हाल ही में यूनिसेफ द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार भारतीय महिलाएं शिक्षा पूरी करने के तुरंत बाद शादी के बजाय नौकरी करने को तवज्जुह देती हैं. यूनिसेफ के यूथ प्लेटफौर्म ‘युवाह’ और ‘यू रिपोर्ट’ द्वारा किए गए सर्वे में देश के 18-29 साल के 24,000 से अधिक युवा इस में शामिल हुए.

सर्वे के परिणाम में 75 फीसदी युवा महिलाओं और पुरुषों का मानना है कि पढ़ाई के बाद नौकरी हासिल करना महिलाओं के लिए सब से जरूरी कदम है. इस से अलग 5 फीसदी से भी कम लोगों ने पढ़ाई के तुरंत बाद शादी की वकालत की.

महिलाएं नौकरी करना चाहती हैं फिर भी जब श्रम बल में उन की भागीदारी देखते हैं तो वह बहुत कम मिलती है. पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (पीएलएफएस जुलाई 2021-जून 2022) के आंकड़े बताते हैं कि 29.4 प्रतिशत महिलाएं (15-49 वर्ष की उम्र की) ही भारतीय श्रम बल में योगदान दे रही हैं. पुरुषों में यह दर 80.7 फीसदी है. भारत में महिलाओं की श्रम बल में कमी का एक बड़ा कारण महिलाओं के लिए निर्धारित जैंडर रोल्स हैं. जैंडर के आधार पर तय की गई भूमिका के कारण महिलाओं से घरपरिवार को ज्यादा महत्त्व देने की अपेक्षा की जाती है.

दरअसल भारतीय समाज में पितृसत्ता की वजह से लैंगिक भेदभाव होता है और छोटी बच्चियों से ले कर महिलाओं तक के जीवन को नियंत्रित किया जाता है. वे क्या चाहती हैं, उन्हें क्या पहनना है, क्या पढ़ना और क्या करना है, इन सब को तय करने में पितृसत्ता अहम भूमिका निभाती है.

आज के तकनीकी विकास के इस आधुनिक युग में भी औरतों को पारंपरिक रूप से तय भूमिकाओं के दायरे में रहना पड़ता है. उन्हें बचपन से ही घरपरिवार और रिश्तों को संभालने की हिदायतें दी जाती हैं और इन्हीं के बीच कहीं उन की भूमिका सीमित कर दी जाती है. भले ही सालदरसाल लड़कियों ने ऊंची शिक्षा की तरफ कदम बढ़ाना शुरू कर दिया है और लड़कों से बेहतर रिजल्ट भी लाती हैं लेकिन नौकरी की बातें आते ही उन के प्रति लोगों का रवैया बदल जाता है. वे नौकरी करने का सपना ही देखती रहती हैं और उन की शादी कर दी जाती है.

महिलाओं की नौकरी में भागीदारी आवश्यक क्यों है

जब महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त होती हैं तो वह किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए एक सकारात्मक पहलू होता है. अधिकतर देश जो तेजी से विकास कर रहे हैं वहां कार्यश्रम में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के समान है. खुद महिलाओं के उत्थान और व्यक्तित्व विकास के लिए भी यह जरूरी है.

महिलाओं का नौकरी करना वर्तमान समय में इसलिए भी आवश्यक होता जा रहा है क्योंकि परिवार की जरूरतें इतनी बढ़ रही हैं कि उन की पूर्ति के लिए पतिपत्नी दोनों ही काम करें तब ही वे अपने बच्चों को अच्छा जीवन दे सकते हैं. वैसे भी आधुनिक समय में महिलाएं उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही हैं, ऐसे में नौकरी करने से उन्हें अपनी शिक्षा का सही प्रयोग करने का मौका मिलता है. सभी महिलाएं चाहती हैं कि वे अपने स्वयं के खर्च खुद उठाएं तथा स्वावलंबी बनें और अपने परिवार के भरणपोषण में पूरा सहयोग दें. वे किसी के ऊपर निर्भर नहीं रहना चाहतीं क्योंकि उन के पास नौकरी करने के लिए आवश्यक शैक्षिक डिग्रियां हैं.

