जीएसटी को ले कर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच ही विवाद नहीं है. बिजनेसमैन भी परेशान है. केंद्र सरकार इस पर झुकने के लिए तैयार नहीं है. इस की ताजी मिसाल केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और श्री अन्नपूर्णा होटल श्रंखला के मालिक डी. श्रीनिवासन के बीच का मसला भी है. जीएसटी बैठक के दौरान होटल व्यवसायी श्रीनिवासन ने कहा था कि मिठाई पर 5 प्रतिशत जीएसटी है, नमकीन पर 12 प्रतिशत और क्रीम बन पर 18 प्रतिशत, लेकिन सादे बन पर कोई जीएसटी नहीं है. इस पर ग्राहक मजाक करते हुए कहते हैं ‘बस मुझे बन दे दो, क्रीम मैं खुद डाल लूंगा’
उन के यह कहे जाने के बाद वहां मौजूद लोगों की हंसी छूट गई. यह वीडियो वायरल हो गया. व्यापारी पर माफी मांगने का दबाव बनाया गया. इस के बाद होटल व्यवसायी ने वित्त मंत्री से माफी मांगते कहा ‘वह किसी पार्टी से नहीं जुड़े हैं. उन्हें माफ कर दिया जाए.’ इस वीडियो को भाजपा के किसी नेता ने वायरल कर दिया.
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए एक्स पर लिखा कि कोयंबटूर में अन्नपूर्णा रेस्तरां जैसे छोटे व्यवसाय के मालिक ने सरल जीएसटी व्यवस्था की मांग की, लेकिन उन के अनुरोध को अहंकार और घोर अनादर के साथ लिया गया’.
इस मसले ने तूल पकड़ लिया. तब तमिलनाडु भाजपा प्रमुख के. अन्नामलाई की तरफ से बयान में कहा गया कि वह अपने पदाधिकारियों द्वारा किए गए इस कृत्य के लिए क्षमा मांगते हैं, जिन्होंने एक सम्मानित व्यवसायी और माननीय वित्त मंत्री के बीच एक निजी बातचीत को साझा कर दिया. इस घटना से समझा जा सकता है कि जीएसटी को ले कर केंद्र कुछ भी सुनने को तैयार नहीं है. ऐसे में यह जनता और राज्य दोनों पर बोझ बन गई है.
संकट में हिमाचल प्रदेश
हिमाचल प्रदेश आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है. इस के चलते वेतन के देर से मिलने और तमाम वस्तुओं पर टैक्स बढ़ाने का काम शुरू हो गया है. हिमांचल तो एक उदाहरण है. इसी क्रम में पंजाब, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश जैसे कई राज्य और हैं जिन्हें आर्थिक संकट का सामना करना पड़ सकता है. इस का एक बड़ा कारण जीएसटी कानून की नीतियां हैं. आंध्र प्रदेश और बिहार को केंद्र सरकार आर्थिक सहायता देने का काम कर रही है. क्योंकि इन दो राज्यों के बल पर केंद्र सरकार सत्ता में बनी है.
राज्य सरकारों ने केंद्र को आर्थिक समस्याओं के कारण ही समर्थन दे रखा है. राज्य सरकारों को पता है कि एक देश एक टैक्स के जमाने में वह केंद्र सरकार से विरोध ले कर सत्ता पर काबिज नहीं रह पाएगी. बिहार, झारखंड, ओडिसा, तेलंगाना और उत्तराखंड जैसे राज्यों को भी अपना राजस्व बढ़ाने पर काम करना होगा. नहीं तो उन के सामने भी ऐसे हालात आने में देर नहीं लगेगी. केंद्र के विरोधी दलों वाले राज्यों के सामने दूसरे संकट भी हैं. ऐसे में केंद्र सरकार से राज्य कोई पंगा नहीं लेना चाहते हैं.
