मणिपुर से ले कर मेवात तक दंगों की आग भड़क रही है. कत्लेआम जारी है. औरतों का चीरहरण हो रहा है. लोगों के घर फूंके जा रहे हैं. कानूनव्यवस्था ध्वस्त है. प्रशासनिक ढांचे को लकवा मार चुका है. देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री मौन हैं, क्योंकि यह तो 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों के तहत पूरे देश में संघ और भाजपा का राजनीतिक प्रयोग लगता है.

सुप्रीम कोर्ट- ‘‘एक चीज तो साफ है कि 4 मई से 27 जुलाई तक मणिपुर में पुलिस का शासन नहीं था. राज्य में संवैधानिक संस्था पूरी खत्म हो गई थी.’’

सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़, मणिपुर हिंसा पर सुनवाई के दौरान- ‘‘महिलाओं के खिलाफ हिंसा के व्यापक मुद्दे को देखने के लिए एक तंत्र बनाना होगा.’’

बीते 4 महीनों से मणिपुर जल रहा है. कुकी औरतों के साथ बर्बर हिंसा और उन की नग्न परेड के वीडियो वायरल होने की बाद भारत का सिर दुनिया के सामने शर्म से झुका हुआ है. फिर भी अकड़ यह कि प्रधानमंत्री-गृहमंत्री-मुख्यमंत्री के मुंह पर ताले पड़े हुए हैं. दुनियाभर की सैर में देश की जनता का पैसा उड़ाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मणिपुर की महिलाओं के जख्मों पर मरहम रखने आज तक न जा पाए. देश के गृहमंत्री हालात पर काबू पाने में अक्षम रहे. हद है कि मणिपुर जल रहा है और मुख्यमंत्री अपनी कुरसी से हिलने को तैयार नहीं. आखिरकार उच्चतम न्यायालय को महिलाओं के साथ हुई बर्बरता के खिलाफ सख्त रुख इख्तियार करना पड़ा है. 20 जुलाई को सरकार को फटकार लगाते हुए कोर्ट को कहना पड़ा कि अगर सरकार कोई कदम नहीं उठाती है तो कोर्ट उठाएगी और उस के पूर्व महिला न्यायधीशों की कमेटी गठित कर दी उस के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जो मणिपुर की 600 से ज्यादा प्राथमीकियों की जांचपड़ताल करेगी.

गंभीर बात यह है कि मणिपुर में यौनहिंसा की शिकार बनी 2 महिलाओं ने याचिका दायर की तो 1 अगस्त, 2023 को देश के उच्चतम न्यायालय में सुनवाई हुई. मणिपुर का अब तक का हाल बयां करते हुए सौलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बैंच को बताया- ‘‘राज्य में हिंसा को ले कर अब तक कुल 6,532 एफआईआर दर्ज हुई हैं, जिन में से 11 घटनाएं महिलाओं के साथ हुई हैं.’’ इस मामले को ले कर उन के बीच  परिसंवाद का जानना जरूरी है.

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़- कितनी जीरो एफआईआर हुईं?

सौलिसिटर जनरल – 11.

चीफ जस्टिस – कितनी जीरो एफआईआर कब सामान्य एफआईआर में बदलीं?

सौलिसिटर जनरल – जी, नहीं मालूम.

चीफ जस्टिस – यौनहिंसा के वीडियो पर गिरफ्तारी कब हुई?

सौलिसिटर जनरल-जी, नहीं मालूम.

चीफ जस्टिस (गुस्से में) – कुछ इक्कादुक्का मामलों को छोड़ कर किसी भी मामले में गिरफ्तारी नहीं हुई.

सौलिसिटर जनरल – जमीन पर हालात इतने खराब हैं कि जब प्रधानमंत्री को मालूम चला, तब गिरफ्तारियां शुरू हुईं.

चीफ जस्टिस – मतलब मई से जुलाई तक मणिपुर में कानून का राज नहीं था. राज्य की मशीनरी ध्वस्त हो चुकी है. 6,500 से ज्यादा एफआईआर में सिर्फ 7 गिरफ्तारियां हुई हैं?

सौलिसिटर जनरल – 7 तो उस वायरल वीडियो को ले कर हैं. 250 गिरफ्तार हैं और 12,000 एहतियाती गिरफ्तारियां की गई हैं.

अब चीफ जस्टिस औफ इंडिया अपना आपा खो बैठे. वे सौलिसिटर जनरल पर बरसते हुए बोले- ‘‘क्या उन पुलिस वालों पर कार्रवाई हुई जिन्होंने कुकी महिलाओं को भीड़ के हवाले किया था? डीजीपी ने जांच की? डीजीपी क्या कर रहे हैं?’’

सौलिसिटर जनरल का सिर झुक गया. उन के पास कोई जवाब नहीं था. शायद शर्म आ रही थी कि मणिपुर में जारी हिंसा और महिलाओं को नग्न कर के उन की परेड निकालने, उन का सामूहिक बलात्कार करने, कुकी पुरुषों और महिलाओं को जलाने और सरेआम काट कर मौत के घाट उतार देने जैसे वीभत्स व रोंगटे खड़े कर देने वाली घटनाओं, जिन को पूरी दुनिया ने देखा, उन को अंजाम देने वालों के खिलाफ पुलिस को क्या कार्रवाई करनी चाहिए, कैसे कार्रवाई करनी चाहिए, किस की क्या ड्यूटी है, कैसे काम करना चाहिए, यह कोर्ट को बताना पड़ रहा है.

चीफ जस्टिस इस बात से हैरान थे कि पीडि़ताओं और गवाहों के अब तक बयान दर्ज नहीं हुए हैं. कोर्ट ने कहा कि 3 महीने में पुलिस एफआईआर तक दर्ज नहीं कर पाई? इस से साफ है कि राज्य में कानून व्यवस्था और संवैधानिक मशीनरी पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है. चीफ जस्टिस ने आदेश दिया कि अगली सुनवाई पर मणिपुर का डीजीपी कोर्ट में हाजिर हो और उस ने मणिपुर में औरतों के साथ हुई बर्बरता पर क्या ऐक्शन लिया है, इस से कोर्ट को अवगत कराए.

