केंद्रीय खेल मंत्रालय ने कहा है कि डब्ल्यूएफआई के नवनिर्वाचित अध्यक्ष संजय सिंह के अंडर-15 और अंडर-18 ट्रायल गोंडा के नंदिनी नगर में आयोजित कराने की घोषणा नियम के खिलाफ है. इस कारण कुश्ती संघ की नवनिर्वाचित कार्यकारिणी को निलंबित कर दिया गया है. इस के साथ ही नए संघ के चुने जाने के बाद इस के लिए गए सभी फैसलों को भी रद्द कर दिया गया है.

डब्ल्यूएफआई को सस्पैंड किया गया है. खेल मंत्रालय के अगले आदेश तक यह जारी रहेगा. सरकार के अगले आदेश में अगर निलंबन खत्म हो जाएगा तो यही कार्यकारिणी प्रभावी हो जाएगी.

सवाल उठ रहा है कि क्या लोकसभा चुनाव तक इस विवाद को हाशिए पर डालने के लिए यह फैसला लिया गया है? कुश्ती संघ की नवनिर्वाचित कार्यकारिणी सरकार के फैसले के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाने जा रही है, जिस में सरकार ने अलोकतांत्रिक फैसला करते हुए लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई कुश्ती संघ की नवनिर्वाचित कार्यकारिणी को निलंबित कर दिया है.

कांग्रेस नेता उदित राज ने इस मसले पर कहा कि खेल मंत्रालय का फैसला आंखों में धूल झोंकने के समान है. यह कैसे हो सकता है कि जिस पर आरोप है उसे गिरफ्तार तक नहीं किया गया है. साक्षी मलिक और बजरंग पुनिया के कारण सरकार पर दबाव बढ़ा है लेकिन उन्हें न्याय अब तक नहीं मिला है.

सरकार ने चुनाव प्रणाली को निलबंन का आधार नहीं बनाया है. केवल नवनिर्वाचित कार्यकारिणी अंडर-15 और अंडर-18 ट्रायल गोंडा में कराने को गलत मानते हुए निलंबन का कदम उठाया है. इस से साफ है कि सरकार ने बड़ी चतुराई दिखाते हुए अपनी इमेज को बचाने के लिए कुश्ती संघ का निलबंन किया है.

सरकार ने विवाद का कारण बने बृजभूषण शरण सिंह, जो भाजपा के सांसद है, से यह कहलवा दिया कि वे कुश्ती संघ की राजनीति से संन्यास ले रहे हैं. इस से खिलाड़ी भी खुश  हो गए हैं.

क्या बोले बृजभूषण शरण सिंह?

कुश्ती संघ के पूर्व प्रमुख और बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने कहा, “अब मेरा कुश्ती से कोई लेनादेना नहीं है. मैं ने 12 साल तक कुश्ती के लिए काम किया. मैं ने अच्छा काम किया या बुरा काम किया, इस का मूल्यांकन समय करेगा. मैं ने एक तरह से कुश्ती से संन्यास ले लिया है. कुश्ती से अपना नाता मैं तोड़ चुका हूं. अब जो भी फैसला लेना है, सरकार से बात करना है या कानूनी प्रक्रिया का सहारा लेना है, इस पर फैसला फैडरेशन के चुने हुए लोग लेंगे. लोकसभा का चुनाव आ रहा है. इस के अलावा भी मेरे पास कई और काम हैं.”

फौरी है खुशी

इस लड़ाई को लड़ने वाली महिला पहलवान साक्षी मलिक ने कहा है कि उन की लड़ाई सरकार से नहीं, बृजभूषण शरण सिंह से है. साक्षी मलिक के विरोध के बाद बजरंग पुनिया ने भी पद्मश्री सम्मान वापस किया. बजरंग पुनिया का कहना है कि, “सरकार का यह फैसला बिलकुल ठीक फैसला है. हमारी बहनबेटियों के साथ जो अत्याचार हुआ, जिन लोगों ने किया उन लोगों को फैडरेशन से हटाना चाहिए.”

