इस बार का चुनाव प्रचार कुछकुछ नहीं बल्कि पूरी तरह से फूहड़, बेतुका, घटिया और एक हद तक मजाकिया भी होता जा रहा है जिसे सुन और देख कर जितेंद्र – श्रीदेवी अभिनीत 1983 की हिट फिल्म हिम्म्तवाला की याद हो आती है. इस फिल्म का एक प्रमुख किरदार रामनगर गांव का जमींदार शेर सिंह बंदूकवाला है जो गांव वालों को बिना फाटक की रेलवे लाइन से डराडरा कर अपना उल्लू सीधा किया करता है.

यह रोल अमजद खान ने इतनी खूबसूरती से निभाया था कि दर्शक तो दर्शक समीक्षक भी उन की जगह किसी और के होने की कल्पना भी नहीं कर पाए थे. शेर सिंह बड़े मनोवैज्ञानिक तरीके से गांव वालों को डराता है कि देखो अंधेरी रात है…तुम्हारी खटिया गांव से बाहर की तरफ चल पड़ी है. तुम उस से उठाना चाहते हो पर उठ नहीं पाते. सामने से धड़धड़ाती ट्रेन चली आ रही है और तुम्हे खटिया से बांध कर बिना फाटक की रेलवे लाइन के बीचोंबीच रख दिया गया है. तुम भागना चाहते हो लेकिन बंधे रहने के कारण भाग नहीं सकते. तुम बचना चाहते हो लेकिन बच नहीं सकते और देखो वो आ गई.

इस काल्पनिक, बिना फाटक की रेलवे लाइन की खौफनाक बेमौत मौत से बचने के लिए जैसा जमींदार कहता था वैसा करता जाता था.
इधर के भाषणों में चुनावी कहानी में बहुसंख्यक हिंदुओं के दिलोदिमाग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह डर बैठा देने में एक हद तक कामयाब होते नजर आ रहे हैं कि कांग्रेस तुम्हारी प्रापर्टी ले कर मुसलमानों और घुसपैठियों में बांट देगी. यहां तक कि औरतों के मंगलसूत्र भी नहीं छोड़ेगी. वो देखो कांग्रेस आ रही है… आ रही है… और तुम्हारा पैसा जमीन जायदाद मुसलमानों में बांट रही है… और तुम कुछ नहीं कर पा रहे हो वो देखो कांग्रेस आ गई… आ गई…

इतना सुनने भर से देश के कुछ लोग डरे हुए हैं ठीक वैसे ही जैसे हिम्मतवाला फिल्म के गांव रामनगर के लोग शेर सिंह को अनाज फल जमीन वगैरह देने तैयार हो जाते थे.
देश में इन दिनों भाषाशैली और माहौल तो यही है. इस डर को सोशल मीडिया पर भाजपा भक्त बिलकुल शेर सिंह के मुताबिक फैला रहे हैं. इन भक्तों की तुलना कादर खान से की जा सकती है जो हिम्मतवाला में अमजद खान के मुनीम के रोल में थे और फिल्म दरअसल में टिकी उन्हीं के कंधों पर थी.

डर की राजनीति

इस खौफ को सोशल मीडिया के मुनीम कैसेकैसे फैला रहे हैं उस की एक बानगी से ही सारा माजरा समझ आ जाता है. एक वायरल पोस्ट में कांग्रेसी बंटवारे को विस्तार से समझाया जा रहा है. कहा गया है कि ‘मान लीजिए एक मुसलमान है अब्दुल. उस के 9 बच्चे हैं और उस के पास 10 लाख रुपए हैं. अब मान लीजिए एक हिंदू मोहन के पास भी 10 लाख रुपए हैं लेकिन उस का एक ही बच्चा है. अब कांग्रेसी हिसाब से 20 लाख रुपए इन दोनों के 10 बच्चों में बंटेगा तो हरेक के हिस्से में 2 लाख रुपए आएंगे. लेकिन इस तरह मोहन के 8 लाख रुपए अब्दुल के बच्चों के हो जाएंगे.’ अब्दुलों के 8 बच्चे होते हैं यह आंकड़ा कहां से लिया गया, यह नहीं बताया गया है. सभी बुजुर्ग भाजपा नेताओं के बच्चे गिन लें तो बात साफ हो जाएगी कि 5 के 25 में किस तरह सफेद झूठ है.