यह सब लापरवाही नहीं है, यह जानबूझ कर राज्य सरकार की नीति के अनुसार है जो धर्म के नाम पर दंगों में औरतों को निशाना बनने दे रही है.

देश के एक हिस्से में 4 महीने से हिंसा का तांडव जारी है, घरदुकानें फूंकी गईं, सैकड़ों को मौत के घाट उतार दिया गया. जनजातीय औरतों को नंगा कर के सड़कों पर दौड़ाया गया, उन से सामूहिक बलात्कार हुए, उन को गाजरमूली की तरह काट कर फेंक दिया गया और केंद्र में गद्दीनशीन न ‘चौकीदार’ को कानोंकान खबर न हुई. वर्ष 2002 में गुजरात में हुए दंगों के वक्त भी उस राज्य में मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी और केंद्र की सत्ता को यह पता नहीं चला था कि गुजरात में 2,000 से ज्यादा लोग कत्ल कर दिए गए, हजारों घर जला दिए गए, सैकड़ों औरतों को बलात्कार के बाद मौत के घाट उतार दिया गया.

देश में मणिपुर ही नहीं, बल्कि हरियाणा के मेवात से ले कर गुरुग्राम तक में दंगों की आग भड़क रही है. मगर भाजपायी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रशासनिक ढांचे को लकवा मार चुका है. वे पूरी तरह मौन हैं. उन से कुछ पूछना बेकार है क्योंकि यह सब 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों के तहत आरएसएस और भाजपा का राजनीतिक प्रयोग चल रहा है. नफरत और हिंसा बोई जा रही है ताकि 2024 में इस की सत्तारूपी फसल काटी जा सके. प्रयोग का असर उस रेलवे सुरक्षा बल के जवान चेतन सिंह चौधरी के रूप में भी सामने आ चुका है जिस ने महाराष्ट्र के पालघर रेलवे स्टेशन के पास चलती ट्रेन में पहले अपने सीनियर अधिकारी को गोली मारी और उस के बाद वहां बैठे 3 अन्य यात्रियों के सीने गोलियों से छलनी कर दिए, सिर्फ इसलिए कि वे दाढ़ी उगाए मुसलमान थे. आएदिन दर्जनों मामले उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में घट रहे हैं. मगर सत्ता चुप है ऐसे, जैसे कि कोई जानकारी ही न हो उसे.

धर्म का शिकार औरत

धर्म ने पुरुष को सिर्फ औरतों पर अत्याचार करना सिखाया है. आज से नहीं, महाभारत काल से या शायद उस से भी पहले से. भरी सभा में द्रौपदी का चीरहरण हो रहा था और धर्मराज निर्लज्ज, नपुंसक की भांति चुप बैठा तमाशा देख रहा था. मजहब कोई भी हो, हर मजहब में हिंसा, बलात्कार, कत्ल का पहला शिकार औरत है. सारी उत्तेजना, क्रोध और दबंगई औरत पर उतारी जाती है.

जरमनी में हिटलर की तानाशाही और उस की बर्बर नाजी विचारधारा ने गैस चैंबरों में 30 हजार यहूदी धर्म की औरतों को मार डाला. मारने से पहले अनेक औरतों के बदन से सारे कपड़े नोच लिए गए. उन के बाल काट दिए गए. उन की नंगी परेड निकाली गई. यह सब एक कट्टर विचारधारा के लिए हुआ जिसे धर्म ने पैदा किया.

धर्म मुसलमान पुरुषों से उन की औरतों का हलाला करवाता है. धर्म के नियमों के चलते वह अपनी बीवी को दूसरे मर्दों के सामने परोसता है कि लो, बलात्कार करो. फिर उसे अपनाता है. लज्जा नहीं आती? घृणा नहीं उपजती? कर सकता है उस औरत से प्यार जिसे उस ने खुद दूसरे मर्दों के सामने नग्न किया हो? ये तमाम गंदगी धर्म ने फैला रखी है, जिस में सिर्फ और सिर्फ औरतों को लथेड़ा जा रहा है. दंगे भड़कते हैं तो भीड़ का सब से पहला शिकार औरत बनती है. उस के कपड़े नोचे जाते हैं, उस से बलात्कार होता है, उस का कत्ल होता है. इसे धर्म के लिए कुरबान होना कहा जाता है.

आज मणिपुर जल रहा है. जल रही है उस की सैकड़ों साल पुरानी आपसी सद्भाव की नींव. जल रही है अलगअलग समुदायों के बीच हंसीखुशी साथ रहने की डोर और राख हो रहा है एक सपना कि पुराने गिलेशिकवे मिटा कर साथ रहेंगे मैतेई, कुकी और नगा समाज के लोग. आपसी भरोसा टूट चुका है. मणिपुर में कोई सुरक्षित नहीं है. कल शायद गोवा, पौंडिचेरी और दमन की बारी होगी जहां ईसाई काफी संख्या में हैं.

बहू की रक्षा के लिए भागे

60 साल के सेलेस्टीन की आंखें उस मणिपुर को याद कर के रोती हैं जब 10 साल की उम्र में वह ?ारखंड से काम की तलाश में वहां गया था. उस का कोई जानने वाला उसे वहां काम दिलाने के लिए ले गया था. मणिपुर की शांत और खूबसूरत वादियां सेलेस्टीन को इतनी भाईं कि फिर वह हमेशा के लिए मणिपुर का हो कर रह गया. मगर 50 साल बाद सेलेस्टीन को अपने 19 लोगों के परिवार जिस में कुकी जाति की एक बहू थी, की जान बचाने के लिए मणिपुर से भाग कर वापस ?ारखंड में शरण लेनी पड़ी है.

सेलेस्टीन दहशत से कांपते हुए अपने 7 साल के पोते को सीने में छिपा कर कहते हैं, ‘‘आतताइयों ने कुछ भी नहीं छोड़ा. पूरा घर जला दिया.’’ वे रोने लगते हैं. दादा को रोता देख पोता भी रो उठता है. सेलेस्टीन आगे कहते हैं, ‘‘भरोसा नहीं होता. हम 2 महीने तक रातों में सोए नहीं. मेरी बहू कुकी जाति की है. हर वक्त  हमले का डर बना हुआ था. शाम को ही औरतों और बच्चों को जंगल में छिपा देते थे और मर्द सारी रात पहरा देते थे. मणिपुर में आज कोई सुरक्षित नहीं. कब किस को मौत अपनी चपेट में ले ले, कोई नहीं जानता.’’

