मैं एसडीएम बन कर जोधपुर गई तो मेरे मन में यह चाहत बलवती हो गई थी कि मुझे मिन्नी से जरूर मिलना है. मिन्नी मेरे मामू की लड़की है. जब वह 8वीं में पढ़ रही थी, ब्याह दी गई थी. वह बच्ची समाज की गंदी सोच की भेंट चढ़ गई थी. लड़कियों को न पढ़ाने की सोच, जल्दी ब्याह देने की सोच, पढ़ने से लड़कियां बिगड़ जाती हैं, ऐसी घटिया सोच. शहरों के कुछ परिवारों को छोड़ कर राजस्थान के अधिकांश गांवों में लड़कियों के लिए यही सोच चल रही है. पीढ़ीदरपीढ़ी यही हो रहा है. मैं यह भी कह सकती हूं कि देश के सभी गांवों में यही सोच बलवती है. मामूमामी ने वही किया जो उन के संस्कारों में था, जो उन के साथ हुआ था. मेरे लिए भी उन्होंने यही सोचा था लेकिन मैं ने विरोध किया. घर से बेघर हुई. रिश्तेनाते छूटे पर अपने लक्ष्य को प्राप्त किया. अपने पांवों पर खड़ी हुई. आज मैं राजस्थान कैडर की आईएएस अफसर हूं.
मिन्नी जोधपुर जिले के रजनीमहल गांव में कहीं अपना जीवन व्यतीत कर रही है. मैं ने अपने एक विश्वासपात्र को उस का पता दे कर उस का हालचाल पूछने के लिए उस के गांव भेजा था. उस ने आ कर जो बताया, वह दुखदायी था, ‘मैडमजी, वह बहुत गरीब है. पति कहीं मजदूरी करता है. कोई रैगुलर आमदनी नहीं है. स्कूल जाने लायक 2 बच्चे हैं लेकिन गरीबी के कारण स्कूल नहीं जाते और भी रोज की चीजों के अभाव हैं. बाकी मैडमजी, आप वहां जा रही हैं, खुद देख लेना. मैं ज्यादा नहीं बता सकता.’
मैं विचारों में खो गई थी. मेरे नाना-दादा के परिवारों में रिवाज है कि लड़कियों को घर के कूड़ेकरकट की तरह छोटी उम्र में ही बाहर फेंक देना, ब्याह देना. ब्याह के साथ ही उस से कह देना कि आज से उस का मायका खत्म. लड़की को घर से इतना तिरस्कार मिलता है कि वह मर कर भी अपने मायके नहीं आना चाहती. पढ़लिख कर मेरे साथ भी तो यही हुआ था. मैं तो बिना ब्याही घर से बेघर कर दी गई थी. मैं अपनी मेहनत से अफसर बन गई, यह बात अलग है. नहीं तो मेरे मांबाप ने जीतेजी मुझे घर से निकाल कर मार ही दिया था.
‘‘मैडम, रजनीमहल चलने का टाइम हो गया है.’’
मुझे रजनीमहल के सभी प्रशासनिक औफिस, सरकारी स्कूल, एक सरकारी कालेज का इंस्पैक्शन करना था. शिक्षा विभाग का एक अफसर मेरे साथ था. यह उन के प्रोटोकोल में था कि कोई मेरे स्तर का अधिकारी इंस्पैक्शन पर जाए तो उन के विभाग का एक अधिकारी उसे असिस्ट करेगा.
मैं ने उस से मिन्नी और उस के हसबैंड की नौकरी के लिए बात की. उस ने कहा, ‘‘मैम, अस्थायी में तो उन्हें तुरंत रखा जा सकता है. यह प्रिंसिपल के अधिकार क्षेत्र में है. चाहे वे 8वीं पास हैं. फिर उन्हें अस्थायी सर्विस के दौरान 10वीं पास करवा कर स्थायी किया जा सकता है.’’
‘‘क्या ऐसा हो सकता है?’’
