शिमला में 10 दिन हनीमून मना कर रवि और शिखा शनिवार को दिल्ली लौटे. रविवार की सुबह ही शिखा ने घर के गेट के पास रवि को भावना से बातें करते हुए अपने बैडरूम की खिड़की से देखा.

भावना की आंखों से आंसू बह रहे थे. रवि परेशान और उत्तेजित हो कर उसे कुछ सम?ा रहा था. शिखा उन की बातें तो नहीं सुन पाई लेकिन पूरा दृश्य उसे अटपटा और बेचैन करने वाला लगा.

करीब 10 मिनट बाद भावना को विदा कर के रवि अपने कमरे में लौट आया. वह तनावग्रस्त था, यह बात शिखा की नजरों से छिप नहीं सकी.

अपने मन की बेचैनी के हाथों मजबूर हो कर शिखा ने उस से पूछ ही लिया, ‘‘बाहर भावना से क्या बातें कर रहे थे.’’

‘‘उसे कुछ सम?ा रहा था. तुम ने खिड़की से देखा हमें,’’ रवि ने खिड़की में से बाहर ?ांकते हुए बेचैन स्वर में पूछा.

‘‘हां, वह रो क्यों रही थी?’’ शिखा उस के सामने आ खड़ी हुई.

‘‘अरे, कई समस्याएं हैं उस की जिंदगी में. पिता को गुजरे 5 साल हो गए. मां बीमार रहती हैं. छोटी बहन और छोटे भाई को अपने पैरों पर खड़ा करने की जिम्मेदारी भी उसी के कंधों पर है.’’

‘‘हमारी ही कालोनी में रहते हैं

ये लोग?’’

‘‘हां, हमारी लाइन में कोने का मकान उन्हीं का है. मम्मी की पक्की सहेली हैं भावना की मां.’’

‘‘आप क्या समझ रहे थे उसे?’’

‘‘हौसला बंधा रहा था उस का. शिखा, तुम भी ध्यान रखना कि कभी उस का दिल न दुखे. वह दिल की बहुत अच्छी है,’’ रवि ने शिखा के गाल पर चुंबन अंकित किया और फिर नहाने चला गया.

भावना से संबंधित सवालों का जवाब देते हुए रवि की परेशान मनोदशा को शिखा ने भांप लिया. इसी कारण भावना और रवि के संबंधों के बारे में और ज्यादा जानने के लिए उस की उत्सुकता बढ़ गई.

उस की 20 वर्षीय ननद रीता ने उसे जानकारी दी, ‘‘भाभी, भावना रवि भैया की हमउम्र है और दोनों स्कूल में साथसाथ पढ़े हैं. भैया की अच्छी दोस्त है वह.’’

‘‘शादी नहीं हुई उस की?’’ शिखा

ने पूछा.

‘‘शादी 4 साल पहले हुईर् थी, पिछले साल तलाक हो गया है.’’

‘‘तलाक क्यों हुआ?’’

‘‘पति के साथ तालमेल नहीं बैठा. वह मारपीट भी करता था.’’

‘‘तुम्हारे भैया के साथ कोई चक्कर तो नहीं है भावना का?’’ शिखा के होंठों पर बेचैन मुसकराहट उभरी.

कुछ पल सोच में डूबी रहने के बाद रीता ने गंभीर हो कर जवाब दिया, ‘‘भाभी, कोई गलत हरकत करते कभी नहीं पकड़े गए हैं दोनों. भैया उस की सुनते बहुत हैं. उस की चिंता भी बहुत करते हैं. हम सब तो आदी हो गए हैं भावना के घर के लगभग हर मामले में भैया की दखलंदाजी के. पर आप उसे सहन नहीं कर सकोगी, इस का मु?ो एहसास है.’’

‘‘मैं वैसे तो बहुत शांत और सहनशील हूं पर अपना अहित होता देख चुप भी नहीं बैठती. अगर भावना के कारण मेरी विवाहित जिंदगी में कोई समस्या पैदा हुई तो उस कांटे को निकाल फेंकूंगी मैं.’’