बात करते ही सेलेस्टीन के चेहरे पर कई भाव एकसाथ आ जाते हैं. वे कहते हैं, ‘‘10 साल का था, जब मणिपुर चला गया था. गांव का ही एक आदमी काम दिलाने के लिए मणिपुर ले गया था. तब कितना सुंदर था मणिपुर. पहाड़, जंगल, नदियां और बागबगीचे सब अपने झारखंड की तरह. एक बार जो गया तो मणिपुर का हो कर रह गया. तब सब लोग साथ रहते थे. क्या मार, क्या कुकी और क्या मैतेई. सब में प्यार का संबंध था. रोटीबेटी का रिश्ता था. मेरी शादी मार समुदाय की लड़की के साथ हुई थी तो बेटे की शादी कुकी समुदाय की लड़की से हुई है. पता नहीं क्या हुआ, देवताओं की धरती अचानक राक्षसों की धरती में बदल गई? मिलजुल कर खानेकमाने वाले कैसे एकदूसरे के खून के प्यासे हो गए, पता ही नहीं चला.

‘‘लगभग डेढ़ महीने पहले मैं पत्थर तोड़ने का काम कर शाम को घर आया तो पता चला कि बगल के गांव में कुकियों की बस्ती पर मैतेई समुदाय के लोगों ने हमला किया है. मेरी कुछ सम?ा में नहीं आया, पर अपने गांव में कुकी समाज के लोगों के चेहरे पर छाए डर से मैं सम?ा गया कि कुछ ठीक नहीं है. मु?ो लगा था कि एकदो दिन में सब ठीक हो जाएगा पर अगले दिन दूसरे गांव पर हमले की खबर आई. उस रात मैं ने बगल के गांव न्यूकेथलमांबी में रहने वाले अपने बेटे प्रकाश बाड़ा को फोन किया. मेरे बेटे प्रकाश ने कुकी लड़की नेंग खोलमा से प्रेमविवाह किया है. प्रकाश ने मुझे बताया कि उस के गांव में कुकियों पर हमला हुआ है और कई कुकी महिलाओं को उठा लिया गया है. उस रात सभी सहमे रहे.

दूसरे दिन गोली और बम के धमाके सुनाई देने लगे. पास के दोतीन गांवों में कुकी और मैतेई के बीच लड़ाई शुरू हो गई थी. मैं डर गया. मैं ने तुरंत प्रकाश को फोन कर बहू और पोते को मेरे पास इसलायजंग लाने को कहा. मुझे एहसास हो गया था कि अब जल्दी ही हमला हम लोगों के गांव पर भी होने वाला है क्योंकि हमारे गांव में ज्यादातर संख्या कुकियों की थी. मेरा घर भी सुरक्षित नहीं रहने वाला था. मेरे घर में कुकी बहू थी. मैं ने तय किया कि अब यहां नहीं रहना है. मणिपुर छोड़ना होगा.’’

सेलेस्टीन ने अपने गांव से 25 किलोमीटर दूर बने एक सैनिक कैंप में झारखंड के सिमडेगा जिले के एक सैनिक से मदद मांगी. उस ने उन के परिवार को किसी तरह सैनिक कैंप तक पहुंचने के लिए कहा. सेलेस्टीन ने रात 9 बजे 19 लोगों के अपने परिवार के साथ गांव छोड़ा. वे कहते हैं, ‘‘मणिपुर की पुलिस पर भरोसा नहीं था. हम सड़क छोड़ कर जंगल के रास्ते सैनिक कैंप की ओर बढ़े. नदी, पहाड़ पार करते और छिपतेछिपाते अगले दिन शाम को हम सैनिक कैंप के पास पहुंचे. सिमडेगा के सैनिक ने अपने बड़े साहब से मिलवाया. बड़े साहब को दया आ गई. उन्होंने वहां से असम जाने वाली एक राशन गाड़ी में मेरे पूरे परिवार को बैठा दिया. जब ट्रक खुला तो हमें लगा कि संकट टल गया है पर जैसे ही गाड़ी मणिपुर और असम की सीमा पर पहुंची, हमें घेर लिया गया.

घेरने वालों में मैतेई लोगों के साथ मणिपुर पुलिस के जवान भी शामिल थे. हम ने अपनी कुकी बहू को पीछे कर के उस पर बहुत सारी चादर और अन्य सामान रख दिया. ऐसा लगने लगा कि वह कोई सामान है. बहू भी सांस रोके पड़ी रही. इस के बाद उन लोगों ने हम से कई सवाल किए. फिर हमें आगे जाने दिया. असम पहुंच कर हम ने राहत की सांस ली. हम गुवाहाटी की जमीन पर उतरे. सिमडेगा में रहने वाली बेटी पुष्पा बारला ने पैसे का इंतजाम कर के भेजा तो उस पैसे से टिकट कटा कर हम लोग 20 जुलाई को सिमडेगा पहुंचे. 50 साल बाद मणिपुर से वापस झारखंड अपने छोटे भाई के पास लौटा हूं. इतने बड़े परिवार को ले कर. मगर छोटे भाई ने अपने छोटे से घर में हम 19 लोगों का बांहें खोल कर स्वागत किया. यहां हम सुरक्षित हैं. अब मणिपुर वापस नहीं जाएंगे.’’

यह अकेले सेलेस्टीन की कहानी नहीं है. ऐसी हजारों कहानियां आज मणिपुर में बिखरी पड़ी हैं. बीते 4 महीनों में मणिपुर में हिंसा चरम पर है. साढ़े छह हजार से ज्यादा एफआईआर दर्ज हुई हैं, मगर पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की है. दरअसल मंजर को अधिक से अधिक भयावह करने के लिए पुलिस को कार्रवाई से रोका गया. कैमरों के सामने बलात्कार और हत्याएं हुई हैं, तमाम वीडियो मौजूद हैं, गवाही देने के लिए लोग मौजूद हैं, मगर 4 महीने तक पुलिस को न अपराधी दिखे, न सुबूत, न गवाह. अब सुप्रीम कोर्ट का डंडा पड़ा है तो कुछ गिरफ्तारियां हुई हैं.

