छुपाछुपी के खेल का जमाना लद गया. अब जमाना आ गया है क्विटाक्विटी हुआ का. वैसे भी फिजिकल से डिजिटल के युग में आ गए हैं हम. किस के पास समय है छुपाछुपी खेलने का? इस के लिए ज्यादा जगह चाहिए. क्विटाक्विटी डिजिटल खेल है और मोबाइल फोन से आसानी से खेला जा सकता है. मोबाइल फोन तो आजकल सर्वाधिक आवश्यक भी है और सर्वाधिक महत्वपूर्ण भी. दिलोदिमाग से भी कुछ ज्यादा.
क्विटाक्विटी को समझने के लिए एक वाकिए को जानना जरूरी है. हुआ यों कि किसी ‘फाइल’ को ले कर एक व्हाट्सएप ग्रुप में झड़प हो गई. सामान्य तौर पर व्हाट्सएप ग्रुप बनता है किसी और उद्देश्य के लिए और उस का प्रयोग होने लगता है किसी और उद्देश्य के लिए. मुख्यतः चुटकुले शेयर करने और गुड मौर्निंग, गुड ईवनिंग करने के लिए ये ग्रुप बनते हैं. सैल्फी ले कर अपलोड करना भी एक बहुत बड़े सामाजिक महत्व का काम है. ‘आए थे हरिभजन को ओटन लगे कपास’ सिर्फ व्हाट्सएप ग्रुप पर नहीं हर चीज पर लागू होता है.
उदाहरण के लिए, जनता सरकार चुनती है किसी और उदेश्य के लिए और सरकार काम करती है कुछ और. इसी प्रकार सरकार कर्मचारी का चयन करती है किसी और काम के लिए और चयनित होने के बाद कर्मचारी करने लगता है कुछ और ही काम.
आज के युग में ज्ञान का सर्जन हर मस्तिष्क में इतना अधिक होने लगता है और इस का कारण है हर स्थान पर ज्ञान की उपलब्धता. हर हाथ में मोबाइल है, हर मोबाइल में व्हाट्सएप, फेसबुक और इंस्टाग्राम सदृश ज्ञानकुंड, बल्कि ज्ञानसागर उपलब्ध है. ज्ञान के अत्यधिक मात्रा में सर्जन हर ओर फैले अनेकानेक माध्यमों पर उपलब्ध ज्ञान के कारण होता है. व्हाट्सएप, यूट्यूब आदि ओपन यूनिवर्सिटी का दायित्व बखूबी निभाते हैं. ऐसे और न जाने कितनी यूनिवर्सिटी हैं, जो हर स्मार्टफोन में उपलब्ध हैं. अब जब ज्ञान की इतनी प्राप्ति हो, तो उस के निष्कासन के लिए कोई तो स्थान चाहिए. और इस ज्ञान के उत्सर्जन के लिए सोशल मीडिया से बेहतर स्थान और क्या हो सकता है भला? जहां से कुछ प्राप्ति होती है, वहां कुछ देना भी जरूरी है.
कबीरदास का जमाना बीत चुका है और ‘बुरा जो देखन…’ का सिद्धांत तो उन के जमाने में ही अप्रचलित हो चुका था. आज तो उस की क्या पूछ रहेगी, बल्कि उन के जमाने में भी उन के अलावा शायद ही कुछ लोग इस बात को मानते होंगे कि उन से बुरा कोई नहीं है. आज सभी अपने स्थान पर सही होते हैं, सभी का नजरिया उन के अपने दृष्टिकोण में सही होता है. पर एक बात पर अधिकतर लोग एकजैसे होते हैं और वह है कि वे जो सोचते हैं, वही सही है, बाकी लोगों की सोच गलत है. अधिकतर लोग, सभी नहीं, कुछ ही सही, पर अपवाद हैं इस के भी. और ये अपवाद सामान्य व्यक्ति नहीं माने जाते हैं. दब्बू माने जाते हैं. बिना रीढ़ के प्राणी माने जाते हैं.
