6 राज्यों के 7 विधानसभा उपचुनावों के मैच में ‘इंडिया’ गठबंधन का पलड़ा भारी रहा है. उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड, केरल, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में हुएये चुनाव इसलिए भी महत्त्वपूर्ण हैंक्योंकिये4 विधानसभाओं और 2024 के लोकसभा चुनावों के ठीक पहले हुएहैं. एक तरह से ये चुनावपूर्व सर्वे जैसे हैं जिनसे जनता के मूड का अंदाजा लगाया जा सकता है. 7 विधानसभाओंके ये चुनाव उस समय हुए जब ‘इंडिया’ गठबंधन की तीसरी मीटिंग मुंबई में हो रही थी और केंद्र की मोदी सरकार ने जवाबी हमला करते हुए ‘वन नेशन, वन इलैक्शन’ और ‘इंडिया बनाम भारत’ जैसे शिगूफे छेड़ रखे थे.
‘इंडिया’ गठबंधन और ‘एनडीए’ के बीच यह पहला सीधा मुकाबला थाजिसका रोमांच किसी भी 20-20 क्रिकेट मैच जैसा ही था. इसका परिणाम ‘इंडिया’ गठबंधन के पक्ष में 4-3 से गया. एनडीए की अगुआ भाजपा को उत्तराखंड और त्रिपुरा की जिन 3सीटों पर विजय मिली भी, वे बहुत छोटे राज्य थे. इसके मुकाबले ‘इंडिया’ गठबंधन ने उत्तर प्रदेश, झारखंड, केरल, और पश्चिम बंगाल जैसे बड़े राज्यों में चुनाव जीता. जहां की जीत के अलग माने हैं.
7 विधानसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश की घोसी में समाजवादी पार्टी के सुधाकर सिंह, डुमरी झारखंड में जेएमएम की बेबी देवी, धनपुर और बक्सनगर त्रिपुरा में भाजपा के बिदूं देबनाथ और तफ्फजल हुसैन, बागेश्वर उत्ताखंड में भाजपा की पार्वती दास, पुथिपल्ली केरल में यूडीएफ के चांडी उम्मेन और धूपगुडी पश्चिम बंगाल में टीएससी के निर्मल चंद्र राय ने जीत हासिल की.
भारतीय जनता पार्टी दलबदल, सीबीआई और ईडी जैसे हथियारों से बारबार विपक्षी नेताओं को डराने का काम करती है. इन उपचुनावों ने भाजपा के इस डर को खत्म कर दिया है. पश्चिम बंगाल में धूपगुडी सीट भाजपा के कब्जे में थी. यहां विपक्ष का कोई साझा उम्मीदवार नहीं था. भाजपा और टीएमसी के साथ वामपंथी दलों ने कांग्रेस के समर्थन से अपना उम्मीदवार खड़ा किया था. ऐसे में विपक्ष की ताकत घटी हुई थी. इसके बाद भी जीत टीएमसी को मिली.
केरल में यूडीएफ के उम्मीदवार चांडी उम्मेन पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी के बेटे हैं. वे राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में उनके साथ पैदल चले थे. केरल में भाजपा का कोई प्रभाव नहीं है. इसके बाद भी चांडी उम्मेन को परेशान करने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ी थी कि जिससे चांडी उम्मेन डर जाएं. लेकिन वे डरे नहीं और अपने पिता से भी बड़ी जीत हासिल की. चांडी उम्मेन की ही तरह उत्तर प्रदेश की घोसी विधानसभा ने भी साबित कर दिया कि डर के आगे जीत है.
उत्तर प्रदेश की घोसी विधानसभा सीट पर भाजपा ने सपा के विधायक दारा सिंह चौहानको तोड़ा, अपनी तरफ मिलाया और उनको विधानसभा का उपचुनाव लड़ा दिया. दारा सिंह को चुनाव जिताने के लिए अपने बुलडोजर मुख्यमंत्री, 2 डिप्टी सीएम, 2दर्जन मंत्री और सैकड़ों कार्यकर्ताओं को चुनावप्रचार में उतार दिया. इसके बाद जब फैसला आया तो भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा. भाजपा को न केवल हार मिली बल्कि उसके वोट भी कम हो गए जबकि उसके मुकाबले समाजवादी पार्टी को जीत भी मिली और उसके वोट भी बढ़ गए.