शिखा का आत्मविश्वास रीता को मुसकराने पर मजबूर कर गया.

रवि भावना को जरूरत से ज्यादा महत्त्व देता है, यह बात कुछ ही दिनों में शिखा ने सम?ा ली. अपने यहां या फिर उस के घर जा कर वह लगभग रोज ही उस से मिलता. साथसाथ हंसतेबोलते दोनों खूब प्रसन्न नजर आते.

शिखा मन ही मन उस से जलनेकिलसने लगी. वह भावना के खिलाफ कुछ कह नहीं सकती थी क्योंकि उन के व्यवहार में शिकायत का कोई कारण उसे नहीं मिला.

अपने पति को वह भावना के साथ बांटने को तैयार नहीं थी. उस की रवि से निकटता शिखा को चिंतित और तनावग्रस्त रखती. वह इस चिंता और तनाव से मुक्ति चाहती थी, इसलिए रवि को भावना के प्रभाव से मुक्त करना उसे जरूरी लगने लगा.

एक दिन रवि के औफिस जाने के बाद शिखा ने अपना दिल ननद रीता और सास गायत्री के सामने खोल कर रख दिया. उस की आंखों से बहते आंसुओं को देख कर वे दोनों भी दुखी हो उठीं.

शिखा के सिर पर स्नेहभरा हाथ रख कर गायत्री ने उसे सम?ाया, ‘‘बहू, तेरे आने के बाद भी भावना का रवि से इस तरह मिलनाजुलना मेरी आंखों में भी चुभने लगा है पर अगर मैं भावना को डांटूं तो यह बात रवि को पता लगेगी और वह बहुत गुस्सा होगा. इसलिए इस समस्या को हल करने के लिए हमें सम?ादारी से काम लेना होगा.’’

‘‘मैं ने इस बारे में कुछ सोचा है, मम्मी. आप दोनों मेरी मदद करने का वादा करें तो वह समस्या जल्दी हल हो जाएगी,’’ अपने आंसू पोंछते हुए शिखा बोली.

‘‘भावना से कहीं ज्यादा तुम हमारे दिलों के करीब हो, बहू. हर कदम पर हम तुम्हारे साथ हैं,’’ गायत्री ने आत्मीयता से कहा.

सास की तरफ से ऐसा आश्वासन पा कर शिखा मुसकरा उठी.

फिर काफी देर तक शिखा ने उन्हें अपनी योजना समझाई. उसी दिन से योजना पर अमल करने का फैसला कर के ही तीनों वहां से उठीं.

उस शाम रवि के औफिस से लौटने के कुछ देर पहले भावना उन के घर आई. वे तीनों ही उस से बड़े प्यार व अपनेपन से मिलीं लेकिन उन के व्यवहार में एक अंतर जरूर साफ ?ालक रहा था. वे भावना की बातों के जवाब में ज्यादा कुछ कह नहीं रही थीं. एकदो शब्दों में उस की बात का जवाब दे कर मुसकराने लगतीं. अपनी तरफ से उन का वार्त्तालाप में हिस्सा लेना बंद था.

कभीकभी भावना बोल रही होती और कोई सिर ?ाका कर अपनी उंगलियों से खेलने लगती तो कोई छोटामोटा काम करने में मगन हो जाती. बीचबीच में मुसकरा कर उन का उस की तरफ देखना जरूर जारी रहता.

शिखा चाय बनाने उठी तो रीता ने कहा, ‘‘भाभी, मु?ो एसिडिटी हो रही है. मैं चाय नहीं पिऊंगी.’’

गायत्री ने थोड़ी देर पहले ही चाय पीने का कारण बता कर अपने लिए चाय बनाने को मना कर दिया. शिखा कुछ देर बाद लौटी तो ट्रे में एक ही कप रखा था.

‘‘तुम ने अपने लिए चाय क्यों नहीं बनाई?’’ भावना ने शिकायत की.

