बिरले ही मामलों में बेटे की मनमानी के खिलाफ सासससुर और परिवार वाले बहू का साथ देते हैं. वहीं रेमंड्स के संस्थापक विजयपत सिंघानिया कर रहे हैं क्योंकि बेटे गौतम सिंघानिया के मिजाज को वे बेहतर समझते हैं कि दौलत और शोहरत के नशे में चूरमगरूर इस शख्स की डिक्शनरी में रिश्ते नातों और जज्बातों की कोई अहमियत ही नहीं है. रेमंड्स समूह के प्रबंध निदेशक गौतम सिंघानिया ने पहले पिता विजयपत सिंघानिया को घर से निकालते दरदर की ठोकरें खाने मजबूर कर दिया और अब पत्नी नवाज मोदी को प्रताड़ित कर रहा है.
यह विवाद पिछले कुछ दिनों से टीवी सीरियल्स जैसा चल रहा है जिस के हर नए एपिसोड में कोई नई सनसनी या खुलासा होता है. इस में ताजा विजयपत सिंघानिया का यह ऐलान है कि वे बहू नवाज मोदी सिंघानिया के साथ हैं. वे एक सम्मानित कानूनी परिवार से आती हैं उन के पिता सीनियर लायर थे वे. खुद भी वकील हैं हालांकि उन्होंने कभी प्रैक्टिस नहीं की. मैं बेटे बहू के मामले में दखल नहीं दूंगा लेकिन जहां भी बहू नवाज को सलाह की जरूरत होगी दूंगा.
और कुछ खासतौर से देने लायक बेटे ने उन्हें छोड़ा भी नहीं है. साल 2015 में विजयपत ने एक हजार करोड़ रूपए के शेयरों की शक्ल में एक तरह से अपना सब कुछ बेटे को सौंप दिया था जो कि उन की जिंदगी की सब से बड़ी गलती साबित हुई थी. तब खुद विजयपत ने न केवल स्वीकारा था बल्कि यह भी कहा था कि अपना सब कुछ संतान को न दें. रेमंड्स ग्रुप को बुलंदियों पर पहुंचाने वाले विजयपत इन दिनों मुंबई में किराए के मकान में रहते मीडिया वालों को इंटरव्यू देते जिन्दगी के तजुर्बे बताते रहते हैं लेकिन उस के केंद्र में बेटा गौतम और उस की बेईमानियां ही ज्यादा रहती हैं.
अब उन्हें नया बहाना बेटे द्वारा बहू के साथ की जा रही ज्यादतियों का मिल गया है. गौरतलब है कि गौतम ने अपनी पत्नी नवाज से अलगाव और तलाक की घोषणा सोशल मीडिया पर बड़े अभिजात्य तरीके से की थी. तब लोगों को याद आया था कि यह वही गौतम है जिस ने अपने पिता विजयपत और मां आशा देवी को 6000 करोड़ की कीमत वाले आलीशान मकान जेके हाउस से निकलने मजबूर कर दिया था.
दीवाली की पार्टी में गौतम सिंघानिया ने पत्नी नवाज को बेइज्जत कर निकाला तो विवाद खुल कर सामने आ गया. नवाज इस पर खामोश नहीं रहीं और उन्होंने गौतम की 1158 करोड़ की सम्पत्ति में से 75 फीसदी हिस्से की मांग कर डाली. इस पर गौतम की अक्ल थोड़ी ठिकाने आई और उन्होंने रेमंड्स की परिसंपत्तियों का ट्रस्ट बनाने की बात कहते उस की जिम्मेदारी परिवार के ही किसी सदस्य को सौंपने की बात कही.
साफ दिख रहा है कि गौतम की मंशा मामले को लटकाए रखने की है जिस से पत्नी की हिम्मत टूटे लेकिन वह यह भूल रहे हैं कि नवाज कोई मिडिल क्लासी महिला नहीं है जो किसी भी स्तर पर उन का या खानदान की प्रतिष्ठा का लिहाज कर अपनी दावेदारी और हक छोड़ देंगी. अपनी दोनों बेटियों निहारिका और निसा के भविष्य की चिंता भी उन्हें है.
अपनी तरफ से कुछ दबाब बनाने की गरज से और कुछ दिल का दर्द बयां करने की मंशा से नवाज का नया बयांन यह है कि गौतम ने उन्हें तिरुपति मन्दिर की सीढ़ियां चढ़ने मजबूर किया था वह भी भूखे प्यासे रहते इस से उन्हें चक्कर आने लगे थे. झुग्गी झोपड़ियों से ले कर मिडिल क्लास होते हुए कार्पोरेट घरानों में भी ऐसे विवाद और फसाद बेहद आम हैं कि संताने अपने बूढ़े मांबाप को घर से धकिया देती हैं. पतिपत्नी एकदूसरे पर अपनी धार्मिक आस्थाएं और मान्यताएं थोपते हैं और दीगर खटपटो के चलते एकदूसरे को छोड़ने और तलाक से भी परहेज नहीं करते. एक औरत के लिए इस से ज्यादा तकलीफदेह और कुछ हो भी नहीं सकता कि 32 साल का साथ इतने अपमानजनक ढंग से टूट और छूट जाए.
पटरी न बैठे तो पति पत्नी और संतानों का भी पेरैंट्स से अलग हो जाना हर्ज की बात नहीं लेकिन सिंघानिया घराने के मामले में साफ दिख रहा है कि गौतम एक कुंठित, खब्त और सनकी सा आदमी है जिसे बहुत कुछ विरासत में मिल गया था. उस ने नया कुछ खास नहीं किया है खासतौर से पिता के मुकाबले जिन्होंने पाईपाई जोड़ कर अपना आर्थिक साम्राज्य खड़ा किया था और वक्त आने पर उसे बेटे को सौंप दिया लेकिन उन का यह सोचना खुशफहमी साबित हुई कि बुढ़ापा आराम से कटेगा.
बहू का साथ दे कर विजयपत कोई गलती नहीं कर रहे हैं लेकिन अब उन के पास वक्त है कि वे यह भी देख और महसूस पाएं कि एक दफा अरबोंखरबों का कारोबार चलाना आसान है लेकिन सफलतापूर्वक घर गृहस्थी चला पाना उस से बड़ी चुनौती होती है, जिस पर वे पूरी तरह पास नहीं हो पाए हैं. उन का अतीत सबक बन कर उन के सामने खड़ा है कि कैसे उन्होंने इसी गौतम के मोह में पड़ते कथित तौर पर अपने ही दूसरे बेटे मधुपति सिंघानिया और उस के बच्चों के साथ ज्यादती की थी. यह मुकदमा भी अदालत में चला था.
रही बात नवाज की तो वह भी आम पत्नियों की तरह पति की ज्यादतियों का शिकार हो रही हैं एक न्यूज चेनल को दिए गए इंटरव्यू में उन्होंने गौतम पर आरोप लगाया था कि वह उन के और बेटियों के साथ लात घूंसों तक से मारपीट करता है. कार्पोरेट घरानों में यह बेहद आम बात भी है जहां महिलाएं नुमाइश की चीज ज्यादा होती हैं और उन का शारीरिक आर्थिक और भावनात्मक शोषण भी आम बात होती है. श्याम बेनेगल निर्देशित 1981 में प्रदर्शित फिल्म कलयुग में इस को प्रभावी ढंग से दिखाया गया है कि महलनुमा घरों में भी औरत की हैसियत दोयम दर्जे और सछूत शूद्र जैसी ही होती है.