आजकल हिंसा, बलात्कार, कत्ल, साजिश के चटपटे मसाले लपेट कर बनने वाली फिल्मों और टीवी सीरियलों से आम आदमी से जुड़े मुद्दे गायब हो चुके हैं. लिहाजा आम आदमी उस से कनैक्ट नहीं हो पाता. यही वजह है कि ऐसी मारधाड़ वाली फिल्में बौक्स औफिस पर एकडेढ़ हफ्ते में ही दम तोड़ देती हैं. लेकिन जबजब जनता की दुखती रग पर हाथ रखने वाली फिल्में बौलीवुड ने दीं, वे खूब चलीं और खूब सराही गईं.

समाज के सामने काले सच का परदाफाश करने के लिए कला और कलाकारों के माध्यम से अनेक कोशिशें होती हैं. भ्रष्टाचार पर नाटक खेले जाते हैं. जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं. आंदोलन होते हैं. इसी में एक तरीका फिल्में भी हैं जिन के जरिए न सिर्फ दर्शकों का मनोरंजन होता है बल्कि ये हमें समाज में फैली बुराइयों से रूबरू भी कराती हैं.

भ्रष्टाचार की पोल खोलती फिल्में

भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे पर जबजब कोई फिल्म आई, खूब पसंद की गई. भ्रष्टाचार एक ऐसा मुद्दा है जो भारत की जड़ें धीरेधीरे खोखली कर रहा है. शायद ही कोई ऐसा सरकारी विभाग होगा जिसे भ्रष्टाचार ने छुआ नहीं होगा. करप्शन एक अभिशाप की तरह देशभर में फैला हुआ है. शिक्षा संस्थानों से ले कर हैल्थ सैक्टर तक भ्रष्टाचार अपनी जड़ें जमाए हुए है.

कई बौलीवुड फिल्में हैं, जिन में भ्रष्टाचार की पोल खोली गई है. इस लिस्ट में सब से पहला नाम आता है साल 2005 में बनी फिल्म ‘अपहरण’ का, जिस में लीड रोल निभाया था बौलीवुड ऐक्टर अजय देवगन ने. फिल्ममेकर प्रकाश ?ा के निर्देशन में बनी यह फिल्म भ्रष्टाचार के मुद्दे को उजागर करती है.

अजय देवगन, नाना पाटेकर और बिपाशा बसु स्टारर यह फिल्म बिहार में हो रहे बड़े पैमाने पर अपहरण के मुद्दे और उस से उगाही जाने वाली करोड़ों रुपयों की रकम के खेल को उजागर करती है. वर्ष 2005 में 10 करोड़ रुपए की लागत से बनी इस फिल्म ने बौक्स औफिस पर 21.63 करोड़ रुपए का कलैक्शन किया था.

साल 2018 में रिलीज हुई फिल्म ‘भावेश जोशी सुपरहीरो’ एक आम आदमी के सुपरहीरो बनने की कहानी है. इस का मतलब यह नहीं है कि उस शख्स के अंदर कोई सुपर पावर थी, बल्कि फिल्म की कहानी तो उस के उस जज्बे और ताकत के बारे में थी, जो वह भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ने में दिखाता है.

निर्देशक विक्रमादित्य मोटवाने के निर्देशन में बनी इस फिल्म में प्रियांशु पैन्यूली, हर्षवर्धन कपूर मुख्य किरदार में थे. फिल्म की कहानी 2011 में हुए अन्ना आंदोलन पर आधारित थी, जिस में कुछ युवा भ्रष्टाचार के खिलाफ सड़क पर उतरते हैं. फिल्म के किरदार भावेश और सिक्कू एकसाथ मिल कर लोगों को इंसाफ दिलाने के लिए सोशल मीडिया प्लैटफौर्म का इस्तेमाल करते हैं और जनता को भ्रष्टाचार के बारे में जागरूक करते हैं.