‘‘बिलकुल, ऐसा हो सकता है. ऐसा हो जाएगा. आप के रहतेरहते उन्हें 10वीं पास करवा कर स्थायी भी कर दिया जाएगा.’’
लंच स्कूल प्रिंसिपल के साथ था. लंच के दौरान ही मिन्नी और उस के हसबैंड के लिए बात कर ली गई. मिन्नी की लड़कियों के स्कूल में और उस के पति की लड़कों के स्कूल में अस्थायी चपरासी का प्रबंध कर दिया गया. मिन्नी के बच्चे भी उसी स्कूल में पढ़ेंगे जिस स्कूल में मिन्नी रहेगी.
लंच के बाद मैं मिन्नी से मिलने गई तो मन में तसल्ली थी कि कुछ भी हो, नौकरी से कम से कम उस की दालरोटी तो चलेगी. रैगुलर आमदनी तो रहेगी और बच्चे भी पढ़ जाएंगे. इस महीने का खर्च मैं दे दूंगी. वह मेरी कजिन है.
मेरे एक आदमी ने मिन्नी को बता दिया था कि मैं उस से मिलने आ रही हूं. मैं जब उस के पास पहुंची तो वह गले लग खूब रोई थी ऐसे जैसे आज तक उसे रोने के लिए कोई कंधा न मिला हो. उस ने मेरे दाहिनी ओर का बलाउज आंसुओं से भिगो दिया था. मैं ने उसे रोने दिया. बरसों का अवसाद निकल रहा था. उस का पति भी एक तरफ सिर ?ाकाए हाथ जोड़े खड़ा था. मिन्नी एक खोली में रह रही थी. वह अभावग्रस्त जीवन जी रही थी, बल्कि मैं कहूंगी कि नारकीय जीवन जी रही थी. बहुत दुख हुआ.
मैं ने मिन्नी से पूछा, ‘‘कभी मामामामी मिलने नहीं आए?’’
‘‘नहीं दीदी, उन के लिए तो मैं उसी रोज मर गर्ह थी जिस रोज उन्होंने मुझे ब्याह दिया था.’’
मैं फिर आक्रोश से भर उठी थी. यह लड़कियों के प्रति जुल्म है कि शादी के बाद उन का मायका खत्म हो जाए. इस घटिया सोच की जड़ें इतनी गहरी हैं कि उन से मुक्त होना असंभव हैं. मेरे अधिकार में भी नहीं है. मैं केवल जो हो गया है, उस में सुधार कर सकती थी.
मैं ने मिन्नी और उस के हसबैंड से कहा, ‘‘मैं ने आप की नौकरी का प्रबंध कर दिया है. ये दोनों मैडमें स्कूल की प्रिंसिपल हैं. एक लड़कों के स्कूल की, दूसरी लड़कियों के स्कूल की. कल इन के पास जाना. ये आप को चपरासी की टैंपरेरी नौकरी दे देंगी. वहीं आप को रहने की जगह भी मिल जाएगी. आप की रैगुलर आमदनी बनेगी. वहीं आप के बच्चे भी पढ़ेंगे लेकिन किसी तरह की शिकायत नहीं मिलनी चाहिए. ईमानदारी से काम करना. तुम दोनों अगले 2 साल में 10वीं पास कर लेना. मेरे रहते तुम्हें स्थायी भी कर देंगे. लेकिन यह सब आप के काम पर निर्भर रहेगा.’’
मिन्नी के हसबैंड ने कहा, ‘‘मैम, मैं 10वी पास हूं. यह रहा मेरा 10वीं का सर्टिफिकेट.’’
मैं ने देखा और दोनों प्रिंसिपल की ओर बढ़ा दिया. उन्होंने कहा, ‘‘ठीक है, फिर मिन्नी 10वीं पास कर लेगी. कल 10 बजे हमारे पास आ जाएं. हम इन्हें अपौइंट कर लेंगे. वहीं लड़कियों के स्कूल में इन के रहने का प्रबंध हो जाएगा. दोनों लड़के लड़कों के स्कूल में दाखिल कर
दिए जाएंगे.’’
