“मैं सिर्फ आप की पत्नी ही नहीं, किसी की बेटी भी हूं.”

“एक बार फिरसे दोहराना.”

“मैं सिर्फ आप की पत्नी ही नहीं, किसी की बेटी भी हूं. यह क्या बचपना लगा रखा है, अभिनव? ट्रेन का समय होने वाला है, आप अब उतर जाइए.”

“मैं तुम्हें यही समझाना चाहता हूं कि तुम्हारी शादी हो  गई, इस का मतलब यह बिलकुल भी नहीं कि तुम्हारी अपने घर से जिम्मेदारी खत्म. वहां तुम्हारे मम्मीपापा का शरीर बुखार से तप रहा है, तुम्हारा कर्तव्य बनता है कि तुम दोनों घरपरिवार का बराबर ध्यान रखो,” ट्रेन की सीट पर तनाव से भरी पत्नी शीतल का हाथ नजाकत से सहलाते हुए अभिनव ने कहा.

“जी, समझ गई. अब उतर जाएं वरना मेरे साथसाथ आप भी रायपुर पहुंच जाएंगे. फिर मेरी बेटी का ध्यान कौन रखेगा. देखिए, गाड़ी चलने लगी है.”

अचानक अपने मातापिता की तबीयत खराब हो जाने से परेशान शीतल चंद मिनटों में अपने मायके के लिए रवाना होने वाली है. उन की 5 साल की बेटी परी इतने दिन बिना उस के पहली बार अकेले रहेगी. यह सोच उस का कलेजा पहले से ही छटपटा रहा था.

“तुम निश्चित हो कर जाओ, यहां की चिंता मत करना, मैं सब संभाल लूंगा.” अभिनव पलपल चलती ट्रेन के साथ कहतेकहते शीतल का हौसला बढ़ाते चले गए.

“आप के भरोसे मांजी, बाबूजी की जिम्मेदारी छोड़े जा रही हूं, उन्हें मेरी अनुपस्थिति में कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए,” मुरझाया चेहरा लिए शीतल बेबसी से अभिनव की ओर देखते हुए कहने लगी.

“तुम परेशान मत हो, पहुंच कर फोन करना,” अभिनव के पैर अब तेज रफ्तार पकड़ती ट्रेन के सामने कमजोर पड़ने लगे और वह वहीं थम कर उसे अपना हाथ दिखा, विदा करने लगा.

” ठीक है, आप अपना ख़याल रखना.”

भरी आंखों से शीतल अभिनव के ओझिल होते तक उसे निहारती रही.

वापस अपनी सीट पर बैठ मन ही मन वह प्रकृति को धन्यवाद देने लगी. क्या यह उन्हीं का आशीर्वाद है कि कुल 4 बहनें होने पर भी आज उसे अपने परिवार में एक बेटा न होने की कमी नहीं खल रही थी. उसे उन क्षण बचपन से सुनते आए अपने मांपिता को वो चुभनभरे ताने एकाएक याद आने लगे.

“बिना बेटेबहू के आप का बुढ़ापा कैसे बीतेगा?” ये बेटियां तो अपनीअपनी ससुराल में व्यस्त हो जाएंगी. आप की जरूरत के समय उन से आप के साथ खड़े रहने की उम्मीद लगाना बेकार की बात है. वे अपने ससुराल का ध्यान रखेंगी या अपने मायके का? सासससुर, पति, बच्चों की जिम्मेदारी से खाली होंगी तब तो आ पाएंगी. अगर ससुराल वाले ही मना कर देंगे तो क्या घर में महाभारत रचा कर उन का आना मुमकिन होगा. आप अपनी दूसरी व्यवस्था कर के रखिएगा वरना आगे चल कर बड़ी मुसीबत का सामना करना पड़ेगा.”

पर आज अभिनव का ऐसा रूप देख कर उस का मन भर आया. शुरुआत में वे छोटीमोटी बात पर मायके जाने की उस की जिद्द को नज़रअंदाज कर दिया करते थे.

उसे भी महसूस हुआ कि बाकी जीजू की तरह, अभिनव को भी उस का मायके बारबार जाना पसंद नहीं. फिर धीरेधीरे शीतल ने ही उन से कहना बंद कर दिया. अब मुश्किल से केवल साल में एक बार जाने का मौका मिल पाता था.

आज घरवालों की इस कठिन परिस्थिति में भी उन के पास कोई भी बहन मौजूद नहीं हो पा रही थी. सब अपनीअपनी समस्याओं में उलझी हुई थीं. यह बताने पर कि, उस के मांपिता ने अपनी कामवाली बाई को पूरे दिन के लिए रख लिया है, तो अभिनव को यह बात बिलकुल अच्छी नहीं लगी. उन्होंने तुरंत कहा कि, “बेटा हो या बेटी, अगर जरूरत पड़ने पर उन के खुद के बच्चे सहारा ना बन सके तो फिर किस काम के?”

