‘आज व्हाइट हाउस में शानदार स्वागत समारोह में एक प्रकार से भारत के 140 करोड़ देशवासियों का सम्मान है और गौरव है. यह सम्मान अमेरिका में रहने वाले 4 मिलियन (40 लाख) से अधिक भारतीय लोगों का भी सम्मान है.’

ये शब्द पिछले साल 22 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी अमेरिकी यात्रा के दौरान बेहद गदगद होते हुए कहे थे. इस दिन उन का व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति जो बाइडेन की मेजबानी में राजकीय स्वागत व सम्मान आयोजित किया गया था, जो निश्चित रूप से कई वजहों के चलते नरेंद्र मोदी के लिए एक व्यक्तिगत उपलब्धि वाली बात थी. इस वजह को बहुत संक्षेप में बयां करें तो इसी अमेरिका ने कोई 19 साल पहले नरेंद्र मोदी को गुजरात दंगों का जिम्मेदार और दोषी मानते हुए राजनीतिक वीजा देने से साफ मना कर दिया था.

व्हाइट हाउस में हुए अपने स्वागत को नरेंद्र मोदी ने एक व्यक्तिगत जीत की शक्ल में देखा था और इस सम्मान को 140 करोड़ भारतीयों से जोड़ते हुए एक और भावनात्मक दबाव बनाने की कोशिश की थी, जो कि उन की आदत है. बात आईगई हो गई लेकिन उन का यह कहना व्हाइट झूठ निकला कि यह सम्मान और गौरव भारतीयों का या फिर 40 लाख से ज्यादा अमेरिकी भारतीयों का है. इस झूठ के चिथड़े बीती 28 मार्च को एक बार फिर उड़ते दिखे जब भारतीयों से नफरत प्रदर्शित करता एक नस्लभेदी कार्टून सुर्खियों में आया.

इस कार्टून के पीछे छिपी मंशा और नफरत को समझने से पहले बाल्टीमोर ब्रिज हादसे को समझना जरूरी है. अमेरिका के मेरिलैंड राज्य के बाल्टीमोर शहर में 26 मार्च को डौली नाम का मालवाहक जहाज फ्रांसिस स्कौट के पुल से टकरा गया था जिस से 6 लोगों की मौत हो गई थी. अमेरिका के राष्ट्रगान के रचयिता फ्रांसिस स्कौट मशहूर कवि थे जिन के नाम पर 1977 में यह पुल बनाया गया था. जहाज सिंगापुर का था जो श्रीलंका के लिए रवाना हुआ था. इस में 22 लोग सवार थे और इत्तफाक से सभी भारतीय थे जिन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचा था. हालांकि टक्कर इतनी जबरजस्त थी कि लोहे का यह ढाई किलोमीटर लंबा पुल ताश के पत्तों की तरह बिखर गया था. असल में डौली में बिजली की सप्लाई बाधित हो गई थी जिस से उस का इंजन बेकाबू हो गया था और पुल से टकरा गया.

इस हादसे की जांच अभी चल रही है लेकिन चालक दल की तारीफ सभी ने की थी कि उस ने वक्त रहते ट्रैफिक अथौरिटी के अधिकारियों को जहाज के बेकाबू हो जाने की खबर दे दी थी जिस से तुरंत ट्रैफिक रोक दिया गया और दूसरी एहतियात भी बरती गईं, जिस से नुकसान बहुत कम हुआ और कई जिंदगियां भी बच गईं.
हादसे के बाद स्वाभाविक तौर पर तरहतरह की आशंकाएं जताई जा रही थीं जो बेकार साबित हुईं. खुद राष्ट्रपति जो बाइडेन ने माना कि यह एक सामान्य लेकिन भयानक दुर्घटना थी. उन्होंने भारतीय क्रू की सूझबूझ की तारीफ की जिस से बड़ा हादसा होने से बच गया. मेरिलैंड के गवर्नर वेस मूर ने भी क्रू मैंबर्स को हीरो बताया. कोई शक नहीं कि इस के हकदार वे थे भी.

