कुछ वर्षों पहले जब फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लंबा इंटरव्यू लिया,जोकि कई चैनलों पर प्रसारित हुआ, तो लोगों को बड़ा अजीब लगा. उसकी आज भी चर्चा हो रही हैलेकिन हमें देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार द्वारा इंटरव्यू लिया जाना अतिसामान्य बात नजर आई.

मूल वजह इस की यह है कि आाजदी के बाद से ही हमारे देश के फिल्मकार व कलाकार हमेशा देश के शीर्ष नेताओं, खासकर, देश के प्रधानमंत्री के साथ ही कदमताल करते आए हैं. यानी, ‘यथा राजा,तथा प्रजा’.जैसा देश का प्रधानमंत्री,वैसा ही फिल्मकार व अभिनेता.वैसा ही सिनेमा.

वर्ष 2014 से पहले तक हमारे प्रधानमंत्री पत्रकारों से काफी बातें करते थेलेकिन 2014 में देश के प्रधानमंत्री बनते ही नरेंद्र मोदी ने पत्रकारों से किनारा कर लिया.प्रैस कौन्फ्रैंस तक से उनका विश्वास उठ गया.अब यदि हम देश के प्रधानमंत्री की कार्यशैली के साथ ही बौलीवुड की कार्यशैली पर गौर करेंतो हमें एहसास होता है कि 2014 से बौलीवुड की कार्यशैली और देश के शासक की कार्यशैली में कोई अंतर नहीं है.देश की संसद के अंदर जिस तरह से शासक पक्ष के साथ विपक्ष है,उसी तरह बौलीवुड में भी 2 पक्ष हैं.

सत्ता बदलने के साथ सिनेमा में बदलाव

शासक पक्ष की ही तरह बौलीवुड में काफी मुखर भाजपा समर्थक फिल्मकार व कलाकार एक खास तरह का न सिर्फ सिनेमा बना रहे हैं,बल्कि वे दूसरे पक्ष को दोयम दरजे का मानते हुएउन्हें धमकाने से भी बाज नहीं आते. सरकारें बदलने के साथ ही देश का सिनेमा बदलता रहा है,मगर 2014 के बाद देश का सिनेमा कुछ ज्यादा ही तीव्र गति से बदलता जा रहा है.इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि 2014 से पहले देश के किसी भी प्रधानमंत्री ने मुंबई आकर बौलीवुड के लोगों से मुलाकात व गपशप नहीं की और न ही बौलीवुड के लोग चार्टर प्लेन से दिल्ली जाकर बारबार प्रधानमंत्री से मिलते थे.लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बौलीवुड की समस्याओं को समझने वउन्हें दूर करने के नाम पर ऐसा कई बार किया.अब बौलीवुड की समस्याएं कितनी दूर हुईं, यह तो सब के सामने है ही.

यह कटु सत्य है कि देश की सरकार बदलने के साथ ही धीरेधीरे बौलीवुड ने भी रंग बदलने शुरू किए.बौलीवुड 2 धड़ों में बंट गया और यह बंटवारा पहली बार खुलकर नजर भी आने लगा.शासक पक्ष की नीतियों की बात करने वाला सिनेमा ज्यादा बनने लगा.यथार्थपरक सिनेमा के नाम पर फिल्मकारों ने शासक की विचारधारा को पोषित करने वाला सिनेमा बनाना शुरू कर दिया.

बहरहाल, ‘यथा राजा तथा प्रजा’ की कहावत अब बौलीवुड के फिल्मकारों व कलाकारों की कार्यशैली पर एकदम सटीक बैठती है.बौलीवुड में धीरेधीरे मैनेजर,पीआरओ और बाउंसरों का अस्तित्व बढ़ता जा रहा है.फिल्म निर्देशक से लेकर कलाकार तक पत्रकारों से दूरी बनाकर रखते हैं,जबकि पहले ऐसा नहीं था.

