जिसे समूचा विपक्ष अहंकार कहता नजर आया असल में वह प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी का लडखडाता आत्मविश्वास है जो देश के लिए चिंता की बात होनी चाहिए कि हमारे प्रधानमन्त्री सब्र और समझ खोने लगे हैं. वे किसी भी कीमत पर कुर्सी से चिपके रहना चाहते हैं और अपनी यह ख्वाहिश जो कुंठा की शक्ल लेती जा रही है उसे लालकिले के भाषण में भी जताने से भी नही चूक रहे.

मैं अगले साल झंडा फहराने और उपलब्धियां गिनाने फिर आऊंगा यह वाक्य नरेन्द्र मोदी के अन्दर गहराते डर को बयां करता है. यह डर बीती 12 अगस्त को मध्यप्रदेश के सागर से भी व्यक्त हुआ था जब उन्होंने दलित समाज सुधारक रविदास के स्मारक स्थल यानी मंदिर का भूमि पूजन किया था. तब भी उन्होंने कहा था कि जिस स्मारक की आज आधार शिला रखकर जा रहा हूँ उसका लोकार्पण करने भी मैं ही साल डेढ़ साल बाद आऊंगा.

अब जबकि लोकसभा चुनाव में 9 महीने ही बचे हैं तब यह बेहद जरुरी हो जाता है कि नरेन्द्र मोदी के भाषणों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया जाए राजनैतिक विश्लेषण करने की जिम्मेदारी तो विपक्ष और मीडिया का एक छोटा सा ही सही हिस्सा निभा ही रहा है. लालकिले से प्रधानमन्त्री 15 अगस्त का भाषण महज भाषण नहीं होता बल्कि वह एक एतिहासिक दस्तावेज भी होता है. इस बार नरेन्द्र मोदी ने इस दस्तावेज पर प्रमुख रूप से जो लिखा उस पर एक नजर डालें तो उसमें उनका कुर्सी प्रेम और सत्ता खो देने का भय ही नजर आता है.

सागर में उन्होंने यह नहीं कहा था कि डेढ़ साल बाद जब मैं आऊंगा तो आप लोगों यानी जनता के आशीर्वाद से राज्य में भाजपा की ही सरकार होगी और भाई शिवराज सिंह चौहान ही मुख्यमंत्री होंगे. इसी तरह 15 अगस्त के उनके भाषण में वे ही वे यानी मोदी ही मोदी या मैं ही मैं शामिल था उन्होंने यह भी नही कहा कि अगर नसीब रहा तो यही राजनाथ सिंह ही रक्षामंत्री होंगे, अमित शाह विदेश मंत्री रहेंगे और वित्त मंत्री बहिन निर्मला सीतारामण ही होंगी. यानी मोदी इन दिनों सिर्फ और सिर्फ अपने प्रधानमन्त्री बने रहने की बात सोच और कर रहे हैं. इतना आत्मकेंद्रित और आत्ममुग्ध हो जाना 140 करोड़ परिवारजनों के लिए किसी भी लिहाज से शुभ नही कहा जा सकता.

90 मिनिट का यह भाषण पारसी थियेटर शैली का था जिसमें स्टेज के सामने बैठे दर्शकों को मालूम रहता है कि अब क्या होने वाला है और नाटक के किरदार जो फुसफुसा रहे हैं वे शब्द और भाव अर्थ में कैसे होंगे. एक हद तक यह मसाला हिंदी फिल्मों सरीखा भी था उसमें भी दर्शकों को अंदाजा रहता है कि अब क्या होगा.

यह कहा नरेन्द्र मोदी ने

लालकिले के प्रांगण में बैठे तमाम आम और खास लोगों के चेहरे पर भी बेफिक्री के भाव प्रधानमन्त्री के भाषण को लेकर थे मसलन-

1947 में हजार साल की गुलामी में संजोये हुए हमारे सपने पूरे हुए. मैं पिछले एक हजार वर्षों की बात इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि मैं देख रहा हूँ कि देश के पास एक बार फिर अवसर है. मरे शब्द लिखकर रख लीजिये. अभी हम जिस युग में जी रहे हैं इस युग में हम जो करेंगे, जो कदम उठाएंगे और एक के बाद जो निर्णय लेंगे वह स्वर्णिम इतिहास को जन्म देगा.

