राम सबके होते तो इन शंकराचार्यों को प्राणप्रतिष्ठा समारोह का बहिष्कार न करना पड़ता. विवाद क्या है, इसे जानने से पहले हिंदू धर्म की संरचना को मौटेतौर पर समझना होगा कि वह प्रमुख रूप से 2 मतों में बंटा है. उन में से पहला है शैव और दूसरा है वैष्णव संप्रदाय. शैव संप्रदाय को मानने वाले शिव की पूजा, उपासना और आराधना करते हैं जबकि वैष्णव अनुयायी विष्णु और उस के अवतारों को मानते हैं.
हालांकि, धर्मग्रंथों के मुताबिक हिंदू प्रमुख रूप से 4 संप्रदायों में बंटे हुए हैं. तीसरा शाक्त संप्रदाय है जो देवी को परमशक्ति मानता है, चौथा स्मार्त संप्रदाय है जो ईश्वर के विभिन्न रूपों को एकसामान मानता है. इन के अलावा और भी कई संप्रदायों का उल्लेख धर्मग्रंथों में मिलता है, मसलन वैदिक, गणपत्य, कौमारम, नाथ और तांत्रिक सहित चार्वाक संप्रदाय वगैरह जो अप्रासंगिक तो नहीं हुए हैं लेकिन महत्त्व खो रहे हैं.

यह है नया विवाद ?

ऐसा कहा जाता है कि एक वक्त में शैव और वैष्णवों के आपसी झगड़ों के चलते समाज में हिंसा बढ़ गई तो शाक्त संप्रदाय का उदय हुआ जो इन दोनों में सुलह या मध्यस्थता कराता था. यह स्त्री को आदिशक्ति मानता है. इस के ज्यादतर मंदिर और उपासक देश के बाहरी इलाकों में मिलते हैं. पश्चिम बंगाल, असम, कश्मीर और दक्षिणी राज्य इन में प्रमुख हैं.

श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय ने 2 दिनों पहले ही एक बयान दिया था कि राम मंदिर रामानंद संप्रदाय का है, शैव शाक्त और संन्यासियों का नहीं. न कोई मौका था न कोई मौसम था. इस के बाद भी चंपत राय को यह बयान देने का दस्तूर निभाना पड़ा तो इस के अपने अलग माने भी हैं.

असल में शंकराचार्यों की उजागर नाराजगी से हिंदुओं में भ्रम की स्थिति पैदा हो रही थी और धर्म के जानकारों में यह मैसेज गया था कि शैव लोग वैष्णव मंदिर में नहीं जाते. इसलिए शंकराचार्य लोग ड्रामा कर रहे हैं. गोवर्धन पीठ जगन्नाथपुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद ने दोटूक कहा था कि, ‘मैं कार्यक्रम में ताली बजाने नहीं जाऊंगा क्योंकि प्राण प्रतिष्ठा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आगे कर संत समाज को नजरंदाज किया जा रहा है. मेरी एक मर्यादा है वहां जा कर मैं अपनी प्रतिष्ठा को कम नहीं करूंगा.’

चंपत राय के बयान से कई हिंदुओं ने पहली बार रामानंद संप्रदाय के बारे में जाना कि यह वैष्णवों का है और इस का एक नाम वैरागी संप्रदाय भी है. इस का एक और नाम श्री संप्रदाय भी प्रचलित है. लेकिन यहां श्री से मतलब लक्ष्मी न हो कर सीता होता है. इस के जनक रामानंद स्त्रियों और शूद्रों को भी शिष्य बना लिया करते थे.

मशहूर सूफी कवि कबीर से उन का लिंक मिलता है. कुछ ब्राह्मणवादी लोग तो कबीर को उन का शिष्य बताते हैं, लेकिन यह संदिग्ध है. वैरागी संप्रदाय के लोग मुख्यतया उत्तर प्रदेश, गुजरात और राजस्थान में प्रमुखता से मिलते हैं. ये लोग खुद को योद्धा ब्राह्मण और राम के बेटों लव-कुश का वंशज मानते हैं.

क्यों आक्रामक हो रहे शंकराचार्य ?

चंपत राय ने एक दीर्घकालिक योजना के तहत एक तरह से स्पष्ट कर दिया कि राम मंदिर वैष्णवों का है, शैवों का नहीं. तो एक और शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद विफर कर बोले, ‘अगर राम मंदिर रामानंद संप्रदाय का है तो उसे उन्हें सौंप देना चाहिए. संत समाज को इस पर कोई आपत्ति नहीं.’