उसे बिना बताए तुरंत उस के अकेले का टिकट कटा कर अगले ही दिन भेजने का फ़ैसला कर लिया. यह देख उसे बहुत आश्चर्य हुआ. अगर उसे आज अभिनव और अपने सासससुर का साथ न मिलता तो शायद वह भी न उन के पास पहुंच पाती.

उन्हीं की जिद्द थी कि वह मायके जा कर उन का तसल्ली से इलाजपानी करवा कर ही लौटे. उस ने जब सास, ससुर, उन की और परी का हवाला दिया तो अभिनव कहते हैं,

“तुम्हें इस घड़ी में उन के साथ होना चाहिए. मैं मानता हूं कि तुम्हारे बिना कुछ दिन मुश्किल होगी, पर फिर सब मैनेज हो जाएगा.”

यह कहना उन के लिए शायद आसान होगा पर जब करेंगे तब समझ पाएंगे कि इस कभी न खत्म होने वाली जंग में दो पल का चैन नहीं मिलता कि अगली जंग फिर सामने आ खड़ी होती है.

इतना भी सोचविचार नहीं किया कि अकेले सब कैसे संभाल पाएंगे. वह बखूबी जानती थी कि उस की गैरमौजूदगी में सब को कितनी तकलीफ उठानी पड़ेगी. बेटी के हज़ार खाने के नखरे, सासससुर की डायबिटीज और ब्लडप्रैशर की समय पर दवाई की याद, सब का फरमाइशी खानापीना, घर का राशन, बाई का काम देखना आदिआदि इन सब के बाद उन्हें औफिस का काम भी करना होगा.

ट्रेन की खिड़की के बाहर, सीट में अपनी गरदन टिकाए वह खुले आसमान में बादलों को अठखेलियां करते हुए देख यह सब सोच कर यही मनाती रही कि मांपापा जल्दी ठीक हो जाएं और वह अपनी ससुराल समय से वापस लौट आए.

यह विचार करते उस की रात गुजरती रही और अगली सुबह स्टेशन पर उतरते ही औटो पकड़ अपने घर के लिए रवाना हो गई. उस ने अपने घर में आने की जानकारी नहीं दी थी वरना वे लोग उसे आने के लिए मना कर देते. घर पहुंची नहीं कि उसे देख मां ने सवाल पर सवाल बिछा दिए.

“शीतल तुम्हें आने की क्या जरूरत थी? और परी कहां है?”

“मम्मी, मैं अकेले आई हूं. अभिनव उसे संभाल रहे हैं.”

“आसपड़ोस के लोग और बाई भी है. तुम अपनी गृहस्थी क्यों बिगाड़ कर आई हो. वहां तुम्हारे सासससुर हैं, उन का ध्यान कौन रखेगा?”

“मां, तुम चिंता मत करो. अभिनव हैं न, वे सब देख लेंगे.”

“एक मर्द से घर संभालने की उम्मीद करना…मैं तो न कर सकती.”

“अब आ गई है तो तुम्हें खुश होना चाहिए. बेटी, आज हम दोनों को कई डाक्टरों को दिखाना है. यहां से वहां अकेले ऐसी हालत में तुम्हारी मां और खुद को ले कर कहांकहां भटकता, अच्छा किया जो सही समय पर आ गईं.”

“आप नहीं समझेंगे. मां तो आने के लिए मना ही करेगी”

शीतल को भीतर से लगा कि उस ने यहां आ कर एक नेक काम किया. कुछ देर आज उसे क्याक्या करना है, उन दोनों के साथ प्लान कर वह अभिनव को फोन लगाने लगी.

“हेलो, मैं आराम से पहुंच गई थी. तुम कैसे हो? मांजी, बाबूजी और परी सब कैसे हैं?”

“सब ठीक है. तुम यहां की चिंता मत करो. मैं औफिस के लिए थोड़ी देर में निकल रहा हूं. सभी ने अपना खाना खुद निकाल कर खा लिया है. मां ने बाई से सारा काम करवा लिया. बाबूजी खुद दोनों की दवाई निकाल कर समय से खाने की याद रख रहे हैं. और परी, तुम जैसा करती हो, हम सब को अगली चीज करने की याद दिला रही है.”

“हमारी बच्ची इतनी समझदार हो गई है, यकीन नहीं होता,” शीतल मुसकराती हुई आश्चर्य से कहने लगी.

“तुम न जातीं तो पता ही न चलता कि यह लड़की बिना कुछ कहे या टोके अपने सभी काम खुद से कर सकती है. और तुम विश्वास नहीं करोगी, आज उस ने बिना नखरे किए कद्दू की सब्जी अपने हाथों से खाई है.”

