Best Hindi Story : “क्या सोनम, आजकल तुम बहुत देर करने लगी हो सोने में?” नवीन ने चिढ़ते हुए कहा.

सोनम बोली, “मैं फिल्म देख रही थी, लाइव शूटिंग, बगीचे में हीरोहीरोइन बैठे रोमांस कर रहे हैं… उम्र हमारी है. मजे ये ले रहे हैं, हा… हा… हा…”

“क…क…क…क्या मतलब है तुम्हारा? किस की बात कर रही हो?” नवीन किसी पड़ोसी को समझ कर हंसते हुए बोला.

“और कौन…? तुम्हारे मम्मीपापा आजकल सींग कटा कर बछड़ों में शामिल हो रहे हैं,” सोनम ने हंसी उड़ाते हुए कहा.

“आओ… चुपचाप चलो मेरे साथ गैलरी में, दबे पांव देखना. हद कर दी है, उम्र पचपन की दिल बचपन का,” सोनम बोली.

“अरे यार, उन को छोड़ो,
अपनी बात करो. वे दोनों तो सठिया गए हैं बुढ़ापे में, लैलामजनू बन रहे हैं,” नवीन ने उखड़े स्वर में कहा.

फिर औफिस बैग से एक बौक्स निकाल कर पूछा, “इस नेकलेस की डिजाइन कैसी लग रही है?”

“लवली,” सोनम अदा से बोली.

नवीन ने उस के गले में पहना कर हीरो राजकुमार के अंदाज में कहा, “आप के पैर बहुत खूबसूरत हैं, इन्हें जमीन पर मत रखिएगा,” और धीरे से उस के गालों पर एक जोरदार किस दे दिया.

तब तक अशोकजी ने नवीन को फोन लगाया.

“हुंह बजने दो,” सोनम मुंह बिचका कर बोली, “स्विच औफ कर दो.”

“अब इन लोगों के पैर बिना गाड़ी नहीं चलते, जब से घर में रहने लगे हैं, न किटी हो पाती है इधर और न ही कोई आता है. कहीं आओजाओ तो भी देर लगने का हिसाब दो…” सोनम उस के और करीब बैठ गई और दीवार पर लगी शादी की तसवीर को ध्यान से देखने लगी.

सोनम बोली, “नवीन, कौन कहेगा हमारे 2 बच्चे हैं. अब भी तुम पहले जैसे ही रोमांटिक हो…”

नवीन मुसकराते हुए बोला, “क्यों न हो, जिस की पत्नी इतनी सुंदर हो,” और नवीन ने एक बार फिर उसे अपनी बांहों के घेरे में ले लिया.

सोनम प्यार से देखते हुए बोली, “नवीन, यह नेकलेस काफी महंगा लग रहा है…?”

नवीन हंसते हुए बोला, “होने दो. तुम ने ये डिजाइन पसंद की थी, तो लाता कैसे न…”

“लेकिन, पापाजी ने कल घर के खर्च में सहयोग करने को कहा था, तो तुम ने तनख्वाह न मिलने का बहाना किया था… पर, अब क्या कहोगे, अगर इस हार के बारे में पूछा तो?” उस ने उलझन में पड़ते हुए कहा.

“तो… अब पापा रिटायर हैं. इतनी पैंशन है, कहां खर्च करेंगे इतनी रकम…?”

“यार, हम लोगों पर ही खर्च होगी. जैसे पहले चल रहा था, सब वैसे ही चलने दो…”

“क्या चलने दूं, जब से पापा रिटायर हुए हैं, तब से मम्मी ने घर के काम मे इंट्रैस्ट लेना कम कर दिया है…

“पहले मैं कितना घूम लेती थी, लेकिन अब तो रोज उन को साथ ले कर कहीं न कहीं घूमने चले जाते हैं, वरना दिनभर बगीचे में झूले पर बैठे रहेंगे.”

“चलो, मूड मत खराब करो. सो जाओ,” और जब अगले दिन उन की आंख खुली, तो कमरे के दरवाजे पर कोई तेज दस्तक दे रहा था…

“सुबह के साढ़े 8 बजे हैं… अब तक तो पीहू के स्कूल का टाइम हो जाता है…” सोनम ने बौखलाहट से कहा.