उन्होंने सनातनी ज्ञान जताते यह भी कहा कि चारों पीठों के शंकराचार्यों को कोई रागद्वेष नहीं है लेकिन उन का मानना है कि शास्त्र सम्मत विधि का पालन किए बिना मूर्ति स्थापित किया जाना सनातनी जनता के लिए उचित नहीं है. उन्होंने रामानंद संप्रदाय को मंदिर व्यवस्था की जिम्मेदारी सौंपने के साथसाथ निर्मोही अखाड़े को पूजा का अधिकार देने की बात भी कही.

इस के पहले निश्चलानंद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राम लला की मूर्ति छूने को भी एक खास अंदाज में बयान किया था जिस का आम लोगों ने मतलब यही निकाला था कि चूंकि वर्ण व्यवस्था के मुताबिक नरेंद्र मोदी शूद्र हैं, इसलिए उन्हें राम की मूर्ति छूने का अधिकार नहीं. एक न्यूज चैनल को दिए गए इंटरव्यू में इन शंकराचार्य ने विधानों की बात करते यह भी कहा था कि आंबेडकर की मूर्ति लगाने और रामलला की मूर्ति लगाने के विधान में तो अंतर है ही. यदि इन का पालन नहीं होगा तो भगवान का वास होने के बजाय भूतप्रेतों का वास हो जाएगा.

वर्चस्व और दक्षिणा की है लड़ाई

इन बयानों से हिंदू धर्म की वास्तविकता एक बार फिर उधड कर बाहर आ गई कि इस पर दबदबा तो पंडेपुजारियों और पेशवाओं का ही है. बाकी लोग तो हल्ला मचाने, भीड़ बढ़ाने और शोबाजी के अलावा दानदक्षिणा देने के लिए हैं. अब चंपत राय के बयान के बाद तो और स्पष्ट हो गया है कि राम मंदिर शैव अनुयायियों के लिए नहीं, वैष्णवों के लिए है.

और ये वैष्णव और कोई नहीं बल्कि ऊंची जाति वाले हिंदू हैं जो 22 जनवरी को ले कर ज्यादा उत्साहित हैं और धूमधड़ाका कर रहे हैं. इन के पूजाघरों में हालांकि राम, कृष्ण, शंकर, हनुमान, काली, दुर्गा, गणेश सहित साईं बाबा से ले कर लोकल देवीदेवता सब पूजे जाते हैं लेकिन मन से ये वैष्णव हैं जो शूद्रों से परहेज ही करते हैं क्योंकि उन के देवीदेवता अलग हैं.

झुग्गी, गरीब और दलित बस्तियों में राम और कृष्ण के नहीं बल्कि शिव, हनुमान और देवी के मंदिर ज्यादा होते हैं. और यही चंपत राय कह रहे हैं, जो एक तीर से दो निशाने साधने जैसी बात है. अब भाजपा गलीगली जा कर कहेगी कि राम तो सबके हैं और उन का मंदिर भी उस रामानंदी संप्रदाय का है जिस के गुरु रामानंद जी महाराज जो दलितों को भी गले लगाते थे और औरतें भी उन की शिष्य होती थीं.

दूसरी लड़ाई पैसों की है. हर कोई देख रहा है कि राम मंदिर अब अरबोंखरबों का हो गया है और जिस के हिस्से में यह जाएगा उस की 7 पीढ़ियां तर जाएंगी. अयोध्या अब भाजपा का अघोषित कार्यालय हो गया है और अभी लोकसभा चुनाव तक रहेगा. इस के बाद उस का हाल भी सोमनाथ मंदिर जैसा होना तय दिख रहा है.

हैरानी नहीं होनी चाहिए अगर आने वाले दिनों में राम मंदिर को ले कर शैव और वैष्णव अदालत का रुख करें. रही बात नरेंद्र मोदी की, तो उन्हें भी धर्म का शिकार होना पड़ा है कि वे मूर्ति स्पर्श नहीं कर सकते. यही अपमान कभी पुरी के जगन्नाथ मंदिर में प्रधानमंत्री रहते इंदिरा गांधी को भी सहना पड़ा था लेकिन उन का स्वाभिमान भी सत्ता के आगे बौना पड़ गया था.

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