लेकिन फौक्सफोर्ड कौमिक्स कंपनी को यह तारीफ और भारतीयों की सूझबूझ इतनी नागवार गुजरी कि उस ने दूसरे ही दिन सोशल मीडिया प्लेटफौर्म एक्स पर एक कार्टून पोस्ट कर दिया जिस की मंशा भारत और भारतीयों का मखौल उड़ाने की ही थी. इस कार्टून, जिसे पुल से टकराने से ठीक पहले डौली जहाज की रिकौर्डिंग कैप्शन से नवाजा गया, में कुछ भारतीय नाव चलाते दिखाई दे रहे हैं. इन लोगों ने सिर्फ लंगोट पहन रखा है जो कभी परंपरागत भारतीय परिधान हुआ करता था. नाव चलाते भारतीयों के चेहरे से यह परेशानी झलक रही है कि एक बहुत बड़ा खतरा सामने है जिस से निबटने को अब क्या करें.

कार्टूनिस्ट की पूरी कोशिश यह रही कि ये भारतीय असभ्य, आदिमानवों जैसे नंगधड़ंग और गंवार दिखें. इस पर जी नहीं भरा, तो कार्टून में एक वीडियो भी जोड़ दिया गया जिस में ये हिंदुस्तानी गालीगलौच कर रहे हैं. इस कार्टून के बैकग्राउंड में फ्रांसिस स्कौट की ब्रिज से डौली की टक्कर से ढहता हुआ पुल भी दिख रहा है. जैसे ही यह वीडियो वायरल हुआ, यूजर्स की प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गईं जो ज्यादातर आलोचनात्मक ही थीं. लोगों ने इस कार्टून पर एतराज जताया था. महज 2 दिनों में ही इसे कोई 40 लाख लोग देख चुके थे और कोई 4 लाख ने इसे रीट्वीट किया था.

इस नस्लवादी कार्टून पर एक यूजर ने प्रतिक्रिया दी कि यह अपमानजनक है, गवर्नर ने क्रू की तारीफ की है और आप उन्हें इस तरह दिखा रहे हैं. लेकिन भारत के सोशल मीडिया सूरमाओं ने इस बेइज्जती से कोई इत्तफाक नहीं रखा. उन्हें तो रामश्याम, हिंदूमुसलिम और मोदीराहुल से फुरसत ही नहीं मिलती. ये वही लोग हैं जो दिनरात नरेंद्र मोदी की शान में कसीदे गढ़ते रहते हैं कि उन्होंने विदेशों में देश का सम्मान और स्वाभिमान बढ़ाया है. वे जिस देश में भी जाते हैं वहां के राजनयिक और आम लोग पलकपांवड़े बिछाते स्वागत में बिछ जाते हैं. मोदी जैसा शेर आज तक नहीं पैदा हुआ जो देश को विश्वगुरु बनने की राह पर ले जा रहा है.

इन भक्तों को तो मालूम ही नहीं कि बाल्टीमोर में कब क्या हो गया और कैसे राष्ट्रीय सम्मान व स्वाभिमान के चिथड़े अमेरिका की एक मैगजीन ने उड़ाए. हां, इन होनहारों को यह जरूर मालूम है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी पर अमेरिका ने एतराज जताया है और वह आजकल खुल कर पाकिस्तान का साथ दे रहा है. इन दोनों मुद्दों पर वे अमेरिका को अपनी अक्ल और जानकारियों के मुताबिक घेर रहे हैं. लेकिन फौक्सफोर्ड कौमिक्स की करतूत पर खामोश हैं क्योंकि उन्हें एहसास और अंदाजा है कि वे 22 भारतीय छोटी जाति वाले ही रहे होंगे, जो यहां से जी नहीं भरा तो अमेरिका अपमानित होने पहुंच गए.
यानी, राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता का अपना दायरा है जिस में शिप पर काम करने वाले छोटेमोटे लोगों की कोई जगह नहीं है. कोई बड़ा नेता भी कुछ नहीं बोला. एक अर्थशास्त्री संजीव सान्याल, जो प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य हैं, ने जरूर इस हादसे की खबर शेयर की लेकिन वे फौक्सफोर्ड कौमिक्स की हरकत से कतराते ही नजर आए.

