लोकसभा चुनाव सिर पर हैं. ऐसे में मुनासिब वक्त है कि गुरदासपुर के इन 2 युवाओं की बात पर बड़े पैमाने और संजीदगी से गौर किया जाए. अमरजोत सिंह और अमृतपाल का आरोप है कि सांसद और अभिनेता सनी देओल ने गुरदासपुर के लोगों को धोखे में रखा. बात पिछली अगस्त के पहले सप्ताह की है जब पूरा देश सनी देओल अभिनीत फिल्म ‘गदर 2’ का इंतजार कर रहा था तब उन्हीं के संसदीय क्षेत्र गुरदासपुर से इस फिल्म के बहिष्कार की अपील हो रही थी. इस बाबत वहां पोस्टर भी चस्पां किए गए थे.

यह कोई पहला मौका नहीं था जब गुरदासपुर में सनी देओल का विरोध हुआ हो बल्कि इस के कुछ दिनों पहले ही उन के लापता होने के पोस्टर भी दीवारों पर लगाए गए थे. बात या दर्द या भड़ास कुछ भी कह लें, अकेले इन 2 युवाओं की नहीं बल्कि उन लाखों मतदाताओं की भी है जिन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में बड़ी उम्मीदों से इस भाजपा उम्मीदवार को चुना था कि वे रियल लाइफ में भी हीरो की तरह काम करेंगे और वे वादे पूरे करेंगे जो उन्होंने चुनावप्रचार के दौरान किए थे.

कड़ा और रोमांचक था मुकाबला

उस चुनाव में गुरदासपुर हाई प्रोफाइल सीटो में शुमार थी क्योंकि कांग्रेस ने दोबारा सुनील जाखड़ को टिकट दिया था जो अपने दौर के दिग्गज कांग्रेसी नेता बलराम जाखड़ के बेटे हैं. बलराम जाखड़ की न केवल गुरदासपुर में बल्कि पूरे पंजाब में अपनी एक अलग साख है. वे केंद्रीय मंत्री राज्यपाल और लोकसभा अध्यक्ष जैसे अहम पदों पर भी रहे हैं. आखिरी वक्त तक भाजपा को इस सीट से ऐसा कोई उम्मीदवार नहीं मिला था जो सुनील जाखड़ को टक्कर दे सके. सो, उस ने सनी देओल को जैसेतैसे राजी किया.

लेकिन तब सनी के अभिनेता पिता धर्मेंद्र इस के लिए राजी नहीं थे क्योंकि उन की जाखड़ परिवार से काफी नजदीकियां रही हैं और वे बलराम जाखड़ की बेइंतहा इज्जत भी करते थे.

काफी ऊहापोह और न के बाद धर्मेंद्र ने मंजूरी दी तो सनी ने नामांकन दाखिल किया. तब भी यह चर्चा आम थी कि भले ही सनी देओल एक लोकप्रिय अभिनेता हों लेकिन वे सुनील जाखड़ को टक्कर नहीं दे पाएंगे क्योंकि गुरदासपुर की जनता उन्हें बहुत चाहती है. ऐसा होता दिख भी रहा था क्योंकि सनी देओल को न तो भाषण देना आता था और न ही उन के पास सुनील जाखड़ के सवालों का जवाब था.

बेटे की खस्ता हालत देख धर्मेंद्र को मोरचा संभालना पड़ा था और जनता के बीच उन्होंने यह स्वीकार लिया था कि सनी को भाषण देना नहीं आता और वे यहां बहस करने नहीं बल्कि जनता का दर्द दूर करने आए हैं.

असल में सुनील जाखड़ ने सनी देओल को स्थानीय मुद्दों पर खुली बहस करने की चुनौती दी थी जिस पर सनी लड़खड़ा गए थे. तब धर्मेंद्र को मैदान में आना पड़ा जो मीटिंगों में सुनील जाखड़ को भी अपना बेटा बताते रहते थे. धर्मेंद्र सभाओं में यह भी गिनाते रहते थे कि साल 2004 के आम चुनाव में भाजपा ने उन्हें राजस्थान की चुरू सीट से बलराम जाखड़ के खिलाफ लड़ने की गुजारिश की थी लेकिन उन्होंने उन के लिहाज के चलते मना कर दिया था और बीकानेर सीट से लड़े थे.