आज भारत पुरानी सोच पुराने ढर्रे को छोड़ करके लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए चल रहा है जिसका शिलान्यास हमारी सरकार करती है उसका उद्घाटन हम अपने कालखंड में ही करते हैं इन दिनों जो शिलान्यास मेरे द्वारा किया जा रहा है आप लिख कर रख लीजिये उनका उदघाटन भी आप लोगों ने मेरे नसीब में छोड़ा हुआ है.

भाग्यवाद की हद ही इसे कहा जायेगा कि अगली बार भी बकौल नरेन्द्र मोदी, नरेन्द्र मोदी ही प्रधानमन्त्री होंगे हालाँकि इस बात को मौजूद लोगों ने लिखा नही क्योंकि किसी के पास पेन कापी या डायरी नही थे. उपर आसमान तरफ से इस आशय की कोई भविष्यवाणी नही हुई है लेकिन लगता है ब्रह्मा जी का लेख मोदी जो को मालूम है तो वेबजाह 2024 के लोकसभा चुनाव पर कवायदें और बहसें हो रही हैं.

सभी को मान लेना चाहिए कि विधि ने उनके नसीब में अभी और हजारों शिलान्यास उद्घाटन भूमि पूजन बगैरह लिख छोड़े हैं जिसको सच साबित करना अब उनके 140 करोड़ परिवारजनों की जिम्मेदारी है जिनकें से 5 – 6 करोड़ सवर्ण तो इसे उठाएंगे ही बाकि दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों और आदिवासियों का ठिकाना नही. 60 -70 के दशक में सरपंचों के चुनाव इसी तर्ज और शली में होते थे. पीपल या बरगद के पेड़ के नीचे बैठे गाँव वाले दबंग सवर्ण या ठाकुर के नाम का प्रस्ताव आते ही अपने हाथ उपर उठाकर मार कुटाई से खुद को बचा ले जाते थे.

मोदी जी की भविष्यवाणी से देश एक भारीभरकम चुनावी खर्चे से भी बच जायेगाफिर भले ही वे और 5 साल वन्दे भारत टाइप महंगी और रईसों की लाग्झ्री ट्रेनों को रेलवे गार्ड जैसे हरि झंडी दिखाते गुजार दें . गौरतलब है कि इन ट्रेनों के बारे में भी उन्होंने बड़े फख्र से कहा कि रेल आधुनिक हो रही है तो वन्दे भारत ट्रेन भी आज देश में चल रही है गाँव गाँव पक्की सड़कें बन रही हैं तो इलेक्ट्रिक बसें मेट्रो की रचना भी आज देश में हो रही है . आज गाँव गाँव तक इंटरनेट पहुँच रहा है.

हकीकत यह रही

वन्दे भारत ट्रेनों की हालत यह है कि वे खाली चल रही हैं  प्रधानमन्त्री की ही दिखाई हरी झंडी से.7 जुलाई से शुरू हुई लखनऊ गोरखपुर रूट की वन्दे मातरम ट्रेन को शुरू के 4 – 5 दिन तो ठीक ठाक मुसाफिर मिले लेकिन जुलाई के तीसरे सप्ताह में ही यह ट्रेन 80 फीसदी खाली चलने लगी. यानी शुरू में लोग शौकिया तौर पर सवार हुए थे और अब मज़बूरी में इस महंगी ट्रेन में यात्रा कर रहे हैं और जो मज़बूरी में भी नही कर रहे वे वाकई रईस हैं जो इतना महंगा किराया अफोर्ड कर पा रहे हैं .इस ट्रेन की चेयर कार का किराया 890 और एग्जिक्यूटिव क्लास का किराया 1700 रु है . जबकि इंटरसिटी में यही किराया 475 रु है.

भोपाल इन्दोर वन्दे भारत ट्रेन तो तीसरे ही दिन 29 जून को टे बोल गई थी जब 15 फीसदी ही यात्री इसे मिले थे . भोपाल से इन्दोर का किराया 810 और 1500 रु अफोर्ड करने में तो रईसों को भी पसीने आ रहे हैं क्योंकि इस रूट पर लग्झारी बस का किराया 400 रु है और एक्सप्रेस ट्रेन का 200 रु है. एक आधा घंटा की बचत के लिए कोई समझदार आदमी ज्यादा पैसे खर्च नहीं कर रहा जिससे रेलवे लगातार घाटे में जा रहा है और इस घाटे की भरपाई गरीबों से ही की जाना तय है.

