देशभर के किसानों ने अपनी मांगों को ले कर एक बार फिर केंद्र सरकार को घेर लिया है. किसानों के ‘दिल्ली चलो’ मार्च को करीब 200 से अधिक संगठनों का समर्थन प्राप्त है. न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की गारंटी को ले कर कानून बनाने समेत विभिन्न मांगों के लिए पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों ने राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन की पूरी तैयारी कर ली है.

इस के अलावा भी किसानों की अनेक मांगें हैं, जिन के लिए वे सालों से संघर्षरत हैं. किसान लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों को न्याय दिलाने की मांग कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश के लखीमपुर में 8 लोगों की जानें गई थीं जिन में 4 किसान थे. इस में सीधेसीधे आरोप भाजपा नेता व केंद्रीय मंत्री अजय कुमार मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा पर लगा था.

किसानों की मांग है कि भारत को डब्ल्यूटीओ से बाहर निकाला जाए. किसान चाहते हैं कि कृषि वस्तुओं, दूध उत्पादों, फलों, सब्जियों और मांस पर आयात शुल्क कम करने के लिए भत्ता बढ़ाया जाए. किसानों की यह भी मांग है कि किसानों और 58 साल से अधिक आयु के कृषि मजदूरों के लिए पैंशन योजना लागू कर के 10 हजार रुपए प्रतिमाह पैंशन दी जाए.

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में सुधार के लिए सरकार की ओर से स्वयं बीमा प्रीमियम का भुगतान करना, सभी फसलों को योजना का हिस्सा बनाना और नुकसान का आंकलन करते समय खेत के एकड़ को एक इकाई के रूप में मान कर नुकसान का आकलन करना भी उन की मांगों में शामिल हैं.

किसान नेताओं का कहना है कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 को उसी तरीके से लागू किया जाना चाहिए और भूमि अधिग्रहण के संबंध में केंद्र सरकार की ओर से राज्यों को दिए गए निर्देशों को रद्द किया जाना चाहिए. इस के अलावा कीटनाशक, बीज और उर्वरक अधिनियम में संशोधन कर के कपास सहित सभी फसलों के बीजों की गुणवत्ता में सुधार किया जाए.

सरकार ने नहीं की मांग पूरी

2 वर्षों पहले दिल्ली के बौर्डर पर धरने पर बैठे किसानों का आंदोलन इतना मुखर था कि नरेंद्र मोदी सरकार को 3 कृषि कानूनों- कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून 2020, कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून 2020 और आवश्यक वस्तुएं संशोधन अधिनियम 2020 को रद्द करना पड़ा था.

किसानों को डर था कि सरकार इन कानूनों के जरिए पूंजीपतियों की घुसपैठ कृषि क्षेत्र में बढ़ा देगी और कुछ चुनिंदा फसलों पर मिलने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य देने के नियम खत्म कर सकती है. इस के बाद उन्हें बड़ी एग्री-कमोडिटी कंपनियों का मुहताज होना पड़ेगा.

उस दौरान एक मांग स्वामीनाथन आयोग को लागू किए जाने को ले कर भी थी. मोदी सरकार ने उस दौरान न्यूनतम समर्थन मूल्य लागू करने का वादा भी किया था, जो सिर्फ चर्चाओं तक ही सिमट गया.

इस मसले पर किसान कल्याण मंत्री अर्जुन मुंडा, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय की अगुआई में कमेटी बनाई गई थी. इन मंत्रियों की किसानों के साथ हाल ही में 2 बार (8 फरवरी और 12 फरवरी) बातचीत हुई, जो बेनतीजा रही. इस के बाद ही किसान संगठनों ने यह फैसला लिया कि 13 फरवरी को वे दिल्ली कूच करेंगे.

किसानों का कूच

विभिन्न किसान संगठनों के दिल्ली कूच करने के आह्वान के बाद किसानों ने दिल्ली की तरफ बढ़ना शुरू कर दिया, जिस में बड़ी संख्या में युवा भी हैं. किसानों को दिल्ली में घुसने से रोकने के लिए बौर्डर पर खतरनाक कील-कांटे बिछाए जा गए हैं.

