संसद में हालिया फ्लाइंग किस वाला मामला बताता है कि सत्ता पक्ष के लिए महिला न्याय महज मजाक है. इसी कड़ी में कथित रूप से अपनी बेबाक छवि के लिए जाने जानी वाली भाजपा नेत्री स्मृति ईरानी भाजपाई पुरुषवादी एजेंडे को थोपने वाली मुहर बन कर रह गई हैं. उन की यह छवि कहीं न कहीं अमेरिकी दक्षिणपंथी नेत्री फिलिस श्लेफ्ली जैसी बन गई है जो महिलाओं के ही पर कुतरने का काम कर रही थीं.

9 अगस्त को केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी लोकसभा में इस बात को ले कर आगबबूला हो गईं कि राहुल गांधी ने सदन में फ्लाइंग किस दे कर वहां बैठी सारी महिलाओं का अपमान किया है. दरअसल उस दिन हुआ यह था कि जब राहुल गांधी भाषण दे कर सदन से बाहर निकल रहे थे तो उन के हाथ से कुछ कागज जमीन पर गिर पड़े और जब वे उन कागजों को उठाने के लिए ?ाके तो पास खड़े भाजपा के सांसद हंसने लगे. राहुल ने उन्हें हंसते हुए देखा और ट्रेजरी बैंच की तरफ हवा में एक फ्लाइंग किस उछाल कर मुसकराते हुए बाहर निकल गए.

लेकिन स्मृति ईरानी ने इसे ऐसे पेश करने की कोशिश की कि राहुल ने वहां बैठी भाजपा सांसद महिलाओं को ही फ्लाइंग किस दिया और इसी बात को ले कर वे नारीवाद के नाम पर चिल्लाने लगीं कि राहुल गांधी ने कितनी नीच हरकत की, उन्होंने अपने खराब आचरण का प्रमाण दिया वगैरहवगैरह. लेकिन सच तो यह था कि मुद्दा कुछ था ही नहीं.

उस दिन सदन में स्मृति ईरानी का वह रूप महिला का रूप नहीं था बल्कि ताकत और सत्ता में चूर केंद्रीय मंत्री का रूप था. इस का जैंडर से उतना ही वास्ता था जितना मछली का पेड़ पर चढ़ने से और चिडि़या का पानी में तैरने से.

जिस वक्त वे सदन में एक फ्लाइंग किस को ले कर देश और ब्रह्मांड की महिलाओं का अपमान बता रही थीं, ठीक उसी समय बृजभूषण शरण सिंह 2 सीट पीछे बैठा हंस रहा था. जब वे मिसोजिनी की बात कर रही थीं, तब असली मिसोजेनिस्ट वहीं बैठा था जिस ने नाबालिग बच्चियों की छाती पर हाथ फेरा, उन से सैक्सुअल फेवर मांगा. बात न मानने पर उन्हें खेल से निकाल देने की धमकी दी. तब इसी बृजभूषण पर इन्होंने क्यों कुछ नहीं कहा?

महिलाओं का अपमान करने वाले इस बृजभूषण सिंह की मिसोजिनी पर उन्हें गुस्सा क्यों नहीं आया? आखिर यह कैसी संवेदना है उन की कि देश की महिलाओं के प्रति जो इतने महीनों में महिला पहलवानों के लिए एक शब्द भी नहीं निकला उन के मुंह से और आज एक फ्लाइंग किस को ले कर इतना बड़ा बवाल मचा रही हैं?

गुस्सा तो स्मृति ईरानी को तब भी नहीं आया जब सांप्रदायिक हिंसा की आग में जल रहे मणिपुर में उन 2 महिलाओं को सरेआम निर्वस्त्र कर के मर्दों ने उन की परेड करवाई. उन के शरीर से छेड़छाड़ की गई, नोचा गया और वहां बाकी खड़े मर्द ठहाके लगाते रहे. तब इन्हीं स्मृति ईरानी की संवेदना कहां चली गई थी? क्या तब उन्हें महिलाओं का अपमान नहीं दिखा? क्यों मुंह पर ताले पड़ गए थे उन के?

महिला का अपमान तो उन्हें हाथरस रेप केस में भी नहीं दिखा था जब बलात्कार की शिकार हुई उस लड़की की लाश को उस के परिवार की मरजी के खिलाफ रातोंरात पुलिस वालों ने जला दिया था और भी बहुत सारी बातें हैं जिस पर सत्ता में बैठी स्मृति ईरानी को गुस्सा नहीं आता है. कभी इसी स्मृति ईरानी ने चीखचीख कर कहा था, ‘बुलाइए मीटिंग, हम एक सुर में बोलेंगे कि अगर बच्ची का बलात्कार होता है तो यह देश उसे सजाए मौत देगा,’ लेकिन आज वही स्मृति ईरानी मणिपुर की घटना पर दम साधे बैठी रहीं. क्यों? विपक्षी नेताओं पर निशाना साधते हुए वे कहती हैं कि मणिपुर की घटना के लिए वही लोग जिम्मेदार हैं और विपक्ष इस मुद्दे पर संसद में चर्चा नहीं करना चाहता था, जबकि यह बात हर कोई जानता है कि वहां मणिपुर में बीजेपी की सरकार है.

