भारत में आजादी के 8वें दशक में भी हर मिनट 3 नाबालिग लड़कियों की शादी हो रही है. ‘चाइल्ड मैरिज फ्री इंडिया’ के एक अध्ययन के अनुसार, यह संख्या प्रतिवर्ष 16 लाख तक पहुंच जाती है. नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी की रिपोर्ट हो या समयसमय पर सरकार की ओर से जारी किए जाने वाले अन्य आंकड़े, इस बात की तस्दीक करते हैं कि 2018 से 2022 के बीच 3,863 नाबालिग शादियां होने के मामले दर्ज हुए थे.
इस के बाद ‘चाइल्ड मैरिज फ्री इंडिया’ की ‘इंडिया चाइल्ड प्रोटैक्शन’ ने 2011 की जनगणना से जुड़े आंकड़ों के साथ एनसीआरबी और नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे-5 (2019-21) की सूचनाओं को मिला कर उन का विश्लेषण किया. उस के आधार पर उस ने बताया कि हर साल 16 लाख नाबालिग लड़कियों की शादी हो रही है. भारत में 1929 में नाबालिग शादी को प्रतिबंधित किया जा चुका है.
देश में कानून अपनी जगह रहता है पर समाज अपने ढंग से काम करता है. अपराध के आंकड़े बताते हैं कि जिन राज्यों में नाबालिग लड़कियों के साथ शादी की घटनाएं हो रही हैं वहां उन के साथ रेप के अपराध भी हो रहे हैं. इस के कई उदाहरणों में सब से प्रमुख दहेज लेनेदेने का उदाहरण है. दहेज लेना और देना दोनों ही अपराध हैं. इस के बाद भी दहेज का लेनदेन चल रहा है. दूसरा उदाहरण भ्रष्टाचार का है. यह भी कानूनन अपराध है. इस के बाद भी समाज में यह चल रहा है.
इसी तरह से नाबालिग लड़कियों की शादी का मसला भी है. रेप से बचने के लिए या रेप होने के बाद सम?ाते के तहत दोनों की शादी करा दी जाती है. यह उन प्रदेशों में अधिक है जहां अपराध अधिक होते हैं. गरीबी है. ज्यादातर छोटी उम्र से ही लड़कियां मजदूरी करने लगती हैं. वहीं ये शोषण का शिकार होती हैं.
ओडिशा, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश से शादी करने के बाद ही कम उम्र में लड़कियों को मजदूरी करने को बाहरी प्रदेश भेजा जाता है. पहले ये केवल ईंटभट्टे पर काम करती थीं या घर बनाने में मजदूरी करती थीं. अब ये घरेलू नौकरानी, मौल, अस्पताल जैसी जगहों पर साफसफाई का काम करती हैं. ठेकेदार के जरिए ये काम पाती हैं. बाहर जा कर इन के साथ रेप न हो, इस से बचने के लिए इन की कम उम्र में शादी कर दी जाती है. ये अपने पतियों के साथ ही मजदूरी करने बाहर प्रदेश में आती हैं.
रेप के डर से होती है शादी
नाबालिग लड़कियों के साथ रेप की बढ़ती घटनाएं बताती हैं कि कानून व्यवस्था की हालत खराब है. रेप की शिकार ज्यादातर लड़कियां गरीब तबके से आती हैं. ये दलित, अतिपिछड़ा और आदिवासी समुदाय की होती हैं, जो रेप के शिकार होने के बाद अपनी शिकायत पुलिस में दर्ज नहीं करा पातीं. रेप करने वाले दबंग और मजबूत होते हैं. वे पुलिस और कचहरी संभाल लेते हैं और लड़की के परिवार वालों पर दबाव डाल कर समझौता भी करकरा लेते हैं. रेप के इस डर से मांबाप नाबालिग लड़कियों की मजबूरी में शादी कर देते हैं. रेप कानून व्यवस्था से जुड़ा मसला है, अगर कानून मजबूत हो तो न रेप होंगे न नाबालिग लड़कियों की शादियां होंगी.