चुनिंदा ग्रुप से इंटरव्यू

2014 के बाद एक नया सिलसिला शुरू हुआजिसके तहत ग्रुप इंटरव्यू होने लगे.हर कलाकार चुनिंदा पत्रकारों से वन औन वन बात करता,बाकी से ग्रुप इंटरव्यू में बात कर लेता.मुझे अच्छी तरह याद है कि मैं अक्षय कुमार के घर पर उनका इंटरव्यू करने गया थातब उन्होंने बड़ी शान से बताया था, ‘आपके लिए मुझे अलग से समय निकालना पड़ा.अन्यथा कल मैंने ग्रुप इंटरव्यू में 15 मिनट के अंदर 57 पत्रकारों से बात कर ली थी.’ यह भी रवैया ठीक नहीं था.

लेकिन कोविड के बाद तो हर निर्माता,निर्देशक,कलाकर पूरी तरह से बदल गया है.अब तो प्रैस कौन्फ्रैंस भी एक इवैंट की तरह होती हैं,जहां पत्रकार महज मूक दर्शक होता है.हर प्रैस कौन्फ्रैंस में एक मंच सजा होता हैजिस पर निर्माता,निर्देशक व कलाकार आकर बैठ जाते हैं.एंकरनुमा किराए का एक बंदा उन की बगल में बैठकर पीआर द्वारा लिखे गए कुछ सवाल पूछ लेता है और प्रैस कौन्फ्रैंस खत्म हो जाती है.जब यह प्रैसकौन्फ्रैंस के नाम पर ‘इवैंट’ हो,तो स्वाभाविक तौर पर यहां पर कलाकार के फैंस भी बुलाए जाते हैंफिर चाहे वह किसी फिल्म का ट्रेलरलौंच हो या किसी ओटीटी प्लेटफौर्म की तरफ से आयोजित प्रैस कौन्फ्रैंस हो.

पांचसितारा होटलों में आयोजित प्रैसकौन्फ्रैंसनुमा इवैंट की खासीयत यह है कि सामने एक टैलीप्रिंटर लगा होता है.एंकर उसी पर आ रहे शब्दों-सवालों को पढ़ता है और कलाकार टैलीप्रिंटर पर लिखे जवाब पढ़ देता है.बीचबीच में कलाकारों के तथाकथित प्रशंसक कलाकार के नाम की जोरजोर से रट भी लगाते हैं.ऐसे में कलाकार की बात तक सुनाई नहीं पड़ती.हमारे पत्रकार बंधु भी ऐसे समय ‘रील्स’ बनाने में व्यस्त रहते हैं.हमने तथाकथित फैंस की बात की.

क्योंकि इन फैंस व नेता की सभा में पैसे लेकर आने वाली भीड़ में कोई अंतर नहीं है.एक फिल्म के ट्रेलरलौंच के अवसर पर मुंबई के एक नामीगिरामी कालेज के छात्र व छात्राएं आई थीं,जिनसे जब हमने बात की तो पता चला कि उन्हें उस दिन कालेज से छुट्टी दी गई है.मतलब,वे फिल्म के ट्रेलरलौंच के लिए मल्टीप्लैक्स में कलाकार के लिए नारे लगा रहे हैं,यानी कि वे कालेज में तो अपनी कक्षा से नदारद हैमगर इसके एवज में उनका कालेज उनकी उपस्थित दर्ज कर रहा है.

इस खेल की तह तक जाने की जरूरत है.कलाकार के फैंस के नाम पर आने वालों को सीटियां भी दी जाती हैं,जिन्हेंवेप्रैस कौन्फ्रैंस के दौरान जोरजोर से बजाते हैं. यानी, यह प्रैस कौन्फ्रैंस के नाम पर ‘फैंस कौन्फ्रैंस’होती है.कलाकार भी बीचबीच में इनसे मुखातिब होता रहता है.