मनोवैज्ञानिक रूप से देखा जाए तो घर के काम तो दिनभर चलते रहते हैं लेकिन जो महिलाएं नौकरी करती हैं वे ज्यादा सक्रिय रहती हैं तथा सभी कामों को समय पर निबटा कर अपने कार्यस्थल पर पहुंच जाती हैं. इस वजह से उन की मानसिक और शारीरिक स्थिति अच्छी रहती है. अपने सहयोगियों के साथ जा कर बातचीत करने से उन का मूड भी बूस्ट अप होता है. पूरा दिन घर के कामों में व्यस्त रहने और इधरउधर की व्यर्थ की बातें करने से तो अच्छा है कि वे कोई न कोई नौकरी कर लें ताकि उन के पास कोई काम भी रहे और कुछ इनकम भी हो जाए.

आर्थिक निर्भरता बनाती है सशक्त

नौकरी करने वाली महिलाएं सामाजिक और आर्थिक रूप से अपटूडेट रहती हैं. वे शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से खुद का बेहतर खयाल रख पाती हैं. पुरुषों की पैसों की धौंस भी कम होती है. घरेलू महिलाओं की तरह उन्हें अपनी जरूरतों और पसंद की चीजें लेने में किसी तरह का कोई समझौता नहीं करना पड़ता. धनोपार्जन न करने की स्थिति में बहुत बार महिलाओं को दुर्व्यवहार सहने के लिए विवश होना पड़ता है जबकि नौकरी वाली महिलाएं ऐसे समय में सबल होती हैं.

आर्थिक आत्मनिर्भरता उन को निर्णय लेने की शक्ति देती है और यह शक्ति कई रूढ़ियों को बदल सकती है. जीवनसाथी के अस्वस्थ होने या मृत्यु होने की दशा में किसी के मुहताज होने से बेहतर है कि अपनी आर्थिक सुरक्षा का इंतजाम खुद ही कर लिया जाए. नौकरी इस के लिए उत्तम उपाय है.

कुछ लोग कहते हैं कि नौकरी करने वाली महिलाओं को घर के काम और बच्चों को संभालने के लिए कामवाली और आया वगैरह रखनी पड़ती है. इस वजह से सारे रुपए उसी में चले जाते हैं. पर वास्तव में ऐसा नहीं है. नौकरी वाली को जितने खर्च करने होते हैं उस से ज्यादा घरेलू महिलाएं खर्च कर देती हैं. आइए देखते हैं इस खर्च का ब्योरा:

जब आप घर में रहती हैं और नौकरी नहीं कर रही होती हैं तो आप के खर्च इस तरह के हो सकते हैं-

किटी पार्टी का खर्च

मेकअप प्रोडक्ट्स पर खर्च

पार्लर जाना

शौपिंग, खासकर, महंगी साड़ियों और हैवी सूट्स की खरीदारी

बच्चों को संभालने के लिए आया

बरतन-कपड़े के लिए कामवाली

रोजरोज मेहमानों के आने पर तरहतरह के पकवान तैयार करना

मंदिर, भजन कीर्तन या फिर धार्मिक त्योहारों पर खर्च

कहीं घूमने जाना

पड़ोस में कभी शादी, कभी बर्थडे तो कभी कुछ और औकेजन पर उपहार देने का खर्च

फोन का लंबा चौड़ा बिल, क्योंकि काम खत्म कर के औरतें फोन पर ही लगी रहती हैं

टीवी में तरहतरह के चैनल के लिए केबल का खर्च

सहेली के साथ बाहर जाने के खर्चे

जब आप औफिस जाती हैं, यानी, कामकाजी हैं उस समय आप के खर्च

घर के काम करने या खाना बनाने के लिए कामवाली

औफिस जाने के लिए कुछ प्रोफैशनल ड्रैस की शौपिंग

आनेजाने का किराया

कभीकभार आउटिंग के लिए रुपए

 