“अरे यार, मम्मीपापा को सुख लेने दो दादादादी बनने का,” नवीन चिढ़ कर बोला.

मगर, जब दस्तक बढ़ती गई, तो नवीन को दरवाजा खोलना ही पड़ा, सामने उस की बेटी पीहू खड़ी थी…

उस ने चौंक कर पूछा. “अरे, पापा की जान आज स्कूल नहीं गई…”

“नो पापा, आज दादी के पैर में चोट लग गई है,” दादू उन को दवा लगा रहे हैं, गार्डन में… उन्हें गाड़ी की चाभी चाहिए…”

नवीन हड़बड़ाहट में चाभी देने बाहर निकला, तो उस ने देखा कि उस के पिता अशोकजी बगीचे में लगे हुए झूले में बैठे हैं और अपनी पत्नी प्रभा के पैरों में दवा लगा रहे हैं…

वे बड़ी अदा से कह रहे थे, “आप के पांव देखे, बहुत खूबसूरत हैं जमीन पर मत रखिएगा. और वे शरमाई जा रही थीं…

उन दोनों को एकसाथ बैठे देख कर नवीन थोड़ा कुढ़ते हुए बोला, “पापा, आज पीहू स्कूल क्यों नहीं गई?”

अशोकजी ने उत्तर दिया, “क्योंकि वह तुम्हारी और बहू की जिम्मेदारी है, रातभर हम दोनों को कुशल (नवीन के बेटे) ने सोने नहीं दिया… कल गाड़ी की चाभी भी नहीं दी. फोन किया तो उठाया नहीं…

“बरखुरदार, अब तुम दोनों सिर्फ पतिपत्नी ही नहीं, मांबाप भी हो…”

नवीन उलटे पैर पटकते हुए अपने कमरे में गया और बोला, “सोनम, तुम सच कह रही थी… पापामम्मी हद किए रहते हैं आजकल… चाय लाओ…”

सोनम रसोईघर में गई तो देखा, वहां कुछ भी नहीं बना हुआ था. उस का मूड और खराब हो गया. वह अपने कमरे में लौट गई…

तभी सोनम की मां का फोन आ गया. वह बिफर कर बोली, “क्या बताऊं मम्मी, आजकल तो बासी कढ़ी में भी उबाल आया हुआ है. जब से पापाजी रिटायर हुए हैं, दोनों लोग फिल्मी हीरोहीरोइन की तरह दिनभर अपने बगीचे में ही झूले पर विराजमान रहते हैं… न अपने बालों की सफेदी का लिहाज है, न बहूबेटे का. इस उम्र में दोनों मेरी और नवीन की बराबरी कर रहे हैं…”

तब तक हाथों में चाय की केतली लिए हुए चाय पीने के लिए सोनम को पूछने आई प्रभाजी उस के कमरे की तरफ बढ़ीं, पर उदास मन से रसोई में दाखिल हुईं. उन्होंने सुन सब लिया था, पर नजरअंदाज करते हुए खामोशी से 2 कप में चाय ले गईं और सोनम को भी उसी के कमरे में दे दी.

उन्हें अशोकजी के लिए चाय ले जाते देख उन की बहू सोनम के चेहरे पर फिर से व्यंग्यात्मक मुसकान तैर गई. पर, वह नजरअंदाज कर सिर झुकाए निकल गईं. पति के रिटायर होने के बाद कुछ दिन से उन की यही दिनचर्या हो गई थी…

अशोकजी की इच्छानुसार अच्छे से तैयार हो कर अपने घर के सब से खूबसूरत हिस्से अपने पेड़पौधों के साथ बैठना, क्योंकि सारी उम्र तो उन की बच्चों के लिए जीने में निकल गई थी. उन का कहना था कि बच्चों को उन की जिम्मेदारी उठाने दो, बस वाजिब सहयोग करिए…

पांडेय विला… दोमंजिला कोठीनुमा घर अशोक और प्रभा का जीवनभर का सपना था, बड़ा खूबसूरत लगता देखने में, उस पर वातावरण भी बेहद सुरम्य…

20 बाई 20 गज की कच्ची जगह भी थी उस घर में बाहर, जहां था प्रभा के सपनों का बगीचा… बेला के पौधे, हरसिंगार का घनेरा पेड़, अंगारों सा दहकता गुड़हल का पेड़ और छोटा सा टैंक, जिस में कमल के फूल खिले रहते…