एक तरफ तो स्मृति ईरानी महिला अधिकार की बात करती हैं और वहीं दूसरी तरफ मणिपुर की घटना को ले कर उन की चुप्पी हैरान करती है. स्मृति ईरानी कोई आम महिला नहीं हैं, बल्कि वे एक कलाकार हैं जिन्हें कब, कहां, कितना बोलना है, कितना हंसना है, कितना रोना है, कब चीखनाचिल्लाना है, कितने बड़ेछोटे डायलौग बोलने हैं, सब अच्छे से आता है. राजनीति में रहते हुए भी वे ऐसा ही कर रही हैं तो इस में आश्चर्य की क्या बात है.

स्मृति ईरानी का जीवन चरित्र

23 मार्च, 1977 में जन्मी स्मृति ईरानी का ताल्लुक एक पंजाबी परिवार से है. 3 बहनों में स्मृति सब से बड़ी हैं. दिल्ली में जन्मी स्मृति ईरानी ने नई दिल्ली में होली चाइल्ड औक्सिलियम स्कूल से 12वीं क्लास तक पढ़ाई की है. 2001 में उन्होंने अपनी सहेली के पति जुबिन ईरानी से शादी की और जिन से उन्हें 2 बच्चे हैं.

अभिनेत्री से राजनेता बनने का सफर

मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री के पद पर बैठी स्मृति ईरानी की पहचान ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ सीरियल से हुई थी. एकता कपूर के इस शो से उन्हें काफी लोकप्रियता मिली थी. इस सीरियल की बदौलत वे घरघर की तुलसी बन गई थीं. इस सीरियल के बाद वे टीवी जगत का जानामाना चेहरा बन चुकी थीं. देशविदेश में उन की पहचान बन चुकी थी.

एक इंटरव्यू में स्मृति ने खुलासा किया था कि इस सीरियल में काम करने के उन्हें 1,800 रुपए फीस के तौर पर मिलते थे. इस के अलावा उन्होंने और भी कई सीरियलों में काम किया. स्मृति ईरानी का कैरियर तब शुरू हुआ था जब वे 1998 में मिस इंडिया पैजेंट में फाइनलिस्ट बनीं. इस के बाद उन्होंने कई मौडलिंग प्रोजैक्ट भी किए.

स्मृति ईरानी मैक्डोनल्स में वेटर का काम भी कर चुकी हैं. वे मीका सिंह के साथ एक म्यूजिक अल्बम में भी नजर आ चुकी हैं. लेकिन असली पहचान उन्हें ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ सीरियल से ही मिली. तुलसी के रूप में दर्शकों ने उन्हें खूब सराहा था. वे सिर्फ उस सीरियल की तुलसी नहीं, बल्कि घरघर की तुलसी बन चुकी थीं.

भारत की हर बेटे वाली मां की यही ख्वाहिश होती थी कि उन की भी आने वाली बहू तुलसी जैसी हो को पूरे परिवार जो एक माला में पिरो कर रखती है, सुखदुख में परिवार के साथ खड़ी रहती है. लोग अकसर नाटकड्रामा देखतेदेखते उसे सच मान बैठते हैं और उसे ही अपनी जिंदगी में उतारने की कोशिश करने लगते हैं.

राजनीति की शुरुआत

स्मृति ईरानी 2003 में भाजपा से जुड़ीं. इसी के साथ उन्होंने राजनीति में कदम रखा था. स्मृति ईरानी ने यह फैसला तब लिया था जब वे एक बोल्ड अभिनेत्री होने के लिए सुर्खियों में आई थीं. स्मृति ने अपना पहला चुनाव कांग्रेस उम्मीदवार कपिल सिब्बल के खिलाफ लड़ा जिस में वे हार गई थीं पर फिर भी भाजपा ने उन्हें महाराष्ट्र यूथ विंग का उपाध्यक्ष नियुक्त किया था.

2014 में स्मृति ईरानी ने उत्तर प्रदेश के अमेठी से कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा और राहुल गांधी को बड़ी टक्कर देते हुए बोली थीं कि जो लोग अपने निर्वाचन क्षेत्र का विकास नहीं कर सकते, उन्हें देश के विकास के बारे में नहीं बोलना चाहिए. उन का कहना था कि उन की ईमानदारी, कड़ी मेहनत और समर्पण ने उन्हें कैबिनेट में एक मजबूत स्थान दिलाया.

संसद में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान भी स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी के भाषण का जवाब दिया. बल्कि, तमाम ऐसे मौके आते रहे जब मोदी सरकार ने इन पर भरोसा करते हुए संसद में विपक्ष पर जवाबी हमले की कमान स्मृति ईरानी को सौंपी और स्मृति ईरानी ने इसे बखूबी अंजाम भी दिया.

