लोकसभा के लिए देश में हो रहे चुनाव में राजनेता राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी की तरफ से इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी के तौर पर उत्तर प्रदेश की रायबरेली सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. इस से पहले सोनिया गांधी यहां से चुनाव लड़ती थीं. राहुल गांधी की बहन प्रियंका गांधी ने यहां चुनावप्रचार का पूरा जिम्मा उठा रखा है. वे अमेठी और रायबरेली का चुनाव प्रबंधन भी देख रही हैं.
रायबरेली में चुनावप्रचार के दौरान जब प्रियंका और राहुल गांधी प्रचार कर रहे थे तब वहां एक युवक ने राहुल गांधी से सवाल किया कि, ‘शादी कब करोगे?’ राहुल गांधी वह सवाल सही से सुन नहीं पाए तो प्रियंका गांधी ने हंसते हुए राहुल से कहा, ‘पहले उस के सवाल का जवाब दो.’ यानी, प्रियंका भी चाहती थीं कि राहुल शादी के बारे में कुछ मन बनाएं.
राहुल गांधी ने कौरेस्पौंडेंटों से पूछा, ‘सवाल क्या है?’ तो उक्त युवक ने अपना सवाल दोहरा दिया. वहां खड़े प्रमोद तिवारी, प्रियंका गांधी व दूसरे कई नेताओं के साथ खुद राहुल भी हंसने लगे. हंसते हुए ही राहुल गांधी ने कहा, ‘अब तो जल्दी ही करनी पडेगी.’
हमारे देश में शादी को ले कर सवाल बहुत पूछे जाते है. किसी भी लड़के या लड़की की शादी नहीं हुई, तो लोग पूछते हैं कि शादी क्यों नहीं की? राहुल गांधी और सलमान खान की तरह से तमाम लोग ऐसे हैं जिन से यह सवाल अकसर पूछा जाता है. सिंगल वुमेन की तुलना में कंआरी लड़की, जिस ने शादी नहीं की, से यह सवाल ज्यादा पूछा जाता है.

शादी सफलता का पैमाना नहीं

जिस तरह से रैली में हिस्सा ले रहे युवक ने राहुल गांधी से उन की शादी को ले कर सवाल किया लेकिन उस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कोई सवाल कर सकता है क्या कि अपनी पत्नी को साथ क्यों नहीं रखा? राहुल आम लोगों से अधिक कनैक्ट होने का प्रयास करते हैं, जनता के बीच सहज होते हैं, उन से एक परिवार का रिश्ता बनाने की बात करते हैं. ऐसे में उन से पर्सनल सवाल भी बिना हिचक के लोग पूछ लेते हैं. इस की वजह यह है कि पत्नी छोड़ देना समाज को स्वीकार है और कई देवताओं ने भी ऐसा किया जो नरेंद्र मोदी कर रहे हैं.
अब सवाल उठता है कि भारत में शादी का सवाल इतना गंभीर क्यों माना जाता है? क्या गैरशादीशुदा सफल नहीं होते या वे देश और समाज के लिए कमतर होते हैं? भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेई ने शादी नहीं की, वे भाजपा के पहले नेता थे जो देश के प्रधानमंत्री बने. वैज्ञानिक और राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने भी शादी नहीं की थी.
रतन टाटा ने भी शादी नहीं की पर उन का योगदान देश के विकास में कम नहीं. केवल पुरुषों में ही नहीं, महिला नेताओ में भी जिन्होंने शादी नहीं की वे भी सफल रही हैं. जयललिता, ममता बनर्जी और मायावती किसी से कम नहीं हैं. इन की देश और समाज के विकास में ख़ास भूमिकाएं रही हैं. शादी न करने से सफलता का कोई मतलब नहीं होता. असल में गैरशादीशुदा ज्यादा परिपक्वता के साथ काम कर सकते हैं.

