रूस की सीमाओं पर कुछ महीनों से युवाओं की लंबी कतारें नजर आ रही हैं. अनेक रूसी युवक देश छोड़ने की हड़बड़ी में हैं. जौर्जिया से सटी रूस की सीमा पर वाहनों की मीलों लंबी कतारें यह बताने के लिए काफी हैं कि रूस से बड़ी संख्या में लोग पलायन कर रहे हैं जिस में युवाओं की संख्या बहुत ज्यादा है. ज्यादातर युवा जौर्जिया की तरफ रुख कर रहे हैं. दरअसल जौर्जिया रूस के उन कुछ पड़ोसी देशों में से है जहां जाने के लिए रूसी को वीजा लेने की जरूरत नहीं पड़ती है.

अनेक रूसी युवा पड़ोसी देशों में जाने के लिए पैदल या साइकिल के जरिए भी सीमा पार कर रहे हैं. अधिकांश युवा इसलिए देश छोड़ रहे हैं क्योंकि उन्हें अपनी पढ़ाई जारी रखनी है और उन को आशंका है कि रूसी राष्ट्रपति द्वारा आंशिक लामबंदी की घोषणा के तहत उन्हें युद्ध में झोंका जा सकता है. इसलिए वे 12-12 घंटे कतार में खड़े हो कर सीमा पार जाने का इंतजार कर रहे हैं.

कुछ जगह जहां हवाई रास्ते से जाया जा सकता है, वहां के लिए भी युवाओं की भीड़ उमड़ रही है. सैन्य बुलावे की घोषणा यानी कौल-अप के बाद इस्तांबुल, बेलग्राद या दुबई में फ्लाइट के दाम आसमान छू रहे हैं. तुर्किए मीडिया की मानें तो एकतरफा टिकट की बिक्री में बेतहाशा वृद्धि दर्ज की गई है. वहीं गैर वीजा वाली जगहों पर जाने वाली फ्लाइट के दाम भी 1,000 यूरो से ऊपर चले गए हैं. रूसी युवाओं के पलायन का जहां जरमनी के गृहमंत्री ने स्वागत किया है वहीं लिथुआनिया, लातविया, इस्टोनिया और चेक रिपब्लिक के स्वर बदले हुए हैं और उन्होंने रूसी शरणार्थियों को शरण देने से इनकार कर दिया है.

रूसी युवा नहीं चाहते युद्ध

गौरतलब है कि जिस दिन से रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने आंशिक सैन्य लामबंदी की घोषणा की है, उस के बाद से ही रूसी युवाओं का पलायन शुरू हो गया है. यह संख्या लगातार बढ़ रही है. पुतिन की सैन्य लामबंदी के तहत देश के 3 लाख युवाओं को यूक्रेन से लड़ने के लिए बुलाया गया है. इस के लिए युवाओं को जबरन सेना में भरती किए जाने की खबरें छनछन कर आ रही हैं.

मजे की बात यह है कि जो युवा देश छोड़ कर नहीं जा पा रहे हैं, युद्ध के मैदान में जाने से बचने के लिए उन्होंने अपने जैंडर चेंज करवाने शुरू कर दिए हैं. उल्लेखनीय है कि रूस में सिर्फ एक फौर्म भर कर लिंग परिवर्तन किया जा सकता है. इस के लिए सर्जरी की जरूरत नहीं होती. सरकारी नियम के अनुसार अगर कोई व्यक्ति सिर्फ कागजों पर जैंडर चेंज करवा लेता है, तो उस के पास शादी करने और बच्चा गोद लेने का अधिकार आ जाता है.

सरकार को भी लग रहा है कि अब जैंडर चेंज के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. माना जा रहा है कि जो युवा पिछले साल सितंबर में सेना के ड्राफ्ट से पहले देश नहीं छोड़ पाए थे, अब उन्होंने कागजी कार्रवाई के लिए प्राइवेट क्लीनिक का रुख करना शुरू कर दिया है. रूस में पिछले साल से अब तक 2.5 लाख से ज्यादा युवा जैंडर चेंज करा चुके हैं.

अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में ऐसी खबरें आने के बाद रूस की काफी किरकिरी हो रही है. हाल ही में रूसी प्रशासन ने सफाई देते हुए कहा कि केवल उन्हीं लोगों को सैन्य बुलावा यानी कौलअप भेजा गया है जो सैन्य सेवा दे चुके हैं या जिन के पास युद्ध का अनुभव और विशेष कौशल है. मगर इस दावे के उलट रूस के युवाओं का कहना है कि ऐसा नहीं है और उन लोगों के पास भी बुलावा पहुंचा है जो किसी तरह का कोई सैन्य अनुभव नहीं रखते हैं. कौलअप के विरोध में रूस के मास्को और सेंट पीटर्सबर्ग जैसे बड़े शहरों में लोगों ने बड़े प्रदर्शन भी किए हैं. खबर है कि इन प्रदर्शनों के दौरान पुलिस ने करीब 1,300 लोगों को गिरफ्तार किया और उन्हें पुलिस स्टेशन में सैन्य बुलावे से जुड़ा मसौदा जबरन थमाया गया.

सैन्य लामबंदी को ले कर रूस के भीतर लोगों की प्रतिक्रिया काफी नकारात्मक है. लोगों को अंदेशा है कि सैन्य लामबंदी के लिए जिस संख्या की घोषणा की गई है, उस से कई गुना ज्यादा संख्या बड़े स्तर पर भरती करेंगे. यूके के रक्षा मंत्री का कहना है कि रूसी जनता के बीच सैन्य बुलावा बुरी तरह विफल रहा है. इस से साफ जाहिर होता है कि रूस के पास अब यूक्रेन से मुकाबला करने के लिए पर्याप्त सैन्यबल नहीं रहा है.

एक रिपोर्ट के अनुसार रूसी सेना ने अभी तक जंग के मैदान में अपने 7,70,000 सैनिकों को खोया है. इन में से साढ़े 5 लाख ऐसे सैनिक हैं जो इतनी बुरी तरह से घायल हैं कि वे दोबारा से युद्ध नहीं लड़ सकते. मगर युद्ध में जान गंवाने वाले रूसी सैनिकों के बारे में पुतिन उसी तरह सूचना छिपाए हुए हैं जिस तरह भारत में नरेंद्र मोदी इलैक्टोरल बौंड से मिले चंदे की सूचना जनता से छिपाए रही. अनेक स्रोतों से प्राप्त जानकारी के अनुसार यूक्रेन से युद्ध में रूस के 3 से 4 लाख सैनिक मारे गए हैं. रूस का सैन्यबल बुरी तरह कमजोर हो चुका है. यही वजह है कि रूस अब अपने देश के युवाओं को जबरन सेना में भरती कर उन्हें जंग के मोरचे पर भेजना चाहता है, मगर देश के युवा दगा देने लगे हैं. वे सेना में ड्राफ्ट किए जाने से बचने के लिए तरहतरह के तरीके ढूंढ रहे हैं. यहां तक कि मौत से बचने के लिए वे अपना देश और परिवार तक छोड़ने को तैयार हैं.

रूस के सामने इस वक्त सैनिकों की संख्या को बढ़ाना सब से बड़ी चुनौती है. इस समस्या से निबटने के लिए रूस ने अब एजेंटों के माध्यम से अन्य देशों के युवाओं को भी बड़ेबड़े पेमेंट का लालच दे कर रूसी सेना में भरती करने का उपक्रम कर रहा है. रूस के निशाने पर अनेक ऐसे गरीब देश हैं जहां युवाओं के पास नौकरी नहीं है, उन के परिवार के पास खाने के लिए भोजन नहीं है, तन पर कपड़े नहीं हैं. भारत और नेपाल जैसे देश भी रूस की इस लिस्ट में शामिल हैं.

हताश गोरखा रूसी सेना में जाने को मजबूर

भारत सरकार की ‘अग्निवीर योजना’ से हताश हो कर भारतीय सेना से किनारा करने वाले नेपाल के गोरखा सैनिक भी इस समय बड़ी संख्या में रूसी सेना में शामिल हो रहे हैं. नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड और विदेश मंत्रालय ने खुलासा किया है कि यूक्रेनी सेना से जंग लड़ते हुए अब तक नेपाल के 6 गोरखा सैनिक मारे जा चुके हैं. मगर इन के शव तक रूस से नहीं आ सके और हिंदू होने के बाद भी उन्हें वहां मिट्टी में दफना दिया गया है.

इस खबर के बाद भी बड़ी संख्या में नेपाली सैनिकों के रूस पहुंचने का सिलसिला जारी है, क्योंकि भूखे मरने से बेहतर है जंग लड़ते हुए मरना. आलम यह है कि हर दिन नेपाल का एक नागरिक मास्को स्थित नेपाली दूतावास से लौटाया जा रहा है. ये नेपाली गोरखा सैनिक रूस की सेना में शामिल होने के लिए पहुंच रहे हैं. नेपाली अखबार ‘काठमांडू पोस्‍ट’ की रिपोर्ट के अनुसार हाल ही में 15 हजार गोरखा सैनिक रूसी सेना में शामिल हुए हैं और यूक्रेन से युद्ध लड़ रहे हैं. अखबार कहता है कि नेपाल की सरकार ने अपने नागरिकों को रूस की सेना में शामिल होने की अनुमति नहीं दी है लेकिन इस के बाद भी हर दिन कोई न कोई नेपाली गोरखा मास्‍को पहुंच रहा है.

