अभिनेता अमिताभ बच्चन सिर्फ नाम नहीं बल्कि अपनेआप में एक इतिहास हैं. उन्हें अभिनय करते हुए 54 साल हो गए. बौलीवुड में सर्वाधिक व्यस्त रहते हुए भी अमिताभ बच्चन ने हमेशा अपने मातापिता की सेवा की. आज उन के मातापिता इस संसार में नहीं हैं, मगर उन के दिलोंदिमाग में हमेशा वह छाए रहते हैं.

अमिताभ बच्चन के पिता हरिवंश राय बच्चन कोई आम इंसान नहीं थे. पद्मभूषण से सम्मानित हरिवंशराय बच्चन ख्याति प्राप्त लेखक व कवि थे. वे हिंदी कविता के उत्तर छायावाद काल के प्रमुख कवियों में से एक थे. उन की सब से प्रसिद्ध कृति मधुशाला है, जिसे उन्होंने 1935 में लिखा था. इस के अलावा तेरा हार, मधुशाला, मधुकलश, आत्म परिचय, निशा निमंत्रण, एकांत संगीत, मिलन यामिनी, प्रणय पत्रिका, दो चट्टानें, बहुत दिन बीते, कटती प्रतिमाओं की आवाज, उभरते प्रतिमानों के रूप, जाल समेटा जैसी कुछ चर्चित कविता संग्रह हैं.

1985 में उन का कविता संग्रह ‘नई से नई – पुरानी से पुरानी’ बाजार में आया था. तो वहीं उन्होंने ‘क्या भुलुं क्या याद करूं, ‘नीड़ का निर्माण फिर’, ‘बसेरे से दूर’, दशद्वार से सोपान तक, प्रवासी की डायरी, उमर खय्याम की रुबाइयां, सहित कई किताबें भी लिखीं. 18 जनवरी 2003 को सांस की बीमारी की वजह से उन का मुम्बई में निधन हुआ था.

अमिताभ बच्चन के पिता हरिवंश राय बच्चन का साहित्य जगत में अमूल्य योगदान रहा है. उन की रचनाएं लोग पढ़ना चाहते हैं तो वहीं अमिताभी बच्चन भी अपने पिता की यादों को जीवंत रखने में कोई कसर नहीं रखते. तभी तो हम ने अभिनेता अमिताभ बच्चन को यदाकदा समारोहों में अपने पिता की कविताएं सुनाते हुए देखा व सुना है.

एक बार जब हमारी बातचीत अमिताभ बच्चन से हो रही थी, तब हम ने सिनेमा से इतर बात करते हुए उन से जानना चाहा था कि वह आपने अपने पिता के साहित्यिक कार्य को नई पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए किस तरह प्रयत्नशील हैं.

तब अमिताभ बच्चन ने कहा था, ‘‘मैं ने सोचा कि अपने बाबूजी की कविताओं को अपनी आवाज में रिकौर्ड कर लोगों तक पहुंचाऊ. और मैं ने कुछ किया भी है. हम ने कुछ रचनाओं को छापने के बारे में भी सोचा है. बीच में हम ने कुछ ऐसे कार्यक्रम किया, जहां हम ने बाबूजी की कविताओं का पाठ किया. इस तरह के कार्यक्रम मैं ने ना सिर्फ भारत देश के अंदर बल्कि विदेशों में भी किए हैं. न्यूयौर्क, पेरिस, लंदन,पोलैंड.पोलैंड में एक बहुत जाग्रत युनिवर्सिटी है क्राकउ.

“क्राकउ अलग वजहों से चर्चित है. यहाॅं ज्यूइश और नाजी के बीच टकराव हुआ था. यहां हिंदी विभाग है. बहुत अच्छी हिंदी पढ़ाते हैं. बहुत अच्छी हिंदी बोलते हैं. इस युनिवर्सिटी में बाबूजी के नाम पर एक चेअर भी है. यह बड़ी बात है तो इस युनिविर्सिटी में भी हम बाबूजी की कविताओ का पाठ कर चुके हैं. इस के अलावा मुंबई के विद्याभवन सभाग्रह में जब बाबूजी की शताब्दी थी, तब भी कार्यक्रम किया था. भोपाल,दिल्ली में भी किया. धीरेधीरे हम इस तरह के कार्यक्रम दूसरे शहरों में भी करना चाहते हैं.

“मधुषाला को हम ने संगीतबद्ध किया है और अपनी सत्तरवीं वर्षगांठ पर जिन्हे हम ने निमंत्रित किया था, उन के स्वागत में हम ने मधुशाला का संगीतमय पाठ किया था. उस वक्त बंगलौर की रहने वाली मयूरी का अपना नृत्य ग्रुप है, जिस ने मधुशाला पर बहुत सुंदर नृत्य में रूपांतरण किया था. मैं ने गाया था और आदेश श्रीवास्तव ने संगीत से संवारा था. हम अपने बाबूजी की कविताओं पर वीडियो ले कर आने की भी सोची. जिस पर काम चल रहा है. सिर्फ मधुशाला ही नहीं बाबूजी की सभी कविताओं को हम संगीतबद्ध करना चाहते हैं. हम उनकी हर कविता का कार्यक्रमों में पाठ भी करना चाहते हैं. जब बाबू जी जिंदा थे, तब हम ने एक कार्यक्रम ‘बच्चन के साथ बच्चन’’ किया भी था, जिस का एचएमवी ने एक रिकार्ड बनाया था. उस के बाद से हम कुछ कर नहीं पाए हैं. पर अब करना है.’’

उसी वक्त अमिताभ बच्चन ने ही हमें बताया था कि हरिवंश राय बच्चन की कविताओं का अनुवाद पेरिस में किया जा चुका है. अमिताभ बच्चन ने मुझ से कहा था, ‘‘आप को बता दूं कि न्यूयौर्क में लिंकन की सौंवी वर्षगांठ पर जब मुझे आमंत्रित किया गया था, तब वहां एक फ्रेंच महिला मुझे मिली थीं. उन्होने ही मुझ से पेरिस में बाबूजी की कविताओं का पाठ करने के लिए निमंत्रित किया था. उन्होने पेरिस के विख्यात अपरा थिएटर में यह कविता पाठ रखा था. उन्होने कहा कि थिएटर के अंदर कविता का अनुवाद भी चलाएंगे. मैं ने हामी भर दी. उन्होने खुद ही कविताओं का अनुवाद भी करवाया.

“उस वक्त पेरिस युनिवर्सिटी में हिंदी के विभागाध्यक्ष फ्रेंच थे. उन्होने बाबूजी की कविताओं का अनुवाद किया था. यह पूरे 2 घंटे का कार्यक्रम था. मैं अकेला इंसान बाबूजी की कविताओं का पाठ करता रहा, लोग सुनते रहे. हाल भरा हुआ था. 500 लोगों को इस हाल में प्रवेश नहीं मिल पाया था. 80 प्रतिशत श्रोता फ्रेंच थे.’’

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