 

“जो सुधार मैं महीनों से नहीं कर पाई वह आप ने एक दिन में ही कर दिखाया. मान गई आप को.”

“तुम्हारा धन्यवाद. मैं ने कहा था न, सब मैनेज हो जाएगा. अब तुम जब वापस आओगी तो सब की आदतें बिलकुल ऐसे ही रहने देना. तभी अपना टीचिंग जौब वापस चालू करने की सोच सकती हो.”

“आप ने सही कहा. सब ऐसा ही चलता रहा तो जल्द शुरू कर पाऊंगी.”

“चलो, तुम ध्यान रखो वहां. मुझे औफिस के लिए देर हो जाएगी.”

“ठीक है.”

अभिनव की बातें सुन कर मानो उस के मन से बहुत बड़ा बोझ उतर गया हो, वहां सब अपने पति को अच्छे से संभाला हुआ पा कर वह अपनेआप निश्चिंत होने लगी. आज अपने पति के प्रति अलग सा प्यार और झुकाव होते उसे महसूस हुआ.

सभी डाक्टरों को दिखा कर रात हो गई. यह अच्छा रहा कि कुछ बड़ी बात नहीं निकली. बस 2 हफ्ते की दवाइयां और आराम भर से उन के जल्दी ठीक हो जाने का आश्वासन पा कर वे सब बहुत खुश हुए.

वहां कुल 10 दिन बिताने के बीच शीतल को अपने बचपन के वो सभी क्षण याद आ रहे थे जब कभी वे बहनें बीमार पड़तीं या चोटिल होती थीं और कैसे उन की मां दिनरात सेवा में लगी रहतीं. पिता नियम से काम पर जाने से पहले उन्हें कड़वी दवाई के घूंट बड़े प्यार से पिला कर जाया करते थे.

तब उन्हें उन के साथ और प्यार की कितनी जरूरत थी. उन के बिना वे जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते थे.

वहीं, वे शीतल को एकाएक अपने समक्ष पा कर और इतने संवेदनशील दिल का दामाद पा कर बहुत खुश महसूस कर रहे थे.

यह बात तो पक्की थी कि बिना उन के सहयोग व आश्वासन के बगैर कोई भी बेटी अपना घरबार इतने दिन ऐसे छोड़ कर आने की हिम्मत नहीं जुटा सकती थी.

कुछ दिनों बाद उन की तबीयत सुन आसपास के रिश्तेदार और समाज के लोग एक के बाद एक उन से मिलने घर आने लगे. शीतल को बिना बिटिया के मुसकराते हुए देख उन के साथ हर पल साए की तरह मौजूद पा कर सब हतप्रभ रह गए. सब उस से तरहतरह की पूछताछ करते नहीं थक रहे थे.

सभी सवालों की झड़ी के जवाब दे दे कर उसे पता नहीं क्यों भीतर ही भीतर ऐसा पति पा कर सम्मानित महसूस हो रहा था. क्या एक पति का ऐसा ह्रदय दिखाना क्या इतनी बड़ी बात है.

वैसे, देखा जाए तो पीढ़ियों से यही काम एक बहू आजीवन बड़ी निष्ठा से करती आ रही है, क्या तब भी औरों के लिए एक औरत का इतना त्याग करना इतना ही आदरकारी कार्य माना जाता है? खैर.

मातापिता ने हर किसी के सामने प्रफुल्लित हो अपने दामाद की प्रशंसा करते हुए कहने लगे, “उन्होंने ही जिद्द कर शीतल को हमारे पास अकेले यहां भेजा और अगली ही ट्रेन से. इतने दिनों के लिए हमारे पास निश्चिंत हो हमारा ख़याल रख रही है.

तो फिर क्या था. सब ने केवल एक बात दोहराई, “भई, दामाद हो तो ऐसा.”

“भई दामाद हो तो ऐसा.”

जब एक लड़की की शादी हो जाती है तो उसे, बस, घर की बहू के रूप में ही क्यों देखा जाता है?

जिन्होंने उसे जन्म दिया, पालापोसा, पढ़ायालिखाया, अपने कलेजे का टुकड़ा समझा, हर सुखदुख में चट्टान की तरह साथ दिया. इतने संस्कार और सामंजस्य की घुट्टी पिलाई कि वह ससुराल जा कर एक आदर्श बहू की उपाधि प्राप्त कर सके.

फिर ऐसा क्यों होता है कि किसी मुश्किल घड़ी में या बुरा वक्त आने पर उसे उस के ही जन्मदाता से पराए की तरह बरताव करने के लिए दबाव डाला जाता है. इस बात को क्यों अहमियत नहीं दी जाती कि वह एक पत्नी-बहू-मां के साथसाथ किसी की बेटी भी है.

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