जाड़े में तो रंगबिरंगे फूल डहेलिया, गुलाब, पैंजी और तमाम किचन गार्डन की सब्जियां चार चांद लगा देतीं देखने वाले की आंखों में और रसोईघर में भी. ताजा धनिया, पोदीना, मेथी की बहार रहती…

हर मौसम में घर खुशबू और सकारात्मक ऊर्जा से सराबोर रहता. उस पर वहां पड़ा झूला. जो भी वहां बैठ जाता तो उठने की इच्छा ही न होती उस की…

जाड़ों में वहीं तसले में आग जलती और भुने आलू, शकरकंद के मजे लिए जाते तो बरसात में सुलगते कोयलों पर सिंकते भुट्टे स्वर्ग के आनंद की अनुभूति करवाते…

अशोकजी ने वह जगह छुड़वाई तो प्रभा और अपने लिए कमरे के लिए थी, लेकिन संयोग ऐसा बना कि जिम्मेदारी ने उन्हें उस जगह का इस्तेमाल ही न करने दिया…

ऐसे में प्रभा ने अपने खाली समय और उस खाली जगह का इस्तेमाल इस बुद्धिमत्ता से किया कि वह कोना घर की जान बन गया…

उन का पूरा खाली समय वहीं बीत जाता. अब उन्हें उस जगह उन का कमरा न बन पाने का मलाल भी न था… पर प्रभा का अरमान था कि घर में झूला हो तो अशोकजी ने उसे वहां जरूर लगवा दिया…

पेड़ों से लगाव कुछ ऐसा हो गया कि फिर दोनों में से किसी की इच्छा उन के स्थान पर कमरा बनवाने की हुई ही नहीं…

पर वह और अशोक कभी एकसाथ उस जगह कम ही बैठ पाते, कभी प्रभा अनमनी होतीं तो अशोक बड़े जिंदादिल शब्दों में कहते, “पार्टनर रिटायरमैंट के बाद दोनों इसी झूले पर साथ बैठेंगे और खाना भी साथ में ही खाएंगे… हर शिकायत दूर कर देंगे. फिलहाल तो हमें बच्चों के लिए जीना है…

बच्चों के कैरियर पर सबकुछ बलिदान हो गया. अब बेटा भी अच्छी नौकरी में था और बेटी भी अपने घर की हो चुकी थी…

रिटायरमेंट के बाद घर में थोड़ी रौनक रहने लगी थी. अशोकजी को भी घर में रहना अच्छा लग रहा था. वे बड़े पद पर थे, तो कभी उन के कदम घर में टिके ही नहीं…

गांव से आ कर शहर में बसेरा बनाना आसान न था, लेकिन किसी तरह 400 गज जमीन कर ली. सहधर्मिणी प्रभा भी सहयोगी महिला थीं, तो मंजिल और आसान हो गई…

अब दोनों पतिपत्नी आराम के इन पलों को संजो लेना चाहते थे… उन के घर में जरूरी सब सुविधाएं भी थीं, फिर भी बहू सोनम को न जाने क्यों वह कोना सब से ज्यादा खटकता था…

अशोकजी जब से घर में रहने लगे थे, प्रभाजी को उन के काम करने पड़ जाते थे…

सोनम को भी अब अपने हिस्से के बहुत सारे वो काम करने पड़ जाते थे, जिन्हें प्रभाजी कर देती थीं, क्योंकि कोई भी बंधन न होने पर भी अशोकजी के घर में रहने से उसे घर का काम बढ़ा महसूस होता, क्योंकि बेटी बनने की आड़ में उस ने अपनी बेटी और बेटे का काम भी सास पर डाल दिया था.

दिनभर उस के साथ लगी रहने वाली प्रभा का अब थोड़ा समय अपने पति को देना उसे अखरने लगा था…

अकसर वह नवीन को उस के मातापिता के लिए ताने देने का कोई मौका न छोड़ती… ऊपर से सुविधाभोगी आदत पड़ गई थी तो उसे अशोकजी का उन की ही कार ले जाना खटका करता…

उस ने उस कोने से छुटकारा पाने के लिए नवीन को बांहों के घेरे में लेते हुए एक रास्ता सुझाते हुए कहा, “क्यों न हम बड़ी कार खरीद लें… नवीन.”