अति भक्ति और अति आस्था के चक्कर में मुनीम लोग यह भूल गए कि देश में हिंदुओं की तरह उन के ही बच्चों की तादाद भी ज्यादा है. यह और बात है कि वे बच्चे दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों के हैं. इस नई ‘मान लीजिए’ वाली ज्योमेट्री के लिहाज से तो पैसा उन के पास जाना चाहिए. ऐसे में क्या उन्हें हिंदू मानने से इंकार कर दिया जाएगा.
क्या यहां मुनीमजी मैसेज यह दे रहे हैं कि मोहन को अगर अपने 10 लाख रुपए बचाना है तो उसे भी 9 बच्चे पैदा करना चाहिए. इतनी सिम्पल सी बात समझाने के लिए मोदी को क्या कुछ नहीं करना और कहना पड़ रहा, वर्ना तो यही बात साधु संत और खुद कई भाजपा नेता आएदिन कहते रहते हैं कि हिंदुओ धड़ाधड़ बच्चे पैदा करो. लेकिन मोहन समझदार है वह एक ही बच्चा पैदा करता जिस से उसे सलीके से पाल और पढ़ा सके. हां पैसों की बात आती तो वह 10 लाख कमाता ही नहीं 2 लाख ही कमाता फिर कोई कांग्रेस उस का कुछ नहीं बिगाड़ और उखाड़ पाती. अब्दुल भी जनगणना के आंकड़ों के अनुसार एक या दो ही बच्चे पैदा कर रहा है.

बड़ी बात पते की कि देश के हिंदुओं का पैसा है कहां जिस के लुटने और मुसलमानों में बंटने का डर दिखा कर तीसरी बार सत्ता हासिल करने का प्रयास किया जा रहा है. अब एक बार फिर मानना पड़ेगा कि सोहन की सालाना आमदनी 20 लाख रुपए है जिस में से वह 6 लाख रुपए सरकार को इनकम टैक्स के देता है. बचे 14 लाख में से और कितना टैक्स वह सरकार को प्रौपर्टी टैक्स, जीएसटी, एक्साइज ड्यूटी में देता है इस का बारीकी से हिसाब लगाने बैठें तो पता चलेगा कि वह कम से कम 5 लाख रुपए और इनडायरैक्ट टैक्सों जैसे जीएसटी वगैरह के जरिए सरकार को देता है जिस से सरकार के पैसे से पलते लोग हवाई जहाजों में उड़ कर कांग्रेस से आम जनता को डरा सकें. बाकी 9 लाख में से सोहन कपड़े किराना कास्मेटिक और स्वास्थ के अलावा बच्चों की शिक्षा जो सुरसा के मुंह की तरह है पर खर्च करता है.

मंदिरों में चढ़ता टैक्स

अगर उस ने होम या व्हीकल लोन लिया है तो उस की किश्तें भी इसी में से चुकाता है. इस के बाद भी जो 50 – 60 हजार रुपए बच जाते हैं उन्हें वह श्रद्धा पूर्वक तिरुपति काशी मथुरा उज्जैन गया हरिद्वार जैसे धर्म स्थलों को चढ़ा आता है.
तमाम सोहन और मोहन पीढ़ियों से यह धर्म टैक्स भर रहे हैं. वे पिंड दान करते हैं, भू दान करते हैं, स्वर्ण दान और गौ दान सहित तमाम वे दान मसलन अन्न दान, वस्त्र दान वगैरह करते हैं जिस के निर्देश धर्म ग्रंथ और ब्राह्मण देते हैं.

मोहन ईमानदारी से टैक्स दे तो सरकार खुश रहती है और ईमानदारी से ही दान करता रहे तो पंडेपुजारी खुश रहते हैं. लेकिन इन दोनों का ही जी और पेट नहीं भरता तो वे उसे और टैक्स और दान के लिए उकसाते रहते हैं. इन दोनों को डर यह रहता है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि मोहन ने हम से बेईमानी कर कुछ पैसा बचा छिपा लिया हो.
अब यही डर कांग्रेस पर रोपित कर, प्रदर्शित हो रहा है. इधर मोहन बेचारे की हालत नंगा नहाएगा क्या और निचोड़ेगा क्या जैसी हो गई है. कांग्रेस क्यों उस से छीन कर अब्दुल और उस के बच्चों को देगी. डरना तो अब अब्दुल को चाहिए कि कहीं सरकार उस के 10 लाख छीन कर तो मोहन को देने की जुगत यह इशारा करते नहीं भिड़ा रही कि तेरा क्या है, तेरे बच्चे तो पंचर जोड़ कर पेट भर लेंगे. सब्जी भाजी बेच कर गुजर कर लेंगे लेकिन हमारा मोहन प्यारे का बच्चा क्या करेगा, उसे तो यह सब मेहनत वाले काम काज आते नहीं. 10 न सही उसे 5 लाख ही देदे और चैन से देश में रह वह तेरा भी है.