स्मृति ईरानी से जुड़े विवाद

स्मृति ईरानी से जुड़े विवादों की सूची काफी लंबी है. साल 2004 में स्मृति ने नरेंद्र मोदी पर ही हमला करते हुए कहा था कि उन्हें गुजरात के मुख्यमंत्री का पद छोड़ देना चाहिए. स्मृति ने गुजरात में हुए दंगों को ले कर कहा था कि नरेंद्र मोदी को इस्तीफा दे देना चाहिए.

डिग्री को लेकर विवाद

इस विवाद की शुरुआत उस वक्त हुई जब स्मृति ईरानी के 2004 एवं 2014 के शैक्षणिक योग्यता में अलगअलग बात बताई गई. 2004 में स्मृति ने एफिडेविट के जरिए दिल्ली यूनिवर्सिटी से आर्ट्स में स्नातक होने की बात लिखी. इस में कहा गया कि उन्होंने 1996 में दिल्ली यूनिवर्सिटी के कोरेस्पोंडैंस से स्नातक की डिग्री ली है. लेकिन जब 2014 में वे अमेठी से राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ रही थीं तो उन्होंने 1994 में दिल्ली यूनिवर्सिटी से कौमर्स पार्ट-1 में स्नातक होने की बात लिखी. साल 2019 में स्मृति ईरानी ने एक बार खुद को 12वीं पास बताया था.

रोहित वेमुला और जेएनयू मामला

स्मृति ईरानी के साथ दूसरा विवाद हैदराबाद यूनिवर्सिटी के रिसर्च स्कौलर रोहित वेमुला की आत्मह्त्या एवं जेएनयू मामले को ले कर हुआ था. रोहित वेमुला मामले में स्मृति ईरानी विपक्ष के साथ छात्रों के निशाने पर भी आई थीं. इस मामले में उन्हें सही से हैंडल न कर पाने का आरोप लगा था और इस के बाद स्मृति को शिक्षा मंत्रालय से हटा कर कपड़ा मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंप दी गई थी. रोहित वेमुला मामले पर स्मृति पर तथ्यों के साथ छेड़छाड़ का आरोप लगा था. यही वक्त था जब स्मृति को ‘आंटी नैशनल’ तक कह कर संबोधित किया गया था.

सबरीमाला मंदिर विवाद

स्मृति ईरानी को ले कर तीसरा विवाद केरल के सबरीमाला मंदिर के वक्त हुआ था जब उन्होंने मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर बयान दिया था कि ‘पूजा करने का अधिकार है, लेकिन अपवित्र करने का नहीं.’ उन के इस बयान पर कई महिला संगठनों से ले कर दूसरे कई लोगों ने आपत्ति जताई थी. इस बात पर स्मृति का कहना था कि, ‘मैं सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ बोलने वाली कोई नहीं हूं क्योंकि मैं एक कैबिनेट मंत्री हूं लेकिन यह साधारण सी बात है कि क्या आप माहवारी के खून से सना नैपकिन ले कर चलेंगे और किसी दोस्त के घर में जाएंगे? आप ऐसा नहीं करेंगे. क्या आप को लगता है कि भगवान के घर में ऐसे जाना सम्मानजनक है?’

स्मृति ईरानी की बातों से लगता है कि यहां भी ‘सास बहू’ सीरियल चल रहा है जो वे स्क्रिप्ट पढ़पढ़ कर लोगों को ज्ञान दे रही हैं. खैर, चौथा विवाद उन पर साल 2012 में लगा था. एक टीवी डिबेट के दौरान कांग्रेस नेता संजय निरूपम ने स्मृति को अपशब्द कहे थे. उन्होंने स्मृति पर व्यक्तिगत हमला करते हुए कहा था, ‘आप पहले टीवी पर ठुमका लगाती थीं और अब भाजपा में शामिल हो कर राजनीतिक विश्लेषक बन गई हैं.’ इस के बाद विवाद शुरू हुआ तो दोनों ने एकदूसरे पर मानहानि का दावा ठोंक दिया था.

बिहार के शिक्षा मंत्री के ‘डियर’ कहने पर भी स्मृति ईरानी भड़क गई थीं और अपने फेसबुक पेज पर एक लंबी पोस्ट लिख कर उन्हें जवाब दिया था और आखिर में खुद को ‘आंटी नैशनल’ लिखा था.

अब राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए वे चीखचिल्ला कर कह रही हैं कि राहुल गांधी ने संसद में बैठी महिला सांसदों की तरफ देख कर फ्लाइंग किस दिया और ऐसा कर के राहुल गांधी ने अभद्रता की सारी हदें पार कर दीं. केंद्रीय कृषि मंत्री शोभा करंदलाजे ने भी फ्लाइंग किस को ले कर कांग्रेस सांसद पर निशाना साधते हुए राहुल गांधी के व्यवहार को अनुचित बताया और लोकसभा के अध्यक्ष के पास शिकायत दर्ज कराई.

