देश के नए मंत्रिमंडल की शपथ बोझिल माहौल में हुई है. सरकार के प्रति जो उत्साह और उत्सुकता आम लोगों में आमतौर पर रहते हैं वो इस बार देखने में नहीं आए. 4 जून के नतीजों के बाद से ही देश में एक अजीब किस्म का माहौल है. नए मंत्रिमंडल का गठन इस सन्नाटे को चीरने में नाकाम साबित हो रहा है. ऐसा शायद इसलिए भी है कि इस बार पूरी तरह भाजपा सरकार नहीं है. लिहाजा मुख्यधारा के सवर्णों को लग रहा है कि अब मोदी सरकार मनचाहे और मनमाने फैसले नहीं ले पाएगी. बात सही भी है क्योंकि सरकार पर, उस की नीतियों पर और फैसलों पर सहयोगी सैक्युलर दलों का दबाब रहेगा.
इधर खासतौर पर उत्तर प्रदेश के पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक सहमे हुए हैं कि योगी - मोदी सरकारों का उन के प्रति क्या रवैया अब रहेगा. हालांकि शुरूआती माहौल से ही लोगों को थोड़ा सुकून इस बात को ले कर मिला है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संविधान को माथे से लगाया और शपथ ग्रहण समारोह में जयजय श्रीराम के नारे नहीं लगे और न ही मंदिरों में पूजापाठ हुआ. इस का यह मतलब नहीं कि नरेंद्र मोदी सरकार ने धर्मकर्म से किनारा कर लिया है बल्कि मतलब यह है कि होगा वही जो जनादेश के जरिए जनता ने चाहा है. यह चाहत भाजपा के हिंदूवादी एजेंडे पर लगाम कसने की थी.
नए मंत्रियों को नरेंद्र मोदी ने विनम्र रहने की सलाह दी है. अपेक्षा उन्होंने यह भी की है कि मंत्री ईमानदारी से काम करें और अपने कामकाज में ट्रांसपेरेंसी रखें. इस बार मंत्रिमंडल का साइज पिछली बार से थोड़ा छोटा है जिस में 71 सदस्य हैं. 30 केबिनेट मंत्रियों में से 21 पहले भी मंत्री रह चुके हैं. केबिनेट के 25 मंत्री भाजपा के और 5 सहयोगी दलों के हैं. 5 स्वतंत्र प्रभार और 36 राज्य मंत्रियों में से 6 सहयोगी दलों के हैं. यानी 9 सहयोगी दलों से कुल 11 को मंत्री बनाया गया है. यह हिस्सेदारी 16 फीसदी के लगभग होती है. मंत्रिमंडल में भाजपा की भागीदारी 84.6 फीसदी है जबकि टीडीपी और जद यू दोनों की 2.8 - 2.8 फीसदी है. बाकी सब चिल्लर पार्टियों के हैं. भाजपा के 7 सीनयर चेहरे लोगों की जानेमाने हैं. ये हैं राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, शिवराज सिंह चौहान, जेपी नड्डा, निर्मला सीतारामन और एस जयशंकर.
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