मैं ने दोनों का धन्यवाद किया. शिक्षा विभाग से आए अफसर से मैं ने कहा, ‘‘इन दोनों का अस्थायी अपौइंटमैंट ऐप्रूव करवा कर भेज देना.’’
उस ने हामी भरी. मैं ने मिन्नी की मुट्ठी में 5 हजार रुपए रखे और जल्दी से बाहर आ गई. मिन्नी और उस का पति कुछ नहीं बोल पाए थे. केवल धन्यवाद की मुद्रा में हाथ जोड़े खड़े रहे थे.
शाम को मैं जब जोधपुर लौटी तो मन के भीतर केवल एक ही विचार था, ‘जीवन में कभी मामामामी मिले तो मैं उन्हें खूब लताड़ूंगी. चाहे इस का लाभ कुछ न हो.’ ऐसे लोगों की सोच कभी बदली नहीं जा सकती. अब मेरे मांबाप को ही लें. मैं घर से पढ़ने क्या गई, मु?ा से सभी ने नाता ही तोड़ दिया. किस अपराध में, मैं आज तक समझ नहीं पाई थी?
मुझे याद है, मैं भी 13 साल की उम्र में धुएं में झांक दी गई थी. मैं खूब रोई थी लेकिन मेरे रोने का असर किसी पर नहीं हुआ था. सभी का कहना था कि पढ़लिख कर कौन सा कलैक्टर बनना है. फिर दूर के एक चाचू ने मेरा साथ दिया तो मैं आगे पढ़ने लगी. वह भी इस शर्त पर कि घर का सारा काम कर के मैं स्कूल जाया करूंगी और आ कर भी सारा काम करूंगी यानी चूल्हे के धुंए से मुझे कहीं छुट्टी नहीं थी. मु?ो इतना व्यस्त रखा जाता कि घर में पढ़ने का टाइम न मिलता. स्कूल में जो पढ़ती वही मेरी पढ़ाई थी.
इतना सब होने पर भी मैं ने 10वीं में जिले में टौप किया था. मेरे घर वाले खुश नहीं हुए. मां ने कहा, ‘बहुत पढ़ लिया. अगले महीने तेरी शादी कर देंगे.’ पिता ने भी यही बात कही. मेरे दादादादी, नानानानी ने भी शादी पर जोर दिया. सभी मेरी शादी के पक्ष में थे.
मैं अकेली शादी का विरोध करती रही थी. मैं ने गुस्से और आक्रोश में कहा था, ‘अगर आप मेरी जबरदस्ती शादी करेंगे तो मैं अभी घर से चली जाऊंगी.’
‘अच्छा, तू अभी घर से चली जाएगी? जा, चली जा,’ पिताजी ने मेरा बाजू पकड़ कर घर से बाहर निकाला और दरवाजा बंद कर दिया था.
कोई कुछ नहीं कर सका था. मां, भाई, दादादादी, नानानानी सब चुपचाप देखते रहे थे. किसी ने नहीं सोचा था कि इस अमावस की अंधेरी रात में एक जवान लड़की कहां जाएगी.
बाहर घुप अंधेरा था. मैं भी अजमंजस में थी कि मैं अब कहां जाऊं? दूरदूर तक कुछ सूझ नहीं रहा था. फिर अंधेरे में बस अड्डे की ओर चल दी थी. बस अड्डे के पास उसी चाचू की दुकान थी जिस ने पढ़ाई में मेरा साथ दिया था. मैं ने निश्चय कर लिया था कि मैं चाचू से पैसे ले कर प्रिंसिपल मैम के पास जाऊंगी. उन्होंने मुझ से एक बार कहा था कि ऐसी नौबत आने पर मेरे पास आना. मैं कुछ न कुछ प्रबंध कर दूंगी, कोई गलत कदम मत उठाना.
चाचू ने रुपए तो दिए साथ में कहा, ‘तुम इस समय रात को कहां जाओगी, रात मेरे यहां रुक जाओ, सुबह चली जाना.’
