शाम के करीब साढ़े 7 बजे का वक्त था. मोहन कुमार खंडेलवाल पटना स्थित अपने होटल में ही थे तभी उन के मोबाइल पर एक काल आई. वह काल एक अनजान नंबर से आई थी. जिस तरह वह अन्य काल्स को रिसीव करते थे, उसी तरह उस को भी रिसीव करते हुए जैसे ही हैलो कहा तभी दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘तुम्हारे बेटे शिवम का कार सहित अपहरण कर लिया है.’’

शिवम उन का 14 साल का बेटा था, जो पटना के बीरचंद पटेल रोड स्थित न्यू पटना क्लब में टेनिस खेलने जाता था. कार उन का ड्राइवर गिरीश पाठक चला कर ले जाता था. बेटे के अपहरण की बात सुन कर मोहन कुमार के तो जैसे होश ही उड़ गए. अपहर्त्ता बेटे को कोई हानि न पहुंचा सकें इसलिए वह बड़ी ही विनम्रता से बोले, ‘‘आप मेरे बेटे को छोड़ दीजिए, बदले में आप मुझ से जो भी मांगेंगे, मैं दे दूंगा.’’

‘‘हमें 2 करोड़ रुपए चाहिए. पैसों का इंतजाम करने के लिए कल दोपहर 2 बजे तक का वक्त दिया जाता है. तुम तब तक पैसों का इंतजाम कर लो और अगर तुम ने पैसे नहीं दिए या फिर कोई चालाकी दिखाने की कोशिश की तो तुम बेटे से हाथ धो बैठोगे.’’ अपहर्त्ता ने चेतावनी दी.

‘‘मैं पैसे दे दूंगा लेकिन बेटे को कुछ नहीं कहना. हमें बेटे से बात तो करा दो ताकि हमें कुछ तसल्ली आ जाए.’’ मोहन कुमार विनम्रता से बोले. बेटे की आवाज सुनने के लिए वह फोन को कान से चिपकाए रहे.

कुछ देर बाद उन के कान में बेटे की आवाज आई, ‘‘हां पापा, मैं अंकल के कब्जे में हूं.’’

बेटे की आवाज से उन्हें महसूस हुआ कि जैसे वह डरासहमा हुआ है. उन्होंने बेटे को हिम्मत बंधाते हुए कहा, ‘‘बेटा, घबराना मत. तुम बहुत जल्दी आ जाओगे.’’

इस से पहले कि वह और कुछ कहते दूसरी ओर से फोन डिसकनेक्ट हो गया. उन्होंने कई बार हैलोहैलो कहा. इस के बाद भी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली तो जिस नंबर से उन के फोन पर काल आई थी, काल बैक किया लेकिन फोन स्विच्ड औफ हो चुका था.

उस नंबर को उन्होंने कई बार डायल किया लेकिन स्विच्ड औफ होने की वजह से वह नहीं मिल सका. उन्होंने अपने ड्राइवर गिरीश पाठक को फोन लगाया लेकिन उस का फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा था. अपहरण शिवम का हुआ है तो ड्राइवर का फोन बंद क्यों है? अपहर्त्ताओं ने क्या उसे भी अपने काबू में कर रखा है या वह उन के चंगुल से बाहर है. यह बात वह समझ नहीं पा रहे थे.

मोहन कुमार खंडेलवाल की घबराहट बढ़ गई. वह होटल से सीधे कौशल्या एस्टेट स्थित अपने घर पहुंचे. उन्होंने सब से पहले पत्नी से पूछा, ‘‘शिवम टेनिस खेलने के लिए घर से कितने बजे निकला था?’’

‘‘रोज की तरह वह शाम सवा 4 बजे निकला था. मगर क्या हुआ उसे? आप यह सब क्यों पूछ रहे हैं?’’ पत्नी ने पूछा.

न चाहते हुए भी मोहन कुमार को बेटे के अपहरण की बात पत्नी को बतानी पड़ी. बेटे के अपहरण की खबर सुनते ही पत्नी रोने लगीं. तब मोहन कुमार ने उन्हें समझाते हुए भरोसा दिलाया कि उन की अपहर्त्ता से बात हो चुकी है. जल्द से जल्द बेटे को उन के पास से ले आएंगे.