गुरदासपुर सीट कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है. साल 2017 के उपचुनाव में सुनील जाखड़ ने भाजपा के उम्मीदवार सवर्ण सिंह सलारिया को 1 लाख 93 हजार 219 वोटों के बड़े अंतर से हराया था. हालांकि इस के पहले भाजपा की तरफ से अभिनेता विनोद खन्ना 4 बार यहां से जीत कर लोकसभा पहुंचे लेकिन बतौर सांसद, जनता उन से भी संतुष्ट नहीं रही थी. वे, बस, अपनी लोकप्रियता के चलते जीत जाते थे. यही इस बार भी हुआ.

वोटिंग का दिन आतेआते ग्लैमर का जादू एक बार फिर जनता के सिर चढ़ कर बोला और बेहद कड़े रोमांचक व नजदीकी मुकाबले में सनी ने सुनील को 82,459 हजार वोटों से शिकस्त दे दी. चुनावप्रचार में उन की फिल्मों के हाहाकारी और देशभक्ति वाले डायलौग्स ने अपना रंग दिखाया और ढाई किलो का हाथ, हाथ के पंजे पर भारी पड़ा. जीत के बाद सनी देओल ने इस क्षेत्र के कल्याण और विकास के बड़ेबड़े वादे करते. विनोद खन्ना के छोड़े अधूरे कामों को पूरा करने की बात की थी.

लेकिन झांकने भी नहीं आए

एक बार जीत कर गए तो सनी देओल ने फिर गुरदासपुर की तरफ मुड़ कर भी नहीं देखा. इतना ही नहीं, हद तो तब हो गई जब ‘गदर 2’ के प्रमोशन के लिए वे भारतपाकिस्तान की सीमा तक गए लेकिन वहां से महज 30 किलोमीटर अपने संसदीय क्षेत्र गुरदासपुर जाना उन्होंने जरूरी या मुनासिब न समझा. इस से वहां के लोगों को एक बार फिर अपने ठगे जाने का एहसास हुआ लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था क्योंकि चिड़िया खेत चुग कर दिल्ली जा चुकी थी.

दिल्ली में भी वे लोकसभा में कम ही दिखे और लगातार अपनी फिल्मों की शूटिंग में व्यस्त रहे. सनी देओल उन इनेगिने सांसदों में से एक हैं जिन्होंने राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में अपना वोट भी नहीं डाला जबकि भाजपा ने सभी सांसदों को संसद में मौजूद रहने के लिए व्हिप जारी किया था. इन दोनों ही मौकों पर वे विदेश में थे.

जाहिर है, भाजपा का मकसद उन्हें मोहरा बना कर अपनी सीट संख्या बढ़ाना था. अगर ऐसा न होता तो वह उन के कान मरोड़ते कह सकती थी कि एक बार तो अपनी लोकसभा जा कर मुंह दिखा आओ. तुम तो सलमान खान के साथ ‘सफर’ फिल्म की शूटिंग करते रहोगे लेकिन हमें तो 2019 में भी लड़ना है.

राजनीति में नौसिखिए और लापरवाह सनी देओल किस मुंह से गुरदासपुर जाते और अब कभी जाएंगे, ऐसा लगता नहीं. अपनी सांसद निधि से भी उन्होंने क्षेत्र के लिए कुछ खास नहीं किया. साल 2020 में कोविड 19 के वक्त वे गुरदासपुर में चुनाव जीतने के बाद पहली और आखिरी दफा दिखे थे तब उन्होंने 50 लाख रुपए जारी करने की घोषणा कर दी थी जिस का इस्तेमाल एक साल गुजर जाने के बाद न होने पर भी गुरुदासपुर में काफी चर्चा रही थी. साल 2021-22 में उन की सांसद निधि 7 करोड़ रुपए में से एक धेला भी उन्होंने खर्च नहीं किया था, जबकि यह पैसा विकास कार्यों के लिए होता है.

अब तो हाल यह है कि गुरदासपुर की गुस्साई जनता केंद्र सरकार से चिट्ठी लिख कर यह अपील करने लगी है कि कुछ ऐसे कानून भी बनाए जाएं कि अगर कोई सैलिब्रेटी राजनीति में आता है और अपने क्षेत्र की जनता को वक्त नहीं दे पाता है तो उस की सदस्यता को रद्द किया जाए.