वह फिर घर न लौट सकी

उस ने अपनी मां को आखिरी फोनकौल 30 अप्रैल को की थी. मां से कहा था कि वह मदर्स डे पर घर आएगी. 4 दिनों बाद 4 मई को, उस 24 वर्षीया लड़की और उस की 21 वर्षीया सहेली को निशाना बनाया गया. उग्र मैतेई भीड़ ने दोनों लड़कियों के साथ बलात्कार किया और फिर दोनों को कत्ल कर दिया. दोनों के परिवार वालों ने 16 मई को सैकुल पुलिस स्टेशन में शून्य एफआईआर दर्ज कराई. मगर कोई कार्रवाई नहीं हुई.

एंबुलैंस सहित आग के हवाले

3 जून को कांगपोकपी जिले के कागचुप चिंगखोंग गांव में असम राइफल्स के राहत शिविर पर गोलियां चलाई गईं. 7 वर्षीय तोंसिंग हंसिंग के सिर पर गोली लगी. बच्चे को अस्पताल ले जाना जरूरी था. तोंसिंग के पिता जोशुआ कुकी हैं और इम्फाल की यात्रा मैतेई क्षेत्रों से हो कर गुजरती है. तोंसिंग की मां मीना हैंगसिंग मैतेई हैं. मां के साथ पारिवारिक परिचित लिडिया भी एंबुलैंस में बैठ गईं. पुलिस को वाहन की सुरक्षा करनी थी पर शाम 6.30 बजे मैतेई भीड़ ने एंबुलैंस को घेर लिया. उन्होंने ड्राइवर व पुरुष नर्स, दोनों मैतेई को बाहर निकाला और बच्चे, उस की मां व उन की दोस्त के साथ एंबुलैंस पर पैट्रोल छिड़क कर आग लगा दी. 9 दिनों बाद केस दर्ज हुआ पर पुलिस ने आज तक कुछ नहीं किया.

अंगभंग कर जला दिया

2 जुलाई को 32 वर्षीय डेविड थीक और 4 अन्य कुकी दोस्त चुड़ाचांदपुर के लंग्जा गांव की रखवाली कर रहे थे. मैतेई भीड़ के हमले की आशंका से गांव खाली हो गया था. हमला सुबह 4.30 बजे हुआ. मुठभेड़ हुई. डेविड थीक के 3 साथी ग्रामरक्षक पैदल ही भागे, जबकि एक झाडि़यों में जा छिपा. डेविड थीक को पकड़ लिया गया. उसे करीब एक घंटे तक प्रताडि़त किया गया. अंगभंग किया गया. कुछ दिनों बाद थीक का सिर बाड़ पर लटकाने का वीडियो वायरल हुआ, जिस से व्यापक आक्रोश फैला. डेविड थीक के छोटे भाई अब्राहम थीक ने एफआईआर दर्ज कराई मगर एक महीना हो गया, पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की.

पुलिस से छीन कर मार डाला

30 अप्रैल की रात 11 बजे चुड़ाचांदपुर के 21 वर्षीय हंगलालमुआन वैफेई को जिला पुलिस ने एक फेसबुक पोस्ट के लिए गिरफ्तार किया था, जिस में उस ने मुख्यमंत्री के खिलाफ कोई बात की थी. उस के खिलाफ पुलिस ने 2 मामले दर्ज किए. जिन में से एक में उसे 3 मई को जमानत मिल गई पर उसी दिन दूसरे मामले में उसे गिरफ्तार कर लिया. उसे 4 मई को अदालत में पेश किया गया और न्यायिक हिरासत में भेजने का आदेश कोर्ट ने दिया. पुलिस की सुरक्षा में उसे अदालत से जेल ले जाते हुए भीड़ ने रास्ते में रोक लिया. भीड़ ने पुलिसकर्मियों से हथियार लूट लिए और हंगलालमुआन को वहीं पीटपीट कर मार डाला.

बर्बरता के किस्से पहले भी

ध्रुवीकरण के जरिए सत्ता की सीढि़यां चढ़ने का खेल इस देश में कई दशकों से जारी है. सत्ता में बैठे हैवान स्त्रियों को कब्र से निकाल कर उन के बलात्कार करने का आह्वान मंचों से करते हैं. कुरसी पाने की हवस में जगहजगह दंगा करवाते हैं. औरतों के साथ सामूहिक बलात्कार करते हैं. मां का गर्भ चीर कर भ्रूण निकालने और उसे त्रिशूल पर टांग कर भयावह नारे लगाने जैसी वीभत्स व बर्बर घटनाओं को कोई भूल नहीं सकता है.

कौन भूल सकता है फूलनदेवी को जिस को सवर्ण जाति के लोगों ने नंगा कर के प्रताडि़त किया था. श्रीराम ठाकुर और लाला ठाकुर ने दलित जाति की फूलन के साथ रोंगटे खड़े कर देने वाला कांड किया था. वे फूलन को नग्न अवस्था में रस्सियों से बांध कर नदी के रास्ते बेहमई गांव ले गए. श्रीराम और उस के साथियों ने मिल कर उसे पूरे गांव में नंगा घुमाया. फिर सब के सामने श्रीराम ने उस का रेप किया और उस के बाद बारीबारी से गांव के लोगों ने उस के साथ बलात्कार किया. वे फूलन को बालों से पकड़ कर खींचते और मारते रहे. श्रीराम ने फूलन को लाठियों से पीटा. फूलन को नग्न अवस्था में 2 सप्ताह से अधिक समय तक कैद कर के रखा गया. फूलन एक कोठरी में बंद थी. उस के साथ जानवरों की तरह हर रोज सामूहिक बलात्कार होता रहा. अनेकों मर्द उसे तब तक रौंदते जब तक वह बेहोश न हो जाती. जिस समय यह बर्बरता हुई, फूलन केवल 18 साल की थी.

