अभी हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ था जिस में दिखाया गया कि मुंबई एयरपोर्ट पर एक डोसा खाने के लिए 600 रुपये देने होंगे. बटर डोसा की कीमत 620 रुपए है. इस वीडियो को कैप्शन दिया गया- मुंबई एयरपोर्ट पर सोना, डोसे से भी सस्ता है. शेयर किए जाने के बाद वीडियो को लाखों बार देखा गया और 2 लाख से ज्यादा लाइक मिले. जाहिर है पैसे वाले लोग फ्लाइट पकड़ने से पहले महंगा होने के बावजूद लोग वहां जा कर खाने की बात जरूर सोचेंगे क्योंकि कई दफा कीमत से ज्यादा उस जगह की अहमियत होती है.

बात करें दुनिया के सब से महंगे रेस्टोरेंट की, तो यह है स्पेन का सब्लीमोशन रेस्टोरेंट. यहां सामान्य खाना खाने पर भी आप को करीब 2,000 डौलर का बिल चुकाना पड़ता है जो भारतीय रुपए में करीब 1,63,000 बनता है. सब्लीमोशन रेस्तरां स्पेन के इबिज़ा द्वीप पर बनाया गया है. इस पर बैठने के बाद आप को अपने मन के मुताबिक नजारा दिखेगा. दरअसल इस का इंटीरियर बेहद खास है जहां रोशनी और ध्वनि का सम्मोहक नजारा भी मौजूद है. यहां जाना अपनेआप में एक अलग अनुभव है.

इसी तरह हमारे यहां के कितने ही फाइवस्टार होटल्स और लग्जीरियस रेस्टोरेंट्स हैं जहां आ कर भोजन करने का अलग ही एहसास होता है. दरअसल ऐसी जगहों पर सिर्फ खाना ही लजीज नहीं होता बल्कि पूरा माहौल सुकून भरा, म्यूजिकल, हाइजीन युक्त, कंफर्टेबल और आंखों को भाने वाला होता है. कहीं गंदगी या मिसमैनेजमेंट नजर नहीं आता.

तभी तो अच्छे खाने की तलब हो या रोमांटिक डेट पर जाना हो, हर कोई एक अच्छे रेस्टोरेंट की तलाश में रहता है. जिस का इंटीरियर शानदार हो, आसपास का माहौल खुशनुमा हो और हाइजीन के साथ कायदे से परोसा हुआ लजीज खाना हो ताकि आप अपनी ये यादें ताउम्र न भूल पाएं.

हर इंसान अकसर कुछ ऐसा ही चाहता है और इसलिए वह बड़े रेस्टोरेंट्स का रुख करता है. यह महंगा हो तो भी खास मौकों पर हम ऐसी अच्छी जगह जा कर ही खाना पसंद करते हैं. हल्दीराम, सागर रत्न, आंध्र भवन, बुखारा, कौफी हाउस, सर्वना भवन, स्पाइस रुट, काके दा होटल , नैवैद्यम , सात्विक जैसे बहुत से बेहतरीन रेस्टोरेंट्स हैं जहां आप मनचाहा खाना खा सकते हैं. ये महंगे हैं मगर सर्विसेज देखते हुए पैसा देना अखरता नहीं.

कंफर्ट और हाइजीन का मूल्य

होटलों या रेस्टोरेंट्स में खाना महंगा होने के कई कारण हैं जैसे खाने में इस्तेमाल पदार्थों जैसे तेल, घी, मसाले, सब्जियां, मेवे इत्यादि की क्वालिटी बेहतर होती है. दूसरे जिस वातावरण में बैठ कर आप खा रहे हैं उस जगह की कीमत, साफसफाई, क्रौकरी, खाना पकाने वाले कुक का स्तर, ट्रेंड सर्व करने वाले लोग आदि पर भी काफी खर्च आता है. हमें एसी कमरे में आराम से खाने का मौका दिया जाता है.

तीसरे टैक्स यानी हर स्तर के होटल या रेस्टोरेंट पर टैक्स की दरें भिन्न होती हैं. जबकि सड़कों पर स्ट्रीट फ़ूड बेच रहे लोगों या ढाबे वालों को ऐसे खर्चे नहीं करने होते. हो सकता है एक ढाबे वाले का खाना किसी बड़े होटल के मुकाबले कहीं अधिक स्वाददार हो और खाना पकाने में बराबर ही खर्च होता हो परंतु होटलों में हम मिलने वाली सुविधाओं और हाइजीन का मूल्य चुकाते हें.