खुद को फिल्म से कनैक्ट करते दर्शक

बौलीवुड के खिलाड़ी कुमार यानी अक्षय कुमार स्टारर फिल्म ‘गब्बर इज बैक’ में भी भ्रष्टाचार के मुद्दे को बहुत सशक्त तरीके से पेश किया गया है. साल 2015 में आई इस फिल्म में अक्षय कुमार के अलावा श्रुति हासन, करीना कपूर खान, चित्रांगदा सिंह, जयदीप अहलावत, सुनील ग्रोवर मुख्य किरदारों में नजर आए थे. डायरैक्टर कृष के निर्देशन में बनी यह फिल्म स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में भ्रष्टाचार को उजागर करती है. फिल्म एक आम इंसान के जीवन पर आधारित है, जो अपनी पत्नी के साथ खुशहाल जिंदगी गुजार रहा है, लेकिन अचानक उन की जिंदगी में ऐसा भूचाल आता है, जो उस का सबकुछ बरबाद कर देता है.

अपनी बरबादी पर रोने और अवसादग्रस्त होने के बजाय फिल्म का किरदार करप्शन को जड़ से खत्म करने और लोगों को इंसाफ दिलाने के अपने मिशन पर निकल पड़ता है और भ्रष्टाचारियों को चुनचुन कर मारता है.

ऐक्टर अजय देवगन की फिल्म ‘गंगाजल’ भी दर्शकों को खूब पसंद आई थी. फिल्म बिहार में पुलिस डिपार्टमैंट और राजनीतिक गठजोड़ के पाप और उस में पनपते भ्रष्टाचार को दर्शाती है. यह फिल्म भाईभतीजावाद, अपराध, रिश्वतखोरी के खिलाफ आवाज उठाती है. ‘गंगाजल’ में अजय देवगन के अलावा ग्रेसी सिंह, मुकेश भी मुख्य किरदारों में नजर आए थे.

समाज का काला सच उजागर

बौलीवुड में ऐसी कई फिल्में हैं जो भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आधारित हैं. इन में ‘खोसला का घोसला’, अनिल कपूर की फिल्म ‘नायक’ जैसी फिल्में शामिल हैं, जो करप्शन के काले सच को दर्शकों के सामने उजागर करती हैं.

‘खोसला का घोसला’ को 2006 में कारा फिल्म महोत्सव में प्रदर्शित किया गया था और सकारात्मक आलोचनात्मक प्रतिक्रिया के साथ 22 सितंबर, 2006 को रिलीज किया गया था. इस ने 54वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में हिंदी में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता.

फिल्म ‘नायक’ में एक आम आदमी को मुख्यमंत्री द्वारा एक दिन के लिए राज्य को चलाने की चुनौती दी जाती है. उस एक दिन में वह भ्रष्ट अफसरों की ऐसी क्लास लगाता है कि उस का एक दिन का शासन जबरदस्त सफल होता है. उस के एक दिन के काम को देख कर राज्य के लोग उसे राजनीति में शामिल होने के लिए मजबूर करते हैं, जिस के बाद भ्रष्ट नेता द्वारा उस का घरपरिवार तहसनहस कर दिया जाता है. लेकिन वह हार नहीं मानता और भ्रष्टाचार के खिलाफ कमर कस कर खड़ा हो जाता है.

ये सभी फिल्में ब्लौकबस्टर रहीं. सिनेमाहौल में हफ्तों चलीं क्योंकि ये सभी जनता की रोजमर्रा की परेशानियों से जुड़ी थीं. आज करोड़ोंअरबों रुपए लगा कर बन रही फिल्में 2 दिनों में ही लुढ़क जाती हैं क्योंकि लोग उन से खुद को कनैक्ट नहीं कर पाते हैं.

फिल्म निर्माताओं को सोचना चाहिए कि फिल्में सिर्फ दर्शकों का मनोरंजन करने के लिए नहीं होतीं, बल्कि इन का गहरा असर उन के दिलदिमाग पर पड़ता है, खासकर युवाओं पर. अगर उन के सामने हिंसा परोसी जाएगी तो उन का स्वभाव उग्र और आक्रामक बनेगा, अगर सामाजिक मुद्दों से उन्हें जोड़ा जाएगा तो उन मुद्दों को सम?ा कर वे समाज का कुछ भला कर सकेंगे.

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