इंदौर में नाबालिग लड़की अपने से 13 साल बड़े लड़के से शादी करना चाहती थी. नाबालिग लड़की अपनी उम्र से बड़े लड़के के साथ लिवइन में थी. उन के आपस में संबंध भी थे. अब लड़का शादी करने से इनकार कर रहा था. लड़की का मानना था कि अब वह शादी इसी से करेगी. इस के बाद दोनों के परिवार वालों ने जब बात मान ली कि कुछ समय बाद उन की शादी करा देंगे तब लड़की तैयार हुई.
डराती हैं रेप की घटनाएं
उज्जैन में 25 सितंबर को एक नाबालिग बच्ची से रेप का मामला सामने आया था. महाकाल थाने के इलाके में बड़नगर रोड पर दंडी आश्रम के पास यह बच्ची घायल अवस्था में मिली थी. उस के कपड़े खून से सने थे. यह बच्ची आधेअधूरे कपड़ों में सांवराखेड़ी सिंहस्थ बाइपास की कालोनियों में करीब ढाई घंटे भटकती रही. स्थानीय लोगों से उसे कोई मदद नहीं मिली. पुलिस को सीसीटीवी फुटेज में दिखा कि यह नाबालिग लड़की 3 औटो ड्राइवर और 2 लोगों के साथ बात करती दिखी. यह नाबालिग लड़की सतना की रहने वाली है. इस की उम्र 15 साल दर्ज थी.
राहुल गांधी ने मध्य प्रदेश सरकार को ले कर कहा, ‘‘प्रदेश सरकार बच्चियों की सुरक्षा करने में अक्षम है. मध्य प्रदेश में महिलाओं और बच्चियों के साथ बलात्कार की घटनाएं सब से ज्यादा घट रही हैं. यह घटना प्रशासन और समाज के लिए कलंक है.’’
दूसरी घटना झारखंड की राजधानी रांची के रातू थाना क्षेत्र की है. नाबालिग लड़की अपनी एक सहेली के साथ पास के गांव में ही सरहुल मेला देखने गई थी. लौटने के समय नाबालिग के साथ 5 युवकों ने गैंगरेप किया. पीडि़ता की सहेली किसी तरह दरिंदों के चुंगल से भागने में कामयाब रही.
राजस्थान के सिरोही जिले में गांव की रहने वाली एक 17 साल की लड़की के घर रात को 10 बजे 3 युवक पहुंचे. लड़की के घर पर कोई नहीं था. उन लड़कों ने लड़की को घर से जबरन उठा लिया और उसे कार में ले कर चले गए. 3 दिन उस के साथ रेप किया गया. इस के बाद वेलड़की को मरा हुआ सम?ा कर सड़क किनारे छोड़ कर चले गए. लड़की को कुछ लोगों ने देखा. पुलिस आई, लड़की को होश आया तो उस ने अपनी बात बताई. इस के बाद पुलिस ने लड़कों को पकड़ा.
उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के जहांगीराबाद कोतवाली में 10 वर्ष की लड़की को एक युवक बहलाफुसला कर खेत में ले गया. उस के साथ रेप किया और बाद में उस की हत्या भी कर दी. पुलिस ने आरोपी को पकड़ कर जेल भेज दिया.
मुंबई के भिवंडी के शांतिनगर इलाके के गोविंद नगर में एक परिवार दोमंजिली चाल में रहता था. परिवार में मातापिता, 2 बड़ी बहनें और एक भाई व सब से छोटी पीडि़ता थी. पीडि़ता के पिता एक करघा कारखाने में और मां एक गोदाम में काम करती हैं. मां अपनी दोनों बड़ी बेटियों को भी काम पर साथ ले जाती थी, जबकि भाई स्कूल पढ़ने जाता था.
परिवार रोज की तरह काम पर गया था. दोपहर को जब लड़का स्कूल गया तो उसी चाल की ऊपरी मंजिल पर अकेले रहने वाले युवक ने बच्ची को खाने का लालच दे कर अपने कमरे में बुलाया. जहां रेप कर के उस की हत्या कर दी. शाम को जब भाई स्कूल से घर आया तो कमरा बंद देख कर उस ने अपनी छोटी बहन की तलाश की. वह नहीं मिली.