ये वे गरीब हैं जो भव्य रेलवे स्टेशनों में दाखिल होने से भी डरने लगे हैं क्योंकि वहां हर चीज या सुविधा का जरूरत से ज्यादा पैसा देना पड़ता है. 2014 तक स्टेशनों पर शौच जाने के 50 पैसे लगते थे अब 10 रु देना पड़ते हैं . प्लेटफार्म टिकिट भी एक रु से बढ़कर 10 रु का हो गया है. पार्किंग प्राइवेट हाथों में है जिसका न्यूनतम शुल्क ही 20 रु 2 घंटे का है. इसके बाद यह प्रति घंटे के हिसाब से बढ़ता जाता है . जिन गरीबों को मोदी जी झुनझुना दिखाते रहते हैं उन्हें तो 10 रु से कम में 30 मिलीग्राम की पतली चाय पीने के पहले भी हजार बार सोचना पड़ता है.

सड़कों के भी यही हाल हैं. वे भी अमीरों के लिए हैं जिनकी चमचमाती बड़ी बड़ी कारों के लिए अरबों रु खर्च कर एहसान गरीबों पर थोपा जाता है कि देखों हमने इतने किलोमीटर सडक बना दी अब हमे वोट दो जिससे मोदी जी फिर से प्रधानमन्त्री बनें और तुम्हारी बची खुची दरिद्रता दूर कर सकें . क्योंकि उनका तो ब्रह्मा विष्णु और महेश से सीधा कनेक्शन है. बेचारे गरीब यह भी नहीं पूछ पाते कि हुजुर माई बाप इन सड़कों पर हमारी बची खुची बैलगाड़ियाँ, ट्रेक्टर और बाइकें तो न के बराबर चलती हैं इसलिए हमारे सर मढ़ा जा रहा एहसान इल्जाम ज्यादा लगता है. आपको रईसों को जो सहूलियतें देना हो दो लेकिन उसकी वसूली हम से तो मत करो.

यही हाल गाँव गाँव की इंटरनेट सेवा का है . इसमें कोई शक नही कि गांवों में इंटरनेट का चलन बढ़ा है लेकिन उतना नही जितना कि 15 अगस्त के भाषण में प्रधानमन्त्री ने बताया . इंटरनेट इन इंडिया रिपोर्ट 2022 के मुताबिक भारत में कोई 75 करोड़ 90 लाख इंटरनेट यूजर्स हैं जिनमें से 39 करोड़ 99 लाख ग्रामीण हैं. एक अनुमान के मुताबिक कोई 85 करोड़ लोग गांवों में रहते हैं अब उनमें से आधे से भी कम इंटरनेट इस्तेमाल करते हैं तो यह कोई गिनाने लायक उपलब्धि तो नही.

इन 75 करोड़ 90 लाख में से सेमप्ल सर्वे रिपोर्ट की मानें तो 76.7 फीसदी को डाक्यूमेंट को कापी पेस्ट करना नही आता, 87.5 फीसदी को कम्प्यूटर में नया साफ्टवेयर इंस्टाल करना नही आता, 92 .5 फीसदी को एक डिवाइस से दूसरी डिवाइस कनेक्ट करना नही आता , इससे 2 और फीसदी ज्यादा को प्रेजेंटेशन बनाना नही आता और इससे भी 2 फीसदी ज्यादा कम्प्यूटर प्रोग्राम बनाना नही जानते ..जाहिर है इनमे 96 फीसदी लोग ग्रामीण हैं जिनके लिए इंटरनेट का मतलब भजन और गाने सुनना सहित पोर्न फ़िल्में देखना है.

अब भला ऐसी डिजिटल क्रांति का राग अलापने का फायदा क्या जिसमें अब एक ताजे आंकड़े के मुताबिक 51 करोड़ यूजर्स शहरों के और 34 करोड़ गाँवों के बचे हैं. डिजिटल लिटरेसी के अभाव में हालत घर के कोने में पड़े उज्ज्वला योजना के मुंह चिढ़ाते गेस सिलेंडरो जैसी हो गई है कि पैसा हो तो डाटा की सहूलियत है नही तो एक बार इंटरनेट इस्तेमाल कर आंकड़ा बढ़ाते चलते बनो और जब कोई काम पड़े तोकियोस्क सेंटर बालों की जेब भरते रहो.