कुल मिलाकर यह सारा खेल फिल्म निर्माता,कलाकार व इवैंट कंपनियों की मिलीभगत से होता है.इसका सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि कलाकार पत्रकारों से रूबरू होने से बच जाता है.उसे लगता है कि ये फैंस तो ‘माउथ पब्लिसटी’ करके उनकी फिल्म को करोड़ क्लब का हिस्सा बना देंगे. पर सच यह है कि इसी वजहसे फिल्में बौक्सऔफिस पर मुंह के बल गिर रही हैं.इस सच से अवगत होने के चलते फिल्म ‘फुकरे 3’ के ट्रेलरलौंचइवैंट के दौरान अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने प्रशंसकों से सवाल कर दिया था, ‘अरे भाई, आप लोग मुझे बताएं कि यह सीटी आपको यहीं गेट पर ही दी गई है न?’

बौलीवुड इवेंटबाजी का दौर

वास्तव में इवैंट कंपनियों ने हर कलाकार के नाम पर फैंस क्लब बना लिया है और हर इवैंटमें वे कुछ लड़के व लड़कियों को लेकर आती हैं.इनके साथ इवैंट कंपनियों वाले दादागीरी के साथ पेश आते हैं.एक इवैंट में हमने खुद एक इंसान को कुछ फैंस को धमकाते हुए सुना.उसने फैंस से कहा कि अगर कलाकार के स्टेज पर आते ही उन लोगों ने जोर से सीटी ही बजाई,जोर से हल्लागुल्ला नहीं किया तो वह उन्हें थप्पड़ मारेगा और दूसरी बार से उन्हेंनहीं बुलाएगा.

मजेदार बात यह है कि ठेकेदारनुमा इवैंट वाले कार्यक्रम खत्म होते ही फैंस से सीटी वापस ले ली जाती हैं.मगर कलाकारों से मिलने के मोह तले दबे ये लड़केलड़कियां गाली भी खाते रहते हैं.

अब फैंस आए हैं,तो वे कलाकार के साथ फोटो खिंचवाने से लेकर रील्स तक बनाएंगे ही और उसे सोशल मीडिया पर डालेंगे ही डालेंगे. क्या वर्तमान समय में यही काम हमारे शीर्ष नेता नहीं कर रहे हैं? नई पीढ़ी के पत्रकारों में भी ऐसी हरकतें करने की प्रवृत्ति है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता. बहरहाल,इस तरह की प्रैसकौन्फ्रैंस सभी ओटीटी प्लेटफौर्म भी करने लगे हैं जिन्हें पूरी तरह से पीआरओ और इवैंट कंपनियां संभालती हैं.

हमबात ‘यथा राजा तथा प्रजा’ की कर रहे हैं.इसी कहावत के अनुसार, अब तो बौलीवुड में हालात ऐसे हो गए हैं कि ज्यादातर कलाकार ‘वन औन वन’ तो छोड़िए, ग्रुप इंटरव्यू भी नहीं करते.अक्षय कुमार,वरुण धवन,शाहरुख खान,विक्की कौशल सहित लगभग हर कलाकार ने मीडिया से पूरी दूरी बना ली है. ये सभी केवल सोशल मीडिया अथवा ‘सिटी टूर’ को ही प्रधानता देते हैं.इनके पीआरओ के पास एक ही रटारटाया जवाब होता है कि अब कलाकार की पत्रकारों को इंटरव्यू देने में कोई रुचि नहीं रही. वे अपनी फिल्म का ट्रेलर,टीजर व गाने सोशल मीडिया, यूट्यूब, ट्विटर, फेसबुक पर पोस्ट कर देते हैं.

अक्षय कुमार ने अपनी फिल्म ‘रामसेतु’ के वक्त पूरे देश से मीडिया को बुलाकर, एक मल्टीप्लैक्स में फिल्म का ट्रेलर दिखाकर, एंकर के माध्यम से अपनी फिल्म को लेकर कुछ बातें करने के बाद मुंबई के एक पांचसितारा होटल में भोजन कराकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली थी.

