Should Children Sleep With Parents : बच्चों का माता-पिता के साथ सोना सही है या गलत, यह मत अलग-अलग देशों में भिन्न-भिन्न हैं. इसे लेकर सभी के अपने तर्क भी हैं. हालांकि भारत में माता-पिता के साथ बच्चों का सोना बहुत ही आम बात है. बच्चे को अपने साथ सुलाना, दुलार भरा स्पर्श, ढेर सारी बातें, भावनाओं का आदान प्रदान अक्सर माता-पिता इसी दौरान करते हैं. माना जाता है कि ऐसा करना बच्चों के समग्र स्वास्थ्य के लिए बेहतर रहता है. लेकिन बच्चों की परवरिश का यह महत्वपूर्ण हिस्सा क्या वाकई उतना अच्छा है, जितना समझा जाता है. क्या इसके भी कोई नुकसान है, चलिए जानते हैं.

मजबूत होता है रिश्ता

माता-पिता के साथ बच्चे सबसे ज्यादा सुरक्षित और रिलेक्स महसूस करते हैं. ऐसे में जब वे पेरेंट्स के साथ सोते हैं तो उनके बीच एक मजबूत भावनात्मक संबंध बनता है. यह बच्चे को न सिर्फ रिश्ते और परिवार की अहमित बताता है. बल्कि उन्हें संयुक्त रहने की प्रेरणा भी देता है. माता-पिता के पास होने के एहसास से बच्चे अच्छी और गहरी नींद ले पाते हैं. यही कारण है भारत सहित कई देशों की संस्कृति में इस पैटर्न को अपनाया गया है.

कई जोखिमों से दूर रहता है बच्चा

बच्चा जब माता-पिता के साथ सोता है तो वह कई जोखिमों से बचा रहता है. माता-पिता बच्चे की सेहत को लेकर अधिक सजग रह पाते हैं, ऐसे में सांस लेने में तकलीफ, खांसी-जुकाम या फिर बेचैनी आदि का पता उन्हें आसानी से लग पाता है. पेरेंट्स तुरंत बच्चे की मदद कर पाते हैं, जिससे इंफेंट डेथ सिंड्रोम का जोखिम कम होता है.

माता-पिता की नींद में खलल

बच्चों का माता-पिता के साथ सोना भले ही उन्हें सुरक्षित माहौल देता है, लेकिन कई बार पेरेंट्स के लिए यह परेशानी का कारण बन सकता है. जब बच्चा साथ में सोता है तो कई बार पेरेंट्स की नींद में बाधा उत्पन्न होती है. बार-बार बच्चे को चेक करना, उन्हें ठीक तरीके से सुलाना, उन्हें सोने की पर्याप्त जगह देने के कारण पेरेंट्स की नींद रात में कई बार टूटती है. इससे उनकी नींद खराब होती है. कई बार इसके कारण दिनभर थकान भी महसूस होती है.

बच्चा नहीं बन पाता आत्मनिर्भर

आपने देखा होगा कि अक्सर बच्चे किसी दूसरे के घर में माता-पिता के बिना सो नहीं पाते. खासतौर पर रात में यह समस्या आती है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बच्चा सोने के लिए पेरेंट्स पर निर्भर हो जाता है. उसे माता-पिता के साथ ही सुरक्षित और आरामदायक महसूस होता है. इसलिए समय-समय सोने का स्थान बदलते रहें. बच्चे को साथ में सोने के साथ अकेले सोने की भी आदत डालें. हालांकि कुछ शोध के अनुसार जो बच्चे पेरेंट्स के साथ सोते हैं वे अधिक व्यवहार कुशल होते हैं. वे ज्यादा पॉजिटिव होते हैं और उनमें मनोविकार भी कम होते हैं. उन्हें इस बात का कॉन्फिडेंस होता है कि उनके माता-पिता उनके साथ हैं.

इस उम्र तक बच्चों को साथ सुलाएं

अब सवाल यह है कि आखिर माता-पिता को किस उम्र तक बच्चे को साथ सुलाना चाहिए. दरअसल, यह बात पेरेंट्स और बच्चे के अनुसार तय की जा सकती है. हालांकि सात से आठ साल की उम्र से आपको बच्चे को अलग सुलाने का कदम उठा लेना चाहिए. ऐसा करने से बच्चे जल्दी आत्मनिर्भर बनेंगे. बच्चों को हमेशा अपने पास वाला कमरा ही दें, जिससे उन्हें आपके नजदीक होने का एहसास रहे.

कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी

ये बात सही है कि माता-पिता और बच्चों का साथ सोना उनके संबंध को मजबूत करता है. लेकिन फिर भी पेरेंट्स को हमेशा कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए. अगर बच्चा ज्यादा छोटा है तो अधिक सावधान रखने की जरूरत है, जिससे बच्चे का दम न घुटे और वह चोट से बचा रहे. ध्यान रखें कि गद्दा बहुत ज्यादा सख्त न हो, बिस्तर पर आरामदायक बैडशीट बिछाएं, बैड पर ज्यादा बिस्तर न रखें, बैड या उसके आस-पास ऐसी चीजें न रखें, जिससे बच्चे को नुकसान हो.

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