2002 में हुए गुजरात दंगों के दौरान दंगाइयों ने 21 वर्षीया मुसलिम महिला बिलकिस बानो से गैंगरेप किया था. बिलकिस उस वक्त 5 माह की गर्भवती थी. दंगाई यहीं नहीं रुके, बल्कि बिलकिस की आंखों के सामने उस के घर के 7 सदस्यों को कत्ल कर डाला. दंगाइयों ने उस की 3 साल की मासूम बेटी को भी नहीं छोड़ा और मां की आंख के सामने उसे तलवार से काट डाला.

बिलकिस अपराधियों को सजा दिलाने के लिए बीते 22 सालों से अदालती लड़ाई लड़ रही है. उस को इंसाफ के लिए इतना लंबा सफर तय न करना पड़ता अगर दंगाइयों को गुजरात सरकार की शह न होती. सरकार ने समयसमय पर अपराधियों की ऐसी मदद की और सुप्रीम कोर्ट तक को ऐसा गुमराह किया कि जिस के खुलासे के बाद सुप्रीम कोर्ट भी भौचक्का है.

बिलकिस मामले में तब सीबीआई कोर्ट ने 11 लोगों को दोषी ठहराया था और उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. मगर गुजरात सरकार ने एक राहत कमेटी गठित कर उस की सिफारिश पर 2022 में 11 दोषियों की रिहाई करवा दी. सरकार के फैसले को जब बिलकिस बानो ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी तो कोर्ट ने गुजरात सरकार को आड़े हाथों लिया. कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि जब बिलकिस बानो के दोषियों को उन के जघन्य कृत्य के लिए सजा ए मौत से कम यानी आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी तो 14 साल की सजा काट कर वे कैसे रिहा हो गए?

बिलकिस बानो के दोषियों को जिस अप्रचलित कानून की मदद से रिहा कर दिया गया था उस से विपक्ष, सामाजिक कार्यकर्ताओं और नागरिक समाज में निंदा और आक्रोश की लहर थी. उधर बिलकिस बानो को उस के अपराधियों की रिहाई के बारे में सरकार ने कोई जानकारी नहीं दी. जब बिलकिस को इस का पता अखबारों के माध्यम से चला तब उस ने वृंदा करात के जरिए उन की रिहाई के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.

दरअसल, बिलकिस के दोषियों को जेल से निकलवा कर सरकार अपनी दंगा आर्मी को संदेश देना चाहती थी कि ‘हम बैठे हैं न बचाने के लिए.’ मगर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की इस घिनौनी मंशा को ताड़ लिया. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सवालों की झड़ी लगा दी. कोर्ट ने पूछा-

– कोर्ट ने गुजरात सरकार से दोषियों को ‘चुनिंदा’ छूट नीति का लाभ देने पर सवाल उठाया और कहा कि सुधार और समाज के साथ फिर से जुड़ने का अवसर हर कैदी को दिया जाना चाहिए. जब तमाम जेलें कैदियों से भरी पड़ी हैं, तो सुधार का मौका सिर्फ इन कैदियों को ही क्यों मिला?

– 14 साल की सजा के बाद रिहाई की राहत सिर्फ बिलकिस बानो के दोषियों को ही क्यों दी गई, बाकी कैदियों को क्यों नहीं इस का फायदा दिया गया?

– सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी वी नागरत्ना ने पूछा, इस मामले में दोषियों के बीच भेदभाव क्यों किया गया? यानी पौलिसी का लाभ अलगअलग क्यों दिया गया?

– सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से यह भी पूछा कि बिलकिस के दोषियों के लिए जेल एडवाइजरी कमेटी किस आधार पर बनी और जब गोधरा की अदालत ने ट्रायल ही नहीं किया तो उस से राय क्यों मांगी गई?

दरअसल, पिछले कुछ महीनों से चीफ जस्टिस औफ इंडिया डी वाई चंद्रचूड़ ने जिस दिलेरी से कानून के दायरे में सरकार की गलत नीतियों और आशाओं की धज्जियां उड़ाई हैं और उस को नसीहतें बांची हैं, उस से जजों की हिम्मत भी खुली. कोर्ट ने मामले में सरकार से जवाब मांगा और सुनवाई जारी रखी. अब 8 जनवरी, 2024 को जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुईयां की बैंच ने गुजरात सरकार के फैसले को पलटते हुए रिहा किए गए अपराधियों को फिर से जेल भेजने का फैसला सुनाया है.

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुईयां की बैंच ने इस मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए दोषियों की सजामाफी का गुजरात सरकार का आदेश रद्द कर दिया है और दोषियों को वापस जेल भेजने के लिए 2 हफ्ते में सरैंडर करने के लिए कहा है. इस के साथ ही कोर्ट ने कहा कि गुजरात सरकार फैसला लेने के लिए उचित सरकार नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने अपना 2022 का फैसला भी रद्द कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मई 2022 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर गुजरात सरकार को पुनर्विचार याचिका दाखिल करनी चाहिए थी. जो उस ने नहीं की. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 13 मई, 2022 का फैसला (जिस ने गुजरात सरकार को दोषी को माफ करने पर विचार करने का निर्देश दिया था) अदालत के साथ धोखाधड़ी कर के और भौतिक तथ्यों को छिपा कर प्राप्त किया गया था.

कोर्ट ने कहा– ‘गुजरात सरकार ने 13 मई, 2022 के फैसले को आगे बढ़ाते हुए महाराष्ट्र सरकार की शक्तियां छीन लीं, जो हमारी राय में अमान्य है. गुजरात सरकार ने दोषियों से मिल कर काम किया. गुजरात राज्य द्वारा शक्ति का प्रयोग शक्ति को हड़पने और शक्ति के दुरुपयोग का एक उदाहरण है. यह एक क्लासिक मामला है, जहां इस अदालत के आदेश का इस्तेमाल छूट दे कर कानून के शासन का उल्लंघन करने के लिए किया गया.

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