कई अन्य महिला सांसदों ने भी शिकायतपत्र पर हस्ताक्षर किए. इस शिकायतपत्र पर उन्होंने राहुल गांधी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की. हस्ताक्षर करने वाली सभी महिला बीजेपी सांसद हैं. लेकिन यहां एक बात सम?ा नहीं आती कि चिल्लाचिल्ला कर राहुल गांधी पर आरोप लगाने वाली स्मृति ईरानी ने शिकायतपत्र पर हस्ताक्षर क्यों नहीं किए?

टीवी एंकर सुधीर चौधरी ने जब उन से यह सवाल पूछा कि आप ने भी तो शिकायतपत्र पर हस्ताक्षर किए हैं? तो वे भड़कती हुई बोलीं कि उन्होंने कोई हस्ताक्षर नहीं किए तो उन्होंने हस्ताक्षर क्यों नहीं किए, यह सोचने वाली बात है? क्या यह सब एक राजनीति के तहत हो रहा है?

वे तो सुधीर चौधरी के टमाटर के सवाल पर भी लाल हो गईं. दरअसल जब सुधीर चौधरी ने उन से पूछा कि ‘जब टमाटर 250-300 रुपए किलो था तो क्या आप के घर में भी टमाटर पर बात होती थी?’ इस सवाल को सुनते ही स्मृति ईरानी टीवी एंकर पर भड़कती हुई बोलीं, ‘क्या मैं पूछ सकती हूं कि क्या हुआ जब आप जेल में थे?’ एक और एंकर को भी उन्होंने ऐसे ही जवाब दे दिया कि अगर कोई पुरुष उन्हें फ्लाइंग किस दे तो कैसा लगेगा?’ यह वही गोदी मीडिया है जो मोदी सरकार की सत्ता की दलाली में लगी हुई है लेकिन आज वही भाजपा नेता स्मृति ने उसे उस की असली औकात दिखा दी.

अब फ्लाइंग किस को ले कर स्मृति ईरानी कितना सच और कितना ?ाठ बोल रही हैं, यह तो वही जानें पर मथुरा सांसद हेमा मालिनी का कहना है कि उन्होंने राहुल को ऐसा करते नहीं देखा. दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने कहा कि, ‘हवा में फेंकी एक फ्लाइंग किस से इतनी आग लग गई. दो पंक्ति पीछे एक आदमी बृजभूषण बैठा हुआ था, जिस ने महिला पहलवानों को अपने कमरे में बुला कर उन का शोषण किया, उसे देख कर स्मृति ईरानी को गुस्सा क्यों नहीं आया?’

इस विवाद में कई महिला सांसदों सहित अन्य महिलाएं भी राहुल गांधी के समर्थन में उतर चुकी हैं. एक महिला ने तो यहां तक कह दिया कि राहुल गांधी को लड़कियों की कोई कमी नहीं है जो वे 50 साल की महिला को फ्लाइंग किस देंगे.

वैसे, राहुल गांधी के फ्लाइंग किस पर कई सारे मीम्स बन चुके हैं तो कोई इसे हलके से ले रहा है तो कोई राहुल के समर्थन में उतर आया है और कई ने इस की कड़ी निंदा भी की है.

किस या फ्लाइंग किस कैसा

किस या चुंबन चाहे जिस तरीके से हो, वह प्रेम और स्नेह का प्रतीक होता है. गर्मजोशी और प्यार का इजहार करने के लिए लोग किस करते हैं और दूर से अपनी उंगलियों के पोरों को चूम कर लोग अपने प्यार को जताने के लिए फ्लाइंग किस करते हैं. अकसर जाते समय लोग अपने प्यार जताने के लिए फ्लाइंग ‘किस’ करते हैं.

सैलिब्रिटीज अकसर करते हैं फ्लाइंग किस

सैलिब्रिटीज अकसर अपने प्रशसकों को थैंक्यू करने के लिए फ्लाइंग किस करते हैं. किसी मशहूर हस्ती द्वारा स्टेज से फ्लाइंग किस देने का मतलब होता है कि वह दर्शकों, प्रशंसकों को प्यारभरा थैंक्यू कर रहा है.

किसे दे सकते हैं फ्लाइंग किस

फैंस, सहयोगी, दोस्त, दर्शक, मातापिता, बहनभाई किसी को भी फ्लाइंग किस दे सकते हैं. इस के अलावा स्टेज पर परफौर्म करते हुए कई बार ऐक्टरऐक्ट्रैस अपने प्रशंसकों को अच्छी प्रतिक्रिया देने के लिए फ्लाइंग किस देते हैं.

कब हुई इस की शुरुआत?