‘‘दीदी, दिल नहीं कर रहा है. आप लीजिए न,’’ शिखा ने बड़े अपनेपन से कप उस की तरफ बढ़ाया.

‘‘इस तरह अकेले चाय पीना मुझे अच्छा नहीं लगता,’’ भावना का मूड उखड़ गया.

‘‘आज अकेले पी लो. अगली बार हम सब साथ देंगी,’’ गायत्री ने उसे आश्वस्त किया.

भावना रवि के आने तक उन तीनों से बोर होने लगी थी. फिर जब रवि आ गया तो उस के साथसाथ वे तीनों भी चहकने लगीं. उस समय के उन के व्यवहार को देख कर कोई नहीं कह सकता था कि रवि की अनुपस्थिति में उन के मुंह से पूरा वाक्य भी कठिनाई से निकल रहा था.

जब भावना अपने घर जाने लगी तब पहली बार शिखा ने रवि की उपस्थिति में उस के पैर छुए.

‘‘अरे, यह क्या कर रही हो, शिखा. इस की कोई जरूरत नहीं है,’’ वह हैरान हो उठी.

‘‘भावना दीदी, आप मु?ा से बड़ी हैं. मेरी शुभचिंतक हैं. मु?ो आप का आशीर्वाद इसी तरह लेना चाहिए.’’

उस की बात सुन कर रवि और भावना दोनों ही प्रसन्न हो गए.

रवि की अनुपस्थिति में वे तीनों

भावना से बिलकुल कटीकटी सी

रहतीं पर उन के चेहरों पर नकली मुसकान अवश्य होती. रवि जब घर में होता तब हंसनेबोलने में उन की पूरी भागीदारी रहती.

आखिरकार वही हुआ जिस की इन्हें उम्मीद थी. रवि की अनुपस्थिति में भावना ने उन के यहां आना बंद कर दिया.

भावना एक स्कूल में अध्यापिका थी. उस के सुबह स्कूल जाने के बाद अकसर शिखा उस की मां शांता से मिलने जाने लगी. वह अधिकतर उन के साथ भावना के भविष्य को ले कर बातचीत करती.

‘‘भावना की शादी हो जाए तो मैं निश्ंिचत हो जाऊं. मैं खुद तो भागदौड़ कर नहीं सकती, फिर एक तलाकशुदा लड़की के लिए अच्छा रिश्ता आसानी से मिलता भी नहीं,’’ एक दिन शिखा से अपनी परेशानी बयान करते हुए शांता का गला भर आया.

‘‘अपने सब रिश्तेदारों के पास मु?ा से चिट्ठियां लिखवा कर भेजिए. कहीं से अच्छा रिश्ता आता तो रवि के साथ आप लड़का देखने चली जाना. इस शुभ काम में हम सब आप के साथ हैं, मौसीजी,’’ इस प्रकार का हौसला दिलाने वाली बातें कह कर शिखा ने शांता का दिल जीत लिया.

शिखा की सलाह पर शांता ने अपनी बेटी को चिट्ठियां भेजने वाली बात नहीं बताई. सप्ताहभर के अंदर शिखा ने बीसियों चिट्ठियां शांता की तरफ से लिख कर उन के रिश्तेदारों को भेज दीं.

इस बार रीता का जन्मदिन रविवार को पड़ा. नेहरू पार्क में जा कर पिकनिक मनाने का कार्यक्रम जब एक दिन पहले तय किया गया तब भावना भी उपस्थित थी.

लंच घर से तैयार कर के ले जाना था. पहले ऐसे मौकों पर भावना रसोई के कामों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती आई थी लेकिन उस दिन उसे कुछ काम नहीं करने दिया गया.

‘‘भावना बेटी, तू आराम से ड्राइंगरूम में बैठ. बहू कर लेगी सारा काम,’’ गायत्री हाथ पकड़ कर उसे रसोई से बाहर ले जाने लगी.