“वह कार तो लव बर्ड्स की ही हो गई है, टैक्सी महंगी पड़ती है…”

“आइडिया तो अच्छा है, पर रखेंगे कहां. एक कार रखने की ही तो जगह है घर में,” नवीन थोड़ा चिंतित स्वर में बोला.

“जगह तो है न, वह गार्डन तुम्हारा.. जहां आजकल दोनों लव बर्ड्स बैठते हैं,” सोनम थोड़े तीखे स्वर में बोली.

तब तक दूर से आते हुए अशोकजी को देख कर उस ने पैंतरा बदला.

“थोड़ा तमीज से बात करो,” नवीन क्रोध से बोला जरूर, पर उस ने भी अशोकजी से बात करने का मन बना लिया था.

अगले दिन वह कुछ कार की तसवीरों के साथ शाम को अपने पिता के पास गया और बोला, “पापा, मैं और सोनम एक बड़ी गाड़ी खरीदना चाहते हैं…”

“पर बेटा, बड़ी गाड़ी तो घर में पहले से ही है, फिर उसे रखेंगे कहां?” अशोकजी ने प्रश्न किया.

“यह जो बगीचा है, यहीं गैराज बनवा लेंगे. वैसे भी सोनम से तो इन की देखभाल होने से रही और मम्मी कब तक करेंगी?”

“इन पेड़ों को कटवाना ही ठीक रहेगा. वैसे भी ये सब जड़ें मजबूत कर घर की दीवारें कमजोर कर रहे हैं…”

प्रभा तो वहीं कुरसी पर सीना पकड़ कर बैठ गईं. अशोकजी ने क्रोध को काबू में करते हुए कहा, “मुझे तुम्हारी मां से भी बात कर के थोड़ा सोचने का मौका दो.”

“क्या पापा… मम्मी से क्या पूछना. वैसे भी इस जगह का इस्तेमाल भी क्या है?” नवीन थोड़ा गुस्सा होते हुए बोला.

“आप दोनों दिनभर इस जगह बगैर कुछ सोचेसमझे, चार लोगों का लिहाज किए बगैर साथ बैठे रहते हैं…

“कोई बच्चे तो हैं नहीं आप दोनों के. और अब घर में सोनम भी है, छोटे बच्चे भी हैं…

“पर, आप दोनों ने दिनभर झूले पर साथ बैठे रहने का रिवाज बना लिया है. और ये भी नहीं सोचते कि चार लोग क्या कहेंगे…

“इस उम्र में मम्मी के साथ बैठने के बजाय अपनी उम्र के लोगों में उठाबैठे करेंगे, तो वह ज्यादा अच्छा लगेगा, न कि यह सब,” कह कर वह दनदनाते हुए अंदर चला गया.

अंदर सोनम की बड़बड़ाहट भी जारी थी. अशोकजी भी एहसास कर रहे थे प्रभा के साथ अपनी ज्यादती का…

जब कभी पत्नी ने अपने मन की कही तो उन्होंने उन्हें ही सामंजस्य बिठाने की सीख दी… पर, आज की बात से तो उन के साथ प्रभाजी भी सन्न रह गईं, अपने बेटे के मुंह से ऐसी बातें सुन कर…

रिटायरमैंट को अभी कुछ ही समय हुआ था उन के, जिंदगी तो भागमभाग में ही निकल गई थी बच्चों के लिए सुखसाधन जुटाने में…

नवीन और सोनम ने उस शाम आदत के अनुसार खाना बाहर से और्डर कर दिया. पर, प्रभा से न खाना खाया गया और न उन्हें नींद आई…

नींद तो अशोकजी को भी नहीं आ रही थी और वो प्रभा की मनोस्थिति भी समझ रहे थे… किसी ट्रैफिक सिगनल पर खड़े सिपाही जैसी, जिस से हर रिश्ता बस अपनी ही तवज्जुह चाह रहा था. पर सोचतेसोचते सुबह, कुछ सोच कर उन के होंठों पर मुसकान तैर गई…

अगले दिन जब सो कर वह उठे तो देखा प्रभाजी सो रही थीं, पर बेचैनी चेहरे पर दिख रही थी… वह रसोई में गए और खुद चाय बनाई. कमरे में आ कर पहला कप प्रभा को उठा कर पकड़ाया और दूसरा खुद पीने लगे…

“आप ने क्या सोचा?” प्रभा ने रोआंसी आवाज में पूछा.