माना जाता है कि फ्लाइंग किस की शुरुआत प्राचीन मध्यपूर्व में हुई थी. इस के साथ ही, कुछ लोगों का मानना है कि मेसोपोटामिया में इस की शुरुआत हुई थी. वैसे, किस का किस्सा, काफी जोर पकड़े हुए है. कुछ लोग इस पर मीम्स बना कर स्मृति की खिंचाई कर रहे हैं तो कुछ इसे गलत बता रहे हैं.

भाजपा महिला डेमोक्रेट ने राष्ट्रपति से शिकायत की कि राहुल गांधी ने उन्हें उड़ा दिया. 2018 में एक आलिंगन और आंख ?ापकाना सुर्खियां बना था. अब यह एक उड़ती हुई किस है. एक समय संसद की बहसें सामग्री और प्रस्तुति के लिए जानी जाती थीं, अब नाटकीय चर्चा का विषय बन गई हैं.

पता नहीं स्मृति ईरानी को हो क्या गया है, जहां उन्हें बोलना चाहिए वहां तो बोलती नहीं हैं और जहां कोई बात ही नहीं है वहां बेकार की बातों को तूल देती हैं. अब किसी ने उन से यह पूछा कि आप की शादी आप की बचपन की सहेली मोना के पति जुबीन ईरानी से हुई क्या? उस पर वे तिलमिलाती हुई बोलीं कि मोना उस की बचपन की सहेली नहीं हो सकती क्योंकि वह उस से 13 साल बड़ी है.

कौन है स्मृति के पति जुबीन ईरानी?

स्मृति ईरानी के पति जुबीन ईरानी एक अमीर पारसी बिजनैसमैन हैं और वे पहले से ही शादीशुदा थे. स्मृति ईरानी जब स्ट्रगल के दिनों में रैस्टोरैंट में नौकरी करती थीं उसी दौरान मोना ईरानी से उन की मुलाकात हुई और दोनों दोस्त बन गईं. मोना एक अमीर पारसी लड़की थी और वह जुबीन ईरानी की पत्नी और एक अरबपति खानदान की बहू थी. मगर वहीं उस वक्त स्मृति के पास फ्लैट का किराया देने तक के लिए पैसे नहीं होते थे.

मोना ईरानी ने कई बार उस के फ्लैट का किराया चुकाने में मदद की थी. दोनों की दोस्ती इतनी पक्की हो गई कि मोना ईरानी उसे अपने घर ले आई और उसी दौरान जुबीन ईरानी से स्मृति को प्यार हो गया. जुबीन ने अपनी पत्नी मोना को तलाक दे कर 2001 में स्मृति से शादी कर ली.

स्मृति ईरानी का कहना है कि उन की हर सफलता में उन के पति जुबीन ने उन्हें पूरा सपोर्ट किया. एक इंटरव्यू में स्मृति ने कहा था, ‘मैं ने जुबीन से इसलिए शादी की क्योंकि मु?ो उन की जरूरत थी. मैं उन से सलाह लेती थी, उन से बात करती थी, हम रोज मिलते थे तो हम ने सोचा क्यों न हम एकदूसरे से शादी कर के हमेशा के लिए एक हो जाएं.’

किसी का घर तोड़ कर अपना घर बसा लेना उन्हें बुरा नहीं लगा. लेकिन एक हवा में उछाली गई फ्लाइंग किस पर उन्होंने इतना हंगामा मचा दिया. काश, ऐसा ही हंगामा वे मणिपुर की घटना पर मचाती कहतीं कि उन बलात्कारियों को स?रेआम गोली मार दी जाए तो सम?ा में आता कि महिलाओं के प्रति उन के दिल में संवेदना है.

आज हर रोज बेटियों के साथ, छोटीछोटी बच्चियों के साथ बलात्कार जैसे घृणित अपराध हो रहे हैं लेकिन उस बात से स्मृति ईरानी को कोई खास फर्क नहीं पड़ता. लेकिन राहुल गांधी के एक फ्लाइंग किस पर उन्हें इतना गुस्सा आया कि उन्होंने उन के खानदान तक को कठघरे में खड़ा कर दिया.

वैसे, सिर्फ स्मृति ईरानी ही क्यों, बल्कि, पूरी दुनिया का इतिहास ऐसी तमाम सत्ता पर बैठी महिलाओं का गवाह है जिन्होंने ऐसे किसी नाजुक मौके पर पीडि़त महिलाओं के पक्ष में खड़े होने के बजाय सत्ता का पक्ष चुना. पूरी दुनिया का सच यही है कि जब अपनी पार्टी और अपने लोगों की मिसोजिनी पर सवाल उठाने की बात आती है तो सत्ता के गलियारों में विचर रही महिलाएं भी चूक जाती हैं. फिर चाहे वे स्मृति ईरानी हों, हिलेरी क्ंिलटन हों, मारग्रेट थैचर हों, ममता बनर्जी हों, मायावती हों, वृंदा करात हों या फिर कोई और.