नेपाल सरकार की ओर से गोरखा सैनिकों को केवल ब्रिटेन और भारतीय सेना में शामिल होने की अनुमति है. मगर कुछ पैसे मिलने के लालच में नेपाल के युवा न सिर्फ रूस बल्कि यूक्रेन की सेना में भी शामिल हो रहे हैं. भारतीय सेना ने जब से अग्निवीर योजना शुरू की है तब से अपनी दिलेरी के लिए मशहूर नेपाली गोरखा सैनिक इंडियन आर्मी में भरती नहीं हो रहे हैं. उन के पास अब रूस जैसे युद्धग्रस्त इलाकों में जाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है.

युद्ध में लड़ाकों की कमी पूरी करने के लिए रूस की कुछ एजेंसियां भारत के बेरोजगार युवाओं को भी फंसाने के लिए गहरी साजिश रच रही हैं. रूस में रह रहे कुछ भारतीयों के साथसाथ कुछ भारतीय कंपनियां इस साजिश में ‘ब्राउन बीयर’ के मददगार बने हुए हैं. इस साजिश के तहत, भारतीय नौजवानों को बेहतर जिंदगी का सब्जबाग दिखा कर रूस भेजा जा रहा है. इस साजिश की भनक लगते ही केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने अपनी जांच शुरू कर दी है. अब तक की जांच में खुलासा हुआ है कि एक छोटे से अंतराल में जालसाजों ने दिल्‍ली, हरियाणा, महाराष्ट्र, पुदुचेरी, केरल, तमिलनाडु और राजस्थान सहित देश के कई राज्‍यों में अपना जाल फैलाया है.

कमाई के लिए जान जोखिम में

ये जालसाज नौजवानों को शिक्षा और हैसियत के हिसाब से नौकरी औफर कर रहे हैं. जैसे, किसी को सेना संबंधी कार्यों की जौब औफर की जा रही है, तो किसी को सिक्योरिटी गार्ड और हैल्पर बनवाने के नाम पर जाल में फंसाया जा रहा है. रूसी सैनिक बनने के इच्छुक विदेशियों को प्रतिमाह लगभग 600 यूरो (लगभग पचपन हजार रुपए) की पेशकश की जा रही है और पुतिन की सरकार ने वादा किया है कि एक साल के बाद, उन की पूर्ण रूसी नागरिकता की प्रक्रिया में तेजी लाई जाएगी.

सीबीआई की जांच में यह भी खुलासा हुआ है कि इस पूरी साजिश को रूस में बैठे 2 भारतीय नागरिक संचालित कर रहे हैं, जिन की पहचान मोहम्मद मोइनुद्दीन और संतोष कुमार के रूप में हुई है. मोहम्मद मोइनुद्दीन मूल रूप से राजस्थान का रहने वाला है, जबकि संतोष कुमार तमिलनाडु का बाशिंदा है. इन दोनों ने मिल कर भारत के विभिन्‍न राज्‍यों में एजेंट्स का बड़ा जाल बिछा कर न जाने कितने नौजवानों को यूक्रेन-रूस युद्ध की आग में झोंक दिया है.

सीबीआई की अब तक की जांच में भारत की 5 कंपनियों सहित कुल 19 लोगों के नाम का खुलासा हुआ है, जो रूसी एजेंसियों के इशारे पर साजिश का जाल बिछाने में लगे हुए हैं. चंद रुपयों के लालच में रूसी एजेंसियों के हाथ की कठपुतली बने इन जालसाजों की तलाश में सीबीआई की छापेमारी जारी है. फिलहाल, यह छापेमारी दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र, पुद्दुचेरी, केरल, तमिलनाडु और राजस्थान के विभिन्न इलाकों में की जा रही है.