इस बीच, मां और बड़ी बहन भी काम से घर लौट आईं. जब उन्होंने इलाके में खोजबीन शुरू की तो इलाके के एक छोटे लड़के ने बताया कि उस ने पीडि़ता को ऊपर के कमरे में जाते देखा था. बाद में जब परिवार वालों ने खोजबीन की तो उस बंद कमरे में मासूम का शव मिला.
नाबालिगों से रेप के डरावने आंकड़े
एनसीआरबी द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 2022 में देश में हर दिन कम से कम 90 नाबालिग लड़कियों के साथ बलात्कार किया गया. ये मामले भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार) और धारा 4 (पेनेट्रेटिव यौन हमले के लिए सजा) और 6 (गंभीर यौन उत्पीड़न के लिए सजा) के तहत यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पौक्सो) अधिनियम के तहत दर्ज किए गए.
एक और रिपोर्ट में कहा गया है कि 2021 में देशभर में 33,186 नाबालिग लड़कियों के साथ बलात्कार किया गया था. 3,522 नाबालिग लड़कियों के यौन शोषण की रिपोर्ट करने में मध्य प्रदेश पहले नंबर पर था. उस के बाद महाराष्ट्र में 3,480, तमिलनाडु में 3,435 और उत्तर प्रदेश में 2,749 थे. ऐसी 2,093 घटनाओं के साथ कर्नाटक 5वें स्थान पर रहा.
आज भी रेप से बचाव के लिए ही नाबालिग लड़कियों की शादी कर दी जाती है. यह आज के दौर की बात नहीं है. मराठा राज, जिसे आखिरी हिंदू राज कहा जाता था, में भी इसी तरह होता था. 1820-25 के मराठा राज में पंडेपुरोहितों का काम था कि वे यह देखें कि 9 साल से 14 साल के बीच की कोई लड़की बिना शादी के न रह जाए. ये शादियां पंडित करा देते थे. यह लगभग अंतिम हिंदू राजाओं का दौर था जिस में ब्राह्मणवाद फिर से पेशवाओं के कारण पनपा. वरना तो भारत में बाल विवाह का इतिहास बहुत लंबे समय से रहा है.
ऋग्वैदिक काल से ले कर आधुनिक काल तक किसी न किसी रूप में यह मौजूद रहा है. मुगल राजाओं को हिंदू जनता के सामाजिक सुधारों में कोई रुचि नहीं थी क्योंकि इसलामी कानून भी वैसा ही सा था. अंगरेजों ने कुछ साल अपने प्रोटोस्टैंट और लिबरल विचार आने दिए पर फिर 1857 के बाद उन्होंने तभी कोई सुधार का कानून लागू किया जब हिंदू नेताओं ने जोर दिया.
आजादी के बाद जवाहरलाल नेहरू ने जिद कर के हिंदू विवाह कानून बनवाया था 1955 में वरना धार्मिक प्रतिबंधों के साथ बाल विवाह की प्रथा प्रचलित रही है.
मनुस्मृति इस की समर्थक
मनुस्मृति में कहा गया है कि यदि पिता अपनी पुत्री की यौवनप्राप्ति के 3 वर्ष के भीतर शादी नहीं करा पाता है तो वह स्वयं अपना जीवनसाथी ढूंढ़ सकती है. मनुस्मृति के सब से पुराने और आरंभिक टीकाकारों में से एक मेधातिथि के अनुसार, लड़की का विवाह करने की सही आयु 8 वर्ष है. ऋग्वेद में गर्भाधान का उल्लेख है. जिस का शाब्दिक अर्थ है गर्भ की संपत्ति प्राप्त करना. यह उन 16 संस्कारों में से पहला है जिसे एक हिंदू को करना चाहिए.
यूनानी यात्री मेगस्थनीज ने लिखा है कि उसे बताया गया था कि दक्षिण भारत में पांडियन साम्राज्य की महिलाएं 6 साल की उम्र में बच्चे पैदा करती थीं. 7 शताब्दियों बाद फारसी विद्वान अल बिरूनी ने लिखा कि भारत में बालविवाह बड़े पैमाने पर प्रचलित थे. विवाह कानूनों में सुधार का श्रेय अंगरेजों को दिया जाना चाहिए. 1861 और 1891 के एज औफ कन्सैंट एक्ट के जरिए वैवाहिक अधिकारों में सुधार लाया गया. यह बात और है कि कानून के साथ ही साथ समाज भी अपनी परंपरा को निभाता रहा.