पितृसत्ता किस तरह औरतों का ब्रेनवाश करती है, फिलिस श्लाफली से बड़ा उदाहरण कौन हो सकता है. जब ग्लोरीय स्टाइनम, बेट्टी फ्राइडेन और तमाम महिलाएं अमेरिका में महिलाओं की समानता के अधिकार के लिए लड़ रही थीं उस वक्त देश की सत्तारूढ़ पार्टी की करीबी फिलिस श्लाफली देशभर की औरतों को यह सम?ाने की कोशिश कर रही थीं कि औरतों को समानता के अधिकार की जरूरत ही नहीं है क्योंकि समाज में और परिवार में औरतों का दर्जा पहले ही बहुत ऊंचा है. औरत मां है, पत्नी है, घर की स्वामिनी है, औरत महान है. बात इतनी सी है कि श्लेफ्ली महिलाओं के साथ नहीं, बल्कि सत्ता के साथ थीं.

देश में महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाया जाता है, उस के टुकड़े कर के फेंका जाता है, भट्टियों में जलाया जाता है लेकिन देश के नेता, अभिनेता और युवा तमाशबीन हो कर अपने ही देश की नारी के सम्मान को लुटता देख रहे हैं. न तो उन के चेहरों पर कोई मलाल है न संवेदना.

देश में जब से भाजपा सरकार ने सत्ता की बागडोर संभाली है, ऐसा लगता है महिलाओं के अच्छे दिन लद गए. इस सरकार का सब से लोकप्रिय नारा था- ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ जो आज मानो सब का मुंह चिड़ा रहा है.

जंतरमंतर पर भारतीय खेल जगत की सब से होनहार बेटियों को जब अपने न्याय के लिए रोते देखा गया, मणिपुर में जब बेटियों को निर्वस्त्र घुमाया गया तो लगा इस सरकार का नारा कितना बड़ा धोखा है. कैसे कोई मांबाप यह विश्वास कर ले कि इस देश में उन की बेटियां सुरक्षित हैं?

महिलाओं पर ही जुल्म क्यों?

पुलिस ने जब महिला पहलवानों का समर्थन कर रही डीयू की छात्राओं पर लाठियां बरसा कर उन्हें जख्मी किया तो सम?ा में आया कि पुलिस किस की तरफ है. सच तो यह है कि लोगों की सेवा में लगी पुलिस भी सरकार की ही भाषा बोलती नजर आती है, इसलिए तो आज वह हो रहा है जो होना तो क्या, सोचा भी नहीं जा सकता.

एक कहावत है, ‘जब सैयां भए कोतवाल, तो अब डर काहे का’. बाहुबली सत्ताधीशों का साथ देते हैं अपराधों में, बलात्कारों में, भूमिअतिक्रमण में, ?ाठी गवाही आदि में पूरी निष्ठा और ईमानदारी से. ऐसा लगता है सरकार बेटियों को नहीं, बाहुबलियों और बलात्कारियों को बचाने में एड़ीचोटी का दम लगा रही है.

सदियों से 2 गुटों की लड़ाई में महिलाओं को हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता रहा है. एक पक्ष को हराने के लिए दूसरे पक्ष की महिलाओं का शोषण और बलात्कार किया जाता रहा है.

इस पितृसत्तात्मक समाज की सदियों से यही सोच रही है कि समुदाय, जाति और धर्म को जीतना है तो दूसरे पक्ष की स्त्रियों को जीतो. अगर इन्हें हराना है तो दूसरे पक्ष की औरतों पर हमला बोलो. आखिर, जंग या जातीय संघर्षों के दौरान महिलाओं पर ही ऐसे जुल्म क्यों ढाए जाते हैं? रेप ही ज्यादा देखने को मिलते हैं या उन्हें सैक्स स्लेव क्यों बनाया जाता है? मर्दाना सत्ता यही मानती है कि महज जीतना या हराना नहीं है, स्त्री शरीर पर हमलावर होना है.

हमला भी कहां करना है, यह भी वह बताती और सिखाती है. इसलिए हमले के नतीजे में महज किसी की हत्या नहीं होती. मर्दाना सत्ता बताती है कि यौन हिंसा करनी है और औरत के खास अंगों को निशाना बनाना है क्योंकि जाति, धर्म, समुदाय सब की इज्जत का भार स्त्री उठाए हुए है. मर्दाना खयाल ने महिलाओं की इज्जत उस के कुछ अंगों में समेट दी है जो अगर बिखर गया तो वह किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहती है. परिवार की इज्जत मटियामेट हो जाती है.

महिलाएं होती हैं आसान शिकार

औरतों के साथ ऐसी हिंसा कर हमलावर पक्ष अपने को विजेता और दूसरे समूह को पराजित मानता है. दूसरे पक्ष को नीचा दिखाने के लिए औरत को हथियार के रूप में इस्तेमाल करता है. मणिपुर में उन निर्वस्त्र, बेबस लड़कियों के साथ उछलकूद करते विपक्षी युवा कितने उत्साह से भरे हुए थे, यह साफ वीडियो में दिखाई दे रहा था.