जिस टेनिस क्लब में शिवम प्रैक्टिस करने जाता था, मोहन खंडेलवाल ने फोन से उस क्लब के संचालक से संपर्क किया तो पता चला कि शिवम आज क्लब में पहुंचा ही नहीं था. इस का मतलब यह हुआ कि घर से क्लब जाते समय ही शिवम का अपहरण कर लिया था.

उन्होंने रात करीबन साढ़े 8 बजे फोन से पटना के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक मनु महाराज से बात कर बेटे के अपहरण की बात बता दी. साथ ही जिस फोन नंबर से उन के पास फिरौती के लिए फोन आया था, वह फोन नंबर भी उन्हें बता दिया. यह 7 फरवरी, 2014 की बात है.

मामला अपहरण का था इसलिए एसएसपी ने तुरंत तेजतर्रार पुलिस अधिकारियों की 3 टीमें बनाईं. तीनों टीमों के निर्देशन की जिम्मेदारी एसपी सिटी जयंत कांत को सौंपी गई.  एक पुलिस टीम शहर पुलिस उपाधीक्षक (सिटी) ममता कल्याणी की अगुवाई में बनी थी. एसएसपी के कहने पर मोहन खंडेलवाल एसपी सिटी जयंत कांत से मिले और उन्हें बेटे के अपहरण की कहानी बता दी. मोहन खंडेलवाल से बात करने के बाद एसपी सिटी ने शहर कोतवाली में अपहरण का केस दर्ज करा दिया.

मोहन खंडेलवाल ने पुलिस को बताया कि उन का ड्राइवर गिरीश पाठक ही सैंट्रो कार बीआरओ 1वी 8578 से शिवम को न्यू पटना क्लब ले जाता था और शाम 7 सवा 7 बजे वह टेनिस खेल कर घर लौट आता था. उन्होंने यह भी बताया कि शिवम के अपहरण के बाद ड्राइवर का फोन बंद है. इसलिए उन्होंने आशंका जताई कि शायद गिरीश पाठक ने ही अपने साथियों के साथ मिल कर शिवम का अपहरण कर लिया है.

जिस नंबर से फिरौती की काल आई थी, पुलिस ने उस नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया. जांच से यह पता चला कि वह फोन नंबर कर्नाटक का है और वह प्रदीप पाठक के नाम से लिया गया है. लेकिन फिरौती की काल करते समय वह सिम दूसरे आईएमईआई नंबर वाले फोन में डाला गया था.

पुलिस की तीनों टीमें आईएमईआई नंबर और फोन नंबर के सहारे रात भर जांच को आगे बढ़ाने की कोशिश में जुटी रहीं. पुलिस को यह पता लग चुका था कि जिस समय अपहर्त्ता ने मोहन खंडेलवाल को फिरौती की काल की थी, उस समय उस के फोन की लोकेशन बिहार के ही भोजपुर जिले के नजदीक धनुपुरा गांव की थी.

एक पुलिस टीम पटना में मुख्य जगहों पर लगे सीसीटीवी और एएनपीआर कैमरों की फूटेज खंगालने लगी. एएनपीआर कैमरे शहर के मुख्य चौराहे पर लगे थे. इन कैमरों से वाहनों की नंबर प्लेट भी पढ़ी जा सकती है. पुलिस के पास खंडेलवाल की सैंट्रो कार का नंबर था इसलिए वह इन कैमरों से यह जानने की कोशिश करने लगी कि वह सैंट्रो कार किस तरफ गई है?

उधर बेटे की चिंता में खंडेलवाल दंपति को भी रात भर नींद नहीं आई. बीचबीच में वह पुलिस को फोन कर के यह जानने की कोशिश कर रहे थे कि पुलिस को अपहर्त्ताओं और बेटे के बारे में कोई जानकारी मिली कि नहीं. पुलिस से उन्हें आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिल रहा था.

सुबह होते ही पुलिस की टीमें धुनुपुरा गांव चली गईं और अपने तरीके से बच्चे के बारे में पता लगाने लगीं. इसी दौरान पुलिस सर्विलांस टीम से खबर मिली कि जिस फोन नंबर से खंडेलवाल से फिरौती की रकम मांगी गई थी, वह नंबर कुछ देर के लिए दूसरे फोन में डाला गया था. वह फोन वही था जिस में कर्नाटक वाला यही नंबर रेग्युलर यूज किया जाता था.