हिमाचल प्रदेश में इन दिनों आर्थिक संकट गहराया हुआ है. सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार का खजाना खाली हो गया है. इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब राज्य के 2 लाख कर्मचारियों और 1.5 लाख पेंशनर्स को 1 तारीख को सैलरी और पेंशन नहीं मिली है. अब केंद्र सरकार से राजस्व घाटा अनुदान की 490 करोड़ रुपए की मासिक किस्त मिलने के बाद ही कर्मचारियों को वेतन मिल पाएगा.
नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने कहा कि ‘इन दिनों प्रदेश आर्थिक संकट से गुजर रहा है. इसी वजह से अब तक कर्मचारियों को वेतन नहीं मिला है और रिटायर कर्मियों को भी पेंशन नहीं मिली है. सभी के लिए यह गहन चिंता का विषय बना हुआ है. हिमाचल दिवालियापन की ओर बढ़ता जा रहा है.‘
मौजूदा समय में हिमाचल पर करीब 94 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है. इस वित्तीय बोझ ने राज्य की वित्तीय स्थिति को काफी कमजोर हो गई है. कांग्रेस सरकार पर कर्मचारियों और पेंशनर्स के लिए करीब 10 हजार करोड़ रुपए की देनदारियां बाकी चल रही हैं. 2022 के विधानसभा चुनाव जीत कर सत्ता में वापस आने के लिए कांग्रेस ने कई बड़े वादे किए थे. सुक्खू सरकार में आने के बाद इन वादों पर बेतहाशा खर्च किया गया.
इस वित्तीय बोझ ने राज्य की वित्तीय स्थिति को अत्यधिक कमजोर कर दिया है, जिस के कारण राज्य सरकार को पुराने कर्ज चुकाने के लिए नए कर्ज लेने पड़ रहे हैं. कर्मचारियों और पेंशनर्स के लिए राज्य सरकार पर लगभग 10 हजार करोड़ रुपए की देनदारियां बकाया हैं. हिमाचल प्रदेश के इतिहास में पहली बार, राज्य के 2 लाख कर्मचारियों और 1.5 लाख पेंशनर्स को 1 तारीख को सैलरी और पेंशन नहीं मिल पाई.
हिमाचल सरकार के बजट का 40 फीसदी सैलरी और पेंशन देने में ही चला जाता है. लगभग 20 फीसदी कर्ज और ब्याज चुकाने में खर्च हो जाता है. हिमाचल प्रदेश की खराब आर्थिक स्थिति को देखते हुए सरकार ने बड़ा फैसला लिया. मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने आदेश दिया कि मुख्यमंत्री, मंत्री, मुख्य संसदीय सचिव, बोर्ड निगमों के चेयरमैन दो महीने तक वेतन-भत्ता नहीं लेंगे. हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री ने सभी विधायकों से भी वेतनभत्ता दो महीने के लिए छोड़ने की मांग रखी थी.
सीएम सुक्खू ने कहा, ‘आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है इसलिए वो दो महीने के लिए अपना और अपने मंत्रियों का वेतनभत्ता छोड़ रहे हैं.’ उन्होंने विधायकों से कहा कि हो सके तो दो महीना एडजस्ट कर लीजिए. अभी वेतन-भत्ता मत लीजिए. आगे देख लीजिएगा. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू का आरोप है कि ‘पिछली भाजपा सरकार द्वारा छोड़ा गया कर्ज विरासत में मिला है, जो राज्य को फाइनेंशियल इमरजैंसी में धकेलने के लिए जिम्मेदार है. हम ने राजस्व प्राप्तियों में सुधार किया है. पिछली सरकार ने 5 साल में 665 करोड़ रुपए का आबकारी राजस्व एकत्र किया था और हम ने सिर्फ एक साल में 485 करोड़ रुपए कमाए. हम इस पर काम कर रहे हैं और राज्य की वित्तीय सेहत सुधारने के लिए प्रतिबद्ध है.’
