तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के पुत्र उदयनिधि ने लेखकों के सम्मेलन में कह डाला है कि सनातन धर्म सामाजिक न्याय के विचार के विरुद्ध है और उसे डेंगू व मलेरिया की तरह समाप्त करना चाहिए. अपने राज्य के विचारक, समाज सुधारक पेरियार व भीमराव अंबेडकर का संदर्र्भ देते हुए उन्होंने कहा कि इस का, बस, विरोध काफी नहीं है. जैसा कि स्वाभाविक है, यह बयान आते ही ब्राह्मणवादी और उन के भक्तों की टोली सक्रिय हो गई और एक्स (पहले ट्विटर) पर बाढ़ आ गई कि यह देशद्रोही, धर्मद्रोही बयान देने की हिम्मत कैसे हुई.

आजकल सनातन धर्म की तूती ज्यादा ही जोर से मचाई जा रही है क्योंकि मोहन भागवत जैसे संघ प्रमुख ने कहना शुरू कर दिया कि हर भारतवासी हिंदू है. अगर मुसलिम, ईसाई, नास्तिक भी हिंदू हो गए तो उन्हें शुद्ध हिंदू धर्म चाहिए, इसलिए देशभर के मठों में वहां के महंत अब सनातन धर्म की बात करने लगे हैं जो सीधे पुराणों से लिया जाता है.

करुणानिधि के पौत्र एम के स्टालिन के पुत्र उदयनिधि ने सनातन धर्म के बारे में कुछ कहा है तो भाजपाभक्तों की टोली को बजाय गुस्सा होने के सनातन धर्म के गुण गिनाने चाहिए और बताना चाहिए कि कैसे यह ही सर्वश्रेष्ठ है. वे ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि सिवा संतों, देवीदेवताओं के नाम लेने के, सनातन धर्म, जैसे आज हमें विरासत में मिला है या जैसा हम पुराणों में पढ़ते हैं, में हमें कुछ खास नहीं मिलता. सनातन धर्म के लिए भक्त ब्रह्मा, विष्णु, शिव व उन के अवतारों और सैकड़ों ऋषियोंमुनियों के नाम ले सकते हैं पर उन्होंने सनातन धर्म की रक्षा के अलावा आम जनता के लिए क्या किया, शायद न बता पाए.

हर देवीदेवता का आचरण विवादास्पद रहा है. किसी ने अपनी स्त्री को छोड़ा, किसी ने भाईयों से युद्ध किया, किसी ने गुस्से में आ कर श्राप दिया, किसी ने जातिव्यवस्था की व्याख्या की. ये सब बातें आज नैतिकता और मानवता के तर्क की कसौटी पर दोषरहित साबित नहीं की जा सकतीं.

आजकल सनातन धर्म के इतिहास के बारे में कम सुनने को मिलता है क्योंकि जैसे ही पुराणों का संदर्भ देते हुए कोई बात कहता है, उस पर बीसियों मुकदमे ठोक दिए जाते हैं जिस से वह अदालतों के चक्कर लगातेलगाते परेशान हो जाए. सनातन धर्म की सत्यता की जांच करना आज जोखिम का काम है क्योंकि उदयनिधि रटालिन मुख्यमंत्री के पुत्र हैं, उन्हें पुलिस बेमतलब के मुकदमों में घसीट नहीं सकती.

अच्छा है, भक्त मंडली बजाय गिरफ्तारी की मांग करने के सनातन धर्म के 10-20 गुणों को बता कर देखे और निमंत्रित कर उन गुणों पर हर तरह की प्रतिक्रिया स्वीकारे. शास्त्रार्थ की परंपरा तो इस देश में पुरानी है. इसे अपनाने में क्या हर्ज है बजाय आईपीसी की धारा के 295ए के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कराने के.

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