जिस तरह नरेंद्र मोदी और अमित शाह आगामी 5 राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में केंद्रीय मंत्री और सांसदों को ताश के पत्तों की तरह फेंट रहे हैं, उस से ये चेहरे मजाक का विषय बन गए हैं. सवाल यह है कि क्या नरेंद्र मोदी और अमित शाह स्वयं किसी राज्य से किसी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने का साहस दिखाएंगे?

यह सवाल इसलिए भी है कि चाहे मध्य प्रदेश हो, छत्तीसगढ़ या फिर राजस्थान, तीनों ही राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की स्थिति गङबङ है और अगर ये महानुभाव चुनाव लड़ते हैं तो कथित रूप से उन की सोच के मुताबिक यहां भाजपा की सरकार बन जाएगी।

मोदी और शाह को डर क्यों ?

दरअसल, भारतीय जनता पार्टी का नेतृत्व जब से नरेंद्र दामोदरदास मोदी और अमित शाह के कंधे पर आया है, भाजपा में रोज नएनए प्रयोग हो रहे हैं, जिस में आज सब से अधिक चर्चा में है आगामी 5 विधानसभा चुनाव में भाजपा के सांसदों और सत्ता में मंत्री पद पर बैठे शख्सियतों को विधानसभा चुनाव में उतारना.

नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी जब सारी नैतिकता को उतार कर फेंक चुकी है, तब ऐसे में विधानसभा चुनाव में राज्यों में किसी भी तरह सत्ता बनी रहे के फार्मूले के तहत केंद्र में बैठे मंत्रियों को विधानसभा चुनाव में उतारा जा रहा है.

मजाक नहीं तो और क्या ?

इतना ही नहीं, सांसदों को भी विधानसभा के टिकट दिए जा रहे हैं. इस में कैलाश विजयवर्गीय का नाम तो एक मजाक बना कर देश की राजनीति में चर्चा का विषय बना हुआ है. उन्होंने साफसाफ कह दिया कि उन का मन 1 फीसदी भी चुनाव लड़ने का नहीं है।

इस एक उदाहरण से समझा जा सकता है कि भाजपा के केंद्र में बैठे नरेंद्र मोदी और अमित शाह किस तरह आने वाले चुनाव में मंत्रियों और सांसदों को प्यादे की तरह इस्तेमाल करेंगे. इस में चाहे उन मंत्रियों व सांसदों की सहमति हो या न हो या फिर वे चुनाव लड़ कर हार जाएं और मजाक का विषय बन जाएं.

दरअसल, भारतीय जनता पार्टी समझ चुकी है कि बड़ेबड़े चेहरों को चुनाव लड़ाने से पार्टी को राजनीतिक अनुभव और लोकप्रियता का लाभ मिला है. इन बड़े शहरों के पास चुनाव जीतने का बेहतर मौका होता है और वे पार्टी के लिए वोट जुटाने में भी मदद करते हैं. इसी फार्मूले के तहत मध्य प्रदेश में जहां एक सर्वे रिपोर्ट यह बता रही है कि भाजपा की उलटी गिनती चल रही है, वहीं बीजेपी ने 2 केंद्रीय मंत्रियों- नरेंद्र सिंह तोमर और फग्गन सिंह कुलस्ते के साथसाथ 4 अन्य सांसदों को भी टिकट दिया है.

उलटा न पड़ जाए दांव

भाजपा ने लंबे समय के विश्लेषण के बाद यह पाया है कि विपक्ष को कमजोर करने के लिए बड़ेबड़े चेहरों को चुनाव लड़ाने से विपक्ष को कमजोर करने में मदद मिल सकती है. इन नेताओं के सामने खड़े होने से विपक्ष के उम्मीदवारों के लिए चुनाव जीतना कठिन हो जाता है. जैसे, राजस्थान में 3 केंद्रीय मंत्रियों- गजेंद्र सिंह शेखावत, कैलाश चौधरी और अर्जुन राम मेघवाल के साथसाथ और 4 सांसदों को टिकट दिए जाने की संभावना है.

इन चेहरों के मैदान में आने की अटकलों के बाद जहां भाजपा यह मान रही है कि राजस्थान में सरकार बना लेना आसान होगा, वहीं कांग्रेस और आम जनमानस यह मान रहा है कि अगर ये जो चेहरे चुनाव हार जाते हैं तो भाजपा का क्या होगा.

खतरे में भविष्य

भारतीय जनता पार्टी का नेतृत्व अपने उन चेहरों को परेशानियों में डाल रहा है जो बड़ा नाम बन चुके हैं. अब अगर ये चेहरे चुनाव हार जाते हैं तो इन का भविष्य खतरे में पड़ जाएगा. जैसे मध्य प्रदेश में राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को इंदौर 1 विधानसभा सीट से टिकट दिया गया है, जिस का जमीनी असर देखने को यह मिल सकता है कि अगर विजयवर्गीय चुनाव हार जाते हैं तो उन की राजनीति चौपट हो जाएगी.

ऐसे में यह चर्चा है कि अपने केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को विधानसभा चुनाव की आग में झोंकने वाले अमित शाह और नरेंद्र मोदी क्या किसी राज्य की किसी विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ कर उसे राज्य में जीत और सत्ता वापसी का कारनामा कर सकते हैं?

देखने वाली बात

बहरहाल, बीजेपी राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में भी वहां से चुन कर दिल्ली पहुंचे नेताओं को वापस उन के प्रदेशों में भेज सकती है. तेलंगाना से बीजेपी के 4 सांसद हैं. पार्टी ने उन में से एक जी. किशन रेड्डी को केंद्रीय मंत्री और तेलंगाना प्रदेश का अध्यक्ष बना रखा है. बीजेपी के तेलंगाना से 3 अन्य सांसद संजय बांदी, अरविंद धर्मपुरिया और सोयम बाबू राव हैं.

संभव है कि सभी चारों सांसदों को बीजेपी विधानसभा चुनाव लड़वा सकती है क्योंकि पार्टी इस बार तेलंगाना में मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) की सरकार को पलटने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती. खासकर, कर्नाटक के हाथ से निकल जाने के बाद सत्ता के नजरिए से बीजेपी का दक्षिणी राज्यों से सफाया हो गया, इसलिए वह तेलंगाना के जरिए देश के दक्षिणी हिस्से में सत्ता पर दखल बनाए रखना चाहती है.

देखना यह होगा कि आने वाले समय में भाजपा का यह प्रयोग कितना सफल होता है या फिर भाजपा के गले का कांटा बन जाता है.

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