बड़ेबड़े होटल्स या रेस्टोरेंट्स में खाने के ऊपर इतना टैक्स लगता है कि उस की सामान्य कीमत से वह लगभग 4 गुना महंगा हो जाता है. यह भी एक वजह है कि वहां पर खाना महंगा मिलता है.

आप चाहें तो महंगे होटल में भी खा सकते हैं और आप चाहें तो सस्ते रोड पर बने होटलों/ढाबों में भी खा सकते हैं. अपनी आर्थिक स्थिति और परिस्थिति के हिसाब से इंसान जगह सैलेक्ट करता है. समोसे छोटे ढाबों या ठेलों पर 10-15 रुपए में मिल जाते हैं. वहीँ समोसा अच्छे रेस्टोरेंट्स में 50-60 रुपए में मिलते हैं.

बड़े होटल्स में ये और भी महंगे होते हैं. अगर दो लोग किसी फाइवस्टार होटल में रुकते हैं तो एक बार डिनर करने में आप को दो लोगों के लिए 5,000 से 6,000 रुपए तक खर्च करने पड़ सकते हैं.

महंगे होटल में जहां पर एक चाय/कौफी की कीमत 100-200 रुपए वसूली जाती है तो उस चाय को देने का तरीका, वहां की व्यवस्था और साफ सफाई इस लायक होती है कि इंसान इतने रूपए ख़ुशी से खर्च करे. जबकि सड़कों और ढाबों पर वही चाय 5-10 रुपए में मिलती है. वहां पर सफाई व्यवस्था नहीं होती है. गंदे हाथों से काम किया जाता है. गंदा पानी यूज होता है.

चायकौफी या खाना सर्व करने का कोई सही तरीका नहीं होता. बरतनों की भी ठीक से सफाई नहीं की जाती. चाय बनाने में पुरानी ही चाय पत्ती कई बार यूज होती है. इसी तरह समोसे, पकौड़े या कचौरियां आदि तलने में वही तेल बारबार इस्तेमाल होता है जिस का बुरा असर खाने वाले की सेहत पर हो सकता है. दोनों में यही मुख्य अंतर होता है. महंगे होटल में साफसफाई की व्यवस्था का ध्यान रखा जाता है और सस्ते में इन सुविधाओं का लाभ नहीं मिलता है.

पांचसितारा होटलों में खाने की हरेक सामग्री स्टैंडर्ड क्वालिटी की ही आती है. यह भी ध्यान रखा जाता है कि ये सामग्रियां कहां से मंगवाई जा रही हैं. इन होटलों में आप की मांग के अनुसार आप को सिल्वर कटलरी भी उपलब्ध कराई जाती है. हर एक स्टाफ को खाना परोसने के तौरतरीकों के बारे में खास निर्देश होता है.

बेहतर है कि कुछ भी खाने का सामान खरीदने से पहले मेन्यू जरूर देख लें जिस पर कीमत लिखी होती है. अगर प्रोडक्ट की क्वालिटी अच्छी है और सर्विस में कमी नहीं रही तो फिर आप शिकायत भी क्या कर सकते हैं.

इन आधारों पर तय होती है कीमत

किसी बड़े होटल या रेस्टोरेंट कुछ बातों के आधार पर अपने मेन्यू का रेट तय करते हैं. जैसे कि जहां पर आउटलेट है उस जगह की कमर्शियल वैल्यू कितनी है. क्या उस डिश को किसी प्रोफेशनल ने बनाया है. यह भी देखते हैं कि कहीं वो डिश उस की सिग्नेचर डिश तो नहीं जिस के लिए कस्टमर से ज्यादा चार्ज लिया जाएगा.

खाद्य या पेय सामग्री को बनाने में किस तरह के इंग्रीडिएंट्स यूज हुए हैं और उन की क्वालिटी क्या है. कुछ चीजें इम्पोर्टेड भी हो सकती हैं. इस के अलावा पैक्ड चीजों के लिए जीएसटी भी देनी पड़ती है. साथ ही, होटल या रेस्टोरेंट की ओर से खाना परोसने और दूसरी सेवाओं के लिए सर्विस चार्ज लिया जाता है.

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