इस कैद से किसी तरह छूटने के बाद फूलन डाकुओं के गैंग में शामिल हो गई. 1981 में फूलन वापस बेहमई गांव लौटी. वहां उस ने उन 2 लोगों की पहचान की जिन्होंने उस का बलात्कार किया था. बाकी के बारे में पूछा और फिर फूलन ने गांव से 22 ठाकुरों को निकाल कर उन्हें लाइन में खड़ा कर एकसाथ गोली मार दी थी. क्या गलत किया था फूलन ने?

उस ने उस समाज को बताया था कि औरतों के साथ अन्याय करने पर औरतें इसे भगवान की देन नहीं समझतीं, अगर हिम्मत हो तो उस अन्याय का बदला ले लेती हैं.

बागपत का माया त्यागी कांड

औरत की अस्मत को तारतार करने वाली घटनाएं, उस की नंगी परेड कराने और फिर उस के साथ सामूहिक बलात्कार जैसी वीभत्स अपराध की पुनरावृत्ति देश में बारबार हो रही है. औरत की स्थिति में महाभारत काल से ले कर आज तक कोई बदलाव नहीं आया है. द्रौपदी का चीरहरण भरी सभा में हुआ. यही मणिपुर में हुआ. यही हुआ 2002 में गुजरात में और यही हो रहा है उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में.

मणिपुर में कुकी औरतों के ऊपर हुए ताजा जुल्म की रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना याद दिलाती है 43 साल पहले बागपत में हुए माया त्यागी कांड की. माया त्यागी नाम की सीधीसादी महिला को न सिर्फ नंगा कर के पुलिस वालों ने सड़क से थाने तक उस की परेड करवाई बल्कि थाने के अंदर 9 पुलिसकर्मियों, जिन में उन के अधिकारी भी शामिल थे, ने उस का सामूहिक बलात्कार किया. बाद में अपने अपराध को छिपाने के लिए पुलिस ने उस अनपढ़, मासूम और निर्दोष औरत को डकैत घोषित कर दिया. सत्ता में चाहे कांग्रेस रही हो या भाजपा, सत्ता से चिपके रहने के लिए देश की अस्मत से खेलने वालों के खिलाफ अगर जांच की बात हो तो राजनीति का चश्मा चढ़ा कर फायदानुकसान तोलने के बाद जांच करवाने की रवायत रही है.

43 साल पहले हुए बागपत कांड की दिल्ली प्रकाशन से प्रकाशित ‘भूभारती’ पत्रिका ने राजनेताओं की परवा न करते हुए बड़ी बेबाकी से परतदरपरत खुलासा किया था और उस जघन्य कांड को प्रमुखता से छापा था.

18 जून, 1980, दोपहर का कोई एक बजे का वक्त था. भीषण गरमी और धूप से परेशान बागपत कसबे के लोग अपनेअपने कामों में लगे थे. तभी जंगल की आग की तरह तेजी से फैली एक अफवाह लोगों के कानों तक पहुंची. अफवाह यह थी कि बागपत के सिंडिकेट बैंक को डकैतों ने लूट लिया है. जिस ने भी यह अफवाह सुनी, वह सिंडिकेट  बैंक की ओर दौड़ पड़ा. वहां बड़ा वीभत्स नजारा था. भारी भीड़ के बीच कुछ पुलिसकर्मी मय हथियारों के एक जवान नंगी औरत को खींचते हुए थाने की ओर ले जा रहे थे और बारबार आवाज लगा रहे थे- ‘यह डकैत है. इसे हम छोड़ेंगे नहीं.’ इस महिला का नाम था माया त्यागी.

पति और उस के दोस्तों को मार दिया

भीड़ उस महिला को ऐसी हालत में देख कर स्तब्ध थी. वह बेचारी अपनी इज्जत बचाने की हर मुमकिन कोशिश कर रही थी. कई बार वह अपने गुप्त अंगों को हाथ से छिपा कर नीचे बैठने की कोशिश करती, मगर पुलिसकर्मी उसे डंडा मार कर खड़ा कर देते और आगे की ओर धकेलते. तभी महरू नाम के एक आदमी ने अपना तहमद उस औरत के ऊपर फेंका कि वह अपना तन ढक ले. मगर जालिम पुलिसकर्मियों ने अपने डंडे से उस तहमद को दूर उछाल दिया और उस औरत को बारबार डकैत कहने का राग जारी रखा.

भीड़ ने देखा कि चौक से कुछ ही दूरी पर एक सफेद रंग की एंबेसडर कार यूपीजी 6005 खड़ी थी और उस के पास ही 3 नौजवान मरे पड़े थे. उन में से एक उस महिला का पति ईश्वर त्यागी था और 2 उस के दोस्त राजेंद्र दत्त और सुरेंद्र सिंह थे.

घटना कुछ इस प्रकार है. चोपला रेलवे क्रौसिंग, बागपत से पहले सिंडिकेट बैंक की एक ब्रांच थी. वहां दोपहर एक बजे एक सफेद एंबेसडर कार यूपीजी 6005 क्रौसिंग के पास पंचर बनाने वाले की दुकान पर आ कर रुकी. ड्राइवर रोशनलाल पंचर ठीक करने लगा. इस दौरान कार में बैठे ईश्वर त्यागी और उस के 2 दोस्त राजेंद्र दत्त और सुरेंद्र सिंह उतर कर चाय की दुकान की तरफ चल दिए. ईश्वर त्यागी की पत्नी माया त्यागी कार में ही बैठी रही. तभी वहां 2 लोग आए और उन्होंने कार में बैठी माया से कुछ बदतमीजी की और खिड़की से हाथ अंदर डाल कर उस को छूने लगे. यह देख कर ईश्वर और उस के दोस्त दौड़ कर कार के पास आए और कुछ लड़ाईझगड़े के बाद दोनों युवकों को धक्का दे कर वहां से भगा दिया. लेकिन ईश्वर और उस के दोस्तों को यह नहीं मालूम था कि दोनों सादे कपड़ों में पुलिसकर्मी थे और अब उन के ऊपर बड़ा खतरा आने वाला था.