वह फोन कुछ देर के लिए औन होने पर पुलिस का काम आसान हो गया. इस से पुलिस को उस की लोकेशन पता चल गई. उस की लोकेशन धनुपुरा के पास इब्राहीमनगर की  थी. इब्राहीमनगर में पुलिस टीमों ने घरघर जा कर सर्चिंग शुरू कर दी. तभी सुबह 6 बजे एक मकान में 2 युवक और अपहृत शिवम मिल गया. शिवम के हाथपैर बंधे हुए थे और उस का मुंह भी कपड़े से बंधा था.

शिवम को सहीसलामत बरामद करने की बात जांच टीम ने एसएसपी को बता दी. बाद में बात मोहन खंडेलवाल को भी बता दी गई. बेटे को अपहर्त्ताओं के चंगुल से छुड़ाने पर खंडेलवाल दंपति की खुशी का ठिकाना न रहा. वे तुरंत कोतवाली पहुंच गए.

पुलिस ने जिन 2 युवकों को हिरासत में लिया था, उन्होंने अपने नाम अभिषेक सिंह और प्रदीप पाठक बताए थे. दोनों युवकों से पूछताछ करने के लिए पुलिस गिरफ्तार कर के उन्हें कोतवाली ले आई.

अभिषेक और प्रदीप पाठक से पूछताछ करने पर पता चला कि शिवम के अपहरण की साजिश खंडेलवाल के होटल में काम करने वाली युवती अनामिका और उस के पति गिरीश पाठक ने रची थी.

मोहन खंडेलवाल ने भी बेटे के अपहरण में गिरीश पाठक पर शक जताया था. गिरीश और उस की पत्नी अनामिका पिछले 2 दिनों से अपनी ड्यूटी पर भी नहीं आ रहे थे और उन के फोन भी स्विच्ड औफ थे. पुलिस ने भी दोनों मास्टर माइंड की तलाश शुरू कर दी, लेकिन उन का पता नहीं लगा.

केवल 14 घंटे के अंदर अपहृत बच्चे के सहीसलामत बरामद के अलावा 2 अपहर्त्ता भी गिरफ्तार किए जा चुके थे. यही पुलिस की बड़ी उपलब्धि थी. अभियुक्त अभिषेक और प्रदीप पाठक से विस्तार से पूछताछ की गई तो शिवम के अपहरण की दिलचस्प कहानी सामने आई.

बिहार की राजधानी पटना शहर में कौशल्या एस्टेट के रहने वाले मोहन कुमार खंडेलवाल का शहर में एग्जिवेशन रोड पर एक होटल था. इस के अलावा उन के कई और बिजनैस भी थे. इस की वजह से उन की गिनती शहर के अच्छे बिजनैसमैनों में थी. उन का एक बेटा था शिवम. वह सेंट जोसफ हाई स्कूल में कक्षा 9वीं में पढ़ता था.

14 वर्षीय शिवम को पढ़ाई के साथ टेनिस खेलने का शौक था. बेटे की रुचि को देखते हुए मोहन खंडेलवाल उस की प्रतिभा बढ़ाना चाहते थे. अच्छे खिलाड़ी बनने के गुर सीखने के लिए शिवम पटना के बीरचंद पटेल रोड पर स्थित न्यू पटना क्लब जाने लगा. वहां  वह ढाईतीन घंटे टेनिस की प्रैक्टिस करता था.

खंडेलवाल ने बेटे को क्लब ले जाने और वहां से घर लाने के लिए अपने ड्राइवर गिरीश पाठक की ड्यूटी लगा रखी थी. गिरीश ही सैंट्रो कार से शिवम को शाम 4 बजे क्लब ले जाता और उस के प्रैक्टिस करने के बाद 7-सवा 7 बजे घर लाता था.

गिरीश पाठक खंडेलवाल के होटल में रिसैप्शनिस्ट की नौकरी करने वाली अनामिका का पति था. अनामिका पटना के ही थाना जगनपुर के ककरबाग के रहने वाले दिलीप कुमार की बेटी थी. वह वहां पर एक डेयरी चलाते थे.

अनामिका अपने 2 भाइयों के बीच अकेली बहन थी. इसलिए परिवार में वह सब की दुलारी थी. इंटरमीडिएट पास करने के बाद उस ने मोहन खंडेलवाल के होटल में रिसैप्शनिस्ट की नौकरी कर ली.