फुजूल वक्त-खर्च बचाए

जब आप जौब करती हैं तो आप के पास समय नहीं होता कि फालतू की किटी पार्टी अटेंड करें, धार्मिक उत्सवों और गीतसंगीत या भजनकीर्तन के कार्यक्रमों में शामिल हों, मंदिर जाएं या फिर घर में रिश्तेदारों को बुलाएं और पड़ोसियों से मिलें. आप के पास समय की कमी होती है. ऐसे में आप फालतू समय या रुपए खर्च करने से बचती हैं.

जो लड़कियां नौकरी करती हैं और जो नहीं करतीं दोनों को ही बच्चे को संभालने के लिए आया और घर के काम के लिए कामवाली रखनी ही होती है. अपने करीबी रिश्तेदारों के साथ कभीकभार मिलना तो स्वाभाविक है. इस में ऐसा भारी खर्च नहीं होता है. अगर आप को 20 हजार रुपए की छोटी सी मासिक सैलरी भी मिल रही है तो भी यह फायदे का सौदा है.

आप अपने घर की देखभाल या खाना पकाने के लिए कामवाली रखती हैं तो उसे अपनी सैलरी से रुपए दे सकती हैं. आनेजाने में या दूसरे छोटेमोटे खर्च होते हैं तो वे भी खुद मैनेज कर सकती हैं और उस के बाद भी आप के पास थोड़े रुपए बच जाएंगे जिन्हें आप अपने मेकअप या कपड़ों पर खर्च कर सकती हैं. आप को किसी से पैसे मांगने नहीं होंगे. आप आत्मनिर्भर रहेंगी.

आप जब जौब करती हैं तो आप की सोच भी काफी बदल जाती है. आप बौद्धिक रूप से मजबूत और स्ट्रौंग सोच वाली महिला बन जाती हैं. आप का बातव्यवहार, आप की सोच और आप की पर्सनैलिटी सबकुछ बहुत ही इंप्रूव हो जाती है क्योंकि आप जब कौर्पोरेटर वर्ल्ड से संबंध रखती हैं तो खुद को उस लैवल में ले आती हैं. आप की इंग्लिश और बातचीत का तरीका बेहतर हो जाता है. आप प्रेजैंटेबल बनती हैं और आप को अपनी बात रखने का जज्बा आता है. आप के अंदर एक ज्यादा स्मार्ट, ज्यादा आत्मविश्वासी और ज्यादा मजबूत औरत का जन्म होता है. इसलिए नौकरी जरूर करनी चाहिए.

आप को नौकरी के लिए अगर कुछ कंप्रोमाइज करने पड़ रहे हैं या आप को समय लगाना पड़ रहा है तो यह सोचिए कि जब घर में होतीं तो आप वह समय बरबाद ही करतीं. उस का कोई सही इस्तेमाल न होता. पर अभी आप उस के बदले कमाई कर रही हैं. आप के पास उम्मीद है कि आप अपनी जिंदगी में ऊंचे से ऊंचे ओहदे तक पहुंच सकती हैं. आप के अंदर काबिलीयत है तो आप की कमाई भी बढ़ेगी और फिलहाल अगर आप को कम सैलरी मिल रही है तो भी कुछ तो मिल रहा है न.

कुछ रकम तो आप के हाथ में बच जाती है. वरना घरेलू महिलाओं के हाथ में कुछ रुपए आते नहीं उलटे उन्हें अपने पति या सास से पैसे मांगने पड़ते हैं. अपने छोटेछोटे खर्चों के लिए फिलहाल आप आत्मनिर्भर हैं. आप अपने खर्च को खुद से मैनेज कर सकती हैं और घरवालों को जरूरत होने पर दे भी सकती हैं.