2022 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को 86 हजार 210 वोट मिले थे. उपचुनाव में ये घटकर 81 हजार 623 रह गए जबकि समाजवादी पार्टी को 2022 में 1 लाख 8 हजार 431 वोट मिले थे जो उपचुनाव में बढ़ कर 1 लाख 24 हजार 295 हो गए. भाजपा के जो वोट घटे, वह यह बता रहाहै कि उस से हर जाति और धर्म का मोहभंग हुआ है. इसका सबसे बड़ा कारण भाजपा की नीतियां है जो जनता को परेशान कर रही हैं. इनमें महंगाई, बेरोजगारी, जाति और धर्म की लड़ाई, तानाशाही, संविधान और सरकारी संस्थाओं का दुरुपयोग जैसे मसले प्रमुख हैं.
भाजपा का सवर्णो और ऊंची जातियों की पार्टी कहा जाता है. घोसी की सीट पर भाजपा ने ओबीसी नेता दारा सिंह चौहान को टिकट दिया था. वर कई बार विधायक और सांसद रह चुके हैं. यहां सपा ने ठाकुर वर्ग के सुधाकर सिंह को टिकट दिया था. सवर्ण ने भाजपा को नकार कर सपा को वोट दिया. सपा को मिले वोट बताते हैं कि हर जाति और धर्म के लोगों का वोट उसे मिला, इसकी सबसे बड़ी वजह भाजपा से उन की नाराजगी थी.
घोसी इस माने में भी अहम है क्योंकि यह उत्तर प्रदेश में है. जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां योगी आदित्यनाथ का पहरा है. उनका पैर अंगद के पैर जैसा माना जा रहा है. भाजपा को लगता है कि उत्तर प्रदेश से लोकसभा चुनाव में उसको 80 में से 80सीटों पर जीत मिलेगी. घोसी ने प्रदेश के मूड को बता दिया है. यहां अंगद का पैर उखड़ सकता है और भाजपा की नाव डूब सकती है.
घोसी में ‘इंडिया’ गठबंधन का भी टैस्ट हो गया. गठबंधन की यूपी में अगुआ सपा ने चुनाव लड़ा. कांग्रेस और लोकदल ने समर्थन किया. नतीजा ‘इंडिया’ के पक्ष में गया. मायावती ने भी अपना दांव चल दिया. भाजपा को लग रहा था कि बसपा के चुनाव न लड़ने से दलित वोट भाजपा को चला जाएगा. मायावती ने अपने लोगों को यह संदेश दिया कि वे अपना वोट नोटा को दें. इसके बाद दलित वोट कम हुआ. घोसी के घमासान में कई दलों को अलगअलग संदेश मिल गएहैं, देखना है कौन किस तरह से इस संदेश को पढ़ता है.
इन चुनावों के बाद भाजपा के दलबदल, ईडी और सीबीआई का डर विपक्षी दलों के बीच से निकल गया है. जनता गुस्से में भी है और एकजुट भी है. यह आने वाले विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनाव में उलटपलट करने वाले संकेत हैं. ‘मोदी, शाह और योगी’ की तिकड़ी की रणनीति फेल हो सकती है. इससे विपक्षी दलों में आत्मविश्वास भरा है.
सपा प्रमुख अखिलेश यादव कहते हैं, ‘घोसी उपचुनाव में सपा और इंडिया गठबंधन प्रत्याशीकी जीत ने भाजपा के घमंड को तोड़ने के साथ 2024 के लोकसभा चुनावों के परिणाम का संकेत भी दे दिया है. हमारी जीत सकारात्मक राजनीति की जीत और सांप्रदायिक नकारात्मक राजनीति की हार है.’