क्या आप को मालूम है आज कार्तिक पूर्णिमा है. आज के दिन का विशेष महत्व है. एक समय की बात है कि आज के दिन सृष्टि के पालक भगवान विष्णु सभी जीवों को कुछ न कुछ भेंट दे रहे थे लेकिन एक चीज चुपचाप उन्होंने अपने पैरों के नीचे दबा कर रख ली. लक्ष्मीजी ने यह देख लिया और विष्णुजी से इस रहस्य को जानने की जिद की तो विष्णुजी ने बताया कि ‘हे देवी, मैं ने अपने पैरों के नीचे सुखशांति को दबा लिया है जो किसी दुर्लभ मनुष्य को ही मिलेगी.’

सुखसुविधाएं तो हर किसी के पास हो सकती हैं लेकिन ये उसी को मिलेगी जो मेरी प्राप्ति के लिए तत्पर होगा. कहते हैं कि उसी दिन से लक्ष्मीजी ने श्री हरि के चरणों की सेवा शुरू कर दी क्योंकि व्यक्ति सारी सुख, सम्पत्ति से सुसज्जित हो किन्तु शांति ही न हो तो उस की सारी सुख सम्पत्ति व्यर्थ हो जाती है.

एक हम हैं जो सुखसम्पत्ति एवं धन को ही लक्ष्मीजी की कृपा समझते हैं परन्तु वास्तविकता यह है कि लक्ष्मीजी की कृपा उसी पर है जो अपना धन सम्पत्ति वैभव को श्रीहरि चरणों की सेवा में लगाए अथवा उस के पूर्व जन्मों की वजह से जो कुछ मिला है वह पुण्य क्षीण होते ही सम्पत्ति का अभाव हो जाएगा.

पूजापाठ और दानदक्षिणा के माने

सोशल मीडिया पर प्रवाहित हो रही आज की इस कहानी का सार यह है कि अगर आप ने रोज की तरह आज भी पूजापाठ नहीं किया, मंदिर जा कर जेब ढीली नहीं की तो आप के गरीब होने के पूरे पूरे चांस हैं. अब अगर गरीब होने से बचने अपनी कमाई या इकट्ठा किए गए पैसे का कुछ फीसदी चढ़ाना भी पड़े तो सौदा घाटे का नहीं. ठीक वैसे ही जैसे रामगढ़ वाले मुट्ठीभर अनाज गब्बर सिंह के गिरोह को दे दिया करते थे एवज में वे गब्बर के ताप से बचे रहते थे.

अव्वल तो सालभर ही ऐसे डरावने लुभावने किस्से कहानियां किसी न किसी जरिये आम लोगों तक पहुंचा कर पंडेपुजारी वसूली कर ही लेते हैं लेकिन हिंदी महीनों में श्रावण के बाद कार्तिक का महीना विशेष उपजाऊ होता है. आज कार्तिक पूर्णिमा का पूजापाठ दान हो रहा है तो कल मंदिरों में विष्णु तुलसी विवाह सम्पन्न हुआ था. 2 दिन बाद गणेश चतुर्थी आ जाएगी.

देशभर के मंदिरों की तरह भोपाल के मंदिरों में भी खासी भीड़ थी. जो भगवान भक्तों की शादियां कराता है उस की शादी के गवाह बनने लोग भक्त वेताब थे. लिहाजा मंदिरों में समारोहपूर्वक सम्पन्न हुए आयोजनों में उन्होंने पैसा भी चढ़ाया और छुट्टी के दिन के बेशकीमती 8 घंटे भी जाया किए. एवज में मिली चंदे के तेल आटे और दीगर सामानों से बनी सब्जी पूरी जिसे आजकल भंडारा कम प्रसादी ज्यादा कहा जाता है.

भंग होती सुख शांति

हर दूसरे चौथे दिन होने वाले इन धार्मिक आयोजनों की कलश यात्राओं का भार महिलाओं के नाजुक कंधों पर होता है जो भेड़बकरियों की तरह पैदल गातेबजाते जूनून में चलती रहती हैं. इन के घर के पुरुषों को भी इस पर कोई खास एतराज नहीं होता क्योंकि वे खुद विकट के अंधविश्वासी और धर्म भीरु होते हैं.

कुछेक तार्किक, व्यवहारिक और समझदार लोग ही हैं जो इस हकीकत को समझते हैं लेकिन पत्नियों सहित मां और बहनों की जिद के आगे उन्हें झल्लाते हुए नतमस्तक हो जाना पड़ता है क्योंकि ये बेवजह की कलह नहीं चाहते वक्त और पैसे के साथ मूड भी खराब करने से कुछ हासिल होने वाला नहीं.

इन अज्ञानियों को ऐसे ही मौकों पर एहसास होता है कि सचमुच में सुखशांति तो विष्णु ने चालाकी दिखाते अपने पैरों के नीचे दबा ली थी, जो आज तक वहीं दबी हुई है अब यदि कलह दुख और टेंशन से बचना है तो खामोशी से अपनी लक्ष्मी का कहा मान लो नहीं तो वह चंडी बन कर जीना मुहाल कर देगी.

विष्णुजी चाहते तो सुखशांति सभी को दे सकते थे लेकिन उस से धर्म का धंधा और पंडों का रोजगार नहीं चलता इसलिए उन्होंने और उन के दलालों ने अपने सुखशांति और मुफ्त की मलाई का इंतजाम कर लिया जो मूलत डर पर टिका है.

यथा राजा तथा प्रजा

धर्म का धंधा बारहमासी है लेकिन इन दिनों 24*7 फलफूल रहा है. इस को हवा सरकारें राजनैतिक दल और नेता भी जमकर दे रहे हैं. इस से होता यह है कि आबादी का बड़ा हिस्सा सवाल नहीं करता कि महंगाई और बेरोजगारी क्यों है, भ्रष्टाचार क्यों बढ़ रहा है, सरकार जनता की जायदाद क्यों चंद पूंजीपतियों के हाथों में सौंप रही है वगैरह वगैरह.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसीलिए मथुरा जा कर कहते हैं कि यहां वही आता है जिसे कृष्ण बुलाते हैं. वे काशी, तिरुपति, उज्जैन और शिर्डी भी जाते हैं और प्रवचन से करने लगते हैं जिस से जनता सुख शांति महसूसती रहे, अपनी बुनियादी जरूरतों और अधिकारों के लिए आक्रामक होना तो दूर की बात है सजग और सतर्क भी न हो पाए. लोग पैसा और वक्त रोजरोज के धार्मिक इवेंट्स में बर्बाद करते रहें यही सरकार की इकलौती कामयाबी है.

काशी में देव दीवाली धूमधाम से मनाई जा रही है. 22 जनवरी को अयोध्या में एतिहासिक खर्चीला समारोह होगा जिस की तैयारियां जोरशोर से चल रही हैं. इस बीच ढेरों पूर्णिमाएं अमावस्याएं, चतुर्थियां, पंचमियां और अष्टमी नौवमियां आएंगी जब लोगों को बताया जाएगा कि वे दुखी और परेशान क्यों हैं और इन से बचने का रास्ता कहां है.

लोग यह अफीम चाट कर सुस्त पड़ जाएंगे और जब फिर से चैतन्य होंगे तब तक अगली खुराक तैयार कर ली जाएगी.

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