कुश्ती खिलाड़ी विनेश फोगाट ने कहा, “यह अच्छी खबर है. इस पद पर कोई महिला आनी चाहिए ताकि यह संदेश जाए कि महिलाएं आगे बढ़ें. जो भी हो, कोई अच्छा आदमी आना चाहिए.”

सवाल उठता है यह तो तब होगा जब कुश्ती संघ बर्खास्त हो और नए चुनाव कराए जाएं. सरकार की तरफ से इस तरह का कोई भरोसा नहीं दिलाया गया है. इस से साफ है कि सरकार को महिलाओं और इन पहलवानों की कोई चिंता नहीं है. विनेश फोगाट ने जो कहा, यह मांग महिला पहलवान पहले से करती आ रही थीं.

क्यों की बृजभूषण ने संन्यास की घोषणा?

कुश्ती संघ की राजनीति से बृजभूषण शरण सिंह के संन्यास की घोषणा के पीछे की साइड स्टोरी है. पिछली 18 जनवरी से बृजभूषण शरण सिंह और महिला पहलवानों के बीच लड़ाई कोर्ट, पुलिस, मीडिया, सरकार और कुश्ती संघ तक हर जगह चल रही है. जब कुश्ती संघ के नए चुनाव हुए उस में बृजभूषण के करीबी संजय सिंह की जीत हुई. उस के बाद बृजभूषण गुट के लोगों ने इसे अपनी जीत मानी. ‘दबदबा कायम है’ का नारा दे कर बृजभूषण के लोगों ने प्रचार किया. इस ने महिला पहलवानों के लिए आग में घी का काम किया.

महिला पहलवान खासकर साक्षी मलिक और विनेश फोगाट करो या मरो की हालत पर उतर आईं. इन का साथ बजरंग पुनिया ने दिया. मोदी सरकार का विरोध कर रहे लोगों ने बृजभूषण को हथियार बना कर मोदी सरकार पर हमला करना तेज कर दिया. ऐसे में पीएमओ सक्रिय हो गया. उसे लगा कि 2024 के लोकसभा चुनाव में यह मुददा गले की फांस बन सकता है, अयोध्या की चमक फीकी हो सकती है क्योंकि अयोध्या और गोंडा अगलबगल हैं. इसी के आसपास के जिलों में बृजभूषण की राजनीति चलती है. बृजभूषण भाजपा के सांसद है और उन के बेटे प्रतीक भूषण विधायक हैं.

पीएमओ ने बचाव के लिए 2 फैसले किए. पहला, बृजभूषण अगर कुश्ती संघ की राजनीति करना चाहते हैं तो सांसद के पद से इस्तीफा दें. दूसरा, सांसद बने रहना है तो कुश्ती संघ से नाता तोड़ें. पीएमओ की पहल पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा से बृजभूषण की बातचीत हुई. उस के बाद बृजभूषण ने कुश्ती संघ की राजनीति से नाता तोड़ने की घोषणा कर दी.

महिला पहलवान यही चाहती थीं. आने वाले दिनों की राजनीति को देखते हुए बृजभूषण के लिए भी यही सब से मुफीद था. अगर वे सांसद पद से इस्तीफा देते तो उन के सामने कोई रास्ता नहीं था. उन को भाजपा छोड़नी पड़ती. अब समाजवादी पार्टी और कांग्रेस भी उन को टिकट नहीं देतीं और निर्दलीय चुनाव लड़ना समझदारी न होती.

जाहिर तौर पर डब्ल्यूएफआई को एक समय के बाद बहाल भी किया जा सकता है. बृजभूषण शरण सिंह भाजपा की मजबूरी हैं. लोकसभा चुनाव में इमेज बनाने के लिए सरकार ने यह कदम उठाया है. उस के खत्म होते ही डब्ल्यूएफआई को बहाल किया जा सकता है. बृजभूषण भले ही कुश्ती की राजनीति से संन्यास ले चुके हों पर उन का प्रभाव लंबे समय तक वहां बना रहेगा. बृजभूषण 3 पीढ़ियों से पहलवानी कर रहे हैं. कुश्ती उन के खून में बस गई है. इस से उन का अलग होना संभव नहीं है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...