इधर मोहन कभी यह नहीं सोच पाएगा कि ज्यादा बच्चों वाला ज्यादा सुखी है या वह जो अपनी मेहनत की कमाई का बड़ा हिस्सा ज्यादा मूर्तियों वाले मंदिरों में कुछ इस कदर चढ़ा रहा है कि मंदिर वालों से पैसा संभाले नहीं संभल रहा है.
जिस दिन मोदी राजस्थान से मुसलमानों को पैसे दिए जाने का डर दिखा रहे थे ठीक उसी दिन यह खबर आ रही थी कि तिरुपति बालाजी के मंदिर के पास कुल 18 हजार 8 सौ 17 करोड़ रुपए का बैंक बैलेंस है और मंदिर ट्रस्ट ने इसी साल 1,161 करोड़ की नई एफडी बैंकों में कराई है.

चंदे का धंधा

यह ट्रस्ट पिछले 12 साल से 500 करोड़ की एफडी हर साल करा रहा है. इसी मंदिर से जुड़े एक दूसरे ट्रस्ट की भी 5 हजार 529 करोड़ की एफडी है. मोहन को इस बात से भी कोई सरोकार नहीं कि तिरुपति मंदिर को इन सावधि जमा से ही ब्याज में 1600 करोड़ रुपए की कमाई होती है जिस का 80 फीसदी हिस्सा पंडेपुजारियों को चला जाता है.
मोहन को तो बस टैक्स भरना आता है जिस से लोक सुधरा और साफ सुथरा रहे और दान करना बचपन से ही सिखा दिया गया है जिस से परलोक सुधरा रहे. उक्त नगदी में तिरुपति का सोना भी शामिल कर लिया जाए तो बात सोने पे सुहागा वाली से भी ज्यादा सुहानी हो जाती है. तिरुपति बालाजी मंदिर के पास 900 संपत्तियां भी हैं.
अकेले तिरुपति ही नहीं बल्कि हर ब्रांडेड मंदिर में दान की दौलत बरस रही है. ताजेताजे बने अयोध्या के राम मंदिर में कोई 1200 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं और इस से तिगुने खर्च होने की चर्चा है. इस मंदिर के ट्रस्ट के पास भी 5 हजार करोड़ से ज्यादा का चढ़ावा जमा हो चुका है और यह तो अभी इस की ओपनिंग ही है. यानी भक्त यानी मोहन आते रहेंगे और साल का बचा खुचा 50 – 60 हजार रुपए चढ़ाते रहेंगे.

उज्जैन के महाकाल मंदिर में पिछले साल के 10 महीनों में 130 करोड़ का चढ़ावा आया था. 2024 की शुरुआत के 41 दिनों में कोई सवा करोड़ भक्तों ने इस मंदिर में दर्शन किये थे. अब हरेक ने औसतन ज्यादा नहीं सौ रुपए भी चढ़ाए तो कुल पैसा कितना हुआ आप गुणा भाग कर निकाल सकते हैं. और महाकाल का ही नहीं बल्कि हर मंदिर का निकाल सकते हैं.
तो हिंदुओं का पैसा यहां सुरक्षित है जहां कांग्रेस के पुरखे भी नहीं गए थे. तो यह पीढ़ी क्या जाएगी और चली भी गई तो तिजोरी तक नहीं पहुंच पाएगी जहां पौराणिक किस्सेकहानियों के मुताबिक भयंकर जहरीले नाग फन फैलाए आठों पहर पहरा दे रहे हैं. मोहन तो यह भी नहीं पूछता कि जब हम भक्त ही इतना सारा दे देते हैं तो सरकार क्यों इन मंदिरों के विकास और कारिडोरों पर जनता से वसूला टैक्स का पैसा फूंक रही है और फिर एहसान रखते हम से ही वोट मांगती है कि देखो हम ने आस्था का प्रतीक मंदिर बनवाया. हम राम को लाए हैं अब तुम हमे लाओ.

सचाई से सामना

इस के बाद भी मोदी तीसरी बार सरकार में आने को ले कर डरे हुए हैं तो उन का डर लाजिमी है क्योंकि मोहन उतना मूर्ख है नहीं जितना कि वे उसे समझते हुए बिना फाटक की रेलवे लाइन का डर दिखा रहे हैं. इस से बचने के लिए मोहन से अब्दुल से कुछ सीखना चाहिए जो अपने 10 लाख में से 10 हजार भी मजहब मसजिद पर खर्च नहीं करता. लेकिन मोहन एक लाख तक कर रहा है तो बेवकूफ़ भी वही कहलाएगा और कहलाएगा क्या बल्कि है ही. अब और वेबकूफ बनना है या नहीं यह फैसला करने के लिए उस के पास मौका है. लेकिन इस के लिए उसे पैसों, डर और वोट के इस खेल की खतरनाक सचाई को समझना होगा और अब्दुल से नफरत करना बंद करनी होगी जो सचाई तक पहुंचने की पहली सीढ़ी और शर्त है.

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