मैं ने कहा था, ‘चाचू, शुक्रिया, मुझे अपने रास्ते खुद बनाने हैं. मैं दूसरों की बैसाखियों के सहारे जीवन में नहीं चल सकती. मेरे लिए रास्ता पहले से निश्चित है. मैं ये रुपए बहुत जल्दी लौटा दूंगी.’
मैं बस पकड़ कर जब प्रिंसिपल मैम के घर पहुंची तो रात के 11 बज चुके थे. मैम के हसबैंड ने दरवाजा खोला था. मुझे देख कर वे हैरान हुए थे. मुझे पहचान गए थे. एकदो बार मैं उन के घर में आ चुकी थी. उन्होंने मुझे अंदर बैठाया था. मैम आईं तो मैं रो पड़ी थी. बहुत समय तक रोती रही थी. वे मेरी पीठ को सहला कर सांत्वना देती रही थीं. रोना रुकने पर मैं ने सारी बात बताई. उन्होंने कहा, ‘तुम चिंता मत करो. आज तुम मेरे यहां रहो. कल सारे प्रबंध कर दिए जाएंगे.’ उन्होंने मुझे अपनी बेटी के कमरे में एडजस्ट किया. उन की बेटी मेरी क्लासफैलो थी. मेरा जबरदस्त स्वागत किया. अपने कपड़े दिए और कहा, ‘अभी नहा कर फ्रैश हो लो. मैं तुम्हारे खाने का देखती हूं.’
मैं नहा कर बाहर निकली तो मेरे चेहरे पर तनाव विद्यमान था. मैम की बेटी रंजना ने देखते ही कहा, ‘हाय चिंकी, तुम बहुत सुंदर हो, राजस्थान की सुंदरी.’
मैं मुसकराई थी. उसी समय मैम मेरे लिए ब्रैड, मक्खन और दूध का कप ले कर आई थीं. उन्होंने रंजना की बात सुन ली थी, कहा था, ‘सुंदर तो यह है ही लेकिन अभी इस के हालात अच्छे नहीं हैं, सब ठीक हो जाएगा.’
उस रात मैं सो नहीं पाई थी. रंजना के साथ के पलंग पर लेटी करवटें बदलती रही थी. सुबह जल्दी उठ कर मैं तैयार हो गई थी. रंजना का दिया सूट ही मैं ने पहन लिया था. मैम ने रात को ही कह दिया था कि यही सूट पहन लेना. नाश्ते के बाद वे सीधे मुझे पुलिस स्टेशन ले कर गईं. इंस्पैक्टर मैम को पहचानता था. उन के बच्चे भी हमारे स्कूल में पढ़ते थे. मेरी सारी बात सुनी. वहीं मुझ से लिखित में ले लिया था. मुख्य मकसद यह था कि मेरे मांबाप गुमशुदा की शिकायत करते हैं तो नबालिग होने के कारण प्रिंसिपल मैम पर कोई ऐक्शन न हो.
इंस्पैक्टर ने सिर्फ यह पूछा, ‘वैसे, आप इस को रखेंगे कहां?’
‘मैं अपने स्कूल में रखूंगी. हमारा चपरासी अपनी फैमिली के साथ रहता है. उस के साथ बहुत शानदार कमरा है, वाशरूम अटैच है. वहां रहेगी. इस के रोज के खर्चों के लिए मैं इसे टयूशनें दिला दूंगी. यह बहुत होशियार लड़की है. 10वीं में जिले में प्रथम आई है. मु?ो इस से बहुत उम्मीद है. आगे चल कर यह पूरे शिक्षा बोर्ड में टौप करेगी. सरकार से इसे छात्रवृत्ति मिल रही है. खाने का प्रबंध भी हो जाएगा. मैं इसे आत्मसम्मान के साथ जीना सिखाऊंगी. मैं चाहूंगी स्कूल में भी आप के संरक्षण में रहे. मैं हमेशा स्कूल में नहीं रहूंगी.’
