प्रधानमंत्री और उन के सहयोगी मंदिरों के बाद बचा समय विपक्षी सरकारों की तोड़फोड़ में लगाते हैं. जैसेजैसे 2024 के लोकसभा चुनाव करीब आ रहे हैं वैसेवैसे विपक्षी पार्टियों में सेंधमारी बढ़ती जा रही है. भाजपा की यह सेंधमारी 2 तरह की हो रही हैं. एक में दूसरे को कमजोर कर के छोड़ देना है. दूसरी, उस को अपनी पार्टी में मिला लेना है. बिहार में नीतीश कुमार को तोड़ कर एनडीए का हिस्सा बना लिया गया. उत्तर प्रदेश में मायावती को अकेले चलने के लिए छोड़ दिया गया है.

मध्य प्रदेश से जो खबरें आ रही हैं उन में यह साफ दिख रहा है कि मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कमलनाथ पर कमल का प्रभाव ज्यादा था. हाथ का दबाव कम था. यही वजह है कि कमलनाथ ने ‘इंडिया’ ब्लौक की वहां मीटिग नहीं होने दी.

समाजवादी पार्टी को एक भी सीट नहीं दी. सपा प्रमुख अखिलेश यादव को बेइज्जत किया. हालात ऐसे बना दिए कि गठबंधन की आपस में ठन गई. इस का नुकसान कांग्रेस को चुनावी हार के साथ ही साथ अब गठबंधन के फैसले करने में हो रहा है. जहां इंडिया गठबंधन और कांग्रेस धर्मनिरपेक्षता की बात कर रहे थे, वहीं कमलनाथ हनुमान मंदिर बनाने और बाबा धीरेंद्र ब्रहमचारी की शरण में बैठे थे.

कांग्रेस को यह बात तब समझ आई जब उस का नुकसान हो चुका था. इस के बाद जब बिना कमलनाथ की सहमति के उन को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा कर जीतू पटवारी को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाया, कमलनाथ नाराजगी दिखाने के लिए भाजपा में जाने की बात करने लगे ताकि कांग्रेस पर दबाव बना सके. कांग्रेस ने खुद को दबाव से मुक्त किया. उस के बाद कमलनाथ और उन के बेटे के भाजपा में जाने की खबरों पर रोक लग गई. मोदी सरकार को जो समय राजकाज चलाने में लगाना चाहिए वह समय वह पार्टी चलाने और मंदिर बनवाने में लगा रही है.

पीएमओ चला रहा देश

सामान्य तौर पर अगर प्रधानमंत्री के पास समय नहीं है तो मंत्रिमंडल के वरिष्ठ मंत्री सरकार के फैसलों की जानकारी देश को देते हैं. इस दौर में देश और पार्टी से जुड़े फैसले 4 लोगों की जानकारी में होते हैं. इन में पहला नाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, दूसरा नाम गृहमंत्री अमित शाह, तीसरा नाम भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा और चैथा नाम बी एल संतोष का है.

बी एल संतोष भाजपा संगठन के राष्ट्रीय महामंत्री हैं. वे आरएसएस और भाजपा के बीच समन्वयक का काम देखते हैं. आरएसएस की नजर से वे बहुत महत्त्वपूर्ण हैं. उन का काम यह देखना है कि सरकार और पार्टी के फैसलों में संघ की नीतियों का कितना पालन हो रहा है.

टिकट बंटवारे में भी उन का अलग वीटो पावर होता है. ईडी, सीबीआई के जरिए दबाव बना कर दलों में तोड़फोड़ या दूसरे दल के नेताओं को भाजपा में लेने का अंतिम फैसला अमित शाह का होता है.

बिहार में जब सरकार बदल रही थी तो बताया जाता है कि सुबह 4 बजे तक जाग कर अमित शाह ने तैयारियों को देखा था. जब सबकुछ योजना के हिसाब से तय हो गया तब वे रिलैक्स हुए.

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा का कार्यकाल बढ़ा दिया गया है. इस की वजह यह है कि सरकार और पार्टी के बीच रिश्तों को मधुर रखने में उन का बड़ा हाथ है. वहीं, नोटबंदी, जीएसटी व कोरोनाकाल में कुप्रबंधन जिस के चलते सैकड़ोंहजारों मजदूरों को दरदर भटकना पड़ा आदि के फैसले नौकरशाही ने लिए.

कोरोना के दौरान अचानक ट्रेन, बस और औफिस बंद कर दिए गए. पूरे देश में तालाबंदी हो गई. मरीजों को जबरदस्ती घरों से उठा कर अस्पतालों में भरती कर दिया गया. वहां कोई सुविधा नहीं थी. रोजरोज नएनए नियम बने. अस्पतालों में औक्सीजन की कमी रही. ये फैसले नौकरशाही ने लिए.

सरकार के स्तर पर पीएमओ ही इस की गाइडलाइन देता रहा. डाक्टरों से अधिक अधिकार पुलिस को दिए गए थे. मरीजों के घरों के सामने बल्लियां लगा कर उन के घर बंद कर दिए गए थे. इस की दहशत ने माहौल को खराब करने का काम किया था. ऐसे निष्ठुर फैसले मंत्री नहीं, नौकरशाह ही ले सकते हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के कल्कि धाम मंदिर के उद्घाटन पर कहा कि, ‘ईश्वर ने मुझे राष्ट्ररूपी मंदिर के नवनिर्माण का काम सौंपा है.’ इसलिए यह साफ दिख रहा है कि उन का काम मंदिर निर्माण पर है. कई मंदिरों के निर्माण और उन की सुदंरता बढ़ाने वाले काम नरेंद्र मोदी ने किए हैं. हर बड़े मंदिर में कौरीडोर का निर्माण किया गया है. अगर उन की यात्राओं को देखें तो मंदिर उन के केंद्र में रहा है. इस से यह बात साफ हो जाती है कि नरेंद्र मोदी राजकाज चलाने से अधिक मंदिर निर्माण को समय दे रहे हैं. सरकार के फैसले नौकरशाह यानी पीएमओ ले रहा है.

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