पत्रकार भी इसी से गदगद हो गए थे.उसके बाद ‘सैल्फी’ फिल्म से अक्षय कुमार ने पत्रकारों से इस तरह का भी संबंध रखना उचित नहीं समझा.फिल्म से संबंधित सारी जानकारी उनकी पीआर कंपनी पत्रकारों को व्हाट्सऐप ग्रुप पर देती रहती है.अक्षय कुमार अपनी फिल्म के टीजर, ट्रेलर व गानों को सोशल मीडिया पर पोस्ट करते रहते हैं.उसके बाद शाहरुख खान सहित दूसरे कलाकारों ने भी यही रवैया अपनाना शुरू कर दिया.

पीआर का कमाल

‘सैल्फी’, ‘रौकी और रानी की प्रेम कहानी’,‘द केरला स्टोरी’,‘नीयत’,‘तरला’,‘ब्लाइंड’,‘बवाल’ ‘ओएमजी 2’,‘पठान’, ‘जवान’ सहित कई फिल्मों के प्रैसइवैंट भी नहीं हुए. अब जो प्रैसइवैंट होते हैं,उनमें से ज्यादातर में पत्रकार को सवाल पूछने का हक नहीं होता,किराए का आया हुआ एंकर ही सवाल कर लेता है.हमारे पत्रकार बंधु उसी का वीडियो बना लेते हैं.यही वजह है कि हिंदी का हो या इंग्लिशका या अन्य भाषा का समाचारपत्र, हर जगह एक ही बात व एक ही शीर्षक से छपी खबरें नजर आती हैं.

हालत यह है कि कुछ पीआरओ ईमेल पर कलाकार के जवाब भिजवाने की बात करते हैं. पर वे जवाब कौन देता है, इसे कोई नहीं जान सकता.हाल ही फिल्म ‘बारहवीं फेल’ का ट्रेलर चुनिंदा 15 पत्रकारों को बुलाकर दिखाया गया और उस वक्त फिल्म के निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा ने ‘इनफौर्मल’ बातचीत की,जिसे छापना नहीं था.इसके बावजूद हमारे एक सवाल पर विधु विनोद चोपड़ा ने कहा कि वे बोल नहीं सकते, उन्हें बोलने से मना किया गया है.जब विधु विनोद चोपड़ा खुद ही निर्माता व निर्देशक हों,तो उन्हें बोलने से कौन मना कर कसता हैया उनका इशारा उनके अपने पीआरओ की तरफ था, पता नहीं.

कलाकार के साथ ही व्यापारिक बुद्धि में माहिर शाहरुख खान ने अपनी फिल्म ‘जवान’ के प्रदर्शन से पहले कोई प्रैसइवैंटनहीं किया.पत्रकारों से न वे मिले और न ही फिल्म से जुड़ा कोई अन्य कलाकार. शाहरुख खान ने अपनी फिल्म ‘जवान’ का पोस्टर,टीजर व ट्रेलर सोशल मीडिया पर पोस्ट किया.फिल्म में दक्षिण के कलाकार भी हैंतो उनके दबाव में चेन्नई जाकर उन्होंने एक प्रैसइवैंट किया.इसके अलावा दुबई जाकर दोतीन इवैंट कर डाले.

अपनी व्यावासायिक बुद्धि और पीआर कंपनी की मदद से ‘जवान’ की कमाई को लेकर शाहरुख़ ने खूब प्रचार किया.फिल्म के प्रदर्शन के एक सप्ताह बाद शाहरुख खान ने ‘जवान’ के लिए ‘सक्सेस प्रैसकौन्फ्रैंस’ का ‘यशराज स्टूडियो’, मुंबई में आयोजन किया.शाम पौने 4 बजे का समय दिया गया था.जब हम वहां पहुंचे तो एहसास हुआ कि यह प्रैस कौन्फ्रैंस के बजाय शाहरुख खान का अपने फैंस के लिए रखा गया इवैंट है,जिसे देखने के लिए प्रैस को बुलाया गया है.