केंद्र सरकार पर आरोप
राज्य में 1,89,466 से अधिक पेंशनभोगी हैं, जिन के 2030-31 तक बढ़ कर 2,38,827 होने की उम्मीद है. केंद्र सरकार ने कर्ज सीमा को 5 फीसदी से घटा कर 3.5 फीसदी कर दिया है. जिस का अर्थ है कि राज्य सरकार जीडीपी का केवल 3.5 फीसदी कर्ज के रूप में जुटा पाएगी. जीएसटी में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच जो विरोध है उस का प्रभाव भी राज्यों पर पड़ रहा है. 101वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2016 के लागू होने के बाद 1 जुलाई, 2017 से जीएसटी को लागू को लागू किया गया.
केंद्र सरकार ने ‘एक देश एक टैक्स’ को देश के विकास के लिए बेहद उपयोगी मानते इस को बड़े जोरशोर से लागू किया था. उस समय केंद्र सरकार ने कहा था कि राज्यों के नुकसान की पूरी भरपाई की जाएगी. इसी आधार पर राज्यों को जीएसटी लागू करने के लिए राजी किया गया था. जीएसटी लागू होने के बाद केंद्र सरकार ने जीएसटी में आने वाली राज्यों की परेशानियों को दूर नहीं किया. कानूनन केंद्र को राजस्व नुकसान की भरपाई करनी होती है.
जीएसटी कानून में यह तय किया गया था कि इसे लागू करने के बाद पहले 5 साल में राज्यों को राजस्व का जो भी नुकसान होगा, उस की केंद्र सरकार भरपाई करेगी. आधार वर्ष 2015-16 को मानते हुए यह तय किया गया कि राज्यों के इस प्रोटेक्टेड रेवेन्यू में हर साल 14 फीसदी की बढ़त को मानते हुए गणना की जाएगी. 5 साल के ट्रांजिशन पीरियड तक केंद्र सरकार महीने में दो बार राज्यों को मुआवजे की रकम देगी. कहा गया कि राज्यों को मिलने वाला सभी मुआवजा जीएसटी के कम्पेनसेशन फंड से दिया जाएगा.
राज्यों को मुआवजे की भरपाई के लिए जीएसटी के तहत ही एक कम्पेनसेशन सेस यानी मुआवजा उपकर लगाया जाता है. यह उपकर तंबाकू, औटोमोबाइल जैसे गैर जरूरी और लग्जरी आइटम पर लगाया जाता है. इस उपकर के कलैक्शन से जो फंड बनता है उसी से राज्यों के मुआवजे की भरपाई सरकार करती है. लौकडाउन में इस फंड में भी कुछ खास रकम नहीं आई जिस के बाद केंद्र सरकार के लिए राज्यों को मुआवजा देने में काफी मुश्किल आने लगी.
केंद्र सरकार ने सार्वजनिक तौर पर यह स्वीकार किया है कि जीएसटी के तहत निर्धारित कानून के हिसाब से राज्यों की हिस्सेदारी देने के लिए उस के पास पैसे नहीं है. सरकार को यह आभास हो गया था कि राज्यों को मुआवजा देने के लिए कम्पेनसेशन सेस संग्रह काफी नहीं है. कंपनसेशन सेस संग्रह हर महीने 7,000 से 8,000 करोड़ रुपए हो रहा था, जबकि राज्यों को हर महीने 14,000 करोड़ रुपए देने पड़ रहे हैं. जीएसटी एक्ट का सेक्शन 10(1) सरकार को यह अधिकार देता है कि वह जीएसटी काउंसिल की इजाजत से टैक्स संग्रह की अन्य राशि में से भी राज्यों को मुआवजा दे.
ऐसे में जब तक केंद्र राज्यों जीएसटी की परेशानियों को हल नहीं करेगी तब तक राज्यों के सामने आने वाले आर्थिक संकट दूर नहीं होगा. इस के साथ ही साथ राज्य सरकारों को भी अपने खर्चों पर काबू करना होगा. फिजूलखर्ची खत्म करनी होगी. आय के दूसरे रास्ते तलाशने होगे जो जनता पर बहुत बोझ डाले बिना हो जाएं. दूसरे राज्यों को हिमांचल प्रदेश से सबक लेना चाहिए. खुद को जरूरत के हिसाब से तैयार करना चाहिए.