शादी औरतों को गुलाम बनाए रखने की साजिश

शादी औरतों को गुलाम और कमजोर बनाए रखने की साजिश होती है. चार्ल्स डार्विन के क्रमिक विकास के सिद्धांत के हिसाब से देखें तो यह बता पता चल सकती है कि औरतों को कमजोर रखने की साजिश हजारों साल पहले से शुरू हो गई थी. इस के पीछे धर्म एक बड़ा रोल रहा. जिस समय आदमी और औरत पेड़ों से उतर कर होमो इरेक्टस या होमो सेपियंस बने उस समय इंसान के रूप में उन की कदकाठी करीबकरीब एकजैसी थी. पुरुष को यह बात पंसद नहीं थी कि औरत उस के जैसी ताकतवर, लंबी कदकाठी की रहे. ऐसे में पुरुषों ने सैक्स और बच्चा पैदा करने के लिए उन औरतों को ज्यादा पसंद किया जो कमनीय काया की होती थीं. जो मर्द जैसी दिखती थीं उन को दरकिनार किया जाने लगा. उस का धीरेधीरे यह प्रभाव हुआ की औरतें कमनीय काया वाली होने लगीं. आदमियों जैसी औरतें कम होने लगीं. इस तरह से औरतों को कमजोर बनाया गया.
कमजोर बनाने के बाद अब जरूरत यह थी कि उन को गुलाम कैसे बनाया जाए? इस के लिए जरूरी था कि उन को परिवार और बच्चों तक सीमित रखा जाए. जीवों में स्तनधारी समूह की खासीयत यह होती है कि उन की मादा अपने बच्चे को अपना दूध पिला कर बड़ा करती है. इस में गाय, बकरी, भेड़, भैंस, ऊंट, चमगादड़, व्हेल मछली, कंगारू, बंदर और इंसान प्रमुख रूप से आते हैं.

सैक्स और बच्चे पालने की जरूरत

स्तनधारियों में इंसान दो तरह से अलग होता है. पहले, उस का सैक्स जीवन दूसरे जीवों की तरह केवल प्रजनन के लिए नहीं होता. दूसरे, जीव सैक्स केवल प्रजनन के लिए करते हैं. उन के प्रजनन काल का एक खास समय होता है. एक बार मादा गर्भवती हो जाए तो पशु में नर उस के साथ सैक्स नहीं करता है. इंसान इस से अलग है. नर इंसान के लिए महिला के गर्भवती होने का कोई प्रभाव नहीं होता. महिला तब तक बच्चे को जन्म दे सकती है जब तक उस के गर्भ में अंडाणु बनते रहें.
नर के शुक्राणु बनने की प्रक्रिया में उम्र की कोई सीमा नहीं होती. किशोरावस्था से यह बनना शुरू हो जाते हैं जो बुढ़ापे तक बनते रहते हैं. ऐसे में वह किसी भी उम्र में बच्चे पैदा कर सकता है. मादा मेनोपौज के बाद बच्चे नहीं पैदा कर सकती. इंसान में प्रजनन के अलावा भी सैक्स संबंधों की इच्छा होती है. ऐसे में नर के लिए मादा का साथ होना जरूरी होता है. औरत को दूसरे जिस काम के लिए ज्यादा जरूरत होती है वह होता है बच्चे का पालना. सभी जीवों में इंसान का ही बच्चा ऐसा होता है जिस का बचपन सब से लंबा होता है. उसे पालनपोषण के लिए मां की जरूरत होती है.
औरत बच्चे पैदा करे और मर्द की सैक्स की जरूरत को पूरा करे, इस के लिए परिवार को साथ रहने की जरूरत थी. बच्चा पैदा करना इसलिए जरूरी था जिस से कि अलगअलग झुंड अपनी अहमियत बनाए रखें. यही भावना झुंड से होते हुए कबीलों में बदली, फिर देश और राज्य बनने लगे. सीमाओं का विस्तार हुआ. जिस के पास अधिक पुरुष होते थे वह लड़ाई जीत लेता था. अब व्यवस्था इस तरह की बनी कि औरत का काम बच्चे पैदा कर के उस की देखभाल करे. बूढ़े औरतआदमी घर में रहने लगे. आदमी कबीलों, राज्यों की ताकत बन कर युद्ध में जाने लगे.
ऐसे में मर्द का काम बच्चा पैदा कर के लड़ने वालों की फौज को तैयार करना था जो अपने देश, धर्म, जाति, कबीले और समाज के लिए लड़ सके. पहले औरत को कमजोर किया गया जिस से उस में शारीरिक क्षमता कम हो. वह पुरुष के मुकाबले ताकत में कम हो. औरत की शारीरिक ताकत भले कम हो, उस में प्यार की एक अलग ताकत ने जन्म लिया. इस का मानसिक प्रभाव उस को ताकतवर बनाता है. इस प्यार के कारण ही वह दूसरे जीवों के मुकाबले सैक्स संबंधों में अपने पार्टनर को कम बदलती है.