‘आप चिंता न करें, मैम,’ इंस्पैक्टर ने महिला इंस्पैक्टर को बुलाया और सारी इंस्ट्रक्शन दीं. आगे कहा, ‘चिंकी की हर तरह की सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी है. इंस्पैक्टर सुनिधि हमेशा चिंकी के संपर्क में रहेगी. यहां स्कूल में भी और कालेज में भी.’
इंस्पैक्टर सुनिधि ने अलग से मुझ से बात की. एक मोबाइल दिया और कहा, ‘इस से हमेशा आप मेरे संपर्क में रहेंगी. बेफिक्र हो कर आप पढ़ें. मैं आज ही आप का कमरा देखने आऊंगी.’
मैं मैम के साथ स्कूल आ गई. क्लास में बैठ कर पढ़ाई की. अब सबकुछ ठीक हो गया है. पुलिस इस तरह की सुरक्षा बहुत कम देती है. यह प्रिंसिपल मैम का ही प्रभाव था. मांबाप को ले कर मन कसैला हो गया था. पिताजी ने थोड़ा सा भी नहीं सोचा था कि रात को जवान लड़की कहां जाएगी? उन के लिए तो दरवाजे से बाहर धकेलते ही मैं मर गई थी. न चाहते हुए भी आंखें नम हो गई थीं.
रंजना मेरा हाथ पकड़ कर स्कूल की कैंटीन में ले गई थी. वह अपने और मेरे लिए चायसमोसा ले आई थी. मैं ने कहा, ‘रंजना, यह क्यों, सुबह नाश्ता तो किया था?’
‘तुम मेरी प्यारी सखी हो. रात को मुझे अपने साथ के पलंग पर सुलाते हुए भी अपनापन लगा था. कुछ मत सोचो, खाओ. सब ठंडा हो जाएगा. मम्मी ने भी बोला था कि मैं तुम्हारा खयाल रखूं. चिंकी डिप्रैस्ड नहीं होनी चाहिए.’
मेरी आंखों से आंसू बह निकले. मैं आंसुओं को रोक नहीं पा रही थी. रंजना जल्दी से मुझे कैंटीन से क्लास में ले आई. आंसू पोंछे और पानी पिलाया, कहा, ‘जानती हूं, तुम्हारी हालत में कोई भी आंसुओं को रोक नहीं पाएगा लेकिन तुम्हें साहस से काम लेना होगा. हिम्मत रखनी होगी. तुम्हारे सामने लंबा रास्ता है और मंजिल बहुत दूर है.’
मैं ने अपनेआप को संभाल लिया था. फिर न रोने की कसम खाई थी. रंजना के कारण कैंटीन का लड़का चाय और समोसा ले कर आया. हम दोनों ने खाया और चाय पी और अगले पीरियड के लिए तैयार हो गईं.
स्कूल की कैंटीन से प्रिंसिपल मैम ने मेरे खाने का प्रबंध करवा दिया था. कमरे की खिड़की में सलाखें और जाली नहीं लगी हुई थीं. इंस्पैक्टर सुनिधि ने भी इसे पौइंटआउट किया था. दूसरे रोज वह भी ठीक करवा दी गई थी. स्कूल के स्वीपर से सारा कमरा धुलवा कर साफ करवा दिया था. उसे यह भी आदेश दिया गया था कि रोज कमरा और वाशरूम साफ होगा.
सभी प्रबंध होने के बाद मेरा पूरा ध्यान अपनी पढ़ाई पर चला गया था. बिस्तर और पहनने के कपड़े प्रिंसिपल मैम के घर से आ गए थे. इंस्पैक्टर सुनिधि ने भी मुझे बहुत से सूट दिए. मेरे खर्चों के लिए मैम ने मुझे 4 टयूशनें दिलवा दी थीं. उस से मुझे महीने के 5 हजार रुपए आने लगे. मैं ने खुद को हर तरह से व्यवस्थित कर लिया था.