खंडेलवाल के यहां गिरीश पाठक नाम का एक युवक ड्राइवर था जो भोजपुर जिले के कचनत गांव में रहने वाले देवेंद्रनाथ पाठक का बेटा था. मोहन खंडेलवाल को जब वह उन के होटल ले जाता तो फुरसत में रिसैप्शनिस्ट अनामिका से बात करता था. हमउम्र होने की वजह से दोनों खूब बातें करते थे. धीरेधीरे उन के बीच बातों का दायरा बढ़ता गया और वे एकदूसरे को चाहने लगे.

दिनोंदिन उन का प्यार बढ़ने लगा. हालात यहां तक पहुंच गए कि अलगअलग जाति होने के बावजूद उन्होंने शादी करने का फैसला ले लिया. फिर घर वालों की मरजी के खिलाफ गिरीश पाठक और अनामिका ने जनवरी 2013 में प्रेम विवाह कर लिया.

शादी के बाद दोनों ही पटना में किराए पर कमरा ले कर रहने लगे. चूंकि दोनों ही कमा रहे थे इसलिए उन की गृहस्थी ठीकठाक चल रही थी. वे एक बड़े बिजनैसमैन मोहन खंडेलवाल के यहां नौकरी करते थे. खंडेलवाल के ठाठबाट देख कर उन के मन में भी ऐश की जिंदगी गुजारने की लालसा होती थी, मगर जितनी पगार उन्हें मिलती थी उस से उन की महत्त्वाकांक्षाएं पूरी होने वाली नहीं थीं. ऐसा क्या करें, जिस से उन के पास भी अकूत संपत्ति हो जाए, इसी बात पर वे विचार करते थे.

इसी दौरान उन के दिमाग में विचार आया कि जिस खंडेलवाल के यहां वे नौकरी कर रहे हैं, क्यों न उन के बेटे शिवम का किडनैप कर लिया जाए. क्योंकि वह पैसे वाले हैं इसलिए शिवम की फिरौती पर उन्हें मोटा पैसा मिलने की उम्मीद थी. शिवम को क्लब तक गिरीश ही छोड़ने जाता था इसलिए उस का किडनैप भी आसानी से होने की उम्मीद थी.

गिरीश पाठक ने जल्दी से मालदार होने का उपाय तो खोज लिया लेकिन जो काम कर के अपनी तमन्ना पूरी करनी चाहते थे, वह काम इतना आसान नहीं था. उस ने इस योजना में अपने ताऊ के बेटे प्रदीप पाठक को शामिल करने का फैसला कर लिया.

प्रदीप पाठक भोजपुर जिले के ही थाना पीटो का रहने वाला था. वह बंगलुरु में एक ट्रैवल एजेंसी में ड्राइवर था. गिरीश की प्रदीप से फोन पर बात होती रहती थी. प्रदीप भी अपनी नौकरी से खुश नहीं था, वह भी जल्दी मोटे पैसे कमाना चाहता था.

29 जनवरी, 2014 को गिरीश ने उसे एक काम में मोटा पैसा कमाने का लालच दे कर पटना आने को कहा. प्रदीप ने उस से काम के बारे में जानना चाहा तो गिरीश ने कह दिया कि काम के बारे में वह पटना आने पर ही बताएगा.

पहली फरवरी, 2014 को प्रदीप बंगलुरु से पटना आ गया और मीठापुर बस स्टैंड के नजदीक अपने भाई विनय पाठक के मकान में ठहर गया. फोन कर के उस ने गिरीश को अपने आने की सूचना दी तोवह उस के कमरे पर ही पहुंच गया.

गिरीश ने उसे बिजनैसमैन मोहन खंडेलवाल के 14 वर्षीय बेटे शिवम के अपहरण कर मोटी फिरौती वसूलने की योजना बताई. अच्छे पैसे मिलने की उम्मीद में प्रदीप ने हामी भर दी.

वे इस गेम को सुरक्षापूर्वक खेलना चाहते थे. गिरीश चाहता था कि उन के साथ कोई ऐसा शख्स और शामिल हो जाए जो दबंग टाइप का हो. तब प्रदीप ने अभिषेक सिंह को शामिल करने का सुझाव दिया जो सीआरपीएफ की बटालियन नंबर 197 में नौकरी करता है. उस की पोस्टिंग सारंदा (झारखंड) में थी.