“मैं सब ठीक कर दूंगा. बस, तुम धीरज रखो,” अशोक बोले.

पर हद से ज्यादा निराश प्रभा उस दिन पौधों में पानी देने भी न निकलीं और न ही किसी से कोई बात की.

दिनभर सब सामान्य रहा, लेकिन शाम को अपने घर के बाहर ‘टूलेट’ यानी किराए के लिए का बोर्ड टंगा देख नवीन ने भौंचक्के स्वर में अशोकजी से प्रश्न किया, “पापा, माना कि घर बड़ा है, पर ये ‘टूलेट’ का बोर्ड किसलिए?”

“अगले महीने मेरे स्टाफ के मिस्टर गुप्ता रिटायर हो रहे हैं, तो अब वे इसी घर में रहेंगे,” उन्होंने शांत लहजे में उत्तर दिया.

हैरानपरेशान नवीन बोला, “पर कहां…?”

“तुम्हारे पोर्शन में,” अशोकजी ने सामान्य स्वर में उत्तर दिया.

नवीन का स्वर अब हकलाने लगा था, “और हम लोग…?”

“तुम्हे इस लायक बना दिया है. 2-3 महीने में कोई फ्लैट देख लेना या कंपनी के फ्लैट में रह लेना, अपनी उम्र के लोगों के साथ, वरना मुझे कानून का सहारा लेना पड़ेगा,” अशोकजी एकएक शब्द चबाते हुए बोले.

“हम दोनों भी अपनी उम्र के लोगों में उठेंगेबैठेंगे, सारी उम्र तुम्हारी मां की सब का लिहाज करने में निकल गई. कभी बुजुर्ग, तो कभी बच्चे. अब लिहाज की सीख तुम सब से लेना बाकी रह गया था.”

“पापा, मेरा वह मतलब नहीं था,” नवीन सिर झुका कर बोला.

“नहीं बेटा, तुम्हारी पीढ़ी ने हमें भी प्रैक्टिकल बनने का सबक दे दिया. जब हमतुम दोनों को साथ देख कर खुश हो सकते हैं, तो तुम लोगों को हम लोगों से दिक्कत क्यों है…?”

नवीन समझ गया कि उन दोनों की बातें उन के कानों में पड़ चुकी हैं.

“इस मकान को घर तुम्हारी मां ने बनाया, ये पेड़ और इन के फूल तुम्हारे लिए मांगी गई न जाने कितनी मनौतियों के साक्षी हैं, तो उस का कोना मैं किसी को छीनने का अधिकार नहीं दूंगा…”

“पापा, आप तो सीरियस हो गए,” नवीन का स्वर अब नरम हो चला था.

“न बेटा… तुम्हारी मां ने जाने कितने कष्ट सह कर, कितने त्याग कर के मेरा साथ दिया. आज इसी के सहयोग से मेरे सिर पर कोई कर्ज नहीं है… इसलिए सिर्फ ये कोना ही नहीं पूरा घर तुम्हारी मां का ऋणी है…

“घर तुम दोनों से पहले उस का है, क्योंकि जीभ पहले आती है, न कि दांत…

“औलाद होने का हम से लाभ उठाओ, पर तुम्हें मांबाप साथ में बुरे क्यों लगते हैं?”

“जिंदगी हमें भी तो एक ही बार मिली है… हम तुम्हें प्यार से रहते देख खुश होते हैं, तो तुम्हें हम क्यों खटकते हैं…”

“तकलीफ मुझे बहू से ज्यादा तुम से हुई. तुम्हें भी मेरी तरह अपनी पत्नी की ख्वाहिशों को पूरा करना चाहिए,” कह कर अशोकजी प्रभा के पास जा कर खड़े हो गए.

अशोकजी के इस कठोर फैसले ने सोनम और नवीन दोनों के होश उड़ा दिए.

वह मुंह लटका कर अंदर गया और सोनम को पापा के फैसले से अवगत कराया. उन के इस फैसले ने सोनम की नींद उड़ा दी. उस ने सब से पहले अपने मायके फोन कर के वस्तुस्थिति की जानकारी दी.

