यह सच है, कभी कोई एक शख्स पूरे समाज और देश को दिशा दे देता है. ऐसे ही महत्वपूर्ण सच्चे अर्थों में देश के रत्न के रूप में कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन का योगदान अतुलनीय कहा जा सकता है क्योंकि उन्होंने अपने योगदान से देश को खाद्यान के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में अहम भूमिका निभाई जिसे देश ने हमेश स्मरण रखा और एक कृषि वैज्ञानिक के रूप में उन्हें सर आंखों पर बैठाया.

दरअसल’हरित क्रांति’ में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन का 28 सितंबर 2023 को चेन्नई में देहावसान हो गया. आप 98 वर्ष के थे. तीन बेटियों में से एक बेटी सौम्या स्वामीनाथन विश्व स्वास्थ्य संगठन की पूर्व मे मुख्य वैज्ञानिक रही हैं.

जब देश में आकाल के बादल मंडरा रहे थे ऐसे समय में एक ध्रुव तारे की तरह उन्होंने रोशनी फैलाई उसके परिणाम स्वरूप देश को खाद्यान में जो सुरक्षा मिली, उसकी तारीफ दुनिया ने की. यह समय था 1960 का.

देश को खाद्य एवं पोषण सुरक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने का महत्त्वपूर्ण कार्य करने वाले एम एस स्वामीनाथन के योगदान ने 1960 के दशक के दौरान दुर्भिक्ष के खतरे को अद्भुत तरीके से रोक दिया. निधन से पूर्व एम एस स्वामीनाथन का उम्र संबंधी बीमारियों के लिए इलाज चल रहा था.

उन्होंने अपने पैतृक आवास में सुबह सवा 11 बजे अंतिम सांस ली. उनके निधन की खबर सुनकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा, “स्वामीनाथन ने अपने पीछे एक समृद्ध विरासत छोड़ी है जो दुनिया को मानवता के लिए योगदान है.”

इसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य महत्वपूर्ण राजनीतिक शख्सियत में कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन को अपने श्रद्धांजलि दी और उनके योगदान को याद किया है.

फसल को दोगगुना करने का अप्रतिम योगदान

आजादी के बाद देश धीरेधीरे आगे बढ़ रहा था. ऐसे समय में जब अकाल की छाया मंडरा रही थी. 1960 के दशक में स्वामीनाथन ने गेहूं और चावल की अच्छी उपज देने वाली किस्मों को विकसित करने में सफलता प्राप्त की और खाद्य के संदर्भ में देश को महत्वपूर्ण सुरक्षा प्रदान की जिसे कभी नहीं बुलाया जा सकता. ऐसे में एम एस स्वामीनाथन विश्व खाद्य पुरस्कार 1987 में पाने वाले पहली शख्सियत बने.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वामीनाथन के योगदान को रेखांकित करते हुए कहा, “कृषि क्षेत्र में उनके अभूतपूर्व योगदान ने लाखों लोगों के जीवन को बदला.”

यहां उल्लेखनीय है कि’वर्ल्ड फूड प्राइज फाउंडेशन’ ने माना था कि वैज्ञानिक के रूप में एमएस स्वामीनाथन के योगदान के कारण भारत में गेहूं का उत्पादन कुछ ही वर्षों में दोगुना हो गया था, जिससे देश आत्मनिर्भर बना और लाखों लोग भुखमरी से बच गए थे.

उनके महान योगदान के सम्मान में दुनियाभर के विश्वविद्यालयों से डाक्टरेट की 84 मानद डिग्री प्रदान की थीं. स्वामीनाथन ‘रायल सोसायटी आफ लंदन’ और ‘यूएस नेशनल एकेडमी आफ साइंसेज’ समेत कई प्रमुख वैज्ञानिक एकेडमी के शोधार्थी रहे हैं और 2007 से 2013 तक राज्यसभा सदस्य रहे.

स्वामीनाथन कृषि मंत्रालय में प्रधान सचिव (1979-80), योजना आयोग (1980-82) में कार्यवाहक उपाध्यक्ष और बाद में सदस्य (विज्ञान और कृषि) और फिलीपीन के अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान में महानिदेशक (1982-88) पद पर भी अपनी सेवाएं दीं.

आजाद भारत के एक कृषि वैज्ञानिक के रूप में एमएस स्वामीनाथन ने कृषि के क्षेत्र में अफगानिस्तान और म्यांमा में चलाई जा रही परियोजनाओं पर नजर रखने के लिए विदेश मंत्रालय द्वारा गठित कार्यबल की भी अध्यक्षता की थी.

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आइएआरआइ) के निदेशक एके सिंह ने कहा, ‘स्वामीनाथन के निधन से कृषि अनुसंधान, शिक्षा और विस्तार के एक ऐसे युग का अंत हो गया जो आसान नवाचार से भरा हुआ था.’

पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा ने स्वामीनाथन के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा, “उन्हें कई मौकों पर उनकी सलाह से काफी लाभ मिला.”

एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना करने वाले स्वामीनाथन को संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा हरित क्रांति में उनके नेतृत्व को रेखांकित करते हुए उन्हें ‘आर्थिक पारिस्थितिकी का जनक’ बताया गया है.

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