अमरजोत सिंह ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को लंबाचौड़ा पत्र लिखते मांग की है कि सांसद सनी देओल जनता की समस्याओं को हल करने में नाकाम रहे हैं. ऐसे गैरजिम्मेदार लोकसभा सदस्य को न तो पद पर बने रहने का हक है और न ही सरकारी वेतन-भत्तों के साथसाथ सरकारी सहूलियतें लेने का हक है. गुरदासपुर के दुखी कई लोगों ने इस आशय की चिट्ठी राष्ट्रपति को भी भेजी है.

इन्हें चुनने से फायदा क्या ?

इन चिट्ठियों का कोई असर होगा, ऐसा लगता तो नहीं लेकिन फिर भी एक उम्मीद गुरदासपुर के लोगों ने जगाई है और आगाह भी किया है कि महज फिल्मी लोकप्रियता की चकाचौंध में आ कर, उसे सांसद चुन कर किस कदर पछताना भी पड़ सकता है. केवल सनी ही नहीं बल्कि फिल्मों सहित खेल और दूसरे क्षेत्रों से आए सैलिब्रेटीज अकसर अच्छे जनप्रतिनिधि साबित नहीं होते. ऐसे लोगों को लोकसभा भेजने से फायदा क्या जिन का राजनीतिक इस्तेमाल करने को चुनावी मैदान में उतारा जाता है.

सनी के मामले में तो दुखद लेकिन दिलचस्प बात यह है कि भाजपा उन का राजनीतिक इस्तेमाल भी जीत के बाद नहीं कर पाई. उन की लोकसभा में हाजिरी न के बराबर रही. एक वैबसाइट के मुताबिक, पिछले बजट सत्र के दौरान 23 बैठकों में से सनी देओल महज 2 में ही मौजूद रहे थे.

उन की संसद में अटेंडैंस केवल 18 फीसदी रही जबकि सांसदों की उपस्थिति का राष्ट्रीय औसत 79 फीसदी है. सनी देओल ने एक बार भी किसी बहस में हिस्सा नहीं लिया और न ही कोई निजी विधेयक पेश किया. अपने अब तक के कार्यकाल में उन्होंने सिर्फ एक बार सवाल पूछा जबकि सांसदों द्वारा सवाल पूछने का राष्ट्रीय औसत 191 फीसदी है.

सनी देओल की सौतेली मां हेमामालिनी भी कम लोकप्रिय नहीं जो भाजपा से मथुरा सीट से सांसद हैं. उन का काम योगी-मोदी मथुरा जाएं तब अपने डांस प्रोग्राम देना भर रहा है, नहीं तो मथुरा भी कम बदहाल नहीं. हां, इतना जरुर है कि हेमामालिनी अपने बेटे की तरह क्षेत्र से लापता नहीं रहतीं. वे कभीकभी वहां के मंदिरों में गीत और नृत्य के कार्यक्रम देती नजर आ जाती हैं. देओल परिवार के मुखिया धर्मेंद्र भी बीकानेर की जनता की नाराजगी का शिकार होते रहते थे जो साल 2004 में भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते थे.

अब फिर सभी दल कुछ सीटों पर फिल्मी सितारों को उतार कर अपना नंबर बढ़ाने की जुगत में हैं. इन में भाजपा की तरफ से कंगना रानौत का नाम ज्यादा सुर्ख़ियों में है जो इन दिनों भाजपा, आरएसएस और नरेंद्र मोदी की तारीफों में कसीदे गढ़ती रहती हैं.

हिमाचल प्रदेश की कंगना के कई बयान भी सुर्ख़ियों और विवादों में रहे हैं. खुद उन के पिता अमरदीप रानौत भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा से मिलने के बाद कह चुके हैं कि कंगना भाजपा से ही चुनाव लड़ेगी लेकिन किस सीट से, यह पार्टी तय करेगी.

लेकिन सनी देओल जैसों का हाल देखते अब जनता को तय करना है कि वे किसी फिल्मस्टार को महज ग्लैमर के चलते लोकसभा भेजना पसंद करेंगे या नहीं. अभी तक के अनुभव तो कतई अच्छे नहीं रहे हैं.

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