‘‘दीदी, आप के हाथों के बने आलूगोभी के परांठे खूब खाए हैं हम ने. अब सिर्फ शिखा भाभी के हाथों के बने परांठों का स्वाद चखेंगे हम तो,’’ रीता की आवाज में जिद के भाव उभरे.

‘‘दीदी, एक तो जिस का जन्मदिन है, हमें उस की इच्छा माननी ही पड़ेगी. दूसरे, आप हमारी मेहमान हैं. आप को रसोई के कामों में लगाना गलत होगा,’’ शिखा ने बड़े आदर से अपनी बात कही.

‘‘यह तो तुम गलत कह रही हो, शिखा,’’ भावना नाराज सी नजर आई. फिर उस ने घूम कर गायत्री से बड़े अपनेपन से पूछा, ‘‘मौसीजी, मैं आप के घर में मेहमान हूं या यह घर मेरा भी है.’’

‘‘घर तो तेरा वह होगा बेटी जहां तेरी शादी होगी. हम तो चाहते हैं वह दिन जल्दी आए जब तेरी गृहस्थी फिर से बसे. मेरे और भावना के लिए चाय भिजवा दे, बहू,’’ शिखा को आदेश दे कर गायत्री भावना के साथ रसोई से बाहर निकल गई.

किसी के प्रभुत्व को कम करने का एक तरीका यह भी है कि उसे कोई जिम्मेदारी ही न सौंपी जाए. उस दिन भावना ने अपने को बड़ा अलगथलग सा महसूस किया. वह किसी पर नाराजगी भी नहीं जता सकी क्योंकि सतही तौर पर सब का व्यवहार उस के साथ बिलकुल ठीक था. लेकिन अपने को बेचैन और बुझबुझ सा महसूस करती रही वह. रवि से हंसनाबोलना भी उस का मूड सुधार नहीं सका.

नेहरू पार्क पहुंचने के बाद भी स्थिति नहीं बदली. भावना ने उन तीनों के साथ हंसनेबोलने की कोशिश की लेकिन बदले में उन की बेजान सी मुसकराहटों के अलावा उस के हिस्से में कुछ नहीं आया.

रीता ने शिखा के साथ कुछ देर बैडमिंटन खेला.

जब भावना ने रीता के साथ खेलने की इच्छा प्रकट की तो उस ने टका सा जवाब दिया, ‘‘मैं थक गई हूं, दीदी. आप भाभी के साथ खेलो.’’

‘‘मु?ो तो बड़े जोर की भूख लगी है. अब खेलनाकूदना पेटपूजा के बाद होगा,’’ शिखा का यह जवाब सुन कर भावना का मुंह सूजना शुरू हो गया.

पास बैठे रवि ने अपनी पत्नी और बहन को गुस्से से घूरा. फिर भावना का हाथ पकड़ कर उसे उठाते हुए बोला, ‘‘ये दोनों बेकार खिलाड़ी हैं. तुम मेरे साथ खेलो.’’

वे दोनों बैडमिंटन खेलने लगे. शिखा चायनाश्ते की तैयारी में जुट गई. कुछ देर बाद गायत्री ने आवाज दे कर उन्हें बुलाया.

उन के बैठ जाने के बाद रीता ने अपने भैया को चाय का कप पकड़ाया और फिर खुद नाश्ते का आनंद लेने लगी.

‘‘मु?ो भी चाय दो,’’ खुद को अपमानित सा महसूस करती भावना ?ां?ाला उठी.

रीता ने थरमस और एक प्लास्टिक का कप उस के सामने बड़ी लापरवाही से रख दिया.

‘‘सब को चाय कप में डाल कर तुम ने ही दी है. मु?ा से क्या दुश्मनी है तुम्हारी,’’ भावना का गुस्सा भड़क उठा.

‘‘दुश्मनी वाली क्या बात है इस में, मैं नहीं डाल रही हूं तो आप खुद डाल लो,’’ रीता ने अपनी आवाज की मिठास या मुसकान नहीं खोई.