ऐसा क्यों होता है, इस बवाल के पीछे किस तरह की मानसिकता काम करती है जहां मुद्दा कुछ और होता है लेकिन आक्रोश का सामना महिलाएं करती हैं? जिस में भूखी, जाहिल और निर्लज्ज भीड़ अपनी मांगों को पूरा करने के लिए औरतों व लड़कियों को टारगेट बनाती है?

साउथ एशियन यूनिवर्सिटी (सार्क यूनिवर्सिटी) में इंटरनैशनल रिलेशन में एसोसिएट प्रोफैसर धनंजय त्रिपाठी के अनुसार, जातीय संघर्षों, जंग या सांप्रदायिक दंगों में महिलाओं से रेप या उन के यौनशोषण के पीछे 4 सिद्धांत काम करते हैं जिन्हें प्रैशर कुकर सिद्धांत, कल्चर पैथोलौजी सिद्धांत, सिस्टेमैटिक या स्ट्रैटेजिक रेप सिद्धांत और फैमिनिस्ट सिद्धांत का नाम दिया जाता है.

धनंजय त्रिपाठी कहते हैं कि ऐसे समाज में लोगों का गुस्सा महिलाओं पर इसलिए निकलता है क्योंकि वे उन्हें सब से आसान शिकार मानते हैं और कहीं न कहीं स्त्रीविरोधी मानसिकता उन के दिमाग में बैठी ही रहती है. वे स्त्री को दबा कर, मार कर या रेप कर अपने पुरुष होने को जायज ठहराते हैं.

पूर्वी यूरोप में बोस्निया की महिलाओं के साथ, म्यांमार में रोहिंग्या महिलाओं के साथ, इसलामिक स्टेट औफ इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस) का यजीदी महिलाओं को यौन दासी बना कर यौनहिंसा करना, बजरिए स्त्री शरीर जीतने और हारने के ऐसे अनेकों मर्दाना उदाहरण मिल जाएंगे.

1990 के दशक में बोस्नियाई युद्ध के दौरान सामूहिक रेप की घटनाओं ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा था. अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय ने पहली बार 27 जून, 1996 को रेप और यौन हमले को युद्ध अपराध घोषित किया.

योगोस्लावियाई युद्ध हो, रवांडा में हुए सामूहिक रेप हों या मणिपुर की घटनाएं, सब जगह रेप को एक हथियार की तरह लिया गया. यह मान लिया जाता है कि जंग में सब जायज है. ‘अगेन्स्ट अवर विल’ में सुजैन ब्राउनमिलर कहती हैं कि जंग और जातीय संघर्ष के दौरान हावी होने और खुद को सही साबित करने की सोच इंसान को क्रूर और बेरहम बना देती है. वहीं, मैनुवर्स की लेखिका सिंथिया एनलोए कहती हैं कि रेप लड़ाइयों के दौरान का सब से जहरीला और खतरनाक हथियार है जिस के पीछे ज्यादातर राजनीतिक दिमाग होता है.

2000 साल पहले भी युद्ध में महिलाओं को हथियार की तरह इस्तेमाल किया गया रोमन इतिहासकर लिवी बताते हैं कि पहली सदी के आसपास जब लगातार जंग से आबादी कम हो रही थी, तब रोमन साम्राज्य के नेता रोमूलस ने एक धार्मिक त्योहार का आयोजन किया और पड़ोसी सैबाइन कबीलाई लोगों को न्योता दिया. रात में उन्हें शानदार दावत दी गई. जैसे ही दावत खत्म हुई, रोमूलस नेता का इशारा पा कर रोमनों ने सैबाइन लोगों पर हमला बोल दिया.

पुरुषों को मार डाला गया और औरतों को बंधक बना लिया गया. फिर इन महिलाओं से रेप किया जाता ताकि जंग के लिए ज्यादा से ज्यादा गुलाम मिल सकें. बाद में यही ट्रैंड अरब आक्रमणकारियों में भी देखने को मिला. भारत में भी ऐसे ही गुलामों से दिल्ली सल्तनत की नींव पड़ी थी.

हमारे देश में विकास की बातें तो हो रही हैं पर दिख नहीं रहा है. रोज महिलाओं के साथ हिंसा बढ़ती ही जा रही है. 2014 से 2021 तक दलित, आदिवासी महिलाओं से बलात्कार के 31,967 मामले सामने आ चुके हैं. 21 साल पहले गुजरात में गोधरा ट्रेन कांड किसे याद नहीं होगा. जहां गर्भवती बिलकीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया लेकिन बीजेपी के राज्य में एक साल पहले उन 11 लोगों की सजा वक्त से पहले खत्म कर दी गई. आज वे सभी जेल से बाहर हैं. जेल से बाहर आ कर वे हीरो बन गए और जिस के साथ हिंसा हुई वह ठगी सी रह गई.