अपने ऊपर विश्वास रहता है. समय के साथ काबिलीयत बढ़ती है. कभी परेशानी का मौका आए यानी कुछ बुरा हो गया तो आप को पता होता है कि आप सक्षम हैं और आप जौब कर अपना खर्च वहन कर सकती हैं. फिर आप को यह टैंशन नहीं रहती कि आप की जिंदगी आगे कैसे चलेगी. आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना एक मजबूत औरत के लिए बहुत जरूरी है.

काम करने वाली महिलाएं होती हैं ज्यादा इंप्रैसिव

आप नौकरी नहीं करती हैं, मगर आप गोरी हैं, सुंदर हैं और ब्यूटीपार्लर में रुपए खर्च कर और भी खूबसूरत हो जाती हैं तो भी आप सामने वाले को इतना इंप्रैस नहीं कर सकतीं जितनी एक साधारण शक्लसूरत की आत्मनिर्भर कामकाजी लड़की कर सकती है. अगर उस का रंग सांवला है, वह ज्यादा खूबसूरत भी नहीं है लेकिन फिर भी उस की पर्सनैलिटी में जो आत्मविश्वासभरा चार्म रहेगा और बौद्धिक रूप से इतनी मजबूत रहेगी कि सामने वाला उस से बातें करने के बहाने ढूंढेगा.

उस के पास बात करने के लिए बहुत से टौपिक होंगे. इसलिए लोग उस से आकर्षित होंगे. जबकि एक घरेलू महिला कितनी भी कोशिश कर ले, उस के पास खाना, कपड़ा या फैशन और पतिबच्चों से बढ़ कर ज्यादा कुछ कहने के लिए बात नहीं होती. जब महिला जौब कर रही होती है तो उसे दीनदुनिया की खबर रहती है. वह हर तरह से जागरूक होती है. उसे बहुत सी जानकारियां होती हैं. वे देशदुनिया के बारे में बात कर सकती हैं, इसलिए उन के दोस्त भी ज्यादा होते हैं और वे दोस्त उन के मानसिक लैवल के होते हैं.

ज्यादा खुशमिजाज होती हैं कामकाजी महिलाएं

आमतौर पर लोग मानते हैं कि घर और बाहर की जिम्मेदारी अच्छी तरह संभालना बेहद जटिल काम है. महिलाओं को शादी के बाद सिर्फ घर ही संभालना चाहिए. जबकि वास्तविकता यह है कि यदि घर पर रहने का कोई विशेष कारण नहीं है तो आप को बाहर निकल कर नौकरी जरूर करनी चाहिए. यह आप को न सिर्फ आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाएगी, बल्कि आप ज्यादा खुशमिजाज भी रहेंगी. अध्ययनों में यह बात साबित हुई है कि कामकाजी महिलाओं को गृहिणियों की अपेक्षा अवसाद और तनाव का खतरा कम होता है और वे ज्यादा खुश रहती हैं.

मजबूत मां की छवि

हर मां का सपना होता है कि उस का बच्चा बड़ा हो कर एक सफल और बेहतर इंसान बने. इस के लिए हर मां अपने बच्चे के पालनपोषण और पढ़ाई पर भी खूब ध्यान देती है. पर किसी भी बच्चे के व्यक्तित्व विकास में पढ़ाईलिखाई के साथसाथ उस के पारिवारिक माहौल का भी बहुत बड़ा योगदान होता है. जब बच्चा अपनी मां को एक मजबूत कामकाजी महिला के रूप में देखता है तो शुरू से ही उसे यह समझ आने लगता है कि आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना कितना ज्यादा जरूरी है. यही वजह है कि कामकाजी महिलाएं अपने बच्चों के सामने अकसर एक आदर्श बन जाती हैं.

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