‘‘रीता,’’ रवि ने अपनी बहन को गुस्से से घूरा, ‘‘तुम्हारी गलत हरकतें मैं बहुत देर से नोट कर रहा हूं. तुम भावना से ठीक ढंग से पेश क्यों नहीं आ रही हो?’’

‘‘मैं ने क्या गलत व्यवहार किया है आप के साथ, दीदी?’’ माथे पर बल डाल कर रीता ने भावना से पूछा तो रवि का गुस्सा और बढ़ गया.

‘‘मेरी जानकारी में है तुम सब की गलत हरकतें. तुम सब भावना के साथ बदतमीजी से पेश आ रही हो. छोटेबड़े का अंतर भूल कर उस का अनादर करती हो.’’

‘‘यह क्या कह रहे हैं, आप. क्या भावना दीदी ने आप से हमारी कुछ शिकायत की है?’’ रीता का हाथ अपने हाथों में ले कर शिखा ने रवि से परेशान लहजे में पूछा.

‘‘शिकायत नहीं की है उस ने पर तुम दोनों के व्यवहार में आए बदलाव को मेरी जानकारी में जरूर लाई है वह. अगर तुम दोनों आइंदा उस के साथ सही ढंग से पेश नहीं आईं तो मु?ा से बुरा कोई न होगा,’’ रवि ने धमकी दी.

‘‘भैया, आप बिना बात के हमें डांट रहे हैं,’’ रीता रोंआसी हो उठी.

‘‘शटअप,’’ रवि की आवाज बहुत ऊंची हो गई.

रीता हाथों से मुंह छिपा कर रोने लगी. गायत्री उठ कर अपनी बेटी व बहू के पास आईं और उन दोनों के सिरों पर हाथ रख कर रवि को डांट पिलाई, ‘‘तू शायद भूल गया है कि आज तेरी छोटी बहन का जन्मदिन है. हम यहां पिकनिक मनाने आए हैं या रोनेधोने व लड़ाई?ागड़ा करने?’’

भावना घबराए से अंदाज में बोली, ‘‘मौसीजी, गलती मेरी ही है. मुझे छोटी सी बात का बतंगड़ नहीं बनाना चाहिए था.’’

‘‘मुझे तुम से नहीं बल्कि अपने बेटे से शिकायत है, भावना. सुने यह किसी की भी पर काम तो इसे अपनी बुद्धि से ही लेना चाहिए.’’

भावना को लगा, गायत्री ने उसी पर ताना कसा था. उस का चेहरा एकदम से उतर गया.

तभी रीता ने रोना रोक कर रोंआसी आवाज में कहा, ‘‘मेरी तबीयत खराब लग रही है. मुझे घर लौटना है.’’

पहले भावना और फिर रवि ने उसे बहुत मनाया पर रीता ने घर लौटने की अपनी जिद नहीं छोड़ी. शिखा और गायत्री ने मौन रह कर एक तरह से रीता की जिद को समर्थन दिया.

हार कर रवि उन्हें वापस घर लाने को मजबूर हो गया. रास्तेभर सभी खामोश रहे. उस दिन भावना को साफतौर पर यह महसूस हो गया कि रीता, शिखा और गायत्री एक हो कर उस का विरोध कर रही हैं और उन के घर में उस का स्वागत होना बंद हो चुका है.

भावना ने रवि के घर आना बंद कर दिया.

रवि ने समझाया तो बोली, ‘‘बिना कारण तुम्हारे घरवालों ने मेरा अपमान करना शुरू कर दिया. तुम मु?ा से मिलने मेरे घर आया करो. जब तक रीता और शिखा मुझ से माफी नहीं मांगतीं, मैं तुम्हारे यहां नहीं आऊंगी.’’

रवि ने यह बात रीता और शिखा को बताई तो उन्होंने माफी मांगने से साफ इनकार कर दिया.