कुछ भारतीय युवा यह सोच कर मुश्किल में फंस गए हैं कि रूस जा कर वे लाखों रुपए कमा सकेंगे. हाल के दिनों में कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र, जम्मूकश्मीर और तेलंगाना से 16 लोग रूस गए हैं. इन के परिजनों का कहना है कि एजेंटों ने उन्हें नौकरी के नाम पर बुलाया और फिर उन की भरती रूसी सेना में करा दी. जबकि एजेंटों ने उन से कहा था कि उन्हें रूस में हैल्पर और सिक्योरिटी से जुड़ी नौकरियां दी जाएंगी, सेना में नहीं. हाल के दिनों में ये खबरें आई हैं कि रूसयूक्रेन युद्ध में रूसी सैनिकों के साथ भारतीय नागरिक भी हैं, जो उन के साथ युद्ध के मैदान में तैनात हैं.

जबरन और धोखे से सेना में शामिल

फैसल खान नाम का एक एजेंट, जो दुबई में बैठ कर ‘बाबा व्लौग्स’ नाम से एक यूट्यूब चैनल चलाता है, ने अपने यूट्यूब चैनल पर एक वीडियो पोस्ट कर दावा किया कि रूस में हैल्पर के तौर पर काम कर अच्छी कमाई की जा सकती है. इस तरह उस ने भारतीय युवाओं को इन नौकरियों की तरफ आकर्षित किया. नौकरी की तलाश कर रहे युवाओं ने दिए गए फोन नंबर पर संपर्क किया.

इस एजेंट ने कुल 35 भारतीय युवाओं को रूस भेजने की योजना बनाई थी. पहले बैच में 3 लोगों को 9 नवंबर, 2023 को चेन्नई से शारजाह भेजा गया. शारजाह से इन्हें 12 नवंबर को रूस की राजधानी मास्को ले जाया गया. 16 नवंबर को फैसल खान की टीम ने 6 भारतीयों को और फिर 7 भारतीयों को रूस पहुंचाया. इन से कहा गया था कि उन्हें हैल्पर के तौर पर काम करना होगा, सैनिकों के तौर पर नहीं.

इन भारतीयों के परिजनों का कहना है कि उन्हें कुछ दिनों की ट्रेनिंग दी गई जिस के बाद उन्हें 24 दिसंबर, 2023 को सेना में शामिल कर लिया गया. इन में हैदराबाद से मोहम्मद अफसान, तेलंगाना के नारायणपुर से सूफियान, उत्तर प्रदेश से अरबाज हुसैन, कश्मीर से जहूर अहमद, गुजरात से हेमिल और कर्नाटक के गुलबर्गा से सैय्यद हुसैन, समीर अहमद और अब्दुल नईम का नाम सामने आया है. अब उन के परिजनों ने केंद्र सरकार से अपने बेटों की सकुशल भारतवापसी की गुहार लगाई है.

भारतीय युवा फंसे

यह मामला तब सामने आया जब रूस गए भारतीय युवाओं का लंबे वक्त तक अपने परिवारों से संपर्क नहीं हो सका और हाल के दिनों में उन के कुछ वीडियो सामने आए जिन में ये युवा हताशा में मदद मांगते दिखे. 2 वीडियो वायरल भी हुए. एक वीडियो में तेलंगाना के सुफियान और कर्नाटक के सैय्यद इलियास हुसैन, मोहम्मद समीर अहमद कहते हैं, “हमें सिक्योरिटी हैल्पर के तौर पर नौकरी दी गई थी लेकिन यहां रूसी सेना में शामिल कर लिया गया. रूसी अधिकारी हमें यहां फ्रंटलाइन तक ले कर आए. हमें यहां युद्ध के मैदान में जंगल में तैनात कर दिया गया. बाबा व्लौग के एजेंट ने हमारे साथ धोखा किया है.”

एक अन्य वीडियो में उत्तर प्रदेश के रहने वाले अरबाज हुसैन अपनी बात कहते हैं कि उन्हें युद्ध के मैदान में उतार दिया गया था और बड़ी मुश्किल से वे वहां से बच कर निकले हैं. उन्होंने गुहार लगाई कि उन्हें किसी भी कीमत पर बचाया जाए.

रूस और यूक्रेन के बीच चल रही जंग में युद्धभूमि में भारतीय नागरिकों की तैनाती को ले कर भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपनी प्रतिक्रिया दी है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, “हमें इस बात की जानकारी मिली है कि कुछ भारतीय नागरिक रूसी सेना में सपोर्ट स्टाफ के तौर पर नौकरी कर रहे हैं. उन्हें जल्द वहां से डिस्चार्ज करने के लिए भारतीय दूतावास लगातार रूसी अधिकारियों के साथ संपर्क में है. हम सभी भारतीय नागरिकों से अपील करते हैं कि वे सावधानी बरतें और इस संघर्ष से दूर रहें.”

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