अभिषेक सिंह जिला भोजपुर के गड़हवी गांव के रहने वाले संतोष सिंह का बेटा था. आरडीएम हाईस्कूल में पढ़ते समय अभिषेक ने प्रदीप पाठक के यहां किराए पर कमरा लिया था. वहां रहने के दौरान ही उस की प्रदीप से दोस्ती हो गई. कभीकभी गिरीश भी प्रदीप पाठक के यहां आता था इसलिए वह भी अभिषेक सिंह को जानता था. बाद में अभिषेक की सीआरपीएफ में नौकरी लग गई. नौकरी लग जाने के बाद भी प्रदीप की अभिषेक से फोन पर बात होती रहती थी.

प्रदीप जब पटना आ गया तो उस ने मिलने के लिए अभिषेक को बुलाया. दोस्त के कहने पर अभिषेक पटना आ गया तो प्रदीप ने उस से बिजनैसमैन के बेटे का अपहरण करने के बारे में बात की. पैसों के लालच में अभिषेक भी उन की योजना में शामिल हो गया. फिर गिरीश, अनामिका, प्रदीप और अभिषेक ने योजना को अंजाम देने की रूपरेखा बनाई. उन्होंने हथियार वगैरह का इंतजाम भी कर लिया.

गिरीश ने प्रदीप और अभिषेक से कहा, ‘‘शाम करीबन 4 बजे शिवम को टेनिस खेलने के लिए सफेद रंग की सैंट्रो कार नंबर बीआर ओ 1वी 8578 से ले जाता हूं. जैसे ही मैं क्लब से थोड़ी पहले डबल ब्रेकर पर पहुंचूंगा, कार धीमी कर दूंगा. तुम लोग वहां पहले से ही तैयार रहना. कार धीमी होते ही गेट खोल कर कार में बैठ जाना.’’

7 फरवरी, 2014 को गिरीश पाठक शिवम को सैंट्रो कार से क्लब की ओर ले कर रवाना हुआ. अभिषेक और प्रदीप पाठक पहले से ही डबल ब्रेकर के पास खड़े हो गए थे. जैसे ही गिरीश डबल ब्रेकर के पास पहुंचा तो अपने साथियों को देख कर उस ने कार धीमी कर ली.

कार के पिछले गेटों के लौक उस ने पहले से ही खोल रखे थे. कार धीमी होते ही प्रदीप और अभिषेक कार के पिछले गेट खोल कर अंदर बैठ गए. शिवम ने अंजान लोगों को गाड़ी में चढ़ते देखा तो वह चौंक गया. इस से पहले कि शिवम उन से कुछ कहता, प्रदीप और अभिषेक ने तमंचा दिखा कर उसे डरा दिया. गिरीश कार तेज गति से चलाते हुए प्रदीप के भाई विनय पाठक के मकान पर ले गया.

मकान की चाबी प्रदीप के पास ही थी. उस ने ताला खोला और शिवम को डराधमका कर एक कमरे में बंद कर दिया. कार उन्होंने उसी मकान में खड़ी कर दी थी. प्रदीप के पास बंगलुरु का एयरसेल कंपनी का सिम था. गिरीश ने उस से वह सिम ले कर अपने मोबाइल फोन में डाला और शाम साढ़े 7 बजे शिवम के पिता मोहन खंडेलवाल को फोन कर के शिवम के अपहरण की जानकारी दी और 2 करोड़ रुपए की फिरौती मांगी. उस ने उस समय शिवम की उस के पिता से बात करा दी ताकि उन्हें बेटे के अपहरण होने का विश्वास हो जाए.

खंडेलवाल से बात करने के बाद उस ने एयरसेल का सिम निकाल कर प्रदीप को दे दिया और कहा कि वह इसे फोन में न डाले. गिरीश बहुत शातिरदिमाग था वह खुद को सेफ रखना चाहता था. इसलिए वह शिवम के साथ कमरे पर नहीं ठहरना चाहता था.

उस ने अभिषेक और प्रदीप से बहाना बनाते हुए कहा, ‘‘अभीअभी मेरी पत्नी का फोन आया है वह आरा आई हुई है. मैं उसे होटल में ठहरा कर रात में ही यहां आने की कोशिश करूंगा. नहीं तो सुबह जरूर आ जाऊंगा.’’ इतना कह कर गिरीश पाठक वहां से चला गया.

अगले दिन गिरीश को किसी तरह पता चल गया कि पुलिस शिवम को सरगर्मी से तलाश रही है तो वह पत्नी अनामिका को ले कर पटना से रफूचक्कर हो गया.

प्रदीप और अभिषेक को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस ने विनय के मकान से ही मोहन खंडेलवाल की कार भी बरामद कर ली. इस के बाद पुलिस ने अनामिका और गिरीश पाठक की सरगर्मी से तलाश शुरू कर दी.