यौन संबंध के लिए न्यूनतम आयु
1861 के अधिनियम में यौनसंबंध के लिए न्यूनतम आयु 10 वर्ष निर्धारित की गई थी. सहमति की आयु अधिनियम 1891, ब्रिटिश भारत में 19 मार्च, 1891 को लागू किया गया एक कानून था, जिस के तहत सभी लड़कियों, चाहे वे विवाहित हों या अविवाहित के लिए यौनसंबंध बनाने की सहमति की आयु सभी अधिकार क्षेत्रों में 10 वर्ष से बढ़ा कर 12 वर्ष कर दी गई थी. इस का उल्लंघन बलात्कार के रूप में आपराधिक मुकदमा चलाने के अधीन था. इन सब कानूनों का हिंदू पंडितों ने विरोध किया था.
रुखमाबाई और फूलमनी दासी नामक 2 युवा लड़कियों के कारण यह कानून बना था. 1884 में 20 वर्षीया रुखमाबाई को उस के पति भीकाजी ने बंबई उच्च न्यायालय में ले जा कर मुकदमा दायर किया, क्योंकि उस ने उस के साथ रहने से इनकार कर दिया था. 11 वर्ष की आयु में उस से विवाह करने के बाद कभी वैवाहिक संबंध स्थापित न कर पाने तथा लगभग 8 वर्षों तक अलग रहने के कारण उस ने उस के साथ वापस जाने से इनकार कर दिया.
अदालत ने उन्हें आदेश दिया कि वे अपने पति के साथ रहें या फिर 6 महीने की जेल की सजा भुगतें. उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया और मुकदमे की बढ़ती लागत के कारण भीकाजी को जुलाई 1888 में 2,000 रुपए के समझौते पर केस वापस लेना पड़ा.
दूसरी घटना 1889 की है. 11 वर्षीया बंगाली लड़की फूलमोनी दासी की उस के 35 वर्षीय पति हरि मोहन मैती द्वारा क्रूरतापूर्वक बलात्कार के बाद मौत के घाट उतार दिया गया. हरि मोहन मैती को बलात्कार के आरोप से बरी कर दिया गया, लेकिन उसे लापरवाही से अनजाने में हुई मौत का दोषी पाया गया. हिंदुओं के एक वर्ग ने इस आयु को 12 वर्ष करने का इस आधार पर विरोध किया कि यह गर्भाधान से संबंधित मानदंडों का उल्लंघन करता है. बाल गंगाधर राव तिलक इस अभियान में सब से आगे थे, जो सहमति की आयु अधिनियम का विरोध कर रहे थे.
इस के बाद विवाह सुधार के नएनए कानून बनते रहे. बाल विवाह निरोधक अधिनियम 1929 को सारदा अधिनियम के नाम से भी जाना जाता है. यह अधिनियम 28 सितंबर, 1929 को पारित किया गया था. अधिनियम के अनुसार लड़कियों के लिए विवाह की आयु 14 वर्ष तथा लड़कों के लिए 18 वर्ष निर्धारित की गई. इस को बनाने वाले न्यायाधीश और आर्य समाज के सदस्य हरबिलास सारदा थे. उन के नाम पर ही इस को सारदा अधिनियम कहा जाता है. यह अधिनियम संपूर्ण ब्रिटिश भारत पर लागू था. देशी रियासतों को इस अधिनियम के दायरे से छूट दी गई थी.
भले ही कानून बने हों लेकिन समाज अपने हिसाब से चलता रहा है. बालविवाह और नाबालिग विवाह का कारण रेप से बचने के लिए विवाह को सही समझ जाता है. यह आज भी चल रहा है. ऐसे में जरूरत इस बात की है कि कानून व्यवस्था को सही किया जाए तो ही रेप रुकेगा और उस के बाद नाबालिग विवाह को रोका जा सकेगा.