पहले महीने मैं कैंटीन में खाने का रुपया नहीं दे पाई थी. दूसरे महीने टयूशन के रुपए मिलने पर मैं कैंटीन के मालिक महेंद्रजी को रुपए देने गई थी. वे अधेड़ उम्र के व्यक्ति थे. हाथ जोड़ कर खड़े हो गए, कहा, ‘बिटिया, मैं आप से पैसे नहीं ले सकता. मैं ने प्रिंसिपल मैम से भी कहा था कि मेरे कारीगरों का खाना भी बनता है. खाने में से खाना निकल आया करेगा. मैं चिंकी बिटिया से पैसे नहीं लूंगा. प्लीज, यह रुपया अपने पास रखें.’
मेरी आंखें भर आई थीं. मैं ने कहा था, ‘काका, आप के इस स्नेह के लिए आभार. मैं फ्री में खाना खाना नहीं चाहती. मेरे सम्मान को ठेस पहुंचती है. आप इन रुपयों को ले लें.’
‘ठेस कैसी बिटिया? आप मेरी राजी बिटिया जैसी हो. आप मुझे शर्मिंदा न करें.’ उन की पत्नी भी पास आ कर खड़ी हो गई थीं.
मेरी आंखों से आंसू टपकने लगे थे. उन की पत्नी रोहिनी ने कहा, ‘रोओ मत बिटिया. तुम्हारे सम्मान को ठेस न लगे, इसलिए हम ने 10 रुपए रख लिए हैं. हर महीने 10 रुपए दे दिया करो. बस, हमारे खाने का पैसा आ जाया करेगा.’
मैं कमरे में लौट आई. बहुत देर तक रोना आता रहा. कैसी विडंबना है कि अपनों से तिरस्कार, बेगानों से प्यार. फिर खुद को संभाला. बच्चे ट्यूशन के लिए आने वाले थे.
मेरी पढ़ाई चलती रही. इंस्पैक्टर सुनिधि रोज मेरे संपर्क में रहती. जैसे कि प्रिंसिपल मैम को उम्मीद थी, मैं 12वीं में पूरे राजस्थान बोर्ड में टौप पर रही. मैं संतुष्ट थी कि मैं सब की कसौटी पर खरी उतरी. प्रिंसिपल मैम बहुत खुश थीं. उन्होंने मुझे बहुत आशीर्वाद दिए, कहा, ‘कालेज में जाने के बाद तुम यहां स्कूल के कमरे में नहीं रह सकोगी पर तुम चिंता मत करो. मैं अच्छे पीजी में प्रबंध करवा दूंगी. ट्यूशनें तुम्हारी चलती रहेंगी. आगे क्या करना चाहती हो?’
‘मैम, आप मेरे मन की पूछें तो मैं बीटैक कंप्यूटर साइंस में करना चाहती हूं और यूपीएससी की परीक्षा दे कर प्रशासनिक अधिकारी बनना चाहती हूं. मुझे आईआईटी राजस्थान से डायरैक्ट एंट्री का औफर है. वे मेरी पढ़ाई का सारा खर्चा उठाएंगे. फूडिंग और लौजिंग भी फ्री देंगे.’
मैम ने कुछ देर सोचा, फिर कहा, ‘मुझे उन के संपर्क नंबर दो, मैं खुद बात कर के बताती हूं.’
मैं ने उन्हें औफर का लैटर फौरवर्ड कर दिया. दूसरे रोज मैम ने बताया, ‘मेरी वहां के प्रिंसिपल से बात हुई है. वे तुम्हें स्कौलरशिप के साथ कालेज फीस, होस्टल में फ्री एसी वाला कमरा और खाने का खर्चा भी उठाएंगे. आप वहां तुरंत एडमिशन ले लो.’