सामर्थ्य अर्थव्यस्था और परिवारवाद 

नरेन्द्र मोदी के पूरे भाषण में सामर्थ्य और तीसरे नम्बर की अर्थव्यवस्था की चाशनी भी खुली रही जिसकी बखिया विपक्षियों ने तुरंत भी उधेड़ कर रख दी कि 2014 में देश पर कुल इतना कर्ज था और दस साल में बढ़कर इतना हो गया. सामर्थ्य से नरेब्द्र मोदी का अभिप्राय तो विपक्षियों को भी नहीं समझ आया कि आखिर संस्कृतनुमा इस शब्द को 45 बार ढाल बनाकर वे कहना क्या चाह रहे हैं क्या यह ताकत की किसी नई दवाई का नाम है. अगर देश सामर्थ्यवान हो ही गया है तो फिर लोंचा क्या है और तीसरी बार प्रधानमन्त्री बनकर वे कितनी सामर्थ्य और देना चाहते हैं . यानी देश में अभी भी असमर्थता है जिसे जड से मिटाने भाजपा को चुनते रहने और मोदी को स्थायी प्रधानमन्त्री बनाने की सख्त जरूरत है नही तो हम फिर से गुलाम हो जायेंगे.

और इस गुलामी की वजह हर कोई जानता है कि कांग्रेस नेहरु गाँधी परिवार है जिसने 65 साल में देश को पौराणिक और वैदिक काल में ले जाकर खड़ा कर दिया. देश में जो दुर्दशा और बदहाली दिखती है (बशर्ते देखने की इजाजत हो तो) उसके जिम्मेदार पहले प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरु हैं जिन्होंने करपात्री महाराज जैसों सहित सवर्ण और सनातनियों के दबाब के बाद भी देश को हिन्दू राष्ट्र नही बनने दिया .इस बार बार बार तुष्टिकरण की बात कहकर नरेन्द्र मोदी  4 – 5 फीसदी सवर्णों को खुस करने की कोशिश की है जिनका तुष्टिकरण करने आरएसएस ने उन्हें नियुक्त किया है.

नेहरु ने कारखानों, फेक्टरियों, रेलों, बांधों और टेक्नोलाजी को प्राथमिकता देकर देश की संस्कृति और गौरव नष्ट कर दिया. उन्होंने दलितों, आदिवासियों और औरतों के हक में कानून बनाये. 50 और 60 के दशक में भी आधुनिक विचारधारा अपनाई जिससे हिन्दू पिछड़ गया.

अब यही सिलसिला और विरासत सोनिया और राहुल गाँधी आगे बढ़ाने की साजिश रच रहे हैं जिससे देश को और खुद को बचाए रखने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमन्त्री बनाना जरुरी है. नही तो देश सदियों पीछे चला जायेगा और मुस्लिम राष्ट्र भी बन सकता है. किसी को यकीन न हो तो उसे सोशल मीडिया पर हिंदुत्व वाले ग्रुपों से जुडकर इस भयावह और रूह कंपा देने वाले परम सत्यों की दैनिक खुराक बीकाम्लेक्स के केप्सुलों की तरह जरूरत हो न हो लेनी चाहिए इससे मन मस्तिष्क सक्रिय और उत्तेजक रह्ते हैं और इसी से मणिपुर और हरियाणा जैसी हिंसा और औरतों की बेइज्जती परवान चढ़ती है जिसकी चर्चा उन्होंने न जाने किस धुन में कर दी नही तो ऐसे क्षुद्र विषयों पर बोलना उनकी शान के खिलाफ है.

कर्नाटक और अमेरिका की खीझ

इधर मोदी जी ने परिवारवाद और भ्रष्टाचार को कोसा और उधर विपक्ष ने देर न लगाते भाजपा के परिवारवाद और भ्रष्टाचार के सौ से भी ज्यादा उदाहरण उँगलियों पर गिना दिए. उनकी जितनी खिल्ली 15 अगस्त को उडी उतनी शायद दस साल में भी कभी नही उडी होगी और इसके जिम्मेदार खुद नरेन्द्र मोदी हैं जो विपक्ष की एकता और कांग्रेस सहित राहुल गाँधी की बढ़ती स्वीकार्यता और लोकप्रियता से हद से ज्यादा डरे और सहमे हुए हैं. जिसके चलते वे लालकिले के भाषण और चुनावी सभा में फर्क नही कर पाए.