शादी के बंधन में बंधी औरत की आजादी

औरत को क्रमिक रूप से कमजोर किया गया. इस के बाद उस को एहसास कराया गया कि उस की रक्षा के लिए पुरुष की बेहद जरूरत है. कभी पिता, कभी भाई, कभी पति के रूप में उसे एक पुरुष चाहिए. इन संबंधों को बांधने के लिए शादी की डोर बांधी गई. वहां भी भेदभाव किया गया. 1956 के पहले जो हिंदू विवाह कानून था उस में कई तरह के रीतिरिवाजों से शादियां की जाती थीं. एक से अधिक शादी करना भी पुरुष के लिए गलत नहीं था. औरतों के लिए बंधन था कि वह दूसरी शादी नहीं कर सकती. वह तलाक नहीं ले सकती. उसे पतिव्रता बन कर रहना है. वह पति के साथ चिता में जल सकती है. सतीप्रथा का सिद्धांत भी उस के लिए ही था.
शादी एक तरह का ऐसा बंधन था जिस में प्यार और परिवार के नाम पर औरत को बांधने का काम किया जाता था. पुरुष कई शादियां करने के लिए आजाद था. देश आजाद हुआ तो 1956 में विवाह कानून बना जिस के तहत औरतों को उत्तराधिकार और तलाक का अधिकार दिया गया. इस के बाद भी सदियों से मानसिक गुलामी औरतों ने सही थी. उस के बाद वह उसी में रचबस गई है. वह आज भी पुरुषवादी सत्ता की गुलाम है. बिना किसी कानून के गुलाम है. इस की वजह यह है कि धर्म उस के जीवन के लिए ऐसे रीतिरिवाज बनाने में सफल रहा है जो कानून से भी अधिक ताकतवर हैं.

धर्मसत्ता के लिए शादी है जरूरी

औरतों को सब से अधिक पुरुष के नाम पर डराया जाता है. औरत को उस के बेटे और पति के नाम पर डराया जाता है. इन के नाम पर उस से धर्म के बंधन में जकड़ कर रखा जाता है. वह इन रीतिरिवाजों को तोड़ने की सोच भी नहीं सकती. इस के लिए जरूरी है कि आदमी शादी जरूर करे. अगर वह शादी नहीं करेगा तो औरत उस की गुलाम कैसे बनेगी. यह वह मानसिकता है जिस में हर पुरुष यह चाहता है कि दूसरा पुरुष भी शादी करे. औरत भी चाहती है कि दूसरी औरत भी शादी करे जिस से की वे आपस में बराबर रह सकें. बिना शादी वाली औरत के फैसले अलग होंगे. समाज उस को अलग रूप से देखेगा.
आज पढ़ीलिखी औरतें भी गुलामी की मानसिकता के साथ पुरुषवादी सत्ता से बाहर नहीं आ सकी हैं. आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर महिलाएं भी बिना पुरुष यानि पति से पूछे कोई बड़ा काम नहीं करती हैं. उन के लिए मेरा पति मेरा देवता होता है. पतियों को देवता मानने वाली औरतों की संख्या कम न हो, लड़ने के लिए मर्द कम न हों, इस के लिए शादी जरूरी है. गैरशादीशुदा आदमी से इतने सवाल पूछो की वह शादी करने को मजबूर हो जाए. शादी धर्मसत्ता को बनाए रखने का सब से प्रमुख हथियार है, जिस की गुलामी से औरतें न आजाद हो सकती हैं, न ही वे आजाद होना चाहती हैं.
देश की बड़ी पार्टी का बड़ा नेता राहुल गांधी इस सामाजिक गुलामी करने के षड्यंत्र का हिस्सा न बनें, यह लोगों को पच नहीं रहा. वे देवताओं वाले काम करने वाले, अपनी पत्नी को छोड़ने वाले से कुछ भी पूछने की हिम्मत नहीं रखते.
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