मणिपुर की घटना तो महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों व हिंसा की पराकाष्ठा है. आखिर, उस युग की द्रौपदी और आज की द्रौपदी में अंतर ही क्या है, खींचे तो दोनों के वस्त्र गए. एक की भरी सभा में, एक की पूरे समाज के सामने. उस युग की द्रौपदी की इज्जत तो कृष्ण ने बचा ली थी पर आज की द्रौपदी को कोई बचाने वाला नहीं है, सब तमाशा देखने वाले हैं.

बचपन में हमें यही सिखाया गया था कि भगवान कृष्ण ने द्रौपदी की साड़ी इतनी लंबी कर दी थी कि कौरव उसे खींचतेखींचते थक गए थे. लेकिन द्रौपदी को अपमानित करने वाले कौरव और पांडव कितने मक्कार व नालायक थे, यह हमें नहीं बताया गया. जब द्रौपदी का चीरहरण हो रहा था तब वहां महिलाएं भी मौजूद थीं पर किसी ने एक आवाज तक नहीं उठाई. सदियों से महिलाओं का उत्पीड़न करना, उन का बलात्कार करना, मारनापीटना, दुर्व्यवहार करना पुरुष अपना अधिकार मानता आया है. दुख की बात तो यह है कि कई महिलाएं भी ऐसी मान्यताओं में विश्वास करती हैं.

महिला मुद्दों पर राजनीति का चश्मा

महिला उत्पीड़न मामले को राजनीतिक चश्मे से इसलिए देखा जाता है क्योंकि कहीं न कहीं आरोपी उन के ही गुट के होते हैं. इन मामलों में तमाम महिला नेता कहां गुम हो जाती हैं, पता नहीं चलता. महिला नेता अपनी जिम्मेदारी को पूरा करने में इतनी व्यस्त होती हैं कि रेप जैसे छोटे मामलों को देखने और बोलने के लिए उन के पास फुरसत नहीं है.

देश के गृहमंत्री अमित शाह के मुताबिक, भाजपा दुनिया की सब से बड़ी पार्टी है. भाजपा अपने सदस्यों को राष्ट्रनिर्माण का वचन देती है. इन का वादा है कि इन से जुड़ते ही आप राष्ट्रनिर्माण की दिशा में एक कदम आगे बढ़ा देते हैं. एक कार्यक्रम के दौरान अमित शाह ने कहा था कि औरतों की इज्जत के लिए युद्ध करना पड़े तो करेंगे. लेकिन आज वही अमित शाह मणिपुर पर चुप हैं. कितने ही ऐसे रेप केस के मामले में वे चुप रहे क्योंकि गुनाह करने वाले भाजपा के ही नेता थे.

क्या भारत की महिलाओं की सुरक्षा, बस, एक मिस्डकौल के लिए रुकी है? क्या एक मिस्डकौल दें राष्ट्र निर्माण के लिए और रेप थ्रेट से मुक्ति पा जाएं?

एक के बाद एक बीजेपी नेताओं पर महिलाओं के साथ शोषणउत्पीड़न के मामले आते रहे हैं. लेकिन इस से ज्यादा दुखद बीजेपी महिला नेताओं की चुप्पी है जो महिला नेतृत्व के नाते भी कई गंभीर सवाल खड़े करती है, जिस पर लोग भरोसा कर के वोट देते हैं ताकि देश का बेहतर निर्माण हो सके लेकिन जब वही उसे खोखला करने में सब से आगे है तो दुख होता है.

एक तरफ जनता चौतरफा महंगाई की मार ?ोल रही है तो दूसरी तरफ युवा बेरोजगार घूम रहे हैं. आज रसोई गैस की कीमत 1,000 से 1,200 सौ रुपए हो गई है. महिलाएं उज्ज्वला गैस के चूल्हे को एक तरफ कर के फिर मिट्टी के चूल्हों पर खाना पकाने को मजबूर हैं. पैट्रोल के दाम भी आसमान छू रहे हैं. ऐसे में स्मृति ईरानी कुछ बोलती क्यों नहीं हैं? चुप क्यों हैं?

सत्ता के मद में चूर स्मृति ईरानी और भाजपा नेताओं को जनता के दुखदर्द दिखाई ही कहां दे रहे हैं. अगर दिखाई देता तो मणिपुर की घटनाओं पर कुछ बोलते, लेकिन यहां तो विपक्षी पार्टी पर दोष मढ़ कर खुद को पाकसाफ करने में लगे हैं. जनता हर तरफ से मार ?ोल रही है और ये सारे नेता सिर्फ डींगें हांक रहे हैं. आज जिस तरह से मणिपुर, उत्तराखंड जैसे राज्यों में जो हो रहा है, वह बेशर्मी की हद हो गई. महिलाओं का शरीर जंग का अखाड़ा नहीं है जिस पर जीत और हार तय की जाए.

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