अभिनेत्री रवीना टंडन को दर्शक शायद भूल चुके हैं लेकिन जब कभी उस पर फिल्माया गया गाना ‘तू चीज बड़ी है मस्तमस्त’ कहीं सुनाई पड़ जाता है तो उस के अभिनय की दाद देनी पड़ जाती है. अब काफी अरसे बाद उस ने दोबारा से फिल्मों में काम करना शुरू किया है. अपनी पहली वैब सीरीज ‘कर्मा कौलिंग’ में अपने किरदार को बखूबी निभाने के बाद अब उस ने ‘पटना शुक्ला’ में एक महिला वकील की भूमिका निभाई है. आज हमारे देश में शिक्षा के क्षेत्र में कई प्रकार के घोटाले हो रहे हैं और राज्य सरकारें हाथ पर हाथ धरे बैठी हैं. बिहार जैसे राज्यों में तो परीक्षाओं में नकल कराना अब आम हो गया है. हाल ही में छत्तीसगढ़ में परीक्षा के दौरान छात्रों को खुलेआम नकल कराई गई.

इसके अलावा परीक्षा से पहले पेपर लीक होने से हजारों छात्रों का भविष्य अंधकारमय हो जाता है. कहीं मेधावी छात्रों को फेल कर उन की मार्कशीट बदल दी जाती है तो कहीं छात्रों के अभिभावकों से मोटी रकम रिश्वत में ले कर उन्हें पास कर दिया जाता है. यह फिल्म शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे घोटाले पर चोट करती है. फिल्म की कहानी पटना शहर में अपने पति व बेटे के साथ रह रही वकील तन्वी शुक्ला (रवीना टंडन) की है. उस का पति सिद्धार्थ (मानव विज) उस की हर जरूरत का खयाल रखता है, मगर औरत होने के कारण उस की डिग्री की कोई कद्र नहीं करता. एक दिन एक गरीब स्टूडैंट रिंकी कुमारी (अनुष्का कौशिक) उस के पास अपना केस ले कर आती है.

यूनिवर्सिटी में उस की मार्कशीट बदल दी गई थी और उसे फेल घोषित कर दिया गया था, जबकि उस का कहना है कि उसे 60 प्रतिशत नंबर मिलने चाहिए थे. तन्वी शुक्ला रिंकी का केस अपने हाथ में लेती है. केस लड़ने के दौरान यूनिवर्सिटी के कई काले सच उस के सामने आते हैं. एक दबंग नेता उसे रिंकी का केस लड़ने के लिए धमकाता है, न मानने पर उस के घर पर बुलडोजर चलवा दिया जाता है, ठीक उसी तरह से जैसे उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कई लोगों के घरों पर बुलडोजर चलवा दिए थे. रिंकी के पति को सस्पैंड कर दिया जाता है लेकिन तन्वी शुक्ला झुकती नहीं. वह कोर्ट में साबित कर देती है कि रिंकी की मार्कशीट बदली गई थी. पटकथा एकदम सपाट है. फिल्म का निर्देशन भी हलका है. फिल्म रूखीसूखी सी लगती है. रवीना टंडन का किरदार अपनी भूमिका से न्याय करता है. अनुष्का कौशिक का अभिनय अच्छा है.

जज की भूमिका में दिवंगत सतीश कौशिक का अभिनय प्रभावशाली है. मानव विज, जतिन गोस्वामी, राजू खेर साधारण रहे. फिल्म के गीत असरदार नहीं हैं. संगीत साधारण है. अदालत के दृश्य अच्छे हैं. फिल्म का ट्रीटमैंट 90 के दशक जैसा है. कोर्ट में जबरदस्त दलीलों की कमी खलती है.

 

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