पुलिस ने गिरफ्तार किए गए दोनों अभियुक्त प्रदीप पाठक और अभिषेक सिंह को 8 फरवरी, 2014 को गिरफ्तार करने के बाद उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. लेकिन फरार मास्टरमाइंड गिरीश और अनामिका का पता नहीं लग सका. पटना पुलिस उन्हें हर संभावित जगहों पर खोजती रही. कई महीने की खोजबीन के बाद भी उन का कोई सुराग नहीं मिला.

इसी बीच पटना पुलिस को सूचना मिली कि अभियुक्त गिरीश पाठक और उस की पत्नी अनामिका दिल्ली में कहीं छिपे हुए हैं. घटना के दोनों मास्टर माइंडों को खोजने में पटना पुलिस ने दिल्ली पुलिस से सहयोग मांगा.  पुलिस आयुक्त बी.एस. बस्सी ने यह जांच क्राइम ब्रांच को करने के आदेश दिए.

क्राइम ब्रांच के डीसीपी भीष्म सिंह ने एसीपी के.पी.एस. मल्होत्रा के निर्देशन में एक पुलिस टीम बनाई. इस टीम में इंसपेक्टर सुनील कुमार, एसआई रविंद्र तेवतिया, निर्भय सिंह राणा, हेडकांस्टेबल ईश्वर सिंह, कुसुम पाल, अजय शर्मा, विक्रम दत्त, ईद मोहम्मद, कांस्टेबल मोहित कुमार, मनोज, प्रेमपाल, सुरेंद्र, उदयराम, अंजू आदि को शामिल किया गया.

टीम के पास केवल गिरीश पाठक का मोबाइल नंबर और फोटोग्राफ था. इन के सहारे उसे तलाशना किसी चुनौती से कम नहीं था. पुलिस टीम ने उस के फोन को सर्विलांस पर लगा दिया. लेकिन वह स्विच्ड औफ आ रहा था.

इतनी बड़ी दिल्ली में फोटो के सहारे उसे ढूंढना आसान नहीं था. पुलिस ने दिल्ली के बड़े सभी रेलवे स्टेशनों और अंतरराज्यीय बसअड्डों पर अपने मुखबिरों को लगा दिया. पुलिस ने मुखबिरों को अभियुक्त गिरीश पाठक का फोटो दे दिया था ताकि वे उसे पहचान सकें.

12 जून 2014 को आखिर क्राइम ब्रांच को सफलता मिल ही गई. एक मुखबिर ने सूचना दी कि फोटो में दिखने वाली सूरत का एक आदमी एक औरत के साथ सराय कालेखां बस टर्मिनल पर खड़ा है. मुखबिर की खबर पा कर पुलिस टीम तुरंत सराय कालेखां बस टर्मिनल पहुंच गई और उस आदमी और उस के साथ खड़ी औरत से पूछताछ की तो उन्होंने अपने नाम गिरीश पाठक और अनामिका हैं.

क्राइम ब्रांच औफिस ला कर दोनों से पूछताछ की गई तो उन्होंने पटना के बिजनैसमैन मोहन खंडेलवाल के बेटे शिवम के अपहरण की सारी कहानी उगल दी. चूंकि वे दोनों अभियुक्त पटना पुलिस के वांटेड थे इसलिए दिल्ली पुलिस ने उन की गिरफ्तारी की खबर  पटना पुलिस को दे दी.

दोनों अभियुक्तों को 12 जून, 2014 को साकेत कोर्ट में महानगर दंडाधिकारी अनु अग्रवाल के समक्ष पेश किया जहां से उन्हें जेल भेज दिया.

वांटेड अभियुक्तों की गिरफ्तारी की सूचना पर पटना पुलिस 14 जून को दिल्ली पहुंच गई और कोर्ट में उक्त दोनों अभियुक्तों को ट्रांजिट रिमांड पर दिए जाने की अर्जी पेश की. कोर्ट ने उन की अर्जी को मंजूर कर लिया. फिर पटना पुलिस अभियुक्त गिरीश पाठक और अनामिका को ट्रांजिट रिमांड पर पटना ले गई.

पटना कोतवाली में दोनों से पूछताछ की गई तो उन्होंने शिवम के अपहरण की साजिश रचने से ले कर अपहरण करने की कहानी बता दी. पूछताछ के बाद उन्हें पटना के न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित हैं.

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