गायत्री ने उन का पक्ष लेते हुए रवि को डांटा, ‘‘आज तक रीता और बहू ने एक भी अपशब्द भावना से नहीं कहा है. उसे अपमानित करने वाली एक भी घटना अगर भावना बता दे तो उस के पैरों पर नाक रगड़ लेंगी ये दोनों. अपने अहं की संतुष्टि के लिए वह अगर इन से माफी मंगवाना चाहती है तो यह नहीं होगा.’’

अपने को अपमानित करने वाली कोई घटना भावना बता नहीं सकी. रवि अपनी पत्नी और बहन पर माफी मांगने के लिए कोई दबाव तो नहीं डाल सका पर उन से नाराज हो कर चुपचुप सा जरूर रहने लगा.

कुछ दिनों बाद शिखा ने गायत्री से भावना की मां से मिलने जाने की इजाजत मांगी तो उन्होंने चौंक कर पूछा, ‘‘उस का आनाजाना हमारे यहां बंद हो चुका है. फिर किसलिए भावना के घरवालों से संबंध रखना चाहती हो?’’

‘‘मम्मी, वह कांटा तो फिलहाल निकाल फेंका है हम ने पर उस का जख्म अभी भी टीस रहा है. मैं नहीं चाहती कि घाव और फैले और हम सब को दुखी करता रहे. इस समस्या को स्थायी रूप से हल करने के लिए मैं मौसी से मिलने जाती रहूंगी.’’

भावना की मां शांता उसे घर आया देख खुश हो कर बोलीं, ‘‘कई दिनों से तेरा इंतजार कर रही थी मैं. तू ने जो चिट्ठियां लिखी थीं उन के जवाब में भावना के लिए 2 रिश्ते आए हैं.’’

यह सुन कर शिखा को खुशी हुई क्योंकि कुछ ऐसा ही समाचार सुनने की कामना ले कर वह उन से मिलने आई थी.

काफी देर तक वे दोनों उन लड़कों के बारे में चर्चा करती रहीं जिन के रिश्ते आए थे.

‘‘आप ने भावना दीदी को इन लड़कों के बारे में बताया?’’ शिखा ने बड़े गौर से शांता के चेहरे की तरफ देखते हुए पूछा.

शांता उदास हो कर बोलीं, ‘‘बताया तो था पर उस ने जरा भी दिलचस्पी नहीं दिखाई. आजकल न जाने क्यों बहुत चिड़चिड़ी और उखड़ीउखड़ी सी नजर आती है भावना.’’

‘‘आप फिक्र न करें. मैं समझऊंगी उसे,’’ शिखा ने दिलासा दिया.

‘‘अगर तुम उसे देखनेदिखाने के लिए राजी कर सको तो तुम्हारा यह एहसान मैं कभी…’’

शांता के मुंह पर हाथ रख कर शिखा ने उन्हें बात पूरी करने से रोका और कोमल लहजे में बोली, ‘‘मौसीजी, भावना दीदी की शादी होने पर सब से ज्यादा खुशी मुझे होगी. आप फिक्र न करें. सब ठीक हो जाएगा.’’

भावना के स्कूल से लौटने तक शिखा वहीं रुकी रही. उसे देख कर भावना के माथे पर बल पड़ गए और वह नाराज नजर आने लगी. उस की नमस्ते का जवाब बेमन से दे कर भावना अपने कमरे में

चली गई.

‘‘मौसीजी, आप मत आना हमारे पास. मैं भावना दीदी को शादी करने के लिए राजी करने की कोशिश करती हूं,’’ शांता को ऐसा सम?ा कर शिखा भावना के कमरे में चली गई.

‘‘मुझे आप से कुछ जरूरी बातें करनी हैं,’’ भावना के पास बैठ कर शिखा बड़े अपनेपन से मुसकराई.

‘‘कहो, क्या कहना है.’’ भावना ने रुखाई से पूछा.

‘‘पहले तो अगर मेरे व्यवहार से कभी आप का दिल दुखा हो तो मैं आप से माफी मांगती हूं.’’

‘‘यह तरीका बढि़या है. पहले घर आए इंसान की बेइज्जती करो और बाद में आराम से माफी मांग लो,’’ भावना ने ताना कसा.