सोनम रोते हुए बोली, “हैलो मम्मी, पापाजी ने हमें घर खाली करने को कह दिया है.”

“ऐं, ऐसे कैसे… बेटा, समझाओबुझाओ, इतनी जल्दी तो हम भी कुछ नहीं कर सकते, यहां अपने घर का हाल तुम जानती तो हो… यहां तुम्हारी भाभी हमें ही परेशान किए हुए है,” उस की मम्मी ने कहा.

उधर नवीन ने भी तनावग्रस्त हो कर माथा पकड़ लिया.

सोनम बोली, “नवीन, क्यों न अपनी बुआ और चाचा को सब हाल बता कर उन्हें पापा को समझाने के लिए मनाओ न… अभी तो एकाउंट खाली है. इतनी जल्दी सब कैसे होगा?”

नवीन ने उस के इस सुझाव पर उसे गले लगा लिया.

अगले ही दिन उस ने छुट्टी ले कर अपनी बुआ और चाचा दोनों से मिलने का समय ले लिया.

“अरे नवीन, आज चाचा की याद कैसे आ गई?” विवेक ने अनुभवी नजरों से परखते हुए सवाल दाग दिया.

नवीन सिर झुकाए बोला, “चाचाजी, पापा ने घर खाली करने को कहा है. बताइए अच्छा लगता है कि घर होते हुए अपना ही बेटा उसी शहर में किराए पर रहे…?”

“देखो बेटा, यह परिवार का मामला है. किराए पर रहने के लिए कहा है भैया ने, तो सोचसमझ कर ही कहा होगा,” विवेक ने कहा, “मैं भैया के फैसले के खिलाफ नहीं जा सकता और न ही तुम्हें अपने घर में रहने को कह सकता हूं. यहां भी सीमित जगह है,” विवेक ने अपना पक्ष साफ कर दिया.

अब नवीन का एकमात्र सहारा थीं उस की बुआ. उस ने कहा, “बुआ, पापा ने 3 महीने का अल्टीमेटम दे दिया है… आप समझाओ न उन्हें.”

वे तपाक से बोलीं, “सही कर रहे हैं भैया. तुम ने और तुम्हारी पत्नी ने कौन सी कसर छोड़ दी थी, जो हम तुम्हारी तरफ से उन से बात करें…”

“हमारे घर मे भी तुम्हें रखने की जगह नहीं है, 2-4 दिन के लिए रहना अलग बात है और रोज के लिए रखना अलग.

“तुम अपने दोस्तों से बात क्यों नहीं करते? मैं मायके से रिश्ता क्यों बिगाड़ लूं?”

नवीन ने अपने दोस्तों अमन और पवन से इस आकस्मिक मुसीबत से निबटने का रास्ता मांगा, तो अमन भी घबरा कर बोला, “यार, पैसा तेरे पास होता तो तू आराम से कहीं भी रह लेता…”

पवन यह भी बोला, “फिर हमारे घर में जगह भी नहीं है और कहीं हमारे मम्मीपापा को अंकल के इस निर्णय के बारे में पता चला, तो हम लोगों के साथ भी यही कहानी न दोहरा दी जाए…

“भाई, तू थोड़े दिन दूर ही रह. आजकल ये बुजुर्ग भी इमोशनल न रहे सब अपने लिए सोचने लगे हैं… फिर अच्छाभला रह रहा था तो क्या जरूरत थी तुम दोनों को अपने मांबाप का अपमान करने की… कोई हम ने कहा था ऐसा करने को?”

नवीन और सोनम को बच्चों के साथ मकान के लिए सुबहशाम भटकतेभटकते, लोगों के असली चेहरे और अपनी गलती सब समझ में आने लगी थी.

शाम को घर जा कर वो उन के पैरों में गिर कर फफक कर रो पड़ा, “पापा, प्लीज मुझे माफ कर दीजिए.”

“एक शर्त पर,” उन की धीरगंभीर आवाज गूंजी, “आप अपने खर्च खुद उठाएंगे और किराया भी देंगे, ताकि यह सनद रहे कि घर है किस का…?”

और सोनम की भी गज भर लंबी जबान वास्तविकता झेल कर तालू से चिपक चुकी थी. उसे रिश्तों के लिहाज और सम्मान का अच्छा सबक मिल चुका था.

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