हम पिछले कुछ समय से लगातार कहते आए हैं कि पंकज त्रिपाठी, विक्की कौशल, मनोज बाजपेयी और नवाजुद्दीन सिद्दिकी अब केवल ओटीटी के ही स्टार रह गए हैं लेकिन जनवरी के तीसरे सप्ताह यानी कि 19 जनवरी को प्रदर्शित फिल्म ‘मैं अटल हूं’ से साबित हो गया कि पंकज त्रिपाठी अपनेआप को इतना बड़ा स्टार समझने लगे हैं कि अब उसी अहम में वह स्वयं का कैरियर चौपट करने पर आमादा हो गए हैं.
खुद पंकज त्रिपाठी हम से कई बार कह चुके हैं कि वह तो जूम पर विदेशी मीडिया को इंटरव्यू देते हुए इस कदर थक जाते हैं कि दूसरों से बात करने का उन के पास समय ही नहीं होता. वह यह भी बता चुके हैं कि जब वह बेकीसी, मुंबई में एसबीआई बैंक गए तो 600 से ज्यादा बैंक कर्मी बिल्डिंग के शीशे के पीछे से उन्हे देखने के लिए उन का इंतजार कर रहे थे.

पंकज त्रिपाठी का दावा है कि अब हर इंसान उन की एक झलक पाने के लिए लालायित रहता है लेकिन खुद पंकज त्रिपाठी को विचार करना चाहिए कि अगर लोग उन्हें और उन के सिनेमा को देखना पसंद करते हैं तो फिर 20 करोड़ की लागत में बनी फिल्म ‘मैं अटल हूं’, जिस में पंकज त्रिपाठी ने शीर्ष भूमिका निभाई है वह एक सप्ताह के अंदर बौक्स औफिस पर महज साढ़े 7 करोड़ ही कमा सकी.

इस में से निर्माता के हाथ बामुश्किल 3 करोड़ ही लगने वाले हैं. हम यहां याद दिला दें कि फिल्म ‘मैं अटल हूं’ में पंकज त्रिपाठी की पत्नी मृदुला त्रिपाठी सह निर्माता हैं. इस हिसाब से यह कहा जा रहा है कि फिल्म के बजट में पंकज त्रिपाठी की पारिश्रमिक राशि नहीं जुड़ी है, बल्कि उन्हे तो फिल्म की कमाई में हिस्सा मिलना था, जिस से अब वह हाथ धो चुके हैं.

फिल्म ‘मैं अटल हूं’ की बौक्स औफिस पर हुई दुर्गति के लिए सर्वाधिक दोषी पंकज त्रिपाठी के साथ ही फिल्म के प्रचारक हैं, जिन्होंने पिछले सप्ताह ‘मेरी क्रिसमस’ को डुबाने में अहम भूमिका निभाई थी. पंकज त्रिपाठी एक बेहतरीन कलाकार हैं. इस बात को वह अतीत में साबित कर चुके हैं. ऐसे में इन्हें पता होगा कि उन के अंदर अभिनय की क्या कमियां हैं.

फिल्म ‘मैं अटल हूं’ पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की बायोपिक फिल्म है. इस की कहानी उन के कालेज दिनों, कालेज दिनों के प्रेम, आरएसएस की शाखाओं में जाने से ले कर प्रधानमंत्री बनने, कारगिल युद्ध और पोखरण तक की कहानी बयां करती है.

फिल्म में पंकज त्रिपाठी सत्रह वर्ष के अटल बिहारी बाजपेयी के किरदार में नजर आते हैं, जहां वह हाफ पैंट पहन कर आएसएस की शाखा में लाठी चला रहे हैं. इस दृष्य के साथ न्याय करने में 47 वर्षीय पंकज त्रिपाठी बुरी तरह से असफल रहे हैं. इतना ही नहीं अटल बिहारी का चेहरा चौड़ा था, जबकि पंकज त्रिपाठी का चेहरा आयताकार है. इसलिए लुक में भी वह मात खा गए.

अटल बिहारी बाजपेयी के भाषण के वक्त की कुछ अदाओं को जरुर उन्होंने पकड़ा है पर कई दृष्यों में वह अटल की जगह पंकज त्रिपाठी ही नजर आते हैं. इस के अलावा कथानक व निर्देशन की भी कमियां रहीं. मगर जब पंकज त्रिपाठी खुद इस फिल्म के निर्माण से जुड़े थे तो उन्हें इस बात का पूरा ख्याल रखना चाहिए था कि वह किरदार के साथ न्याय कर सकें.