इतनी बेचारगी और अपरिपक्वता भी राजनैतिक इतिहास में कभी देखने में नही आई कि किसी प्रधानमन्त्री को पद की मर्यादा ताक में रखने मजबूर होना पड़ा हो खासतौर से उन्हें जो बचपन से रामायण, भागवद और सुन्दरकाण्ड में मर्यादा की महत्ता सुनते और उस पर जितना हो सके अमल भी करते आए हैं.

नरेंद्र मोदी की बैचेनी की असल और मूल वजह राहुल गाँधी हैं जिन्हें वे 2014 के चुनाव प्रचार में युवराज कहकर तंज कसते रहते थे. तब वे सोनिया गाँधी को राजमाता और राबर्ट बाड्रा को दामाद एक खास व्यंगात्मक लहजे में कहते थे. ठीक वैसे ही जैसे पश्चिम बंगाल में उन्होंने ममता बनर्जी को दीदी ओ दीदी. कहते मजाक बनाया था जिसे वहां की जनता ने पंचायत चुनाव तक में नकारा ही नही बल्कि एक तरह से दुत्कार दिया.

कर्नाटक चुनाव में खासतौर से आखिरी के पांच दिन की रैलियों में भी वे गाँधी परिवार को कोसते रहे और सहारा राम की जगह बजरंगबली का लिया था . लेकिन जब नतीजे आए तो भाजपा औंधे मुंह गिरी पड़ी थी. इससे उन्हें ज्यादा झटका लगा था क्योंकि चेहरों की सीधी  लड़ाई में  उनके बजाय वोटर ने राहुल गाँधी को तरजीह दी थी. यह नरेन्द्र मोदी के लिए किसी सदमे से कम नही था जो अपनी लोकप्रियता को लेकर विकट की खुशफहमी में थे. इसके पहले राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा को मिले रेस्पांस से भी उनका टेंशन और बढ़ा था.

फिर बीती जून के पहले हफ्ते में अमेरिका में राहुल गाँधी ने जो किया और कहा उससे वे और परेशान हो गये क्योंकि अब सारे तीर उलटे पड़ने लगे थे. राहुल ने अमेरिका में भारत का जमीनी चिंत्रण बेहद सावधानी से किया कि वहां मुसलमान, दलित, आदिवासी और औरतें सब परेशांन हैं और मोदी राज से मुक्ति चाहते हैं . मीडिया की आजादी या गुलामी या बंदिश कुछ भी कह लें पर भी राहुल ने भगवा गेंग का लिहाज नही किया सरकारी एजेंसियों के दुरूपयोग पर भी राहुल ने बेहिचक आरोप लगाये थे.  इस पर भगवा गेंग को लगा कि ऐसा जरुरी नहीं कि महाभारत वाली चक्रव्यूह की कहानी का दौहराब हर बार हो . सरकारी एजेंसियों के दुरूपयोग पर भी राहुल ने सरकार को घेरा था.

लेकिन राहुल गाँधी की अमेरिका के सेनफ्रांसिस्को में कही गई एक बात 15 अगस्त को खुद को प्रधानमन्त्री घोषित कर देने वाली नरेंद्र मोदी पर एकदम सटीक बैठी,  मुझे लगता है कि पीएम मोदी से कहा जाये कि वे भगवान के सामने बैठ जाएँ तो वे भगवान को समझाने लगेंगे कि ब्रह्माण्ड में क्या चल रहा है. भगवान भी भ्रमित हो जायेंगे कि उन्होंने क्या बनाया है भारत में भी यही चल रहा है.

भारत में कुछ लोग ऐसे हैं जो सब कुछ जानते हैं. जब वे वैज्ञानिक के पास जाते हैं तो उन्हें विज्ञानं के बारे में बताते हैं. जब वे इतिहासकार के पास जाते हैं तो उन्हें इतिहास के बारे में  बताते हैं आर्मी को युद्ध के बारे में बताते हैं, एयरफ़ोर्स को उड़ने के बारे में सब कुछ बताते हैं लेकिन सही बात यह है कि उन्हें कुछ समझ नही आता क्योंकि अगर आप किसी को सुनना नही चाहते तो आप उसके बारे में कुछ नही जान सकते

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