‘‘भावना दीदी, आप इस तरह नाराज न हों. मैं सचमुच आप का बहुत आदर करती हूं और आप की शुभचिंतक भी हूं. आज आप को एक गोपनीय बात बताने आई हूं मैं.’’

‘‘कैसी गोपनीय बात,’’ भावना की दिलचस्पी जागी.

‘‘मेरी बड़ी बहन सपना की शादी

5 साल पहले हुई थी. तब मेरी उम्र ज्यादा नहीं थी और सम?ादार भी कम थी मैं. मेरे जीजाजी बड़े हंसमुख और स्मार्ट हैं. उन से प्रेम करने लगी,’’ बोलते हुए शिखा का चेहरा धीरेधीरे लाल हो गया.

‘‘फिर क्या हुआ, तुम्हारी दीदी और तुम्हारे जीजाजी की क्या प्रतिक्रिया रही?’’

‘‘पुरुषों की ऐसे प्रेम में दिलचस्पी रहती ही है, भावना दीदी. जीजाजी को मु?ा से प्रेम संबंध बनाए रखने में कोई एतराज न था. एक दिन सपना दीदी ने मुझे जीजाजी की बांहों में देख ही लिया.’’

‘‘खूब गुस्सा हुई होंगी वे तुम पर?’’

‘‘गुस्सा बिलकुल भी नहीं हुईं. न मुझ पर न जीजाजी पर. उन्होंने अकेले में ले जा कर मु?ा से एक ही बात कही थी.’’

‘‘वह क्या?’’

‘‘उन्होंने मु?ा से प्यारभरे स्वर में कहा, ‘देख शिखा, एक दिन तेरी जिंदगी में भी कोई पुरुष आएगा. वह सिर्फ तेरा होगा, सिर्फ तु?ो प्रेम करेगा, सिर्फ तु?ा से प्रेम पाएगा. हमें ऐसे पुरुष से दिल का संबंध नहीं बनाना चाहिए जो पिया किसी और पति किसी का हो. ऐसे व्यक्ति से प्रेम करना कभी सुखशांति और संतोष नहीं दे सकता.’

‘‘मैं आप से उम्र में छोटी हूं, भावना दीदी. सपना दीदी की बात उस कम उम्र में भी मेरी सम?ा में आ गई थी. अगर आप को भी लगे कि हर औरत को ऐसे जीवनसाथी का सान्निध्य पाने की इच्छा रखनी चाहिए जो सिर्फ उस का हो, तब आप अपनी मम्मी की सलाह मान कर शादी के लिए ‘हां’ कह दो. जो रिश्ते आ रहे हैं उन में दिलचस्पी ले कर जल्दी ही अपने जीवनसाथी का चुनाव कर लो. ऐसा कर के आप सुखी भी रहेंगी और समाज में आप का मानसम्मान भी बढ़ेगा,’’ अपने मन की बात शांत व कोमल स्वर में कह कर शिखा खामोश हो गई.

आरंभ में भावना को शिखा की बातों पर गुस्सा आया था. फिर उस ने ध्यान से सुनना शुरू किया. बात खत्म होने के बाद वह देर तक सोचविचार में डूबी बैठी रही.

‘‘तुम ठीक ही कह रही हो, शिखा. कुछ बातों में सा?ापन चल नहीं सकता,’’ भावना ने गहरी सांस छोड़ी, ‘‘मैं तुम्हारा इशारा सम?ा गई हूं. अपनी जिंदगी को सही राह पर चलाने की दिल से कोशिश करूंगी मैं.’’

‘‘थैंक्यू, भावना दीदी. अब मैं चलती हूं. अपनी शादी का शुभ समाचार देने आप जल्दी मेरे घर आओ, ऐसी कामना मैं करती रहूंगी.’’

उस से विदा लेते हुए शिखा का मन कह रहा था कि उस की विवाहित जिंदगी का कांटा अब सदा के लिए जल्दी ही दूर हो जाएगा.

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