4 अक्टूबर, 1992 को जब समाजवादी पार्टी बनी तो उस की विचारधारा समाजवाद रखी गई थी. समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव की राजनीति किसानों पर आधारित थी. मुलायम सिंह की राजनीतिक शुरुआत किसान नेता चौधरी चरण सिंह के सान्निध्य में हुई थी. मुलायम उन को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे. चौधरी चरण सिंह के बाद लोकदल का बंटवारा हुआ. तब मुलायम सिह यादव ने देवीलाल का दामन थाम लिया. जनता दल के बाद मुलायम सिह यादव ने समाजवादी पार्टी बनाई. समाजवादी पार्टी के नाम में भले ही समाजवाद था पर उस के संगठन में समाजवाद की कोई जगह नहीं थी.

यह बात और है कि मुलायम सिंह यादव ने पार्टी को चलाने के लिए जो जातीय ढांचा तैयार किया उस में पिछड़ी जातियों को एक स्थान दिया. यह केवल दिखावेभर के लिए था. समाजवादी पार्टी में सब से प्रमुख स्थान मुलायम सिंह यादव ने अपने परिवार को दिया, दूसरा स्थान अपनी यादव जाति को दिया. धीरेधीरे ये दोनों ही पार्टी पर हावी होते गए. समाजवादी पार्टी को मुसिलम वोटबैंक का मजबूत साथ 1990 से ही मिलना शुरू हो गया था जब मुलायम सिंह यादव ने अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलवाई थी. उस दौर में मुलायम सिंह यादव का नाम ‘मुल्ला मुलायम’ भी पड़ गया था.

तब से मुसलिम और यादव समाजवादी पार्टी का सब से मजबूत वोटबैंक बन गया था. बाकी जातियों को जरूरतभर का महत्त्व मिलता था. जरूरत थी तो मुलायम सिह यादव ने बसपा के साथ मिल कर चुनाव लड़ा. इस के बाद बसपा नेता मायावती को खत्म करने की राजनीति के तहत 2 जून, 1995 को लखनऊ का गेस्टहाउस कांड हो गया. 2003 में मुलायम सिंह यादव ने लोकदल के चौधरी अजित सिंह और भाजपा छोड़ कर राष्ट्रीय क्रांति पार्टी बनाने वाले कल्याण सिंह के साथ समझौता कर सरकार बनाई.

खुद ही मुख्यमंत्री बने पर 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा से वे हार गए. इस के बाद 2012 में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी तो मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बना दिया. इस के बाद का समाजवाद पूरी तरह से परिवारवाद में बदल गया. समाजवादी पार्टी ही नहीं, मुलायम परिवार भी टूट गया. मुलायम सिह यादव के भाई शिवपाल यादव अलग हुए. उस के बाद समाजवादी पार्टी कोई चुनाव जीती नहीं. जबकि उस ने कांग्रेस, बसपा और लोकदल के साथ समझौता कर चुनाव लड़े थे.

पीडीए भी केवल नाम का

लगातार हार का सामना कर रहे अखिलेश यादव ने 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए पीडीए का नारा दिया. पीडीए की परिभाषा वे लगातार बदलते रहे. पहले पीडीए का मतलब पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक बताया गया. जो मुसलिम वर्ग साथ था उस के बारे में खुल कर बोलने से अखिलेश यादव बचते रहे. इस के बाद ‘अल्पसंख्यक’ की परिभाषा बदलते हुए उस को इंग्लिश का ’ए’ समझाते हुए कहा गया ‘ए’ फौर ‘अगड़ा’ यानी सवर्ण और ‘ए’ फौर ‘आधी आबादी’ भी होता है. सपा ने अपने सब से बड़े वोटबैंक मुसलिम को अल्पसंख्यक कहा जिस से उस में बौद्ध, जैन जैसे अल्पसंख्यकों के साथ मुसलिम को रखा जा सके. उस के बाद अल्पसंख्यक की ‘ए’ कैटेगरी बनाई गई जिस में औरतों और अगड़ों को जगह दी गई.

इस तरह से पीडीए की कल्पना लगातार बदलती रही. जब राज्यसभा जैसे मौके आए तो 3 में से 2 स्थान यानी आलोक रंजन और जया बच्चन को टिकट दिया गया. जो अगड़ा वर्ग से आते हैं. रामजी लाल सुमन को टिकट दिया गया. इस तरह से पीडीए का ध्यान यहां नहीं रखा गया. इस को ले कर अखिलेश यादव निशाने पर हैं. समाजवाद की ही तरह से सपा में पीडीए भी केवल नामभर के लिए रह गया है. समाजवाद का अर्थ होता है समाज के हर वर्ग को समान अधिकार. समाजवादी पार्टी में न तो कभी समाजवाद था और न ही पीडीए में हर वर्ग को जगह दी गई.

समाजवादी पार्टी की सब से बड़ी परेशानी यह है कि वह अपनी विचारधारा पर कभी खरी नहीं उतरी. धर्मनिरपेक्षता की बात करतेकरते वह सनातन की राह पर चल देती है. वह शंकर का मंदिर भी बनवा रही है. पार्टी मुखिया पहले भी परशुराम का फरसा लगवा चुके हैं. बिना विचारधारा के कोई राजनीतिक दल चुनाव नहीं जीत सकता है. पीडीए भी समाजवाद की तरह सपा की फाइलों में कैद है. सपा की नीतियों में न पीडीए दिख रहा है, न समाजवाद.

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