट में शामिल कर रखा है.

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