जब पंचर बनाने वाले ने उन्हें बताया कि उन में से एक बागपत थाने का सबइंस्पैक्टर नरेंद्र सिंह चौहान और दूसरा वहां का कौंस्टेबल है तो ईश्वर ने वहां से जल्दी निकलने की कोशिश की. लेकिन उन की गाड़ी स्टार्ट नहीं हुई. वे उतर कर धक्का लगाने लगे और इसी बीच चंद कदम दूर स्थित थाने से 10-11 पुलिस वाले बंदूक और डंडे के साथ भागते हुए आए और उन्हें घेर लिया. उन्होंने बिना कुछ बात किए ईश्वर त्यागी, राजेंद्र दत्त, सुरेंद्र सिंह को गोली मार दी. 3 दोस्त, जो हंसतेबतियाते गाजियाबाद से बागपत एक विवाह समारोह में शामिल होने के लिए जा रहे थे, पुलिस की गोलियों से छलनी हो गए.

घटना का दुखद अंत यही नहीं था. ताकत के नशे में चूर सबइंस्पैक्टर नरेंद्र सिंह चौहान ने गाड़ी में डरीसहमी बैठी माया त्यागी को कार से बाहर घसीट लिया. उस ने माया के साथ सरेबाजार जोरजबरदस्ती की. उस के सारे गहने नोच लिए और फिर उसे निर्वस्त्र कर दिया और नग्न अवस्था में ही थाने तक पैदल ले गया. माया के चारों तरफ पुलिस वाले हाथों में डंडे और राइफल लिए डाकूडाकू का शोर मचाते चल रहे थे और उन के साथ चल रही थी तमाशा देखने वाली भीड़.

थाने में हुआ बलात्कार

इस मामले में अदालत में एक चश्मदीद ने गवाही दी कि थाने के अंदर भी पुलिस वालों ने माया के साथ बेरहमी के साथ बरताव किया. पुलिस माया को बड़ी देर तक थाने के अहाते में भी नंगा घुमाती रही और जनता के सामने उस का प्रदर्शन करती रही. इस के बाद थाने के अंदर बनी कोठरी में 9 पुलिसकर्मियों ने उस के साथ बलात्कार किया. कोर्ट में अपनी गवाही में माया ने उन के नाम बताए- डी पी गौड़, एम के गुप्ता, नरेंद्र सिंह चौहान, जमादार सिंह, रामगीर, काशीराम दीवान, आनंद गीर, राकेश और प्रताप.

अदालत में प्रस्तुत माया की मैडिकल रिपोर्ट में उस के शरीर पर 25 जगह गहरी चोट के निशान थे. उस के गुप्तांगों में भी डंडे से चोट की गई थी. एक महिला के साथ दरिंदगी का हर वह काम किया गया जिसे सुन कर रूह कांप उठे. सबइंस्पैक्टर नरेंद्र सिंह चौहान ने उस रोज 2 बजे थाने में जीडी इंट्री करते हुए पूरी घटना को पुलिस एनकाउंटर लिखा. उस ने लिखा कि सिंडिकेट बैंक को लूटने आए डकैतों को पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया. जबकि न तो सिंडिकेट बैंक में लूट की कोई घटना हुई थी न माया और उस के पति व दोस्तों के पास कोई हथियार था.

इस घटना को जिस ने भी सुना वह थाने की ओर चल दिया. देखतेदेखते सैकड़ों लोगों ने थाने को घेर लिया. इस से हुआ यह कि माया की जान बच गई. उस वक्त थाने में अधिवक्ता जसबीर सिंह किसी मामले में अपने मुवक्किल मलखान सिंह के साथ आए हुए थे. मलखान सिंह ने माया को देखा तो पहचान गए. वह उन के गांव साकलपट्टी की बेटी थी. जसबीर सिंह और मलखान ने पुलिस का विरोध किया. उन्होंने गांव में माया के पिता और भाई को संदेश भिजवाया और तब तक भीड़ के साथ थाने में डटे रहे जब तक उस के पिता और भाई वहां नहीं पहुंच गए. लोगों की मुस्तैदी के चलते उस दिन माया उन वरदीधारी दरिंदों के हाथों मारे जाने से तो बच गई मगर इस घटना के बाद उस की पूरी जिंदगी नरक में तबदील हो गई.

चौधरी चरण सिंह का धरना

कई दिनों तक तो बात स्थानीय समाचारों तक ही रही. पुलिस मामले को डकैती बताने की पूरी कोशिश करती रही. इसी बीच 23 जून को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी की प्लेनक्रैश में मृत्यु हो गई. तमाम अखबार कई दिनों तक उन की मौत की सुर्खियों से भरे रहे. फिर देश भूतपूर्व राष्ट्रपति वराहगिरि वेंकटगिरि की मौत से शोकाकुल हो गया और माया त्यागी के साथ हुए जघन्य अपराध पर किसी का ध्यान नहीं गया.

मगर बागपत के वकील जगबीर सिंह, उन के साथी वकीलों और कुछ नागरिक संस्थाओं ने हंगामा किया तो मामला कई हफ्तों के बाद उछला. दिल्ली की संसद में हंगामा मच गया और मेरठ में जाट नेता चौधरी चरण सिंह धरने पर बैठ गए. लेकिन तब भी इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई.

सुप्रीम कोर्ट की महिला वकीलों ने मोरचा खोला तो एक जुलाई को केंद्रीय गृहमंत्री ज्ञानी जैल सिंह ने घटनास्थल का मुआयना किया. इस के बाद 4 जुलाई को बागपत थाने के एसओ को छुट्टी पर भेज दिया गया. प्रदेश की वी पी सिंह सरकार एक थानेदार पर कार्रवाई क्यों नहीं कर सकी? इस का जवाब उसी राजनीतिक निरंकुशता में छिपा है जिस में सत्ता ताकत का पर्याय होती है, सेवा का नहीं.

माया त्यागी के साथ हुए उस जघन्य अपराध ने पूरे देश को हिला दिया. बागपत चौधरी चरण सिंह की जमीन थी. पूर्व उपप्रधानमंत्री, पूर्व गृहमंत्री और उस ताकतवर जाट नेता की, जो देश का पहला पिछड़ों का नेता माना जाता है. वह चौधरी चरण सिंह, जिस ने सर्वशक्तिमान इंदिरा गांधी को जेल भिजवा दिया था. इसलिए इस घटना से 10 दिनों पहले ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए विश्वनाथ प्रताप सिंह को समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें.