मैं ने बीटैक में दाखिला लिया. मुझे जिन सुविधाओं का वादा किया गया था, कालेज ने मुझे वे सारी सुविधाएं दीं. मेरा पूरा ध्यान अपनी पढ़ाई पर चला गया. मैं ने सब से संपर्क भी रखा. इंस्पैक्टर सुनिधिजी, मैम और उन की बेटी रंजना से. मैं कैंटीन के मालिक महेंद्रजी को भी नहीं भूली. मैम ने तो मुझे यहां तक कहा, ‘चिंकी, जब भी कालेज में छुट्टियां हों, सीधे मेरे पास आना है. किसी तरह की झिझक न रखना.’
मैं भावुक हो उठी थी. मेरी आंखें नम हो गई थीं. पढ़ाई में टौप करती रही. बीटैक में भी मैं ने यूनिवर्सिटी में टौप किया. मैं ने यूपीएससी की परीक्षा दी तो उस में भी मैं 5वें नंबर पर थी. मुझे आईएएस के लिए चुना गया. इंटरव्यू में कई तरह के सवाल पूछे गए. उन में से एक सवाल यह भी था कि अगर प्रशासनिक सेवा में आना था तो मैं ने बीटैक क्यों की?
मेरा बड़ा साफ जवाब था, ‘सर, बीटैक मैं ने कंप्यूटर साइंस में की है. आज सबकुछ औनलाइन होता है. कंप्यूटर का जमाना है. मैं इस क्षेत्र में औरों से बैटर कर सकती हूं.’
फिर पूछा गया था, ‘आप का पूरा अकैडमिक कैरियर टौप का रहा है.
क्या आप सर्विस में रहते हुए आगे पढ़ना चाहेंगी?’
‘सर, मैं एमटैक करना चाहूंगी और वह कर लूंगी.’
मेरे चेहरे की दृढ़ता देख कर इंटरव्यू में बैठे मनोविज्ञान के जानकार एक अधिकारी ने पूछा, ‘आप का प्रशासनिक अधिकारी का जीवन बहुत व्यस्त होगा. आप एमटैक कैसे कर पाएंगी?’
मैं ने अपने जीवन संघर्ष के प्रति बताते हुए कहा था, ‘इतनी विकट परिस्थितियों में मैं पढ़ाई में टौप रह सकती हूं तो एमटैक भी कर लूंगी.’
फिर किसी ने मुझ से कोई सवाल नहीं पूछा था. 2 महीने के अंदर मेरे पास आईएएस एकेडैमी में ट्रेनिंग पर जाने का लैटर आ गया था. पुलिस वैरिफिकेशन के लिए मुझे स्थायी पता देना था. मैं कुछ देर के लिए समझ नहीं पाई थी कि मैं किस का पता दूं. प्रिंसिपल मैम और इंस्पैक्टर सुनिधिजी से बात की. दोनों चाहती थीं कि मैं उन का पता दूं. फिर इंस्पैक्टर सुनिधि ने कहा कि मेरी तो बदली होती रहेगी. मैं प्रिंसिपल मैम का पता दूं. पुलिस वैरिफिकेशन हो जाएगी.
एक साल की ट्रेनिंग के दौरान ही मेरी पुलिस वैरिफिकेशन हो गई थी. रंजना ने परीक्षा दी तो वह आईपीएस के लिए चुनी गई थी. वह अंडरट्रेनिंग में थी. मेरी पहली पोस्ंिटग डीडवाना में थी. बाद में मैं जोधपुर आई थी.
प्रशासनिक सेवा में मैं जहांजहां भी गई, मैं ने गांवगांव जागरूक अभियान चलाया. लड़कियां पढ़ें और आगे बढ़ें. उन का जीवन धुएं में ही न खो कर रह जाए. मैं अपने जीवन में अपने मांबाप और परिवार के अन्य सदस्यों से कभी मिल नहीं पाई. न ही उन्होंने मु?ा से मिलने की कोशिश की. यह कैसा विरोध है? कैसे रिश्ते हैं? मैं जान ही नहीं पाई. मैं जानती हूं, मैं भी उन के लिए मिन्नी हो गई हूं. ऐसी कितनी मिन्नियां देश में हैं? इस सवाल का उत्तर दूरदूर तक मुझे सूझ नहीं रहा, नहीं मिल रहा.