तो क्विटाक्विटी की बात किस संदर्भ में हो रही है, जानना जरूरी है. एक ग्रुप में किसी फाइल को ले कर दो विपरीत विचार वाले कुछ व्यक्ति लड़ पड़े. आजकल वैसे भी फाइल को ले कर हर स्थान पर 2 गुट बन गए हैं. इसे कई आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है. एक उदाहरण मफलर ग्रुप और शाल ग्रुप का ले सकते हैं. मफलर ग्रुप का मत अलग होता है, तो शाल वाले का मत अलग होता है. पंजा ग्रुप और कमल ग्रुप अलग हो सकता है. हाथी ग्रुप, साइकल ग्रुप न जाने कितने ग्रुप हैं. पप्पू ग्रुप और फेंकू ग्रुप भी है. प्रांतवार अलग ग्रुप हैं, वर्गवार अलग ग्रुप हैं और कई आधार पर ग्रुपों की भरमार है.
तो हुआ यों कि एक गुट के व्यक्ति ने कुछ ऐसा पोस्ट किया, जो दूसरे गुट के व्यक्ति को नागवार लगा. तत्क्षण उस व्यक्ति को ग्रुप से बाहर कर दिया गया. अब इस अन्याय को कौन सहता भला. विपक्षी गुट के कई लोग भी एडमिन थे. सो फिर से उन्हें शामिल कर लिया गया. और जवाब में दूसरे उस व्यक्ति को ही ग्रुप से निकाल दिया गया, जिस ने गुटनिकाला के पुनीत कार्य को प्रारंभ किया था. इस निकालानिकाली में कुछ लोग तुनक कर खुद भी क्विट करने लगे. इस प्रकार इसे निकालो उसे निकालो के साथ ही क्विटाक्विटी का खेल भी प्रारंभ हो गया.
कुछ समझदार लोगों ने बीचबचाव किया कि उन का ग्रुप अलग उद्देश्य के लिए बना है और जिस उद्देश्य के लिए बना है, उस के लिए ही उस का प्रयोग होना चाहिए. शेष बातों के लिए अलग मंच हो सकता है. पर उन से भी जो अधिक समझदार थे उन पर इस बीचबचाव का कोई प्रभाव नहीं पड़ा. अब जिन के, मन में यह बात हो कि ‘भला जो देखन मैं चला, भला न मिलया कोई, जो पोस्ट ढूंढा आपना, मुझ से सच्चा न कोई’, वह इस बात के लिए कैसे सहमत हो सकता है कि उस ने जो पोस्ट किया है, वह गलत हो सकता है. इस बात पर अड़ गए कि वे सही हैं. दूसरा पक्ष भी अड़ गया कि मैं सही तू गलत, मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी के तर्ज पर. कुछ देर दोनों ने अपनेअपने सींग अड़ाए रखे. और जब कुछ ज्यादा समझदार लोग उन्हें समझाने लगे, तो फिर उन के अंदर का फूफा जाग गया और खेल शुरू हो गया क्विटाक्विटी का.
फूफा सरीखा नाराज सदस्य तुरंत ग्रुप क्विट करता है. पहले एक ने ग्रुप को क्विट किया, फिर दूसरे ने. कुछ बिलकुल निष्क्रिय सदस्य भी इस क्विटाक्विटी के खेल को देख कर क्विट होने को ले कर सक्रिय हो गए. उन के ग्रुप में होने का आभास भी कुछ लोगों को तभी हुआ, जब उन्होंने ग्रुप छोड़ दिया. वैसे ही जैसे कुछ लोग जब पुरस्कार वापस करते हैं, तभी पता चलता है कि उन्हें कभी पुरस्कार मिला भी था. कुछ लोग उन्हें मनाने और ग्रुप में वापस बुलाने में लगे हैं. सामान्य तौर पर देखा गया है कि जो ग्रुप छोड़ने में आगे होते हैं, वे फिर से ग्रुप में जुड़ने में भी अगुआ होते हैं. देखें आगे मामला क्या होता है, कितने लोग ग्रुप में वापस आते हैं. पर अभी तो निकालानिकाली के साथ ही क्विटाक्विटी का खेल शुरू हो चुका है.