उधर, इस कांड का आरोपी एसओ डी पी गौर कांग्रेस नेता राजेश पायलट का खास आदमी था, इसलिए मुख्यमंत्री उस पर हाथ डालने में डर रहे थे. संजय गांधी के खास दोस्त राजेश पायलट संजय ब्रिगेड के गुर्जर सिपहसालार थे. गाजियाबाद के रहने वाले पायलट उत्तर प्रदेश में ज्यादा रुचि रखते थे और बागपत उन की पसंदीदा लोकसभा सीट थी.

दिल्ली के आसपास के इलाके में चौधरी चरण सिंह की घेराबंदी के लिए संजय गांधी ने पायलट को चढ़ा रखा था. संजय ब्रिगेड ने राजेश पूरे यूपी में चुनाव की तैयारी कर ली थी और पश्चिमी यूपी की कमान राजेश पायलट के हाथ में थी. हालांकि इसी बीच संजय गांधी की मौत हो गई और बाद में इंदिरा गांधी ने पायलट को राजस्थान भेज दिया. मगर पायलट की वजह से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री इंस्पैक्टर गौर और उस के मातहत कर्मियों पर ऐक्शन लेने से कतराते रहे. इन्हीं राजेश पायलट के बेटे सचिन पायलट आजकल राजस्थान में अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं.

आखिरकार, माया को इंसाफ दिलाने के लिए भारी विरोध प्रदर्शन और अदालत की फटकार के कई महीनों बाद राज्य सरकार ने मामले की जांच सीबीसीआईडी को सौंपी और घटना की जांच के लिए एक कमेटी बनाई. 1988 में जिला अदालत ने 6 पुलिसकर्मियों को दोषी मानते हुए 2 को फांसी की सजा और 4 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई. हालांकि इस से पहले माया त्यागी कांड के मुख्य आरोपी सबइंस्पैक्टर नरेंद्र सिंह की हत्या हो चुकी थी. उस की हत्या के आरोप में ईश्वर त्यागी के भाई विनोद त्यागी को गिरफ्तार किया गया था जो खुद यूपी पुलिस में कौंस्टेबल था और जिसे अपने भाईभाभी के साथ हुई बर्बरता की खिलाफत करने के कारण शासन के इशारे पर नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था.

कहते हैं कि उसी ने अपने भाईभाभी और उन के 2 दोस्तों के साथ हुए जघन्य अपराध के जिम्मेदार नरेंद्र सिंह चौहान को मौत के घाट उतार दिया मगर विनोद के खिलाफ कोई सुबूत न मिलने के कारण 2009 में उस पर लगे सभी आरोप खारिज हो गए और 2014 में 34 साल बाद हाईकोर्ट ने उस की बहाली का आदेश भी सुना दिया. बाद में इस अपराध में 11 पुलिसकर्मियों को दोषी पाया गया. जिन में से कुछ जेल में हैं मगर ज्यादातर अब रिहा हो चुके हैं.

वरदी को सत्ता के वरदहस्त और शासन में बैठे सत्तालोलुप नपुंसक नेताओं के कारण भारतमाता की बेटियों की इज्जत-आबरू कैसे सरेबाजार तारतार होती है, माया से ले कर आज मणिपुर की कुकी महिलाओं तक सब की एक कहानी है. आज 43 साल बाद भी माया के साथ हुई बर्बरता के जख्म भरे नहीं हैं. अपनी आंखों के सामने पति को पुलिस की गोलियों से छलनी होते देखने वाली माया ने जिंदगी का लंबा वक्त शर्म, जिल्लत और अकेलेपन में बिताया है और आज वह अकेली औरत घोर गरीबी, बुढ़ापे और बीमारी से जू?ा रही है.

दंगों को सरकार की सहमति

औरतों के प्रति सामाजिक असुरक्षा की स्थिति में प्रशासन का दायित्व है कि वह तनाव को जन्म देने वाली स्थितियों का दमन करे. मगर जबजब देश में ऐसी घटनाएं हुईं, यह देखा गया कि शासनप्रशासन लकवाग्रस्त रहा. पुलिस की तरफ से कोई कार्रवाई न होना, सामाजिक असुरक्षा, लोगों के बीच संवाद की कमी, आपसी अविश्वास, डर और दहशत ने आज मणिपुर जैसे शांत, सौम्य और सुंदर प्रदेश के सामाजिक तानेबाने को तोड़ दिया है. भीड़ हिंसक हो कर सड़कों पर तांडव कर रही है क्योंकि उसे रोकने वालों की ही मौन सहमति उस के साथ है.

हिंदू राष्ट्र बनाने की दिशा में बढ़ रही आरएसएस और भाजपा ने पहले मुसलमानों के खिलाफ नफरत का जहर फैलाया और अब मणिपुर में ईसाईयों पर प्रहार हुआ है. जिन ईसाई कुकी लोगों के घर मय सामान के फूंक दिए गए, उन की नागरिकता के सारे सुबूत भी जल कर खाक हो चुके हैं. जो कुकी बचे हैं, अब नई समस्या उन के सामने खुद को इंडियन साबित करने की होगी.

सरकारें आती हैं, चली जाती हैं. मगर उन का चालचरित्र लगभग एक सा रहता है. निर्दोष जनता को दंगे की आग में झांक कर राजनीति अपना स्वार्थ सिद्ध करती है. 5 साल सत्ता सुख भोगने के लिए वह समाज को 5 सदियों तक रिसने वाला जख्म देती है. हिंसा का दंश कोई एक व्यक्ति या परिवार नहीं भोगता, पूरा समाज इस घाव की टीस से छटपटाता है. जिस परिवार का कोई अपना हिंसा में जान गंवाता है, उस के लिए तो यह जीवनभर का दुख होता है.

