‘हिंदी की अनिवार्यता’ के मुखर विरोधी रहे तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने 27 नवंबर को चेन्नई के प्रेसीडेंसी कालेज में पूर्व प्रधानमंत्री राजा मांडा विश्वनाथ प्रताप सिंह की प्रतिमा का अनावरण किया. इस समारोह में खास मेहमान थे समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव, जिन के पिता मुलायम सिंह यादव और विश्वनाथ प्रताप सिंह के बीच सियासी मतभेद किसी से छिपे नहीं हैं, मगर वे स्टालिन के पिता करुणानिधि के खासे करीब थे.

मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू कराने वाले विश्वनाथ प्रताप सिंह को ‘सामजिक न्याय का मसीहा’ कहा जाता था. मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू कर उन्होंने देश की सियासत में हलचल मचा दी थी. इस के बाद ही मंडल और कमंडल के बीच लड़ाई तेज हुई और राम मंदिर का मुद्दा गरमाना शुरू हुआ था. आज कमंडल सत्ता में है और मंडल वाले देश में अपनी जनगणना कराने के लिए बेचैन हैं.

लोकसभा चुनाव सामने है. ऐसे में ये मोहमोह के धागे स्टालिन और अखिलेश की उंगलियों से क्यों उलझे, इस के मायने समझना कठिन नहीं है. विश्वनाथ प्रताप सिंह को उन की मौत के 15 साल बाद अचानक याद किया जाना और उन के धुर राजनितिक विरोधी नेता के पुत्र अखिलेश के द्वारा उन का महिमामंडन करना दर्शाता है कि सत्ता का लालच कुछ भी करवा सकता है.

कांग्रेस की राह आसान

अब वी पी सिंह की प्रतिमा संग फोटो खिंचवाने से अखिलेश को लोकसभा चुनाव में कितना फायदा होगा ये कहना तो मुश्किल है, लेकिन मंडल और कमंडल की खींचतान का फायदा कांग्रेस को अवश्य मिलेगा. भाजपा के सामने कांग्रेस जहांजहां भी खड़ी हुई है लोगों का साथ उस को मिला है. ऐसे में स्टालिन और अखिलेश ने वी पी के मंडल की सोच को उभार कर कांग्रेस की राह आसान कर दी है क्योंकि मंडल का मुद्दा गरम होते ही यादवों को छोड़ अन्य सभी जातियां कांग्रेस की तरफ ही भागेंगी.

मंडल बनाम कमंडल की लड़ाई का सेकंड पार्ट अगले लोकसभा चुनाव में व्यापक रूप से दिखाई देगा. गौरतलब है कि विश्वनाथ प्रताप सिंह ने 1990 में मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू कर पिछड़े वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण का रास्ता खोला था. इस का फायदा उत्तर प्रदेश की यादव जाति ने खूब उठाया था. इस के बाद ही जातीय आधारित क्षेत्रीय पार्टियों का भी उदय हुआ.

बिहार में जातीय जनगणना

आज विपक्ष जातीय जनगणना का जो मुद्दा उठा रहा है. उस का आधार कहीं न कहीं वीपी सिंह के उस फैसले से ही जुड़ा हुआ है. कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दल सरकार से जातिवार जनसंख्या गणना की मांग कर रहे हैं. इन दलों का कहना है कि जाति के आधार पर लोगों को हिस्सेदारी दी जानी चाहिए.

बिहार ने हाल ही में जातीय गणना कराई है. भाजपा के खिलाफ पूरा विपक्ष जातीय जनगणना को 2024 का चुनावी मुद्दा बनाने के लिए कमर कस चुका है. वी पी सिंह की प्रतिमा के अनावरण के जरिए अखिलेश यादव भी इस मुद्दे को कैप्चर करने की कोशिश में हैं. वह जातीय जनगणना को ले कर इन दिनों काफी मुखर हैं.

आरक्षण का मुद्दा

आरक्षण के मुद्दे को सामाजिक न्याय के तौर पर प्रभावी ढंग से चलाने की रणनीति पर आगे बढ़ रहे हैं. उधर दलितों और मुसलमानों को साधने की नाकाम कोशिश में जुटी भाजपा सोशल इंजीनियरिंग के साथसाथ राम मंदिर के लोकार्पण के जरिए लोकसभा चुनाव से पहले आस्था का बम फोड़ने की तैयारी में है.

मंदिरों के निर्माण, पूजापाठ और धार्मिक यात्राओं का फायदा सवर्ण जातियों, खासकर ब्राह्मणों को ही होना है, यह बात अन्य सभी जातियां समझती हैं. ऐसे में मंडल बनाम कमंडल पार्ट – 2 फिल्म जिस का निर्माण स्टालिन के सहनिर्देशन में अखिलेश यादव ने शुरू कर दिया, कितनी हिट होगी और किस को इस का बड़ा फायदा मिलेगा, ये चुनाव नतीजे आने पर पता चलेगा.

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