मगर यह हमेशा से पाया गया कि जब कलाकार फिल्म की कमाई का हिस्सेदार होता है तो वह कई बार इसलिए चुप रह जाता है कि फिल्म का बजट न बढ़ने पाए. लगता है कि ऐसा ही कुछ ‘मैं अटल हूं’ में भी हुआ, जिस के चलते पंकज त्रिपाठी अपने चेहरे को सही प्रोस्थेटिक मेकअप की मदद से चौड़ा बनाने से रह गए.

इतना ही नहीं ‘मैं अटल हूं’ का प्रमोशन भी बहुत घटिया रहा. अपने प्रचारक की सलाह पर पंकज त्रिपाठी ने साठ पत्रकारों संग ग्रुप इंटरव्यू करने के अलावा कुछ चैनलों से बात कर इतिश्री कर दी. उस के बाद वह शहरों का भ्रमण करने व भाजपा के नेताओं को फिल्म दिखा कर अपनी पीठ जबरन थपथपवाते रहे.

अफसोस भाजपा व आरएसएस ने भी इस फिल्म को तवज्जो नहीं दी. जबकि इस फिल्म के निर्माण से संदीप सिंह भी जुड़े हुए हैं, जिन्होने कुछ वर्ष पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बायोपिक फिल्म बनाई थी, जिसे दर्शक नहीं मिले थे.

हम याद दिला दें कि फिल्म ‘मैं अटल हूं’ का प्रचार उसी शख्स की कंपनी ने किया है, जिस ने पिछले सप्ताह ‘मेरी क्रिसमस’ का प्रचार किया था. 60 करोड़ की लागत वाली फिल्म ‘मेरी क्रिसमस’ 15 दिन में महज साढ़े 18 करोड़ ही इकट्ठा कर सकी.जबकि हिंदी में डब हो कर 12 जनवरी को प्रदर्शित हुई.

19 जनवरी को ही एक दूसरी हिंदी फिल्म ‘‘695’’ (छह नौ पांच ) प्रदर्शित हुई. इस फिल्म के निर्माता व निर्देशक को भरोसा था कि सभी ‘दक्षिणापंथी’ उन की इस फिल्म को देखने के लिए टूट पड़ेंगे और उन की फिल्म हजार करोड़ की कमाई कर लेगी.

इसी वजह से मुंबई के इस्कान मंदिर में एक प्रैस काफ्रेंस करने के अलावा निर्माता ने इस के प्रचार पर एक भी पैसा नहीं लगाया. यह फिल्म इतनी घटिया है कि दक्षिणापंथियों ने भी इस फिल्म को देखना उचित नहीं समझा. जिस के चलते यह फिल्म पूरे सप्ताह में एक करोड़ भी नहीं कमा सकी. इस के निर्माता फिल्म की लागत बताने से दूरदूर भागते रहे.

अरूण गोविल, मनोज जोषी, अखिलेंद्र मिश्रा सहित कई लोकप्रिय कलाकारों के अभिनय से सजी फिल्म ‘छह नौ पांच’ की कहानी ‘श्रीराम जन्म भूमि मंदिर’ के पांच सौ वर्षों के संघर्ष की गाथा है. फिल्म के नाम में छह का अंक ‘छह दिसंबर 1992, जब ढांचा गिराया गया था, का प्रतीक है.

9 का अंक नौ नंवबर 2019 सुप्रीम कोर्ट के फैसले और पांच का अंक पांच अगस्त 2020 है जिस दिन मंदिर का शिलान्यास हुआ था, उस दिन का प्रतीक है. फिल्म की कहानी शिलान्यास पर ही आ कर खत्म हो जाती है. पर फिल्म में कोई कहानी नजर नहीं आती. कई जगह यह डाक्यूमेंट्री नजर आती है. फिल्म का निर्देशन व फिल्मांकन बहुत घटिया है. पता नहीं लोग ‘दक्षिणपंथियों’ के भरोसे इस कदर की घटिया फिल्में बनाने का साहस कैसे कर लेते हैं.

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