दहशत से ग्रस्त जीवन

इतना ही नहीं, इस से एक तरह का सामाजिक खौफ भी पैदा होता है. जो व्यक्ति किसी अपने को दंगे में खोता है, उसे हमेशा खोने का डर बना रहता है. यह खौफ बाद में कभी खत्म न होने वाला दुख बन जाता है. हालांकि इस का मतलब यह नहीं है कि हिंसा की चपेट में जो लोग नहीं आते, वे इस से प्रभावित नहीं होते. उन पर सामाजिक सरंचना के दरकने का असर होता है. चूंकि ऐसी हिंसा में समाज टूटता है, इसलिए सामाजिक तनाव के बीच अपनों को खोने के खौफ में वे जीने को अभिशप्त रहते हैं. समाज तो इस से लंबे समय तक कराहता रहता है. बेशक, हिंसक घटनाएं अथवा दंगे क्षणिक होते हैं और कुछ समय के बाद थम जाते हैं लेकिन उन का प्रभाव बरसों तक बना रहता है. लोग मानसिक तौर पर इस से बाहर नहीं निकल पाते.

इस से समुदायों के बीच में इतनी दूरियां पैदा हो जाती हैं कि उन्हें भरने में सदियों लग जाते हैं. कभीकभी तो भरपाई संभव ही नहीं हो पाती है. इसीलिए हिंसा पर जल्द से जल्द काबू पाने और तनाव के कारकों को दूर करने की वकालत की जाती है ताकि सामुदायिक विश्वास पटरी पर लौट सके. आज सुप्रीम कोर्ट यही कोशिश कर रहा है.

जमीन और आरक्षण की लड़ाई

मणिपुर में मार्च 2023 में बहुसंख्यक मैतेई समुदाय को मणिपुर उच्च न्यायालय द्वारा जनजाति का दरजा मिलने से परेशान नागा-कुकी आदिवासियों के विरोध प्रदर्शन में अब तक सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं. हजारों घरों को फूंक दिया गया है. गौरतलब है कि कुकी और नागा जनजाति दोनों को मिला कर मणिपुरी जनसंख्या का लगभग 40 फीसदी (25 फीसदी और 15 फीसदी) है. दोनों ईसाई धर्म को मानने वाले हैं और कुछ इसलाम को मानते हैं. इन को जनजाति का दरजा और आर्थिक आरक्षण प्राप्त है.

मैतेई समुदाय जनसंख्या के 50 फीसदी से कुछ अधिक हैं और अधिकांश हिंदू हैं. उन के लिए विधानसभा में 60 फीसदी सीटें भी सुरक्षित हैं. मैतेई समाज यह दुखड़ा गाता है कि वे मूलतया आदिवासी थे किंतु वर्षों पहले हिंदू धर्म अपनाने के कारण उन्हें ‘सामान्य’ श्रेणी में रखा गया और वे जनजाति का आरक्षण पाने से चूक गए. मंडल कमीशन के बाद मैतेई को ‘ओबीसी’ की श्रेणी में रखा गया. इस कारण वे पहाड़ी भूमि नहीं खरीद सकते जबकि कुकी और नागा जनजाति होने के कारण पहाड़ी और समतल- दोनों जगह भूमि खरीद सकते हैं.

बरसों से कुकी और नागा जातियों की भूमि और घरों पर मैतई समुदाय की नजर है. इस इच्छा को भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने और उभारा, जिस के चलते बीते कई सालों से शांत और सुंदर मणिपुर में, जहां पहले कुकी और मैतेयी में खासा मेलजोल और रोटीबेटी का संबंध था, हिंसक वारदातें होने लगी थीं. वैमनस्य बढ़ने लगा था. वैमनस्य की आग को भाजपा नेताओं ने खूब हवा दी. 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर साल की शुरुआत से ही ध्रुवीकरण की साजिश शुरू हो गई. इस बीच देश के गृहमंत्री अमित शाह के भी कई चक्कर मणिपुर के लगे.

इसी बीच, मणिपुर उच्च न्यायालय ने मैतेई जाति को अनुसूचित जनजाति में डालने का आदेश दे दिया. इस से इन समुदायों के बीच भयानक द्वंद्व छिड़ गया. कुकी जाति के लोगों पर हमले होने लगे. उन को गाजरमूली की तरह काटा जाने लगा. दंगों को रोकने के लिए आश्चर्यजनक रूप से राज्य की भाजपा सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया, लेकिन जब मामला देशभर में सुर्खियों में आ गया तो राज्य में सेना तैनात की गई और देखते ही गोली मारने (शूट एट साइट) के आदेश जारी किए गए. इस में भी कुकी जाति के लोग ही सेना की गोलियों से मारे गए. लेकिन जब मई 2023 में बहुसंख्यक मैतेई द्वारा कुकी जनजाति की महिलाओं को निर्वस्त्र कर सड़कों पर परेड कराने की वीभत्स और नृशंस घटना घटी और उस के वीडियो डेढ़ महीने बाद वायरल हुए तो उस ने देशदुनिया को हिला कर रख दिया.

डेढ़ महीने तक राज्य और केंद्र सरकार व उन की पुलिस ने महिलाओं के साथ बर्बरता करने वाले तत्त्वों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की. एफआईआर दर्ज होने के बावजूद किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई. इस के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कड़ा रुख इख्तियार किया और सरकार को फटकार लगाई, तब कुछ गिरफ्तारियां हुईं.

गौरतलब है कि मई 2023 में ही सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा मैतेई को आरक्षण दिए जाने के विवादित आदेश के लिए हाईकोर्ट को फटकार लगाई थी जिस के चलते जून 2023 में मणिपुर उच्च न्यायालय ने अपने आदेश का रिव्यू करने की प्रक्रिया शुरू की थी. मगर राजनीतिक साजिशों के चलते मणिपुर के हालात बद से बदतर होते चले गए.

मणिपुर में महिलाओं के साथ हुई नृशंस घटना ने भारत का ‘विश्वगुरु’ बनने का दावा खत्म कर दिया है. जिस ‘गुरुकुल’ में बच्चियों के साथ यह बरताव हो, वह कैसा गुरु? हम सावधान रहें कि ‘प्रेमगुरु’ का सम्मान प्राप्त देश अपनी बेटियों के चीरहरण और बर्बरता के कारण कहीं ‘दुराचार गुरु’ का मैडल न जीत जाए. यदि ऐसे अपराध रोके न गए तो भारत फिर से महाभारत की ओर बढ़ेगा.

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