हरियाणा-पंजाब के शंभू बौर्डर पर पुलिस और किसानों के बीच संग्राम शुरू हो गया है. पुलिस ने ड्रोन के जरिए किसानों पर आंसू गैस के गोले छोड़े हैं. किसान वहीं डटे हुए हैं. इस विरोध प्रदर्शन के लिए यूपी के साथ ही हरियाणा और पंजाब के किसान भी दिल्ली की ओर बढ़ रहे हैं. बड़ी संख्या में किसान सड़क का मार्ग छोड़ कर खेतों के रास्ते निकल पड़े हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक किसानों ने अंबाला-शंभू, खनौरी-जींद और डबवाली बौर्डर्स से दिल्ली में दाखिल होने की योजना बना रखी है. हरियाणा सरकार ने सीमाओं पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए हैं. 15 जिलों में धारा 144 लागू कर दी गई है. गाजीपुर, सिंघु और टिकरी में भी पुलिस बल तैनात हैं.

किसानों के प्रदर्शन के बीच किसान नेता सरवन सिंह पंढेर का बयान आया है. उन्होंने कहा है कि वे नहीं चाहते हैं कि किसी तरह की अव्यवस्था हो. उन्होंने कहा कि किसान संगठन सरकार के साथ टकराव से बचना चाहते हैं और कुछ हासिल हो, इसी आशा व भरोसे की वजह से ही मीटिंग में बातचीत कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि हरियाणा के हर गांव में पुलिस भेजी जा रही है. ऐसा लग रहा है कि पंजाब और हरियाणा भारत के राज्य नहीं हैं, बल्कि इंटरनैशनल बौर्डर बन गए हैं. उन्होंने यह भी कहा कि अगर सरकार बुलाना चाहेगी तो वे बातचीत के लिए तैयार हैं.

दिल्ली कूच करने के आह्वान में इस बार भारतीय किसान यूनियन शामिल नहीं है और औल इंडिया किसान सभा ने भी किसानों के आंदोलन से फिलहाल दूरी बनाई हुई है, जबकि संयुक्त किसान मोरचा के बैनर तले 16 फरवरी को राष्ट्रव्यापी भारत बंद का आह्वान किया गया है, जिस में तमाम किसान और मजदूर पूरे दिन हड़ताल पर रहेंगे और काम बंद करेंगे.

दोपहर 12 बजे से ले कर शाम 4 बजे तक देश के सभी राष्ट्रीय राजमार्गों का घेराव किया जाएगा और हाईवे बंद किए जाएंगे. भाकियू नेता राकेश टिकैत ने कहा, “क्या पाकिस्तान के बौर्डर पर कीलकांटे लगे हैं, दीवारें खड़ी हैं, यह तो अन्याय है. अगर इस तरह अत्याचार होंगे तो हम भी आ रहे हैं. न हम किसान से दूर हैं, न दिल्ली से.”

भाकियू नेता राकेश टिकैत ने आगे कहा, “हम आंदोलन का हिस्सा अभी तक तो नहीं हैं. मगर इस का मतलब नहीं है कि हम किसानों के आंदोलन को समर्थन नहीं दे रहे.”

उन्होंने कहा कि चंडीगढ़ में किसान नेताओं और सरकार के मंत्रियों के बीच सहमति नहीं बन पाई क्योंकि न्यूनतम समर्थन मूल्य देने पर सरकार सहमत नहीं हो रही है और मामले को लटकाए रख रही है. टिकैत का कहना है कि किसानों के पिछले आंदोलन को समाप्त हुए 13 महीने बीत गए हैं लेकिन न तो आंदोलन कर रहे किसानों पर से आपराधिक मामले वापस लिए गए हैं और न ही उन्हें अपनी फसलों का सही मूल्य ही मिल पा रहा है.

उन्होंने कहा, “स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट को लागू करने में अभी भी आनाकानी चल रही है जिस की वजह से पूरे देश के किसान नुकसान उठा रहे हैं. इस आंदोलन में हम शामिल नहीं थे, लेकिन नाइंसाफी हुई, तो हम भी आंदोलन में कूदने पर मजबूर हो जाएंगे.”

2 चेहरे कर रहे किसान आंदोलन को लीड

किसान आंदोलन का जिक्र जब भी होता है तो दिमाग में सब से पहला नाम राकेश टिकैत का आता है. राकेश टिकैत 2020 में हुए किसान आंदोलन के बड़े चेहरे थे. कृषि कानूनों के विरोध में शुरू हुए उस आंदोलन का नेतृत्व करने वाले राकेश टिकैत इस बार शुरू हुए किसानों के आंदोलन का नेतृत्व नहीं कर रहे हैं. इस बार 2 नए चेहरे इस आंदोलन को लीड कर रहे हैं. इन में एक नाम पंजाब किसान नेता सरवन सिंह पंढेर का है, जिन के नेतृत्व में पंजाब से हजारों किसान दिल्ली कूच कर रहे हैं. वहीं दूसरा नाम जगजीत सिंह डल्लेवाल का है जो इस आंदोलन की अगुआई कर रहे हैं.

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