यह कोई पहला मौका नहीं था और न ही आखिरी है जब अमेरिका में भारत का मजाक उड़ाया गया हो. साल 2015 में न्यूयौर्क टाइम्स ने क्लाइमेट समिट पर एक कार्टून साझा किया था जिस में एक हाथी ट्रेन के आगे बैठा उसे रोकता नजर आ रहा है. ट्रेन पर क्लाइमेट समिट और हाथी पर भारत लिखा हुआ था.
अमेरिकी भारतीयों से हर स्तर पर नफरत करते हैं, इस का एक उदाहरण वह आंकड़ा है जो इसी साल फरवरी में उजागर हुआ था. इस के मुताबिक, महज 2 महीनों में 5 भारतीय नस्लीय हिंसा का शिकार हो चुके हैं. इन में छात्र, कारोबारी और नौकरीपेशा सभी शामिल हैं. एक मामले में तो एक सुरक्षाकर्मी एक भारतीय युवती को धक्का दे कर खरदूषण जैसे हंस रहा है.

विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स और घटनाएं बताती हैं कि भारतीयों के प्रति नफरत और हिंसा डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद और बढ़ी थीं, जो, जो बाइडेन कार्यकाल में कुछ हद तक काबू हुई थीं लेकिन अब फिर रफ्तार पकड़ रही हैं. अमेरिका के युवा मानते हैं कि जो बाइडेन सरकार भारतीयों को प्राथमिकता देती है. उस ने कोई 125 अहम सरकारी पदों पर भारतीयों को नियुक्ति दी है. अमेरिका के मौजूदा चुनावों के मद्देनजर वहां भी दक्षिणपंथ फिर से हावी हो रहा है और वहां भी मीडिया इस मानसिकता को खूब हवा दे रहा है.

बाल्टीमोर हादसे के दिनों में ही यह दिलचस्प आंकड़ा सामने आया कि अमेरिका में भारतीय वहां की आबादी का लगभग एक फीसदी ही हैं लेकिन वे 6 फीसदी टैक्स देते हैं. वहां का हर छठा डाक्टर भारतीय है और दर्जनों पौलिटीशियंस खासा दखल रखते हैं. लेकिन बात जब सम्मान और स्वाभिमान की आती है तो वे खून का घूंट पी कर रह जाते हैं क्योंकि अहम बात पैसों और कमाई की है जो अमेरिका में कहीं ज्यादा होती है.
पिछले साल अक्तूबर में एक अमेरिकी सांसद रिच मेककार्मिक ने संसद में बताया भी था कि भारतवंशी सालाना 1 लाख 38 हजार डौलर कमाते हैं जबकि अमेरिकी इस से आधा भी नहीं कमा पाते.

डोनाल्ड ट्रंप ने इसे सियासी हथियार और चुनावी मुद्दा भी बना रखा है जिसे ले कर वहां के भारतीय सहमे हुए हैं. फौक्सफोर्ड कौमिक्स जैसी हरकत पर वे कुछ नहीं कर पाते, सिवा नरेंद्र मोदी के 22 जून, 2023 को व्हाइट हाउस में दिए इस भाषण को सुन कर कुढ़ने के कि-
आज व्हाइट हाउस में शानदार स्वागत समारोह में एक प्रकार से भारत के 140 करोड़ देशवासियों का सम्मान है और गौरव है. यह सम्मान अमेरिका में रहने वाले 4 मिलियन से अधिक भारतीय लोगों का भी सम्मान है.

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