उनके फैंस के हाथ में सीटी दी गई थी.प्रशंसकों की जमात आगे की तरफ रैंप के दाएंबाएं बैठी थी.मीडिया की कुरसियां सबसे पीछे और काफी दूर थीं.पौने चार बजे से ही शाहरुख खान के प्रशंसकों ने जोरजोर से कानफोड़ देने वाली सीटी की आवाज करते हुए नाचनागाना शुरू कर दिया.उनके लिए सामने फिल्म के गाने भी चल रहे थे.पत्रकार बिरादरी मूक दर्शक बनी हुई थी.पूरे 2 घंटे बाद यानी कि शाम पौने 6 बजे शाहरुख खान,दीपिका,विजय सेतुपति व अन्य कलाकार आए और पत्रकारों की तरफ पीठ करके बैठ गए.

उसके बाद रैंप पर जाकर हर कलाकार प्रशंसकों से मुखातिब हुआ. शाहरुख व दीपिका ने डांस भी किया.प्रशंसक सीटी व ताली बजा रहेथे. इससे मीडिया के सामने साबित यह किया जा रहा था कि फिल्म ‘जवान’ कितनी लोकप्रिय हैजबकि सिनेमाघर खाली पड़े हुए थे.

बहरहाल,कुछ समय बाद पत्रकारों के आगे कुछ कलाकार, उस के बाद प्रशंसक,उसके आगे काफी दूर जाकर शाहरुख खान,दीपिका पादुकोण,विजय सेतुपति व निर्देशक एटली बैठे और उन की बगल में किराए का बुलाया हुआ एंकर बैठा.उस एंकर ने ही कुछ सवाल किए.प्रशंसकों ने तालियां बजाईं.बीच में2 बार शाहरुख खान ने मीडिया का धन्यवाद अदा किया और मामला खत्म.शाहरुख खान सहित एक भी कलाकार मीडिया से नहीं मिला. मगर सभी प्रशंसकों संग सैल्फी लेते रहे. हमारे पत्रकार बंधु,टीवी चैनल तो इसी का वीडियो व रील्स बनाते रहे.अब इसे प्रैस कौन्फ्रैंस कहा जाए या ‘फैन्स कौन्फ्रैंस’?

शायद यही वजह है कि जमाना फोटो और वीडियो का हो गया है.यूट्यूब चैनल,फेसबुक चैनल,इंस्टाग्राम का जमाना है.हर पत्रकार का अपना इंस्टाग्राम अकाउंट हैं,जहां कोई गंभीरता नजर नहीं आती.अब मीडिया कवरेज में भी शब्द और संवाद की जगह फोटो और वीडियो ने ले ली है.हर अखबर अपनी वैबसाइट पर कलाकार के इंस्टाग्राम को ही पेश कर पत्रकारिता धर्म का निर्वाह कर रहा है.

जब मीडियाकर्मी के पास केवल रील या वीडियो बनाने के अलावा कोई विकल्प न हो,तो ऐसा ही होगा.ताज्जुब की बात यह है कि नई पीढ़ी के पत्रकार स्टार को देखकर एक प्रशंसक की तरह करतल ध्वनि करते हैं.नई पीढ़ी के पत्रकारों की वजह से भी फैंस और मीडिया का अंतर मिट गया है.हम यहां बता दें कि दक्षिण भारत की फिल्म इंडस्ट्री अभी इस बीमारी से बची हुई है.वहां के कलाकार आज भी पत्रकारों से मिलना व बात करना अपना कर्तव्य समझते हैं.

बौलीवुड में जो कुछ हो रहा है और बौलीवुड के कलाकार जिस तरह पत्रकारों के साथ पेश आ रहे हैं उसे देखते हुए क्या ‘यथा राजा तथा प्रजा’ कहना गलत होगा?

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